मल्लिनाथ चालीसा – Bhagwan Mallinath Chalisa
मल्लिनाथ चालीसा परम शक्ति का स्रोत है। इसका प्रत्येक शब्द शक्तिदायी और सजीव है। जो व्यक्ति सच्चे दिल से मल्लिनाथ चालीसा का पाठ करता है, उसके लिए इस संसार में सब कुछ संभव हो जाता है। ऐसा व्यक्ति सांसारिक उन्नति तो करता ही है, साथ ही आध्यात्मिक उन्नति में भी आगे बढ़ जाता है। इसका नित्य पाठ हृदय को पावन कर देता है, जो ज्ञानोदय की लिए परम-आवश्यक है। पढ़ें अद्भुत मल्लिनाथ चालीसा–
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भगवान मल्लिनाथ का चिह्न – कलश
मोहमल्ल मद-मर्दन करते,
मन्मथ दुर्द्धर का मद हरते॥
धैर्य खड्ग से कर्म निवारे,
बालयति को नमन हमारे॥
बिहार प्रान्त में मिथिला नगरी,
राज्य करें कुम्भ काश्यप गोत्री॥
प्रभावती महारानी उनकी,
वर्षा होती थी रत्नों की॥
अपराजित विमान को तजकर,
जननी उदर बसे प्रभु आकर॥
मंगसिर शुक्ल एकादशी शुभ दिन,
जन्मे तीन ज्ञान युत श्री जिन॥
पूनम चन्द्र समान हों शोभित,
इन्द्र न्हवन करते हो मोहित॥
ताण्डव नृत्य करें खुश होकर,
निरखें प्रभुको विस्मित होकर॥
बढ़े प्यार से मल्लि कुमार,
तन की शोभा हुई अपार॥
पचपन सहस आयु प्रभुवर की,
पच्चीस धनु अवगाहन वपु की॥
देख पुत्र की योग्य अवस्था,
पिता ब्याह की करें व्यवस्था॥
मिथिलापुरी को खूब सजाया,
कन्या पक्ष सुन कर हर्षाया॥
निज मन में करते प्रभु मन्थन,
है विवाह एक मीठा बन्धन॥
विषय भोग रुपी ये कर्दम,
आत्मज्ञान को करदे दुर्गम।
नहीं आसक्त हुए विषयन में,
हुए विरक्त गए प्रभु वन में॥
मंगसिर शुक्ल एकादशी पावन,
स्वामी दीक्षा करते धारण॥
दो दिन का धरा उपवास,
वन में ही फिर किया निवास॥
तीसरे दिन प्रभु करें विहार,
नन्दिषेण नृप दें आहार॥
पात्रदान से हर्षित होकर,
अचरज पाँच करें सुर आकर॥
मल्लिनाथ जी लौटे वन में,
लीन हुए आतम चिन्तन में॥
आत्मशुद्धि का प्रबल प्रमाण,
अल्प समय में उपजा ज्ञान॥
केवलज्ञानी हुए छ: दिन में,
घण्टे बजने लगे स्वर्ग में॥
समोशरण की रचना साजे,
अन्तरिक्ष में प्रभु विराजे॥
विशाक्ष आदि अट्ठाइसगणधर,
चालीस सहस थे ज्ञानी मुनिवर॥
पथिकों को सत्पथ दिखलाया,
शिवपुर का सन्मार्ग बताया॥
औषधि- शास्त्र- अभय-आहार,
दान बताए चार प्रकार॥
पंच समिति और लब्धि पाँच,
पाँचों पैताले हैं साँच॥
षट् लेश्या जीव षट्काय,
षट् द्रव्य कहते समझाय॥
सात तत्त्व का वर्णन करते,
सात नरक सुन भविमन डरते॥
सातों नय को मन में धारें,
उत्तम जन सन्देह निवारें॥
दीर्घ काल तक दिए उपदेश,
वाणी में कटुता नहीं लेश॥
आयु रहने पर एक मास,
शिखर सम्मेद पे करते वास॥
योग निरोध का करते पालन,
प्रतिमा योग करें प्रभु धारण॥
कर्म नष्ट कीने जिनराई,
तत्क्षण मुक्ति-रमा परणाई॥
फाल्गुन शुक्ल पंचमी न्यारी,
सिद्ध हुए जिनवर अविकारी॥
मोक्ष कल्याणक सुर-नर करते,
संवल कूट की पूजा करते॥
चिन्ह ‘कलश’ था मल्निाथ का,
जीन महापावन था उन का॥
नरपुंगव थे वे जिनश्रेष्ठ,
स्त्री कहें जो सत्य न लेश॥
कोटि उपाय करो तुम सोच,
स्त्रीभव से हो नहीं मोक्ष॥
महाबली थे वे शूरवीर,
आत्म शत्रु जीते धर-धीर॥
अनुकम्पा से प्रभु मल्लि की,
अल्पायु हो भव-वल्लि की॥
अरज यही है बस अरुणा’ की,
दृष्टि रहे सब पर करुणा की॥
जाप – ॐ ह्रीं अर्हं श्री मल्लिनाथाय नमः