मेरे देश की मिट्टी
“मेरे देश की मिट्टी” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी भाषा में रचित कविता है। इस कविता के प्रत्येक शब्द से देशप्रेम का भाव छलक रहा है। रसास्वादन कीजिए–
नफ़रत से मेरे देश की मिट्टी मत छूना,
जल जाओगे तेज भरा अंगार है।
प्यार भरी नजरों से इसको देखोगे,
तो पाओगे दुनिया का सिंगार है।
अहंकार में आकर जो टकराता है,
उसको यह झट बन जाती चट्टान है।
दोनों बाँहें फैला मिलने लगता है,
उसका इसने सदा किया सम्मान है।
क्या हिन्दू, क्या मुसलमान, क्या ईसाई,
एक साथ ही सबको गोद खिलाती है।
एक साथ ही छाती से चिपका सबको,
अपना पावन मीठा दूध पिलाती है।
यह अपने मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारों को,
अपने ही हाथों से रोज सजाती है।
मन्दिर में आरती कीर्तन करती है,
मस्जिद में अल्ला को रोज बुलाती है।
इसको प्यारी गीता और कुरान है,
इसको प्यारा हर कोई इंसान है।
भेद भाव कुछ नहीं जहाँ जो रहता है,
सबका ही यह प्यारा हिन्दुस्तान है।
जोर लगाले अपना कोई कितना ही,
नहीं पड़ेगी इसमें कभी दरार है।
शान्ति चाहने वाली है कमज़ोर नहीं,
आया है जब समय सभी ने देखा है।
पर्वत राज हिमालय के ऊपर इसने,
लाल रक्त से खींची लक्ष्मण रेखा है।
खतरा देखा बोल उठी हम एक हैं,
बंग-सिन्ध-पंजाब-मराठा एक है।
पूरब-पश्चिम, उत्तर-दक्खिन एक है,
जन-गन-मन के गाने वाले एक है।
बढ़ती गयी जवानों की मिल टोलियाँ,
गूँज रही थी नभ में उनकी बोलियाँ ।
बर्फीला हिमगिरि का आँचल लाल था,
खेल रहे थे गर्म लहू से होलियाँ।
इस मिट्टी की आश लगाने वाले सुन,
इस मिट्टी पर आँख गढ़ाने वाले सुन।
इस मिट्टी पर हाथ लगाने वाले सुन,
इस मिट्टी पर पाँव बढ़ाने वाले सुन।
निरी धूल मत जान कि पड़कर आँख में,
आँख फोड़ करके ही है मानती ।
दुश्मन को आँधी बनकर झकझोरती,
और मित्र को गले लगाना जानती।
जिसने समझा इसको यह कमज़ोर है,
सच मानो उसको ही धोखा हो गया।
साम्यवाद की लाश पड़ी लद्दाख में,
नेफा मरघट चंगेजों का हो गया।
सह सकती यह नहीं किसी का वार है,
बन जाता पत्ता पत्ता तलवार है।
इस मिट्टी का ताज, निराली शान है,
उत्तर में हिमगिरि छाती आसमान है।
चन्दा लेकर आता शीतल चाँदनी,
साँसें ही इसकी सुरभित पवमान है।
गंगा–यमुना का दोहरा गलहार है,
विन्ध्या वक्षस्थल का सुघर उभार है।
सूरज कंचन लाकर यहाँ बिखेरता,
हर ऋतु का मिल जाता उसको प्यार है।
धानी आँचल रत्नों की यह खान है,
हर केशर की क्यारी इसकी जान है।
फूली-फली लताएँ ऐसे नाचती,
जैसे हर सरगम का उनको ज्ञान है।
कोटि-कोटि स्वर कहते जय-जय भारती,
सौ-सौ स्वर्ग उतारे जिसकी आरती।
बलिदानों की भूमि, नमन स्वीकार करो,
सभी दिशाएँ मिलकर आज पुकारती
हर पत्ता टहनी हर वन्दनवार है।
नमन तेरे चरणों में शत-शत बार है।
नफरत से मेरे देश की मिट्टी मत छूना,
जल जाओगे तेज भरा अंगार है।
स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।