मैं अकेला
“मैं अकेला” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी भाषा में रचित कविता है। इसमें सारी बाधाओं और निराशाओं के बावजूद नित्य आगे बढ़ने का भाव उजागर किया गया है।
मैं अकेला चल रहा हूँ।
डगर मेरा है अपरिचित
पर उसे परिचित बनाता
युग-युगों से बढ़ रहा हूँ
मैं मिलन के गीत गाता
आँधियों में रुक न पाया
मैं सदा अविकल रहा हूँ
मैं अकेला चल रहा हूँ।
रात पावस की अँधेरी
ने मुझे प्रतिपल डराया
किन्तु श्वासों के बवण्डर
ने घनों को ही हराया।
बिजलियों की चोट खाकर
भी सदा अविचल रहा हूँ
मैं अकेला चल रहा हूँ।
हार मानूँगा नहीं मैं
हारना सीखा नहीं हूँ
मैं सदा हँसता रहा
रोना कभी सीखा नहीं हूँ
जीत मेरी ही रहेगी
सोचता प्रतिपल रहा हूँ
मैं अकेला चल रहा हूँ।
स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।