मन प्यासे
“मन प्यासे” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। इसमें कवि अपने बेचैन मन की व्यथा वर्णित कर रहा है। पढ़ें और आनंद लें इस कविता का–
मन प्यासे हैं पनघट-द्वारे
तृप्ति न दे पाये पल भर भी, इन आँखों के आँसू खारे।
निशा न तपन शमन कर पाई
और भोर ने अगन लगाई।
दोपहरी घर आँगन भटकूँ,
चैन कहाँ बिन प्रियतम प्यारे।
मन प्यासे हैं पनघट-द्वारे।
निठुर देवता के पूजन में,
भाव-सुमन सारे दे डाले।
मन्दिर की चौखट तक आते
फूट गए पैरों के छाले
कितना लम्बा तेरा पथ है-
चलते-चलते पग भी हारे।
मन प्यासे हैं पनघट-द्वारे।
घोर निराशा में डूबा हूँ
आशा-किरण नहीं दिखती है।
झिलमिल तारों वाली रजनी,
स्याम भाग्य की लिपि लिखती है।
पहुँचूगा फिर जाने कैसे
प्यास बुझाने नदी किनारे।
मन प्यासे हैं पनघट-द्वारे।
स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।