कविता

पावस-लोकगीत

“पावस-लोकगीत” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया “नवल” द्वारा ब्रज भाषा में रचित वर्षा ऋतु का वर्णन करती बहुत सुंदर कविता है। आनन्द लें–

मेघा बरसि रहे घनघोर, चमचम चमकै बीजुरी।

आँगन भ‍र्यौ भर्यौ है द्वारौ गलियाँ ताल-तलैयाँ।
नदियाँ दौरि चली सागर कौं, उमड़ी कूल कुलैयाँ।
बीर बधूटी खेतनि डोलैं, क्यारिन महकै बेला।
हरसिंगार हरषैं मेंडनि पै, चारि दिना को मेला।
केरा भूमि रहे चहुँ ओर, वन में बोलै तितुरी।
मेघा बरसि रहे घनघोर, चमचम चमकै बीजुरी॥

दादुर मोर-पपीहा बोलैं अपनी-अपनी भाषा।
मानों रहे बताय हमें वे भारत की परिभाषा।
भाँति-भाँति के फूल खिले हैं, जाति-जाति के प्रानी।
चोली दामन के संगी सब मन के राजा-रानी।
कोयल मीठे बोलै बोल मँजीरा ठोकै झींगुरी।
मेघा बरसि रहे घनघोर, चमचम चमकै बीजुरी॥

अम्बर में सतरंगी सोभा इन्द्रधनुष की सोहै।
अंग-अंग परसै पुरवैया अंतरमन हू मोहे।
बन उपवन की सुषमा न्यारी कुंजनि की छवि प्यारी।
धूप छाँह की न्यारी चुनरी, औढ़ैं बरसा नारी।
संध्या मानो लाल गुलाल, याकी भोर ईंगुरी।
मेघा बरसि रहे घनघोर, चमचम चमकै बीजुरी॥

ग्वाल बाल कुंजनि में खैलैं सखियाँ झूला झूलें।
कहूँ घूंघट में हँसी रेसमी उत्पल से द्वै फूलैं।
गडुआ धरै हाथ पे गोरी पूजन कौं कछु आवे।
कमलनाल के ऊपर मानों, कलियाँ खिलि-खिलि जावैं।
पायल पाँयनि सौं बतराइ मुसिक्यावें पींडुरी।
मेघा बरसि रहे घनघोर, चमचम चमकै बीजुरी ॥

राखी कौ त्यौहार मनावै, बाँधि प्यार के धागे।
जाति-पाँति के भेद-भाव सब, इनके आगे भागे।
चली तालकौं धरैं भुँजरियाँ, मिलि-जुलि कै सब गुइयाँ।
ऐसी प्रेम-पगी भैयन के भूलीं अपने सैंया।
गावै कजरी और मल्हार सिर पै सोहै ईंडुरी।
मेघा बरसि रहे घनघोर, चमचम चमकै बीजुरी॥

“पावस-लोकगीत” कविता आपको कैसी लगी – हमें टिप्पणी करके बताएँ।

स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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