नरसी मेहता की कथा
नरसी मेहता का जन्म गुजरात प्रान्त के जूनागढ़ शहर में ब्राह्मण कुल में हुआ था। बचपन में ही इन्हें साधुओं और संतों की संगति मिली, जिसके प्रभाव से इनमें भगवान श्री कृष्ण की भक्ति का उदय हुआ। धीरे-धीरे भगवान् श्रीकृष्ण की भक्ति और भजन-कीर्तन में ही इनका अधिकांश समय व्यतीत होने लगा। परिवार के लोग इनके रोज-रोज के साधु-संग और भगवद्भजन को पसंद नहीं करते थे। उन लोगों ने इनसे घर-गृहस्थी के कार्यों में समय देने के लिये कहा, किन्तु नरसी जी पर उसका कोई प्रभाव न पड़ा।
एक दिन इनकी भौजाई ने इन्हें ताना मारते हुए कहा कि ऐसी भक्ति उमड़ी है तो भगवान से मिलकर क्यों नहीं आते? इस ताने ने नरसी पर जादू का कार्य किया। ये उसी क्षण घर छोड़कर निकल पड़े और जूनागढ़ से कुछ दूर एक पुराने भगवान शिव के मन्दिर में बैठकर भगवान शंकर की उपासना करने लगे। इनकी उपासना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर जी प्रकट हुए और इन्हें गोलोक ले जाकर भगवान माधव की रासलीला का दर्शन कराया।
दिन-रात भजन-कीर्तन में लगे रहने और भरण पोषण के लिये कोई कार्य न करने के कारण नरसी मेहता जी के परिवार में उपवास की स्थिति आ जाती थी। इनकी पत्नी ने इनसे बहुत बार कुछ कार्य करने के लिये कहा, किन्तु इनका विश्वास था कि इनके भरण-पोषण की सारी व्यवस्था भगवान स्वयं करेंगे। कहते हैं इनकी पुत्री के विवाह की सम्पूर्ण व्यवस्था भगवान् श्रीकृष्ण ने स्वयं की थी। इसी प्रकार इनके पुत्र का विवाह भी भगवत्कृपा से ही सम्पन्न हुआ।
नरसी मेहता की कथा के अनुसार एक बार इनकी जाति के लोगों ने कहा कि तुम अपने पिता का श्राद्ध करके सबको भोजन कराओ। नरसी जी ने भगवान लड्डू गोपाल का स्मरण किया और देखते ही देखते सारी व्यवस्था हो गयी। श्राद्ध के दिन कुछ घी घट गया और नरसी जी बर्तन लेकर बाजार से घी लाने के लिये गये। रास्ते में एक संत-मण्डली को इन्होंने भगवन्नाम का संकीर्तन करते हुए देखा। नरसीजी भी उसमें शामिल हो गये। कीर्तन में ये इतना तल्लीन हो गये कि इन्हें घी ले जाने की सुधि ही न रही। घर पर इनकी पत्नी बड़ी व्यग्रता से इनकी प्रतीक्षा कर रही थी। भक्त वत्सल भगवान् श्रीकृष्ण ने नरसी का वेश बनाया और घी लेकर उनके घर पहुँचे। ब्राह्मण भोजन का कार्य सुचारु रूप से सम्पन्न हो गया। कीर्तन समाप्त होने पर काफी रात्रि बीत चुकी थी। नरसी मेहता सकुचाते हुए घी लेकर घर पहुंचे और पत्नी से विलम्ब के लिये क्षमा माँगने लगे। इनकी पत्नी ने कहा, “स्वामी! इसमें क्षमा माँगने की कौन-सी बात है? आप ही ने तो इसके पूर्व घी नाकर ब्राह्मणों को भोजन कराया है।”
नरसीजी ने कहा, “भाग्यवान्! तुम धन्य हो। वह मैं नहीं था, भगवान् श्रीकृष्ण थे। तुमने प्रभु का साक्षात् दर्शन किया है। मैं तो साधु-मण्डली में कीर्तन कर रहा था। कीर्तन बन्द हो जाने पर घी लाने की याद आयी और इसे लेकर आया हूँ।” यह सुनकर नरसीजी की पत्नी आश्चर्यसागर में डूब गयीं। इस प्रकार की भगवान की अहेतुकी कृपा की अनेक घटनाएँ नरसी जी के जीवन काल में हुईं। कुछ वर्ष बाद इनकी पत्नी और पुत्र का देहान्त हो गया और ये अपना सम्पूर्ण समय भगवद्भजन में बिताने लगे। परम भक्त नरसी मेहता संसार के असंख्य प्राणियों को भगवत्कृपा एवं भगवद्भक्ति का कल्याणमय पथ दिखाकर अन्त में गोलोकवासी हुए।