निबंध

महंगाई पर निबंध

महंगाई पर निबंध न केवल इस समस्या का विश्लेषण करता है, बल्कि इसके विभिन्न पहलुओं की गहराई से पड़ताल भी करता है। बढ़ती कमरतोड़ महँगाई भारत जैसे विकासशील देश के लिए एक विकराल समस्या है। इसे समझना और इसपर नियंत्रण पाने के उपाय करना बहुत आवश्यक है। आइए, महंगाई पर निबंध में इन्हीं सब पक्षों पर चर्चा करते हैं–

बढ़ती कमरतोड़ मंहगाई की समस्या

कमरतोड़ महँगाई जीवन के लिए आवश्यक वस्तुओं के मूल्यों में निरन्तर वृद्धि, उत्पादन की कमी और माँग की पूर्ति में असमर्थता की परिचायक है। बढ़ती हुई महंगाई जीवन-चालन के लिए अनिवार्य तत्त्वों (कपड़ा, रोटी, मकान) की पूर्ति पर गरीब जनता के पेट पर ईंट बाँधती है, मध्यवर्ग की आवश्यकताओं में कटौती करती है, धनिक वर्ग के लिए आय के स्रोत उत्पन्न करती है।

देसी घी तो आँख आँजने को भी मिल जाए तो गनीमत है। वनस्पति देवता का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए भी बहुत रजत-पुष्प चढ़ाने पड़ते हैं। पेट्रोल, डीजल, मिट्टी के तेल, रसोई गैस की दिन-प्रतिदिन बढ़ती मूल्य-वृद्धि ने दैनिक जीवन पर तेल छिड़ककर उसे भस्म करने का प्रयास किया है। तन ढकने के लिए कपड़ा महँगाई के गज पर सिकुड़ रहा है। सब्जी, फल, दालें और अचार गृहणियों को पुकार-पुकार कर कह रहे हैं–“रूखी सूखी खाय के ठंडा पानी पी।” रही मकान की बात, अगर महंगाई की समस्या बनी रही तो लोग जंगल में वास करने लगेंगे। दिल्‍ली की हालत यह है कि दो कमरे-रसोई का सैट तीन-चार हजार रुपये किराये पर भी नहीं मिलता। कैसे गुजारा होगा मध्यम वर्ग का?

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आर्थिक नीतियों की विफलता

महंगाई पर निबंध में आर्थिक नीतियों का उल्लेख स्वाभाविक ही है। बढ़ती हुई महँगाई सरकार की आर्थिक नीतियों की विफलता का परिणाम है। प्रकृति के रोष और प्रकोप का फल नहीं, शासकों की बदनीयती और बदइंतजामी की मुँह बोलती तस्वीर है।

काला धन, तस्करी और जमाखोरी महँगाई-वृद्धि के परम मित्र हैं। तस्कर खुले आम व्यापार करता हैं। काला धन जीवन का अनिवार्य अंग बन चुका है। काले धन की गिरफ्त में देश के बड़े नेताओं से लेकर उद्योगपति और अधिकारी तक शामिल हैं। काले धन का सबसे बुरा असर मुद्रास्फीति और रोजगार के अवसरों पर पड़ता है। यह उत्पादन और रोजगार की संभावना को कम कर देता है और दाम बढ़ा देता है।

इतना ही नहीं सरकार हर मास किसी-न-किसी वस्तु का मूल्य बढ़ा देती है। जब कीमतें बढ़ती हैं तो आगा-पीछा नहीं सोचतीं। दिल्‍ली बस परिवहन ने किराये में शत- प्रतिशत वृद्धि के परिणामतः थ्रीह्लीलर, टैक्सी वालों ने भी रेट बढ़ा दिए।

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विदेशी ऋण में बढ़ोत्तरी

विदेशी ऋण और उसके सेवा-शुल्क (ब्याज) ने भारत की आर्थिक नीति को चौपट कर रखा है। भारत का खजाना भर नहीं पाता है।

एक ओर विदेशी कर्ज बढ़ रहा है, तो दूसरी ओर व्यापारिक सन्तुलन बिगड़ रहा है। तीसरी ओर 200 करोड़ रुपये देश की बीमार मिलें और 300 करोड़ रुपये बीस हजार लघु उद्योग नष्ट कर रहे हैं। चौथी ओर राष्ट्रीयकृत उद्योग निरन्तर घाटे में जा रहे हैं। इनमें प्रतिवर्ष अरबों रुपयों का घाटा भ्रष्ट राजनेताओं, नौकरशाही और बेईमान ठेकेदारों के घर में पहुँच कर जन-सामान्य को महँगाई की ओर धकेल रहा है।

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गरीबी दूर करके विकास संभव

गरीब देश की बादशाही-सरकारों के अनाप-शनाप बढ़ते खर्च देश की आर्थिक रीढ़ को तोड़ने की कसम खाए हुए हैं। मन्त्रियों की पलटन, आयोगों की भरमार, शाही दौरे, योजनाओं की विकृति, सब मिलाकर गरीब करदाता का खून चूस रही हैं। देश में खपत होने वाले पेट्रोलियम-पदार्थों के कुल खर्च का एक बड़ा हिस्सा राजकीय कार्यों में खर्च होता है, लेकिन प्रचार माध्यमों से बचत की शिक्षा दी जाती है–“तेल की एक-एक बूँद की बचत कीजिए।”

करोड़ों रुपया लगाकर हम उपग्रह बना रहे हैं, वैज्ञानिक प्रगति में विश्व के महान्‌ राष्ट्रों की गिनती में आना चाहते हैं, किन्तु ग़रीब भारत का जन भूखा और नंगा है। आई.आर.एस. शृंखला उसकी भूख नहीं मिटा पाएगी और न ही ‘इन्सेट’ शृंखला उसकी नग्नता को ढक पाएगी। निश्चित ही वैज्ञानिक प्रगति में निवेश करना आवाश्यक है, लेकिन ग़रीबी उन्मूलन भी ज़रूरी है। यदि सरकारी महकमा ईमानदारी से गरीबी दूर करने में लगता, तो निश्चित ही देश की काया-पलट होती।

सरकारों द्वारा आयात शुल्क तथा उत्पाद शुल्क बढ़ाए गए हैं। रेलवे ने मालभाड़ा बढ़ाया है तथा यात्री किरायों में वृद्धि की है। डाक की दरें भी बढ़ी हैं। लिफाफे का मूल्य एक रुपये से बढ़कर तीन रुपए हो गया है। इन सब बढ़ोत्तरियों का असंर कीमतों पर पड़ना लाजिमी है।

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महंगाई पर निबंध – उपसंहार

महंगाई की समस्या दिन-ब-दिन विकराल होती जाती है। यह कमरतोड़ महंगाई आम आदमी के लिए घातक सिद्ध हो रही है। ऐसा मालूम होता है कि बढ़ती महंगाई को रोकना असंभव-सा कार्य है। जिन अनेक चीजों पर से मूल्य नियन्त्रण उठा लिया गया है, उनमें दवाएँ भी हैं। अनेक अध्ययन यह बताते हैं कि पिछले पाँच-छह वर्षों में दवाओं की कीमतें बेतहाशा बढ़ी हैं। उपभोक्ता वस्तुओं की कीमत में वृद्धि का एक बड़ा कारण मार्केटिंग का नया तंत्र है, जिसमें विज्ञापनबाजी पर बेतहाशा खर्च किया जाता है। एक रुपया लागत की वस्तु दस रुपये में बेची जाती है।

अधिक नोट छापने का गुर एवं विदेशी और स्वदेशी ऋण घाटे की खाई को पार करने के सेतु हैं, खाई भरने की विधि नहीं। जब घाटे की खाई भरी नहीं जाएगी, तो मुद्रास्फीति बढ़ती जाएगी। ज्यों-ज्यों मुद्रास्फीति बढ़ेगी, महँगाई छलाँग मार-मार कर आगे कूदेगी। जनता महँगाई की चक्की में और पिसती जाएगी।

आपके अनुसार महंगाई पर निबंध में यदि कोई महत्वपूर्ण बिंदु ऐसा हो जिसपर चर्चा न हुई हो, तो हमें टिप्पणी करके बताएँ। शीघ्रातिशीघ्र उन्हें इस निबंध में सम्मिलित करने का प्रयत्न किया जाएगा।

कमरतोड़ महंगाई पर निबंध, एक बहुत ही प्रचलित निबंध का विषय है। स्कूल हो, कॉलेज हो, या फिर कोई प्रोफेशनल कम्पटीशन, इस विषय पर लिखने और वाद-विवाद के लिए हर लेवल पर पूछा जाता है। महंगाई बहुत की पेचीदा टॉपिक है, जिस पर लिखना इतना सरल नहीं होता है। इस पर हर दूसरे व्यक्ति की अपनी-अपनी प्रतिक्रिया और विचार होते हैं। जितना हम विषय इस के अंदर जाएंगे, उतनी ही इसकी पेचीदगी बढ़ती जाएगी। 

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हिंदीपथ के माध्यम से हमने आपके सामने महंगाई पर निबंध (Mahangai per nibandh) की सहायता से महंगाई के सभी पहलुओं पर चर्चा की है। इस निबंध में आप महंगाई बढ़ने के मूल कारणों के साथ-साथ इससे निजात पाने के कुछ तरीकों से भी अवगत हो सकते हैं। 

  • हम तथ्यों में यह जोड़ना चाहेंगे कि बढ़ती महंगाई के लिए केवल आर्थिक परिस्थियाँ ही उत्तरदाई नहीं हैं, बल्कि प्राकृतिक कारण भी इसके लिए बहुत हद तक ज़िम्मेदार हैं। प्रकृति के प्रकोप जैसे भूकंप, अतिवृष्टि, सूखा, बाढ़ आदि भी महंगाई दर बढ़ाने के लिए उत्तरदाई हैं। 
  • कुछ मानव निर्मित या सामजिक कारण भी बढ़ती महंगाई दर के लिए उत्तरदाई हैं, जैसे कालाबाज़ारी, जमाखोरी, अमीरी-गरीबी में अंतर, जनसँख्या विस्फोट इत्यादि। 
  • यही नहीं बढ़ती महंगाई के लिए बहुत हद तक राजनितिक और सामजिक कारण भी ज़िम्मेदार हैं जैसे, मुद्रास्फीति, भ्रष्टाचार, इत्यादि। 

हमारे ऑनलाइन प्लेटफार्म पर महंगाई (महंगाई पर निबंध in hindi) विषय पर निबंध पढ़कर आपके महंगाई और उसके बढ़ते दर को लेकर तथ्यों की कुछ हद तक आपूर्ति हुई होगी। इसी तरह अलग-अलग रोचक एवं जटिल विषयों पर निबंध एवं जानकारी प्राप्त करने के लिए, हिंदीपथ के साथ बने रहे। हमारी कोशिश यही है कि आप लोगों तक आवश्यक जानकारियां पहुंचाने में कभी कमी ना हो।

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सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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