पद्मप्रभु चालीसा – Bhagwan Padmaprabhu Chalisa
पद्मप्रभु चालीसा हर प्रकार की सिद्धि देने में समर्थ है। भगवान पद्मप्रभु जैन धर्म के छठे तीर्थंकर हैं। उनकी इस चालीसा के पाठ से भूत-प्रेत आदि तुरंत भाग जाते हैं। जो श्रद्धा को हृदय में धारण करके इसका नित्य पाठ करता है, उसके लिए संसार में कुछ भी दुर्लभ नहीं रहता है। पद्मप्रभु चालीसा के नित्यप्रति पाठ से नेत्रहीन को भी आँखें मिल जाती हैं, सुनने में असमर्थ व्यक्ति सुनने की क्षमता प्राप्त कर लेता है और चलने में अक्षम पर्वत लाँघने में सक्षम हो जाता है। इतना ही नहीं, भगवान पद्मप्रभु का पावन स्मरण संसार-चक्र से भी तार देता है। अतः पद्मप्रभु चालीसा (Padmaprabhu Chalisa) का चालीस दिन तक चालीस बार पाठ अवश्य करना चाहिए।
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भगवान पद्मप्रभु का चिह्न – कमल
शीश नवा अहँत को सिद्धन करूं प्रणाम।
उपाधयाय आचार्य का ले सुखकारी नाम॥
सर्वसाधु और सरस्वती जिन मंदिर सुखकार।
पद्मपुरी के पद्म को मन मन्दिर में धार॥
जय श्री पद्मप्रभु गुणधारी,
भवि जन को तुम हो हितकारी।
देवों के तुम देव कहाओ,
छट्टे तीर्थंकर कहलाओ॥
तीन काल तिहुं जग की जानो,
सब बातें क्षण में पहचानो।
वेष दिगम्बर धारण हारे,
तुम से कर्म शत्रु भी हारे॥
मूर्ति तुम्हारी कितनी सुन्दर,
दृष्टि सुखद जमती नासा पर।
क्रोध मान मद लोभ भगाया,
राग द्वेष का लेश न पाया॥
वीतराग तुम कहलाते हो,
सब जग के मन को भाते हो।
कौशाम्बी नगरी कहलाए,
राजा धारणजी बतलाए॥
सुन्दर नाम सुसीमा उनके,
जिनके उर से स्वामी जन्मे।
कितनी लम्बी उमर कहाई,
तीस लाख पूरब बतलाई॥
इक दिन हाथी बंधा निरख कर,
झट आया वैराग उमड़कर।
कार्तिक सुदी त्रयोदशि भारी,
तुमने मुनिपद दीक्षा धारी॥
सारे राज पाट को तज के,
तभी मनोहर वन में पहुंचे।
तप कर केवल ज्ञान उपाया,
चैत सुदी पूनम कहलाया॥
एक सौ दस गणधर बतलाए,
मुख्य वज्र चामर कहलाए।
लाखों मुनी अर्जिका लाखों,
श्रावक और श्राविका लाखों॥
असंख्यात तिर्यंच बताये,
देवी देव गिनत नहीं पाये।
फिर सम्मेदशिखर पर जाकर,
शिवरमणी को ली परणाकर॥
पंचम काल महा दुखदाई,
जब तुमने महिमा दिखलाई।
जयपुर राज ग्राम बाड़ा है,
स्टेशन शिवदासपुरा है॥
मूला नाम जाट का लड़का,
घर की नींव खोदने लगा।
खोदत 2 मूर्ति दिखाई,
उसने जनता को बतलाई॥
चिन्ह कमल लख लोग लगाई,
पद्म प्रभु की मूर्ति बताई।
मन में अति हर्षित होते हैं,
अपने दिल का मल धोते हैं॥
तुमने यह अतिशय दिखलाया,
भूत प्रेत को दूर भगाया।
जब गंधोदक छींटे मारे,
भूत प्रेत तब आप बकारे॥
जपने से जब नाम तुम्हारा,
भूत प्रेत वो करे किनारा।
ऐसी महिमा बतलाते हैं,
अन्धे भी आंखें पाते हैं॥
प्रतिमा श्वेत- वर्ण कहलाए,
देखत ही हृदय को भाए।
ध्यान तुम्हारा जो धरता है,
इस भव से वह नर तरता है॥
अन्धा देखे गूंगा गावे,
लंगड़ा पर्वत पर चढ़ जावे।
बहरा सुन-सुन कर खुश होवे,
जिस पर कृपा तुम्हारी होवे॥
मैं हूं स्वामी दास तुम्हारा,
मेरी नैया कर दो पारा।
चालीसे को चन्द्र बनावे,
पद्म प्रभु को शीश नवावे॥
नित चालीसहिं बार, पाठ करे चालीस दिन।
खेय सुगन्ध अपार, पद्मपुरी में आय के॥
होय कुबेर समान, जन्म दरिद्री होय जो।
जिसके नहिं सन्तान, नाम वंश जग में चले॥
जाप – ॐ ह्रीं अर्हं श्री पद्मप्रभु नमः
हिंदीपथ पर पद्मप्रभु भगवान की चालीसा (Padamprabhu Bhagwan Chalisa) पेश करके हम अत्यंत गौरवान्वित हैं। आप पद्मप्रभु भगवान की चालीसा का पीडीएफ (Padamprabhu Chalisa PDF) नीचे से प्राप्त कर पाएंगे। इसे (Padam Prabhu Chalisa PDF Download) डाउनलोड करके आप अपने पास सेव करके या प्रिंट करवा कर भी रख सकते हैं। जैन धर्म में पद्मप्रभु चालीसा के पाठ का विशेष महत्व है। आइये जानते हैं भगवान पद्मप्रभु से जुड़े कुछ अन्य महत्वपूर्ण तथ्य।
- पद्मप्रभु जी जैन धर्म के छठे तीर्थंकर थे।
- श्री पद्मप्रभु भगवान का गर्भ कल्याण माघ कृष्ण पक्ष की छटवीं तिथि को हुआ था।
- इनका जन्म कार्तिक कृष्ण पक्ष की तेरस तिथि को कौशाम्बी नगरी में इक्ष्वाकु वंश में हुआ था।
- इनके पिता का नाम धरण राजा और माता का नाम सुसीमा देवी था।
- इन्होंने जगत को अहिंसा की शिक्षा दी थी।
- पद्मप्रभु जी की कुल आयु तीस लाख वर्ष पूर्व थी।
- इनके शरीर की उंचाई दो सौ पचास धनुष एवं शरीर का वर्ण विद्रुमवर्ण (लाल वर्ण) था।
- इनका जन्म चिन्ह लाल कमल था।
- इन्होने कार्तिक कृष्ण पक्ष की तेरस तिथि को मनोहर वन में दीक्षा प्राप्त की थी।
- पद्मप्रभु जी के यक्ष का नाम कुसुम एवं यक्षिणी का नाम अच्युता था।
- इन्हे फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सम्मेद शिखर जी में मोक्ष की प्राप्ति हुई थी।
हिंदी में अन्य महत्वपूर्ण एवं रोचक जानकारियां प्राप्त करने के लिए हिंदीपथ पर बने रहें। हम नित्य प्रतिदिन आपके लिए कुछ नया और रोचक लेकर आते रहते हैं। हमारा यह प्रयास है कि आप तक जानकारियां पहुंचाने में कभी चूक न हो।
विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर पद्मप्रभु चालीसा (Bhagwan Padmaprabhu Chalisa) को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें पद्मप्रभु चालीसा रोमन में–
Read Bhagwan Padmaprabhu Chalisa
śīśa navā aha~ta ko siddhana karūṃ praṇāma।
upādhayāya ācārya kā le sukhakārī nāma॥
sarva sādhu aura sarasvatī jina mandira surakhakāra।
padmapurī ke padma ko mana mandira meṃ dhāra॥
jaya śrī padmaprabhu guṇadhārī,
bhavi jana ko tuma ho hitakārī।
devoṃ ke tuma deva kahāo,
chaṭṭe tīrthaṃkara kahalāo॥
tīna kāla tihuṃ jaga kī jāno,
saba bāteṃ kṣaṇa meṃ pahacāno।
veṣa digambara dhāraṇa hāre,
tuma se karma śatru bhī hāre॥
mūrti tumhārī kitanī sundara,
dṛṣṭi sukhada jamatī nāsā para।
krodha māna mada lobha bhagāyā,
rāga dveṣa kā leśa na pāyā॥
vītarāga tuma kahalāte ho,
saba jaga ke mana ko bhāte ho।
kauśāmbī nagarī kahalāe,
rājā dhāraṇajī batalāe॥
sundara nāma susīmā unake,
jinake ura se svāmī janme।
kitanī lambī umara kahāī,
tīsa lākha pūraba batalāī॥
ika dina hāthī baṃdhā nirakha kara,
jhaṭa āyā vairāga umaḍa़kara।
kārtika sudī trayodaśi bhārī,
tumane munipada dīkṣā dhārī॥
sāre rāja pāṭa ko taja ke,
tabhī manohara vana meṃ pahuṃce।
tapa kara kevala jñāna upāyā,
caita sudī pūnama kahalāyā॥
eka sau dasa gaṇadhara batalāe,
mukhya vajra cāmara kahalāe।
lākhoṃ munī arjikā lākhoṃ,
śrāvaka aura śrāvikā lākhoṃ॥
asaṃkhyāta tiryaṃca batāye,
devī deva ginata nahīṃ pāye।
phira sammedaśikhara para jākara,
śivaramaṇī ko lī paraṇākara॥
paṃcama kāla mahā dukhadāī,
jaba tumane mahimā dikhalāī।
jayapura rāja grāma bāḍa़ā hai,
sṭeśana śivadāsapurā hai॥
mūlā nāma jāṭa kā laḍa़kā,
ghara kī nīṃva khodane lagā।
khodata 2 mūrti dikhāī,
usane janatā ko batalāī॥
cinha kamala lakha loga lagāī,
padma prabhu kī mūrti batāī।
mana meṃ ati harṣita hote haiṃ,
apane dila kā mala dhote haiṃ॥
tumane yaha atiśaya dikhalāyā,
bhūta preta ko dūra bhagāyā।
jaba gaṃdhodaka chīṃṭe māre,
bhūta preta taba āpa bakāre॥
japane se jaba nāma tumhārā,
bhūta preta vo kare kinārā।
aisī mahimā batalāte haiṃ,
andhe bhī āṃkheṃ pāte haiṃ॥
pratimā śveta- varṇa kahalāe,
dekhata hī hṛdaya ko bhāe।
dhyāna tumhārā jo dharatā hai,
isa bhava se vaha nara taratā hai॥
andhā dekhe gūṃgā gāve,
laṃgaḍa़ā parvata para caḍha़ jāve।
baharā suna-suna kara khuśa hove,
jisa para kṛpā tumhārī hove॥
maiṃ hūṃ svāmī dāsa tumhārā,
merī naiyā kara do pārā।
cālīse ko candra banāve,
padma prabhu ko śīśa navāve॥
nita cālīsahiṃ bāra,
pāṭha kare cālīsa dina।
kheya sugandha apāra,
padmapurī meṃ āya ke॥
hoya kubera samāna,
janma daridrī hoya jo।
jisake nahiṃ santāna,
nāma vaṃśa jaga meṃ cale॥
jāpa:- oṃ hrīṃ arha śrī padmaprabhu namaḥ