मैंने कब तुमको पहचाना
“मैंने कब तुमको पहचाना” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। इसमें अमूर्त प्रिय–जो वस्तुतः जीवन है–उसे गहराई में पहचानने और जीने की इच्छा को कवि व्यक्त कर रहा है। पढ़ें और आनंद लें इस कविता का–
मैंने कब तुमको पहचाना?
इस मन की कल्पित काया में
स्वप्नों की शीतल छाया में
हिला गए उर के तारों को
आँख खुली कब मैंने जाना।
मैंने कब तुमको पहचाना?
सुरभि उड़ाती बात नशीली
लाती है जब उषा लजीली
प्राणों में मधु भर जाती है
पर जीवन मधुमय कब माना?
मैंने कब तुमको पहचाना?
आतप से तापित इस मन में
जलती जब आशाएँ मन में
मृदुल चरण धर संध्या आती
पर उसमें तुमको कब माना।
मैंने कब तुमको पहचाना?
स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।