नमिनाथ चालीसा – Bhagwan Naminatha Chalisa
नमिनाथ चालीसा साक्षात कल्पवृक्ष की तरह है। इसका पाठ करना मानो स्वयं के भीतर अनन्त शक्ति को जागृत करना है। बस आवश्यकता है तो हृदय की निर्मलता और चित्त की पवित्रता की। प्रतिदिन नमिनाथ चालीसा को पढ़ने से स्वतः ही जीवन सन्मार्ग की ओर उन्मुख हो जाता है। हर काम अपने आप बनने लगता है और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इतना ही नहीं, व्यक्ति आध्यात्मिक उन्नति का भी भागी बन जाता है। पढ़ें नमिनाथ चालीसा–
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भगवान नमिनाथ का चिह्न – नील कमल
सतत पूज्यनीय भगवान,
नमिनाथ जिन महिभावान॥
भक्त करें जो मन में ध्याय,
पा जाते मुक्ति-वरदान॥
जय श्री नमिनाथ जिन स्वामी।
वसु गुण मण्डित प्रभु प्रणमामि॥
मिथिला नगरी प्रान्त बिहार।
श्री विजय राज्य करें हितकार॥
विप्रा देवी महारानी थीं।
रूप गुणों की वे खानि थीं॥
कृष्णाश्विन द्वितीया सुखदाता।
षोडश स्वप्न देखती माता॥
अपराजित विमान को तजकर।
जननी उदर बसे प्रभु आकर॥
कृष्ण असाढ़- दशमी सुखकार।
भूतल पर हुआ प्रभु-अवतार॥
आयु सहस दस वर्ष प्रभु की।
धनु पन्द्रह अवगाहना उनकी॥
तरुण हुए जब राजकुमार।
हुआ विवाह तब आनन्दकार॥
एक दिन भ्रमण करें उपवन में।
वर्षा ऋतु में हर्षित मन में॥
नमस्कार करके दो देव।
कारण कहने लगे स्वयमेव॥
ज्ञात हुआ है क्षेत्र विदेह में।
“भावी तीर्थंकर तुम जग में॥
देवों से सुन कर ये बात।
राजमहल लौटे नमिनाथ॥
सोच हुआ भव- भव में भ्रमण का।
चिन्तन करते रहे मोचन का॥
परम दिगम्बर व्रत करूँ अर्जन।
रतनत्रयधन करूँ उपार्जन॥
सप्रभ सुत को राज सौंपकर।
गए चित्रवन में श्रीजिनवर॥
दशमी असाढ़ मास की कारी।
सहस नृपति संग दीक्षाधारी॥
दो दिन का उपवास धारकर।
आतम लीन हुए श्री प्रभुवर॥
तीसरे दिन जब किया विहार।
भूप वीरपुर दें आहार॥
नौ वर्षों तक तप किया वन में।
एक दिन मौलि श्री तरु तल में॥
अनुभूति हुई दिव्याभास।
शुक्ल एकादशी मंगसिर मास॥
नमिनाथ हुए ज्ञान के सागर।
ज्ञानोत्सव करते सुर आकर॥
समोशरण था सभा विभूषित।
मानस्तम्भ थे चार सुशोभित॥
हुआ मौनभंग दिव्य ध्वनि से।
सब दुख दूर हुए अवनि से॥
आत्म पदार्थ से सत्ता सिद्ध।
करता तन में ‘अहम्’ प्रसिद्ध॥
बाह्येन्द्रियों में करण के द्वारा।
अनुभव से कर्ता स्वीकारा॥
पर-परिणति से ही यह जीव।
चतुर्गति में भ्रमे सदीव॥
रहे नरक-सागर पर्यन्त।
सहें भूख – प्यास तिर्यन्च॥
हुआ मनुज तो भी संक्लेश।
देवों में भी ईर्ष्या – द्वेष॥
नहीं सुखों का कहीं ठिकाना।
सच्चा सुख तो मोक्ष में माना॥
मोक्ष गति का द्वार है एक।
नरभव से ही पायें नेक॥
सुन कर मगन हुए सब सुरगण।
व्रत धारण करते श्रावक जन॥
हुआ विहार जहाँ भी प्रभु का।
हुआ वहीं कल्याण सभी का॥
करते रहे विहार जिनेश।
एक मास रही आयु शेष॥
शिखर सम्मेद के ऊपर जाकर।
प्रतिमा योग धरा हर्षा कर॥
शुक्ल ध्यान की अग्नि प्रजारी।
हने अघाति कर्म दुखकारी॥
अजर-अमर- शाश्वत पद पाया।
सुर-नर सबका मन हर्षाया॥
शुभ निर्वाण महोत्सव करते।
कूट मित्रधर पूजन करते॥
प्रभु हैं नीलकमल से अलंकृत।
हम हों उत्तम फल से उपकृत॥
नमिनाथ स्वामी जगवन्दन।
‘अरुणा’ करती प्रभु-अभिवन्दन॥
जाप –ॐ ह्रीं अर्हं श्री नमिनाथाय नमः
विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर नमिनाथ चालीसा (Naminatha Chalisa) को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें नमिनाथ चालीसा रोमन में–
Read Naminatha Chalisa
satata pūjyanīya bhagavāna,
naminātha jina mahibhāvāna॥
bhakta kareṃ jo mana meṃ dhyāya,
pā jāte mukti-varadāna॥
jaya śrī naminātha jina svāmī।
vasu guṇa maṇḍita prabhu praṇamāmi॥
mithilā nagarī prānta bihāra।
śrī vijaya rājya kareṃ hitakāra॥
viprā devī mahārānī thīṃ।
rūpa guṇoṃ kī ve khāni thīṃ॥
kṛṣṇāśvina dvitīyā sukhadātā।
ṣoḍaśa svapna dekhatī mātā॥
aparājita vimāna ko tajakara।
jananī udara base prabhu ākara॥
kṛṣṇa asāḍha़- daśamī sukhakāra।
bhūtala para huā prabhu-avatāra॥
āyu sahasa dasa varṣa prabhu kī।
dhanu pandraha avagāhanā unakī॥
taruṇa hue jaba rājakumāra।
huā vivāha taba ānandakāra॥
eka dina bhramaṇa kareṃ upavana meṃ।
varṣā ṛtu meṃ harṣita mana meṃ॥
namaskāra karake do deva।
kāraṇa kahane lage svayameva॥
jñāta huā hai kṣetra videha meṃ।
“bhāvī tīrthaṃkara tuma jaga meṃ॥
devoṃ se suna kara ye bāta।
rājamahala lauṭe naminātha॥
soca huā bhava- bhava meṃ bhramaṇa kā।
cintana karate rahe mocana kā॥
parama digambara vrata karū~ arjana।
ratanatrayadhana karū~ upārjana॥
saprabha suta ko rāja sauṃpakara।
gae citravana meṃ śrījinavara॥
daśamī asāḍha़ māsa kī kārī।
sahasa nṛpati saṃga dīkṣādhārī॥
do dina kā upavāsa dhārakara।
ātama līna hue śrī prabhuvara॥
tīsare dina jaba kiyā vihāra।
bhūpa vīrapura deṃ āhāra॥
nau varṣoṃ taka tapa kiyā vana meṃ।
eka dina mauli śrī taru tala meṃ॥
anubhūti huī divyābhāsa।
śukla ekādaśī maṃgasira māsa॥
naminātha hue jñāna ke sāgara।
jñānotsava karate sura ākara॥
samośaraṇa thā sabhā vibhūṣita।
mānastambha the cāra suśobhita॥
huā maunabhaṃga divya dhvani se।
saba dukha dūra hue avani se॥
ātma padārtha se sattā siddha।
karatā tana meṃ ‘aham’ prasiddha॥
bāhyendriyoṃ meṃ karaṇa ke dvārā।
anubhava se kartā svīkārā॥
para-pariṇati se hī yaha jīva।
caturgati meṃ bhrame sadīva॥
rahe naraka-sāgara paryanta।
saheṃ bhūkha – pyāsa tiryanca॥
huā manuja to bhī saṃkleśa।
devoṃ meṃ bhī īrṣyā – dveṣa॥
nahīṃ sukhoṃ kā kahīṃ ṭhikānā।
saccā sukha to mokṣa meṃ mānā॥
mokṣa gati kā dvāra hai eka।
narabhava se hī pāyeṃ neka॥
suna kara magana hue saba suragaṇa।
vrata dhāraṇa karate śrāvaka jana॥
huā vihāra jahā~ bhī prabhu kā।
huā vahīṃ kalyāṇa sabhī kā॥
karate rahe vihāra jineśa।
eka māsa rahī āyu śeṣa॥
śikhara sammeda ke ūpara jākara।
pratimā yoga dharā harṣā kara॥
śukla dhyāna kī agni prajārī।
hane aghāti karma dukhakārī॥
ajara-amara- śāśvata pada pāyā।
sura-nara sabakā mana harṣāyā॥
śubha nirvāṇa mahotsava karate।
kūṭa mitradhara pūjana karate॥
prabhu haiṃ nīlakamala se alaṃkṛta।
hama hoṃ uttama phala se upakṛta॥
naminātha svāmī jagavandana।
‘aruṇā’ karatī prabhu-abhivandana॥
jāpa:- oṃ hrīṃ arha śrī namināthāya namaḥ