धर्म

माणिक रत्न की कीमत व फायदे

माणिक रत्न के अनेक नाम हैं। संस्कृत में इसे माणिक्य, पद्मराग, लोहित, शोणरत्न, रविरत्न, शोणोपल, कुरुविन्द, सौगन्धिक, वसुरत्न आदि अनेक नामों से पुकारा जाता है। वहीं हिन्दी और पंजाबी में इसे चुन्नी भी कहते हैं। अंग्रेजी में इसे रूबी स्टोन (Ruby stone) कहते हैं। उर्दू-फारसी में याकूत नाम भी प्रचलित है।

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माणिक स्टोन की कीमत

माणिक्य का सही मूल्य (Ruby price in India) क्या है–यह बहुत से लोग जानना चाहते हैं। शुद्ध रूबी–जिसमें मिलावट न हो या जो कृत्रिम न हो–आज-कल काफ़ी मुश्किल से मिलता है। 3 कैरेट का लाल औसतन पाँच हज़ार रुपये में मिल जाता है। इससे कम रत्ती का माणिक्य पहनना ज्योतिषीय रूप से अधिक लाभयादयक नहीं माना जात है। अगर बात करें 5 कैरेट के माणिक रत्न की, तो इसकी कीमत तक़रीबन सात हज़ार तक होती है। वहीं 7 कैरेट का माणिक्य प्रायः दस हज़ार रुपये तक में मिल जाता है।

यहाँ हम औसत कीमत की ही बात कर रहे हैं यानी कि औसत गुणवत्ता वाले रत्न की। किसी भी रत्न की गुणवत्ता जैसे-जैसे बढ़ती जाती है, उसका मूल्य भी उसी अनुपात में बढ़ता जाता है।

वजन (कैरेट में)कीमत (रुपये में)
35,000
57,000
610,000

माणिक रत्न के भौतिक गुण

कठोरता – 6आ पेक्षिक घनता – 403वत्तें – नाक 1.716 -177 
दुहरावतंन 00083हदिवर्णिता तीक्ररासायनिक रचना – एल्यूमिनयम आक्साइड

कुरुन्दम समूह

कठोरता में हीरे के बाद कुरुन्दम समूह के रत्नों का स्थान है। इस समूह के लाल, नीलम तथा एमेरो आदि रतन पदार्थ प्राचीनकाल से जाने-पहचाने चले आ रहे हैं। खनिज विज्ञान की नयी खोज के अनुसार ये सब एक ही प्रकार के तत्त्वों से मिलकर बने है–एल्यूमिनियम तथा ऑक्सिजन इनके मूल तत्त्व हैं।

लाल और नीलम के सिवा इस समूह में दूसरे भी ऐसे रत्न हैं जो अपने चटकीले रंगों के कारण प्रसिद्ध हैं। परन्तु माणिक स्टोन की जगमगाहट अपने स्थान पर है तो नीलम का नीला रंग अपनी आान-बान के लिये प्रसिद्ध है। रंग-रहित कुरुन्दम का श्वेत नीलम, हरे का हरा नीलम, अथवा प्राच्य पन्ना, बैजनी का बैजनी नीलम आदि नाम नीलम और पन्ना नामों के मान के सूचक हैं। माणिक रत्न (लाल) तथा नीलम के अतिरिक्त शेष सभी रंगदार कुरुन्दमों का एक नाम “चटकीले नीलम” भी प्रसिद्ध है।

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माणिक्य से जुड़े कुछ ऐतिहासिक तथ्य

माणिक की खानें बर्मा में सदियों से ज्ञात हैं। सर्वोत्तम माणिक्य उत्तरी बर्मा के मोगोक जिले से प्राप्त हुए हैं। इस जिले में एक बहुत लम्बा-चौड़ा प्रदेश माणिक्यों का घर है। परन्तु इसमें से बहुत थोड़ा क्षेत्र ही ऐसा है कि जिससे माणिक रत्न निकाले जा सके हैं।

शुरू में इनपर वहाँ के राजाओं का ही एकाधिकार था। कहते हैं कि बर्मा के एक चतुर राजा ने इस बहुमूल्य प्रदेश को एक महत्त्वहीन बस्ती के बदले पड़ोस के चीनी शाम लोगों से लिया था। माणिक स्टोन खोदने का काम काफ़ी कठिन था, इसलिये यह काम उन क़ैदियों से लिया जाता था कि जिन्हें राजा अनचाही प्रजा समझ लेता था।

आगे चलकर माणिक्य खोदने के लिये लाइसेन्स देने की पद्धति जारी की गयी। इन खनिजों के बदले में कुछ धन तो देना ही पड़ता था परन्तु जिन माणिक्यों का मूल्य 2000 रु० से अधिक आँका जाता था, वे भी राजा ले लेता था। यहाँ से बड़े रत्न कभी-कभी ही मिलते थे परंतु ऊपर लिखे नियम के कारण यह श्रम भी फैला कि खनिक लोग बड़े रत्नों को तोड़ डालते हैं। सन्‌ 1885 ई० में बर्मा अंग्रेजों के अधिकार मे आ गया और अब इन खानों का काम रूबी माइन्स लि० नाम की अंग्रेजी कम्पनी करने लगी।

पुराने समय से मिले बढिया माणिक बर्मा के राजवंश के पास ही रहे। 1874 में बर्मा के राजा ने धानाभाव से बाधित होकर दो बढ़िया लाल बेचे थे, इनमें से एक 37 कैरट तथा दूसरा 47 कैरेट था। बाद में ये लन्दन में काटे गये और अब वे क्रमशः 32.3 तथा 38.6 कैरेट रह गये–जो क्रमशः दस तथा बीस हज़ार पौंड में बिके।

बर्मा में एक बार 400 कैरेट भार का भी लाल मिला था। इसके तीन टुकड़े किये गये। दो को तो साज-संवार कर 70 तथा 454 कैरेट के नग बनाये गये और तीसरा टुकड़ा अपने मूल रूप में ही कलकत्ते में 7 लाख रुपयों में बिका। कम्पनी के अधिकार के काल में भी एक बार 18.5 केरेट का बढ़िया माणिक रत्न मिला था जो कट कर 11 कैरेट का रह गया और फिर 7 हज़ार पौंड में बिका। एक 77 कैरेट का माणिक स्टोन 1866 में मिला जो भारत में 1904 में चार लाख रुपयों में बिका। 1890 में 204 केरेट तोल का एक माणिक्य बर्मा की खानों से निकला था।

रूस के पहले के शाही ताज में एक काफ़ी बड़ा माणिक्य था जो 1777 ई० में रूस की रानी कैथेरीन को भेंट में मिला था। अंग्रेजी ताज में भी एक बड़ा लाल रंग का रत्न है जिसको पहले मणिक्य समझा जाता रहा था। परन्तु वह वस्तुतः लाल कटकिज (स्पाइनेल) है और मणिक्य इस कारण समझ लिया गया था कि ये दोनों खनिज रत्न ककडो के साथ पाये जाते हैं।

1908 ई० में संश्लिष्ट (अल्यूमिनयम और ऑक्सिजन तत्त्वों को कृत्रिम ढंग से संश्लेषित कर बनाये गये) माणिक्य बाज़ार में आ गये। इनका मूल्य प्राकृतिक माणिक रत्नों की तुलना में नहीं के बराबर है। एक बढ़िया सच्चे माणिक्य का मोल जब कि 500 पौंड प्रति कैरेट हो तो संश्लिष्ट माणिक स्टोन उसकी तुलना में केवल दो पौंड प्रति कैरेट ही रहेगा।

रूबी स्टोन का प्राप्ति स्रोत

सबसे अधिक मूल्यवान माणिक्य ऐसे पहाड़ों में पाये जाते हैं कि जिनमें ग्रेनाइट (तामडा या रक्तमणि), ग्नीज (अभ्रक की जैसी परतदार) और काचमणि या बिल्लौर (क्वार्ट्ज) की चट्टानें हो। भारत में कश्मीर में ऐसी चट्टानें पायी जाती हैं। प्रसिद्ध घुमक्कड लेखक श्री सूफी लछमन प्रसाद ने अपनी पुस्तक ‘रत्नावली’ (उर्दू) में लिखा है कि मैंने ऐसी चट्टानें हिमालय पर्वत के बहुत से स्थानों पर देखी हैं। उनकी सम्मति में भारत के साहसी युवकों को इन्हें प्रकाश में लाकर अतुल ऐश्वर्य उपार्जित करना चाहिये।

ऐसे ही स्थानों पर कटकिजमणि (स्पाईनेल) भी अपने अनेक विभेदों – माणिक्य कटकिज-मणि, बैलास रूबी, रूबी सेल आदि में मिलती है। इनमें से बेलास रूबी रत्नों की श्रेणी में गिना जाता है। काफ़ी कठोर होने के कारण यह एक टिकाऊ रत्न है और अधिकतर अंगूठियों मे जड़ा जाता है। रोम निवासियों ने मणिक्य को भी सम्भवतः इसके जाज्वल्यमान रंग के कारण एकसा समझा और स्पाइनेंल तथा तामडा के साथ माणिक्य की गिनती की। इन सभी कठोर पदार्थों को रोमन लोग कार्बुक्लस तथा यूनानी ऐथेक्स कहते थे–इन दोनों का एक ही अर्थ चिनगारी है।

स्पाइनल मणि भी देखने मे माणिक रत्न जैसी लगती है। परन्तु अपनी कठोरता, आपेक्षिक घनत्व, तथा अन्य गुणों में यह माणिक्य से बहुत भिन्‍न है। इसको लाल और नीलम काट सकते हैं। इसकी चमक विल्लौरी होती है। इसके भीतर से परावर्तित प्रकाश पीली आभा लिये आता है। अनजान लोग मणिक्य के धोखे में कटकिज मणि ख़रीद लेते हैं।

विविध खानों के माणिक्य रत्न

  1. यह ऊपर कहा जा चुका है कि उत्कृष्ट माणिक्य (लाल) बर्मा से प्राप्त होता है। यहाँ के माणिक स्टोन का रंग गुलाब की पत्ती के रंग से लेकर गहरे लाल रंग तक का होता है।
  2. स्याम देश की खानों से प्राप्त उज्ज्वल से उज्ज्वल माणिक्य भी बर्मा के माणिक रत्न की अपेक्षा अधिक कालापन लिये होता है। स्याम के माणिक्य में तारे की-सी झिलमिलाहट (तारकितता) नहीं उत्पन्न की जा सकती।
  3. श्री लंका की रूबी में बर्मा के माणिक्य की अपेक्षा पानी अधिक और लोच कम होता है। ये पीले और चितकबरे मिलते हैं।
  4. काबुल के माणिक्य में पानी (मोटा) और चुरचुरापन होता है। इसका रंग सुन्दर होता है। कोई-कोई माणिक रत्न बर्मा के माणिक्य से भी अधिक सुन्दर निकल आता है।
  5. टेगानिका (अफ्रीका) का माणिक्य बहुत चुरचुरा होता है। इसमें लाल रंग के साथ-साथ श्याम आभा तो होती ही है, परंतु किसी-किसी खण्ड में पीले रंग की आभा भी होती है जिससे यह रक्त-पीत दीखने लगता है। यह पीत आभा ही स्याम देश के माणिक्य को इससे भिन्‍न बतलाती है।
  6. दक्षिण भारत के कागियन स्थान पर रूबी स्टोन की एक नयी खान चालू हुई है। यह कांगियन माणिक्य अपारदर्शक, श्याम-नील आभा से युक्त, मैला-सा और नरम-सा होता है। काटने पर पतले-पतले टुकड़े हो जाने पर इसमें पानी दीखने लगता है।

माणिक स्टोन के विभिन्न प्रकार

माणिक्य की ये पांच जातियाँ बतायी गई हैं–

  1. पद्मराग
  2. सौगंधिक
  3. नीलगन्धि
  4. कुरुविदी
  5. जामुनिया

उसके अनुसार पद्मयराग रूबी सूर्य की भाँति किरणें फैलाता है। वह खूब चिकना, कोमल, अग्नि जैसा, तपे हुए सोने-जैसा और अक्षीण होता है। सौगंधिक वह कहलाता है जो किंशुक के फूल जैसा, कोयल-सारस व चकोर की आँख जैसा, अनारदाने के रंग का होता है। नीलगंधि कमल, आलता, मूँगा और ई गुर के समान कुछ-कुछ नीलाभ और खद्योत की कांति वाला होता है। कुरुविद जाति का माणिक्य पद्मराग तथा सौगंधिक जैसी प्रभा वाला परंतु परिमाण में छोटा और पानीदार होता है। जामुनिया जामुन व लाल कनेर के फूल जैसे रंग का होता है।

आयुर्वेद प्रकाश के अनुसार लाल कमल की पंखुड़ियों की-सी दमक वाला, पारदर्शक, चिकना, बड़ा, सुडौल, अच्छे रंग का, गोल, लम्बा माणिक रत्न श्रेष्ठ होता है। फेरू की रत्न-परीक्षा में अच्छे माणिक्य के गुण सुच्छाया, चिकनापन, लाल कांति, कोमलता, भारीपन, सुडौलपन तथा बड़ा आकार बताये हैं।

रसरत्नसमुच्चय में माणिक्य की एक जाति का नाम ‘नीलगन्धि’ लिखा है–उसके अनुसार नीलगन्धि स्टोन बाहर से लाल और भीतर से नीला (नीलगर्भ किरण) होता है।

एक अन्य प्राचीन लेखक के अनुसार श्रेष्ठ माणिक्य को दूर से देखने पर वह पिघली लाख के रंग का, लाल कमल के रंग का, कान्धारी अनार के दानों के रंग का और पठानी लोघ्र के ताजा खिले फूल की सी रंगत का दीखता है। इसका लाल रंग गुलाबी से लेकर बैजनीपन लिये लाल रंग तक पहुँचता है। सबसे अच्छा माणिक्य कबूतर के ख़ून जैसे वर्ण का होता है–इसमे बैजनी आभा भी होती है। 

माणिक रत्न के दोष

आयुर्वेद प्रकाश तथा अन्य प्रामाणिक स्रोतों के अनुसार वह माणिक रत्न अशुभ अथवा दोष युक्त माना जाता है जो–

  1. चमक से रहित अथवा सुन्न हो
  2. शर्करिल अथवा बालू के रेत के कणों के समान किरकिरा हो; अथवा चुरचुरा (crisp) हो
  3. जो दूध जैसा हो (दूध का दोष), 
  4. धूसर अथवा मैले रंग का हो; 
  5. या घु ए के रंग का हो; 
  6. जिस पर काला या सफेद दाग हो, 
  7. जो कम पारदर्शक (जठरा) हो; 
  8. शहद के रंग का अथवा इस रंग के छीटो वाला हो
  9. हलका हो; 
  10. विकृत हो 
  11. जिस पर चीर हों और 
  12. जिस मे अभ्रक की परतें हों।

परन्तु यह भी सच है कि सर्वथा निर्दोष और बडे आकार के माणिक्य प्राय नहीं मिलते, इसलिये यदि किसी के पास अज्ञात खान का कोई बड़ा और निर्मल माणिक्य दिखायी दे तो उसको पहले तो संदेह की दृष्टि से ही देखना चाहिये।

विज्ञान द्वारा परीक्षित प्रकाशीय तथा भौतिक गुण रंग 

जैसा कि हम ऊपर कह आये है, रगीन पत्थरों में से कुरुन्दम समूह के पत्थर कई बातों मे सबसे अधिक महत्व रखते “है। और साधारण तो इनमे से माणिक्य और नीलम से ही अधिक परिचित है-पन्ना  ही एक मात्र वह दूसरा रगीन महारत्न है जिसे साधारण जनता खूब’ जानती है। कुरुन्दम जाति केवल गहरे लाल से लेकर जामनी-लाल रंग तक के रत्न ही माणिक्य गिने जाते है; शेष सभी रगों वाले हलके लाल तथा ग्रुलाबी तक भी, नीलम कहलाते है।

द्विवाणता

बर्मा की लाल मणियों में तीन्र ह्विव्णिता पायी जाती है। यह दुहरा (युग्म) रंग, हलका नारंजी-लाल तथा गहरा जामनी-सा लाल होता है। यह हम पहले ही बता आये है कि यह गुणखनिजो की भीतरी बनावट के कारण होता है। घनाकार तथा रवाहीन रचना वाले खनिजों मे द्विवणिता नही पायी जाती। न किसी रंगरहित खनिज या रत्न मे’ यह गुण होता है। ऐसे खनिजों के’ भीतर से गुजरने वाली किरणें सब दिशाओं में एक ही वेग से चलती है। इन्हे समर्वातिक कहते हैं। दुहरे बर्तंत के कारण माणिक्य में किनारे भी दुृहरे दिखायी देते है।

साणिक्य के अपकिरणन — 0018

जो हीरे के अपकिरणन से’ बहुत कम है; इसी कारण माणिक्य (माकिक्य) तया कुरुन्दम समूह के दूसरे रत्न’ हीरे से कम जाज्वल्यमान होते है। इसी लिये लाल और नीलम  का, मुख्य आकर्षण उनका अपना-अपना रंग ही होता है। कुरुन्दम समूह के रत्नों का आ पेक्षिक घनत्व 365 से लेकर 4055 तक है। माणिक्य का 401 है। रासायनिक सरचना के अनुसार इस मे ऐल्यूमिनियम तथा आक्सीजन-ये दो ही तत्व है-दोनो का आ घ॒ क्रमश 26 तथा 00014 है, फिर भी इन दोनो से बने माणिक्य का आ 401 होना एक पहेली ही है। बर्मा तथा लका के सुन्दर असली माणिक्य और संश्लिष्ट (कृत्रिम) माणिक्य पराबैगनी किरणों में ऐसे जगमगाते है कि मानो वे जल रहे हो। यदि असली और कृत्रिम को साथ-साथ रखकर देखा जाय तो बनावटी असली से भी अधिक चमकते है। यदि इस समय इसको अंधेरे कमरे में ले जाया जाय तो यह और भी अधिक प्रति- दीप्त होता है। क्ष-किरणों मे भी दोनो ही चमकते हैं; हा; क्ष- किरण को हटा लेने पर भी कृत्रिम चमकता रहता है (विशेषतया अंधेरे मे) परन्तु असली नही चमकता। कृत्रिम मे स्फुरदीप्ति का गुण हौता है, असली में नही होता।

तारकितता

कुरुन्दम समूह के सभी अधेपारदशंक से लेकर पारभासी तक रत्नों को, जिनमे ऐसे लाल तथा नीलम भी, सम्मिलित हैं, जब काटकर उनका ऊपरी पृष्ठ उन्‍नतोदर बना दिया जाता है तो उसमे शिखर पर से माँक कर देखने पर भीतर 6  तथा 12 कोनो के तारे दिखायी देते हैं। तारकितता का यह गुण असली माणिक्य की एक विशेष पहचान भी है।

असली नकली की परख

स्पष्ट है कि माणिक स्टोन का भ्रम माणिक्य से मिलते-जुलते रत्नों में ही सम्भव है। पहला भ्रम तो उन रत्नों में होना सम्भव है कि जो असली हैं–रूप-रंग आदि मे माणिक्य से मिलते हैं, परन्तु  वास्तव मे माणिक्य नहीं है। असली माणिक्य-सरीखे लगने वाले रत्न निम्लिखित हैं–कटकिज मणि (spinel), विकात, शोभामणि। मनुष्यकृत फिर दो प्रकार के हैं–एक तो काँच और प्लास्टिक के बनाये हुए नक़ली अथवा अनुकृत माणिक्य। और दूसरे वे जो ऐल्युमिनियम तथा ऑक्सीजन तत्वों को तथा उनमें रंजक (रंगने वाले) तत्वों को मिलाकर बनाये जाते हैं अर्थात्‌ संश्लिष्ट माणिक्य। और तीसरे–दो प्रकार के रत्नों को जोड़कर बनाये गये युग्मैक माणिक्य।

संश्लिष्ट माणिक्य

इसकी रासायनिक संरचना और रवे की आकृति तथा उसकी बनावट असली रत्न जैसी ही होती है। इसीलिये उनके भौतिक गुण तथा प्रकाशीय विशेषताएँ भी एक-सी होती हैं। इसलिये इनमें अ्रन्तर बताना कठिन रहता है। फिर भी नीचे लिखी परीक्षाएं पर्याप्त निर्णायक रहती हैं—

  1. परख के लिये आये रत्न में अंत: प्रविष्ट वस्तुओं अथवा अतंरावेशों की आकृति-संश्लिष्ट माणिक्य में गोल-गोल वायु से भरे बुलबुले होते है। ये उसमें प्राय. वक्ररेखा में स्थित होते हैं।’प्राकृतिक माणिक्यों में ये नही होते। बनाने वाले वैज्ञानिक इस कोशिश में है कि ऐसे संश्लिष्ट पारदशंक माणिक्य बनाये जायें कि जिनमें ये वायु-बुलबुले न हों। यद्यपि प्राकृतिक या सच्चे माणिक्य के भीतर भी अन्तरावेश होते है-परन्तु ये सदा नोकीले (Angular) होते हैं। रेशम अर्थात्‌ पतले, सुइयों सरीखे अन्तरावेशों का होना कुरुन्दम वर्ग के रत्नों की एक लाक्षणिक पहचान है।
  2. संश्लिष्ट माणिक्य के बनने की अवस्था में, उसके भीतर धारियाँ पड जाती है-जो वक्ररेखाओं के रूप में होती हैं–कोशिश यह भी की जा रही है कि ये रेखाये संश्लिष्ट माणिक्य में न बनने पावे। रेखाओं को देख पाने के लिये माणिक्य को मिथाइलीन आयो- डाइड अथवा ब्रोमोफो्म द्रव में डाल देते हैं। इनके वर्तनाक संश्लिष्ट रत्न के वर्तनांक के लगभग बराबर होते है | इसलिये द्रव में डाल देने पर रत्नतो प्राय अदृश्य हो जाता है और अन्तरावेश स्पष्ट दिखायी देने लगते हैँ। माणिक्य मे इनको देख लेना सरल सिद्ध होता है
  3. बर्मा के माणिक्यो मे रंग एक सार नही होता; सश्लिष्ट रत्नो का रत्नों एकसार दिखायी देता है। 

फिर निम्न बाते भी इस परख में काम आ सकती हैं

  1. सश्लिष्ट रत्न का मूल्य असली के मुकाबले में बहुत ही कम होता है, इसलिये इसको बनाने में मनुष्य सतर्क नही रहता। रगडकर चमकाते समय उत्पन्न ताप पहलो के जुडने के स्थानों को प्राय चटका देता है |
  2. अनुछृत (काँच) या इमिटेशन माणिक्य को नेत्र पररख ने पर गरम लगता है, असली ठंडा।
  3. हाथ मे लेने पर असली, इमिटेशन की अपेक्षा भारी लगता है–असली का आ घ (दडक) अधिक होती है।
  4. चीर होगी तो वह नकली मे काँच की भाति चमकदार तथा ठेढी-मेढी होगी।
  5. माणिक्य से मिलते-जुलते रत्नो-कटकिज, विकात तथा काँच की अनुकृतियो और साधारण युग्मैक रत्नों मे द्विवरणिति जरा भी नहीं होती–जबकि असली माणिक्य मे तीन द्विवणिता होती है। शोभामणि मे द्विवाणिता होती है परन्तु उसका लाल रंग माणिक्य के लाल रंग से नही मिलता। लाल कटकिज का रंग भी असली मणिक्य के रंग से मेल नही खाता-इसका रंग ईट के रंग सा अथवा नारंगी रंग के समान होता है। फिर कटकिज मे द्विवणिता भी नही है।

चिकित्सा में माणिक रत्न का प्रयोग

आयुर्वेद शास्त्रों में कहा गया है कि “माणिक्यं दीपनं वृष्यं कफवातक्षयार्तिनुत्‌” अ्रर्थात्‌ चिकित्सार्थ रत्नों का प्रयोग करने मे निपुण वैद्यजन माणिक रत्न को मधुर, चिकना, वात-पित्त का नाशक तथा उदर रोगों में लाभकारी बताते हैं। चुन्नी- भस्म दीर्घ आयुष्य प्रदान करती है, वात, पित्त तथा कफ–इन तीनों रक्षक तत्त्वों को शान्त करती है, क्षयरोग, उदरशूल, फोड़ा, घाव, विष क्रिया, चक्षुरोग तथा कोष्ठबद्धता को दूर करती है। वर्णचिकित्सा के आधार पर चुन्नी का प्रयोग नियमानुसार बनायी गयी माणिक्य-गोलियों के द्वारा किया जाता है। माणिक्य गोलियाँ पीलिया, रक्त प्रवाह की अपूर्णता, क्षय रोग, दुर्बलता, हर्निया, बुद्धिहीनता, लकवा आदि रोगों को शान्त करती है।

दिव्यशक्ति

प्राचीन काल से ही माणिक्य रत्न का महाम्त्य बखान किया जाता रहा है। युनानी समझते थे कि माणिक्य धारण करने वाले पर विष का असर नहीं होता, यह प्लेग से बचाता है, शोक को भगाता है, विलास-वैभव के दुष्प्रभावों को दूर करता है और मनुष्य के मन को बुराइयों में नहीं भटकने देता। कहते हैं कि अरागॉन की केथेराइन को जब तलाक़ दिया जाने लगा तो उसके माणिक्य (जो उसने पहना हुआ था) का रंग बदल गया था।

कौन धारण करे?

माणिक्य सूर्य ग्रह का रत्न है। यदि किसी के जन्म के समय सूर्य अनिष्टकारी हो तो उसके अनिष्ट को दूर करने के लिये माणिक्य धारण करना चाहिये। सूर्य का प्रभाव उसकी सिंह राशि में माना गया है अर्थात्‌ 15 अगस्त से 14 सितम्बर तक उत्पन्न व्यक्तियों को माणिक्य धारण करने से इसका लाभ मिलता है।

माणिक रत्न धारण विधि

कम-से-कम 3 रत्ती का माणिक्य अपने जन्म मास की 1, 10, 19 और 18वीं तारीख़ में तथा रविवार को अथवा अन्य मित्र-महीनों यथा जनवरी, मार्च, मई, जुलाई, अगस्त, सितम्बर, अक्तूबर तथा दिसम्बर में धारण करना चाहिये। इसके धारण करने का मंत्र निम्नलिखित बताया गया है–

आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृत मर्यञ्च।
हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्‌॥

कई बार माणिक रत्न हीरे से भी अधिक मूल्य का रत्न है। कभी-कभी तो इसका मूल्य हीरे से तिगुना हो जाता है। इसलिये जो लोग इसको नहीं ख़रीद सकते, वे कंटकिज (spinel) अथवा तामडा (garnet) धारण कर सकते हैं।

माणिक रत्न का संक्षिप्त विवरण 

माणिक पत्थर या रत्न को सभी रत्नों के राजा की संज्ञा दी गई है। यह अनार के दाने के समान दिखने वाला एक सबसे कीमती रत्न है। वैसे तो यह रत्न अनमोल है, माणिक रत्न की कीमत क्या है, इसकी सटीक जानकारी देना थोड़ा मुश्किल है। परंतु हिंदीपथ पर हमने औसतन गुणवत्ता के आधार पर माणिक पत्थर की कीमत (Manik stone price), आप सभी के साथ साझा की है। इसका मूल्य गुणवत्ता, कलर, और वज़न पर निर्भर करता है।

माणिक पत्थर धारण के लाभ 

  • माणिक पत्थर धारण करने से शरीर में ऊर्जा का संचार होता है। 
  • इससे व्यक्ति के मान-सम्मान और शान-ओ-शौकत में वृद्धि होती है। 
  • यह रत्न पहनने से जातक के आत्मविश्वास में वृद्धि होती है और उसकी संकोची प्रवृत्ति में कमी होती है। 
  • माणिक पत्थर धारण करने से व्यक्ति की आकर्षण शक्ति बढ़ती है और उसके करुणा, उत्साह, प्रेम, आदि भावों में भी वृद्धि होती है। 
  • पारिवारिक संबंधों में मजबूती के लिए भी माणिक्य रत्न पहनना शुभ होता है। 
  • सरकारी नौकरी प्राप्त करने और कारोबार में उन्नति के लिए भी यह रत्न मददगार साबित होता है।
  • प्रशासनिक क्षेत्र में उत्तम सफलता के लिए माणिक रत्न को पुखराज के साथ पहना जा सकता है। 
  • माणिक रत्न को मोती के साथ पहनने से पूर्णिमा नामक उत्तम योग बनता है। इससे मनचाही नौकरी पाने में आ रही समस्याएँ दूर होती हैं। 
  • जो जातक माणिक और मूंगा साथ में धारण करता है, समाज में उसका प्रभाव बढ़ता है। ऐसे व्यक्ति को प्रशासनिक क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है। 
  • पन्ना व माणिक्य साथ में धारण करना बुधादित्य नामक योग बनाता है। इस योग के प्रभाव स्वरूप जातक को दिमागी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।  
  • सूर्य ग्रह से जुड़ी किसी भी समस्या से निजात पाने के लिए माणिक या रूबी स्टोन पहनना उत्तम फलदायक हो सकता है। 

नोट: माणिक्य पत्थर के साथ नीलम, गोमेद, हीरा, ओपल, लहसुनिया रत्न किसी ज्योतिषी से परामर्श लेकर ही पहनना चाहिए। यह अशुभ फल कारक हो सकता है। 

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सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

One thought on “माणिक रत्न की कीमत व फायदे

  • raju gupta

    हैलो सर जी , आपने अपनी वेबसाईट पे , बहुत ही अच्छी तरह से माणिक्य के बारे मे बताया हे | बहुत बहुत धन्यवाद |

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