पंचतंत्र की कहानी – बुजदिल मत बनो
“बुजदिल मत बनो” कथा पंचतंत्र की पिछली कहानी न राजा बिना सेवक, न सेवक बिना राजा के आगे शुरू होती है। पढ़ें इस रोचक कहानी में दमनक किस तरह अपनी बुद्धिमत्ता से बैल और सिंह की मित्रता करा देता है। अन्य कहानियाँ पढ़ने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – पंचतंत्र की कहानियां।
दमनक ने फिर कहानी आरम्भ की।
एक बार एक गीदड़ उस जंगल में चला गया जहां दो सेनाएं युद्ध कर रही थीं। दोनों सेनाओं के मध्य क्षेत्र में एक नगाड़ा रखा था। गीदड़ ने बड़े अन्दाज़ से उस नगाड़े को देखा, वह गीदड़ बेचारा कई दिनों से भूखा था, नगाड़े को ऊंचे स्थान पर रखे देखकर वह कुछ देर के लिए रुका।
देखते ही देखते हवा के एक तेज झोंके से नगाड़ा नीचे गिर गया। फिर आस-पास के वृक्षों में लटकी टहनियां हवा से उस नगाड़े पर पड़ने लगीं, तो उसमें से आवाजें आने लगीं।
गीदड़ इन आवाजों को सुनकर डर गया। सोचने लगा कि अब क्या होगा। क्या मुझे यहां से भागना होगा?
“नहीं… नहीं…।” मैं अपने पूर्वजों के इस जंगल को छोड़कर नहीं जा सकता। भागने से पहले मुझे इस आवाज का रहस्य तो जानना ही होगा। यही सोचकर वह धीरे-धीरे उस नगाड़े के पास पहुंच गया। कितनी देर तक उसे देखने के पश्चात वह सोचने लगा कि यह नगाड़ा तो बहुत बड़ा है। इसकी शक्ति भी कुछ कम नहीं, फिर इसका पेट भी बहुत बड़ा है। इसको चीरने से तो बहुत चर्बी माल खाने को मिलेगा।
“वाह-वाह…अब तो खूब आनन्द आएगा खाने में।”
बस यही सोचकर उस गीदड़ ने नगाड़े का चमड़ा फाड़ दिया और घुस गया उसके अंदर। वहां क्या था–
“ढोल का पोल।”
गीदड़ वहां पर कुछ भी न पाकर बहुत निराश हुआ। इस नगाड़े को फाड़ने में तो उसके दांत भी टूट गये थे, किन्तु मिला क्या? कुछ भी नहीं। वह इस नगाड़े से डर रहा था। तो भी कुछ नहीं हुआ, वह स्वयं से कहने लगा। देखो केवल आवाज से ही नहीं डरना चाहिए। इंसान को बुजदिल भी नहीं बनना चाहिए। इसलिए कभी बुजदिल मत बनो।
शेर ने दमनक की ओर देखकर कहा, “देखो भद्र, मेरे ये सारे साथी इस समय बहुत डरे हुए हैं। यह सब-के-सब भाग जाना चाहते हैं। बताओ मैं अकेला क्या करूं?”
यह इनका दोष नहीं महाराज, आप तो जानते ही हैं ‘जैसा राजा, वैसी प्रजा’ फिर।
घोड़ा, शस्त्र, शास्त्र, वीणा, वाणी, नर और नारी – ये सब पुरुष विशेष को पाकर योग्य और अयोग्य होते हैं। इसलिए आप तब तक यहीं रहें, जब तक मैं पूरी सच्चाई का पता लगाकर वापस न आऊं।
“क्या आप वहां जाने का इरादा रखते हो?”
जी हां महाराज, अच्छे और वफादार दास का जो कर्तव्य है मैं उसे पूरा करूंगा। बड़े लोग यह कह गए हैं कि अपने मालिक का कहना मानने में कभी भी झिझक नहीं होनी चाहिए। चाहे उसे सांप के मुंह में या सागर की गहराई में ही क्यों न जाना पड़े। अपने मालिक के आदेशों को जो भी सेवक यह नहीं सोचता कि यह कठिन है अथवा सरल, वही महान् होता है।
पिंगलक, दमनक की बातों से बहुत खुश हो गया था। उसने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा, यदि यही बात है तो जाओ, भगवान तुम्हें इस काम में सफलता दे।
“धन्यवाद! मेरे मालिक, भगवान ने चाहा तो मैं सफलता पाकर ही लौटूंगा”, इतना कहकर दमनक वहां से उठकर उस ओर चल दिया जहां से उस बैल की आवाज सुनी गई थी।
दमनक के चले जाने के पश्चात् शेर सोचने लगा कि मैंने यह अच्छा नहीं किया, जो उसे अपने सारे भेद बता दिए। कहीं यह शत्रु का जासूस न हो या दोनों पक्षों को पागल बनाकर अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहा होगा। यह भी हो सकता है कि यह मुझसे पुराना बदला चुकाना चाहता हो, क्योंकि मैंने इसे पद से हटाया था। इस बारे में कहा गया है–
जो लोग राजा के यहां पहले से ऊंचे पद पर होते हुए बड़ी इज्जत मान रखते हैं, यदि उन्हें इस पद से हटा दिया जाय तो वे अच्छे होते हुए भी उस राजा के शत्रु बन जाते हैं। वे अपने अपमान का बदला लेना चाहते हैं, इसलिए मैं उस दमनक को परखने के लिए यहां से जाकर दूसरे स्थान पर रहना शुरू कर देता हूं। यह भी हो सकता है कि दमनक उसे साथ लेकर मुझे मरवा ही डाले। ऐसे ही लोगों के बारे में कहा गया है–
विश्वास न करने वाले कमजोर प्राणी बलवानों से भी नहीं मारे जाते और कभी-कभी बलवान भी विश्वास करने पर कमजोर के हाथों से मारे जाते हैं।
कसमें खाकर संधि करने वाले शत्रु का भी विश्वास नहीं करना चाहिए। राज्य प्राप्त करने के लिए उद्यत वृत्रासुर कसमों द्वारा ही इन्द्र से मारा गया था।
देवताओं का शत्रु भी बिना विश्वास दिलाए बस में नहीं होता। इसी विश्वास के धोखे से तो इन्द्र ने दिति के गर्भ को नष्ट कर दिया था।
यही सब सोचकर पिंगलक किसी दूसरे स्थान पर जाकर दमनक के रास्ते को देखते हुए किसी दूसरे स्थान पर जाकर बैठ गया।
दमनक जैसे ही बैल के पास पहुंचा वह दिल ही दिल में खुश हो रहा था, क्योंकि उसे अपने पुराने मालिक को खुश करने और अपनी खोई हुई इज्जत प्राप्त करने का एक सुन्दर अवसर मिला था।
बैल से मिल कर वह वापस अपने मालिक के पास जाने लगा तो सोच रहा था कि विद्वानों ने ठीक ही कहा है–
राजा मंत्रियों के कहने पर उस समय तक दयालु और सच्चाई के मार्ग पर नहीं चलता, जब तक वह स्वयं दुःख न उठा ले। दुःख और मुसीबत में फंसकर ही राजा को वास्तविक जीवन का पता चलता है। इसलिए मंत्री लोग दिल से चाहते हैं कि राजा भी कभी-न-कभी दुःख झेले।
“जैसे स्वस्थ प्राणी किसी अच्छे वैद्य को भी नहीं चाहता, वैसे ही दुःखों और संकटों से बचा हुआ राजा किसी अच्छे मंत्री को नहीं चाहता।”
यही सोचता हुआ दमनक वापस शेर के पास पहुंच गया। शेर भी दूर से ही उसे आते देख रहा था। उसने पहले से ही अपने को आने वाले खतरे का मुकाबला करने के लिए तैयार कर रखा था।
दमनक को अकेले आते देखकर वह समझ गया था कि डर वाली कोई बात नहीं, उसने दमनक से पूछा–
“मित्र, तुम उस भयंकर जानवर से मिल आए हो।”
“जी हां।”
“क्या यह सत्य है?,” शेर ने आश्चर्य से पूछा।
महाराज, क्या आप यह सोच सकते हैं कि मैं अपने मालिक के सामने झूठ बोलूंगा? आपको याद नहीं–
जो पुरुष राजा और विद्वानों के आगे झूठ बोलता है, वह कितना ही महान क्यों न हो वह शीघ्र नष्ट हो जाता है।
पिंगलक (शेर) बोला, “यह ठीक है। तुमने उसे देखा होगा। छोटों पर बड़े क्रोध नहीं करते। इसीलिए उसने तुम्हें कुछ नहीं कहा होगा।”
महाराज, हवा कभी भी नीचे झुके तिनकों और धरती पर बिछी हुई घास को कुछ नहीं कहती। सदा बड़े ही बड़ों पर अपनी शक्ति दिखाते हैं।
जैसे मस्त भंवरे जब किसी हाथी के कान के निकट जाकर जब अपना राग अलापते हैं, तो वह हाथी कभी भी उस भंवरे पर गुस्सा नहीं करता। क्योंकि बलवान सदा बलवान पर गुस्सा करता है।
ठीक है मेरे मित्र, मैं तुम्हारी बातों से खुश हुआ। अब उस भयंकर जानवर के बारे में भी तो कुछ बताओ जिसकी गर्ज से ही जंगल कांप उठता है।
“जी महाराज, यदि आप कहें तो मैं उस भयंकर जानवर को भी सेवा में लगा दूँ।”
पिंगलक ने एक ठंडी सांस भरते हुए कहा, “क्या यह हो सकता है?”
महाराज, बुद्धि से इस संसार में क्या नहीं हो सकता। यह बात भी सत्य है कि बुद्धि द्वारा जो काम बन सकता है, वह हथियारों से नहीं बनता।
यदि ऐसा तुम कर दिखाओगे दमनक, तो मुझे बहुत खुशी होगी। वैसे मैं तुम्हारी बातों से बहुत प्रभावित हुआ हूँ। मैं आज से तुम्हें अपना मंत्री बनाता हूँ। मेरे सारे काम को तुम ही देखा करोगे।
धन्यवाद महाराज, मैं आपको वचन देता हूं कि मैं आपकी सेवा सच्चे दिल से करूंगा। आप मुझे आशीर्वाद दें कि मैं उस भयंकर जानवर को ले जाकर उसे अपने रास्ते से हटा सकूँ।
“जाओ दमनक, जाओ। मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं।”
“दमनक अपने पुराने मालिक और अपने खोये हुए पद को पाकर अत्यन्त खुश हो गया था। वह वहां से सीधा उस बैल के पास पहुंचा। जाते ही उसने बैल से कहा, “ओ दुष्ट बैल! इधर आ। मेरा मालिक पिंगलक तुझे बुला रहा है।” उसकी बात सुनते ही बैल ने आश्चर्य से पूछा, “मित्र, यह पिंगलक कौन है?”
“अरे, क्या तू मेरे मालिक पिंगलक को नहीं जानता? कमाल है। तुझे इस जंगल में रहकर भी नहीं पता कि उस सामने बड़ के पेड़ के नीचे पिंगलक नाम का शेर रहता है।”
बैल उसके मुंह से शेर की बात सुनकर डर-सा गया। फिर भी अपने आपको संभालता हुआ बोला, “देखो मित्र, यदि तुम मुझे अपने मालिक के पास ले जाना चाहते हो तो मेरी रक्षा की सारी जिम्मेदारी तुम पर होगी।”
हां हां मित्र, तुम ठीक ही कहते हो। मेरी नीति यही है, क्योंकि–
धरती, सागर और पहाड़ का तो अंत पाया जा सकता है, किन्तु राजा के दिल का भेद आज तक किसी ने नहीं पाया। इसलिए तुम उस समय तक यहीं पर ठहरो, जबतक मैं अपने मालिक से सारी बात करके वापस न आ जाऊं।
“ठीक है मित्र, मैं तुम्हारा इन्तजार करूंगा,” बैल ने हंसकर उत्तर दिया।
दमनक बैल को वहीं छोड़कर खुशी से छलांगें लगाता हुआ फिर शेर के पास पहुंचा। शेर भी अपने मित्र को आते देखकर खुश था। उसने पूछा, “कहो मंत्री! क्या खबर लाए हो?”
“महाराज! वह कोई साधारण बैल नहीं है। वह तो भगवान शंकर का वाहन बैल है। स्वयं शंकर जी ने उसे इस जंगल में घास खाने के लिए भेजा है।”
पिंगलक ने हैरानी से कहा, “अब मुझे ठीक-ठीक बात पता चल गई कि यह बैल इस जंगल में क्यों आया है। इसके पास देवताओं की शक्ति है। अब यहां के जीव-जन्तु उसके सामने आजादी से नहीं घूम सकते। मगर मंत्री तुमने उससे क्या कहा?”
मैंने उसे कहा कि यह जंगल चंडी के वाहन, मेरे राजा पिंगलक नामक शेर के अधिकार में है। इसलिए आप हमारे मेहमान हैं। मेहमान की सेवा करना हमारा सर्वप्रथम धर्म है। इसलिए मैं अपने राजा की ओर से आपसे प्रार्थना करता हूं कि आप हमारे साथ रहें।
“वह क्या बोला?”
“महाराज! वह मेरे साथ आने को तैयार हो गया। अब तो मैं केवल आपकी आज्ञा की प्रतीक्षा कर रहा हूं। कहो तो उसे आपके पास ले आऊं?”
दमनक, तुमने तो हमारे दिल की बात कह दी। मैं बहुत खुश हूं। जाओ, तुम जल्दी से उसे मेरे पास ले आओ। मुझे तो यह बात बार-बार याद आती है–
जैसे शक्तिशाली खम्भों पर भवन खड़ा किया जाता है, वैसे ही बुद्धिमान मंत्री के कन्धों पर राज्य का बोझ डाला जाता है।
दमनक अपने राजा के मुंह से अपनी प्रशंसा सुनकर बहुत खुश हुआ और फिर वहां से वापस उस बैल की ओर चल दिया।
बैल दमनक की बात सुनकर बहुत खुश हुआ और शेर का निमंत्रण पाते ही बोला, जैसे–
सर्दी में आग अमृत, वैसे अपने मित्र का दर्शन अमृत है। दूध का भोजन खीर अमृत और राज सम्मान भी ऐसे ही अमृत है। हम अपने मित्र सिंह के पास चलेंगे।
दमनक ने बैल से कहा – देखो मित्र! मैं तुम्हें वहां पर ले जा रहा हूं। मैंने ही शेर से तुम्हारी मित्रता करवाई है। इसलिए तुम्हें मुझे यह वचन देना होगा कि तुम सदा मेरे मित्र बने रहना। राजा, सदा राजा रहता है, मंत्री मंत्री, किन्तु शिकारी की नीति से राज्य वैभव मनुष्यों के बस में हो जाता है। एक तो प्रजा को प्रेरित करता है, दूसरा यानी शिकारी मृगों की भांति उसे मार देता है।
जो प्राणी गर्व के कारण उत्तम, मध्यम और अधम–इन तीनों प्रकार के मनुष्यों का यथायोग्य सत्कार नहीं करता, वह राजा से आधार पाकर भी दन्तिल के समान भ्रष्ट हो जाता है।
“यह कैसे भाई?”, बैल ने पूछा।
ऐसे, सुनो– न कोई छोटा, न कोई बड़ा।
पढ़ें दमनक की बैल को सुनायी यह मनोरंजक और रोचक अगली कहानी।