मत्स्य स्तोत्र – Matsya Stotram
“मत्स्य स्तोत्र” के पाठ से मनुष्य कठिन परिस्थितियों में से सकुशल निकल आता हैं और जो लोग वास्तु दोष से प्रभावित हैं, उन्हें इस स्तोत्र का नियमित रूप से पाठ करना चाहिए।
॥श्रीगणेशाय नमः॥
नूनं त्वं भगवान्साक्षाद्धरिर्नारायणोऽव्ययः।
अनुग्रहाय भूतानां धत्से रूपं जलौकसाम्॥
नमस्ते पुरुषश्रेष्ठ स्थित्युत्पत्त्यप्ययेश्वर।
भक्तानां नः प्रपन्नानां मुख्यो ह्यात्मगतिर्विभो॥
सर्वे लीलावतारास्ते भूतानां भूतिहेतवः।
ज्ञातुमिच्छाम्यदो रूपं यदर्थं भवता धृतम्॥
न तेऽरविन्दाक्ष पदोपसर्पणं मृषा भवेत्सर्वसुहृत्प्रियात्मनः।
यथेतरेषां पृथगात्मनां सतामदीदृशो यद्वपुरद्भुतं हि नः॥
॥ इति श्रीमद्भागवतपुराणान्तर्गतं मत्स्यस्तोत्रं सम्पूर्णम्॥
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॥śrīgaṇeśāya namaḥ॥
nūnaṃ tvaṃ bhagavānsākṣāddharirnārāyaṇo’vyayaḥ।
anugrahāya bhūtānāṃ dhatse rūpaṃ jalaukasām॥
namaste puruṣaśreṣṭha sthityutpattyapyayeśvara।
bhaktānāṃ naḥ prapannānāṃ mukhyo hyātmagatirvibho॥
sarve līlāvatārāste bhūtānāṃ bhūtihetavaḥ।
jñātumicchāmyado rūpaṃ yadarthaṃ bhavatā dhṛtam॥
na te’ravindākṣa padopasarpaṇaṃ mṛṣā bhavetsarvasuhṛtpriyātmanaḥ।
yathetareṣāṃ pṛthagātmanāṃ satāmadīdṛśo yadvapuradbhutaṃ hi naḥ॥
॥ iti śrīmadbhāgavatapurāṇāntargataṃ matsyastotraṃ sampūrṇam॥
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