कविता

पैर न अब तक रुक पाये

“पैर न अब तक रुक पाये” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। इसमें कवि आत्मविश्वास और हौसला बनाए रखने का आह्वान कर रहा है। पढ़ें और आनंद लें “पैर न अब तक रुक पाये” कविता का–

मंजिल घटती गई चाल बढ़ती गई-
मेरे दो पग कभी न अब तक थक पाये।

आँधी आई मुझे डराने के लिए
वर्षा आयी मुझे बुझाने के लिए
खड़ा हिमलाय रोष दिखाता था मुझे-
बढ़ा समन्दर मुझे डुबाने के लिये।

अगर रहा मैं अभय और बढ़ता गया,
मेरे गतिमय पैर न अब तक रुक पाये।

मेरे दो पग कभी न अब तक थक पाये।

काली – काली अँधियारी रातें आईं
प्राणों में एक दर्द छिपाकर के लाई
फिर कुछ धुंधले कुछ सोने के दिन आये
चाँदी-सी उजली-उजली रातें आईं।

किन्तु न जाने फिर भी क्यों बढ़ता गया,
मेरे मीठे स्वप्न न मुझको ठग पाये।

मेरे दो पग कभी न अब तक थक पाये।

छेड़ कली को कहा भ्रमर ने मुस्काओ
उत्तर था धीरे-धीरे पहले गाओ
नाचो तुम और गीत मधुर में गाता हूँ-
होती किसकी जीत आज यह अज़माओ
नाच उठा क्षण भर में ही उपवन सारा-
पर मेरे पग नहीं वहाँ भी रुक पाये।

मेरे दो पग कभी न अब तक थक पाये।

खोले घूँघट रूप खड़ा था सामने
पीकर मदिरा प्रेम अड़ा था सामने
नयनों की थी मूक कहानी चल रही
यौवन की बरसात लगी थी सामने।

फिर भी जाने क्योंकर किस जल के लिए
मेरे प्यासे नयन न अब तक झुक पाये।

मेरे दो पग कभी न अब तक थक पाये।

मेरी नौका पड़ी हुई मँझधार में
साथी कोई रहा न था संसार में
पर लहरों ने साथी बन करके मेरा-
खड़ा कर दिया साहिल ही मँझधार में।

इसीलिए विश्वास लगाये बढ़ता हूँ
मेरे दुर्बल हाथ न अब तक थक पाये।

मेरे दो पग कभी न अब तक थक पाये।

सौ-सौ सपने साथ लिए मुस्काता मैं ,
मिट-मिट करके भू को स्वर्ग बनाता मैं।

खेल मौत से खेल-खेल बढ़ता आया-
निज जीवन का दाँव लगाता आया मैं।

इसी तरह संसार नया रचता आया,
मेरे मधुमय गीत न अब तक चुक पाये ।

मेरे दो पग कभी न अब तक थक पाये।

स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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