कविता

नव निर्माण करो

“नव निर्माण करो” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। इस कविता की रचना 1 सितम्बर सन् 1955 को की गयी थी। इसमें कवि नकारात्मक परिस्थितियों को सकारात्मक में परिवर्तित करने का आह्वान कर रहा है। पढ़ें और आनंद लें इस कविता का–

भारत का नव निर्माण करो,
अभिशापों को वरदान करो।

अब युग अपना अब घर अपना,
धरती अम्बर भी अपने हैं।
सूरज भी अपना आज हुआ,
ये चाँद सितारे अपने है।
हिमराज, सिन्धु भी अपने हैं,
नदियाँ, बीहड़ वन अपने हैं।

हम सभी मुक्त भारतवासी
लोगों के सपने अपने हैं।

धरती को स्वर्ग बनाने को
अब मिल करके श्रम दान करो।

भारत का नव निर्माण करो।

जीवन के अंकुर फूटेंगे श्रम
धन से ही श्मशानों में ।
धरती खुद ही सोना-चाँदी,
रख देगी ला खलियानों में।
रज का कण-कण मुस्कायेगा,
मोती – मूंगा बन जायेगा।
तिनका-तिनका इस धरती का,
तारों से होड़ लगायेगा।

ऊबड़ खाबड़ बीहड़ पथ की-
मंजिल से तो पहचान करो।

भारत का नव निर्माण करो।

धरती का उर शीतल होगा
नलकूपों के गंगाजल से।
जगमग जगमग घर-घर होगा,
बिजली के वल्बों के बल से।
जनमार्ग सभी पक्के होंगे पुल
बाँध अनेकों ही होंगे।
घर-घर में सुख साधन होंगे
जन-जन ही देव सदृश होंगे।

जागो निद्रित पलकें खोलो
अब आँसू को मुस्कान करो।

भारत का नव निर्माण करो।

दिनांक 1-9-1955

स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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