धर्म

महोदर – Mahodar (गणेश जी का तृतिय रूप)

महोदर अवतार भगवान गणेश अष्टविनायक (Ashtavinayak Ganpati) रूपों में तीसरा अवतार है। भगवान् श्रीगणेश का महोदर नाम से विख्यात अवतार ज्ञान-ब्रह्म का प्रकाशक है। उन्हें मोहासुर का विनाशक तथा उनका मूषक वाहन बताया गया है।

महोदर इति ख्यातो ज्ञानब्रह्मप्रकाशकः ।
मोहासुरस्य शत्रुर्वै आखुवाहनगः स्मृतः ॥ 

दैत्य गुरु शुक्राचार्य के एक शिष्य का नाम मोहासुर था। उनके आदेश से मोहासुर ने भगवान् सूर्य की आराधना की । उसकी कठोर तपस्या से भगवान् सूर्य प्रसन्न हो गये उन्होंने मोहासुर को सर्वत्र विजयी होने का वरदान दिया। वर से सन्तुष्ट होकर असुर अपने स्थानपर लौटा। शुक्राचार्य ने उसका दैत्य राज के पदपर अभिषेक किया। उसके बाद अपने प्रबल पराक्रम से उसने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया। देवता और मुनि पहाड़ों एवं जंगलों में छिप गयेचारों तरफ से निश्चिन्त होकर मोहासुर अपनी पत्नी मदिरा के साथ सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगा।

वर्णाश्रम-धर्म, सत्कर्म, यज्ञ, तप आदि सब नष्ट हो गये। दुःखी देवता ऋषियों के साथ सूर्य भगवान् के पास गये तथा इस भयानक विपत्ति से मुक्ति का उपाय पूछा। भगवान् सूर्य ने उन्हें एकाक्षर मन्त्र देकर भगवान् गणेश को प्रसन्न करने की प्रेरणा दी। देवता और मुनिगण श्रद्धा-भक्ति पूर्वक उनकी उपासना करने लगे। उनकी तपस्या से संतुष्ट होकर वह वहाँ प्रकट हुए। देवताओं और मुनियों ने अत्यन्त आर्त होकर महोदर की स्तुति की। उन्होने कहा कि मैं मोहासुर का वध करूँगा। आपलोग निश्चिन्त हो जायँ।

ऐसा कहकर मूषक पर सवार भगवान् महोदर मोहासुर से युद्ध करने के लिये चल दिये। यह समाचार देवर्षि नारद ने मोहासुर को दिया तथा अनन्त पराक्रमी समर्थ महोदर का स्वरूप भी उसे समझाया दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने भी उसे भगवान् महोदर की शरण लेने का शुभ परामर्श दिया उसी समय भगवान् महोदर का दूत बनकर भगवान् विष्णु मोहासुर के पास गये। उन्होंने मोहासुर से कहा – ‘तुम्हें अनन्त शक्ति – सम्पन्न भगवान् महोदर से मित्रता कर लेनी चाहिये इसी में तुम्हारा कल्याण है। यदि तुम महोदर की शरण ग्रहण कर देवताओं, मुनियों तथा ब्राह्मणों को धर्म पूर्वक जीवन बिताने में व्यवधान न पैदा करने का वचन दो तो दयामय प्रभु तुम्हें क्षमा कर देंगे। यदि तुम ऐसा नहीं करते हो तो रणभूमि में तुम्हारी रक्षा असम्भव है। मोहासुर का अहंकार नष्ट हो गया। उसने भगवान् विष्णु से निवेदन किया। आप परम प्रभु जी को मेरे नगर में लाकर मुझे उनके दुर्लभ दर्शन का अवसर प्रदान करें।

भगवान् महोदर ने मोहासुर के नगर में पदार्पण किया मोहासुर ने उनका अभूत पूर्व स्वागत किया दैत्य युवतियों ने पुष्प वर्षा की। मोहासुर ने भगवान् महोदर की श्रद्धा-भक्ति पूर्वक पूजा की। गद्गदकण्ठ से स्तुति करते हुए उसने कहा कि प्रभो। अज्ञान-वश मेरे द्वारा जो अपराध हुआ हो उसके लिये मुझे क्षमा करें। मैं आपके प्रत्येक आदेश पालन करने का वचन देता हूँ। अब मैं देवताओं और मुनियोंके निकट भूलकर भी नहीं जाऊँगा उनके किसी भी धर्मा चरण में विघ्न नहीं पैदा करूँगा

सहज कृपालु भगवान् महोदर मोहासुर की दीनता पर प्रसन्न हो गये उसे अपनी भक्ति प्रदान कर दी। मोहासुर के शान्त होने से देवता, ऋषि, ब्राह्मण तथा धर्म परायण स्त्री-पुरुष- सभी सुखी हो गये। देवता और मुनि महाप्रभु महोदर की स्तुति एवं जयकार करने लगे।

सुरभि भदौरिया

सात वर्ष की छोटी आयु से ही साहित्य में रुचि रखने वालीं सुरभि भदौरिया एक डिजिटल मार्केटिंग एजेंसी चलाती हैं। अपने स्वर्गवासी दादा से प्राप्त साहित्यिक संस्कारों को पल्लवित करते हुए उन्होंने हिंदीपथ.कॉम की नींव डाली है, जिसका उद्देश्य हिन्दी की उत्तम सामग्री को जन-जन तक पहुँचाना है। सुरभि की दिलचस्पी का व्यापक दायरा काव्य, कहानी, नाटक, इतिहास, धर्म और उपन्यास आदि को समाहित किए हुए है। वे हिंदीपथ को निरन्तर नई ऊँचाइंयों पर पहुँचाने में सतत लगी हुई हैं।

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