धर्म

पुष्पदंत चालीसा – Bhagwan Pushpdant Chalisa

पुष्पदंत चालीसा का नियमित पाठ जीवन में कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है। भगवान पुष्पदंत को सुविधिनाथ नाम से भी जाना जाता है। वे जैन धर्म के नवम तीर्थंकर हैं। जो भक्ति पूर्वक पुष्पदंत चालीसा (Pushpdant Chalisa) पढ़ता है और इसका गान करता है उसे न केवल इहलोक में सब कुछ प्राप्त होता है, बल्कि वह निर्वाण का भागी भी बन जाता है। पढ़ें पुष्पदन्त चालीसा–

यह भी पढ़ें – भगवान पुष्पदंत की आरती

भगवान पुष्पदंत का चिह्न – मगर

दरख से तप्त मरुस्थल भव में।
सघन वृक्ष सम छायाकार।
पुष्पदन्त पद-छत्र-छाँव में।
हम आश्रय पावें सुखकार॥

जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में।
काकन्दी नामक नगरी में॥

राज्य करें सुग्रीव बलधारी।
जयरामा रानी थी प्यारी॥

नवमी फाल्गुन कृष्ण बखानी।
षोडश स्वप्न देखती रानी॥

सुत तीर्थंकर गर्भ में आएं
गर्भ कल्याणक देव मनायें॥

प्रतिपदा मंगसिर उजियारी।
जन्मे पुष्पदन्त हितकारी॥

जन्मोत्सव की शोभा न्यारी।
स्वर्गपुरी सम नगरी प्यारी॥

आयु थी दो लक्ष पूर्व की।
ऊँचाई शत एक धनुष की॥

थामी जब राज्य बागडोर।
क्षेत्र वृद्धि हुई चहुँ ओर॥

इच्छाएँ थीं उनकी सीमित।
मित्र प्रभु के हुए असीमित॥

एक दिन उल्कापात देखकर।
दृष्टिपात किया जीवन पर॥

स्थिर कोई पदार्थ ना जग में।
मिले ना सुख किंचित् भवमग में॥

ब्रह्मलोक से सुरगण आए।
जिनवर का वैराग्य बढ़ायें॥

‘सुमति’ पुत्र को देकर राज।
शिविका में प्रभु गए विराज॥

पुष्पक वन में गए हितकार।
दीक्षा ली संगभूप हज़ार॥

गए शैलपुर दो दिन बाद।
हुआ आहार वहाँ निरबाध॥

पात्रदान से हर्षित होकर।
पंचाश्चर्य करें सुर आकर॥

प्रभुवर लौट गए उपवन को।
तत्पर हुए कर्म – छेदन को॥

लगी समाधि नाग वृक्ष तल।
केवलज्ञान उपाया निर्मल॥

इन्द्राज्ञा से समोशरण की।
धनपति ने आकर रचना की॥

दिव्य देशना होती प्रभु की।
ज्ञान पिपासा मिटी जगत की॥

अनुपेक्षा द्वादश समझाईं।
धर्म स्वरुप विचारो भाई॥

शुक्ल ध्यान की महिमा गाई।
शुक्ल ध्यान से हों शिवराई॥

चारों भेद सहित धारों मन।
मोक्षमहल में पहुँचो तत्क्षण॥

मोक्ष मार्ग दर्शाया प्रभु ने।
हर्षित हुए सकल जन मन में॥

इन्द्र करें प्रार्थना जोड़ कर।
सुखद विहार हुआ श्री जिनवर॥

गए अन्त में शिखर सम्मेद।
ध्यान में लीन हुए निरवेद॥

शुक्ल ध्यान से किया कर्मक्षय।
सन्ध्या समय पाया पद अक्षय॥

आश्विन अष्टमी शुक्ल महान।
मोक्ष कल्याणक करें सुर आन॥

सुप्रभ कूट की करते पूजा।
सुविधि नाथ नाम है दूजा॥

‘मगरमच्छ’ है लक्षण प्रभु का।
मंगलमय जीवन था उनका॥

शिखर सम्मेद में भारी अतिशय।
प्रभु प्रतिमा है चमत्कारमय॥

कलियुग में भी आते देव।
प्रतिदिन नृत्य करें स्वयमेव॥

घुंघरु की झंकार गूंजती।
सबके मन को मोहित करती॥

ध्वनि सुनी हमने कानों से।
पूजा की बहु उपमानों से॥

हमको है ये दृढ़ श्रद्धान।
भक्ति से पायें शिवथान॥

भक्ति में शक्ति है न्यारी।
राह दिखायें करुणाधारी॥

पुष्पदन्त गुणगान से,
निश्चित हो कल्याण।

‘अरुणा’ अनुक्रम से मिले,
अन्तिम पद निर्वाण॥

जाप – ॐ ह्रीं अर्हं पुष्पदन्त नमः

विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर पुष्पदंत चालीसा (Pushpdant Chalisa) चालीसा को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें पुष्पदंत चालीसा रोमन में–

Read Bhagwan Pushpdant Chalisa

darakha se tapta marusthala bhava meṃ,
saghana vṛkṣa sama chāyākāra।
puṣpadanta pada-chatra-chā~va meṃ।
hama āśraya pāveṃ sukhakāra॥

jambūdvīpa ke bharata kṣetra meṃ।
kākandī nāmaka nagarī meṃ॥

rājya kareṃ sugrīva baladhārī।
jayarāmā rānī thī pyārī॥

navamī phālguna kṛṣṇa bakhānī।
ṣoḍaśa svapna dekhatī rānī॥

suta tīrthaṃkara garbha meṃ āeṃ
garbha kalyāṇaka deva manāyeṃ॥

pratipadā maṃgasira ujiyārī।
janme puṣpadanta hitakārī॥

janmotsava kī śobhā nyārī।
svargapurī sama nagarī pyārī॥

āyu thī do lakṣa pūrva kī।
ū~cāī śata eka dhanuṣa kī॥

thāmī jaba rājya bāgaḍora।
kṣetra vṛddhi huī cahu~ ora॥

icchāe~ thīṃ unakī sīmita।
mitra prabhu ke hue asīmita॥

eka dina ulkāpāta dekhakara।
dṛṣṭipāta kiyā jīvana para॥

sthira koī padārtha nā jaga meṃ।
mile nā sukha kicit bhavamaga meṃ॥

brahmaloka se suragaṇa āe।
jinavara kā vairāgya baḍha़āyeṃ॥

‘sumati’ putra ko dekara rāja।
śivikā meṃ prabhu gae virāja॥

puṣpaka vana meṃ gae hitakāra।
dīkṣā lī saṃgabhūpa haja़āra॥

gae śailapura do dina bāda।
huā āhāra vahā~ nirābādha॥

pātradāna se harṣita hokara।
paṃcāścarya kareṃ sura ākara॥

prabhuvara lauṭa gae upavana ko।
tatpara hue karma – chedana ko॥

lagī samādhi nāga vṛkṣa tala।
kevalajñāna upāyā nirmala॥

indrājñā se samośaraṇa kī।
dhanapati ne ākara racanā kī॥

divya deśanā hotī prabhu kī।
jñāna pipāsā miṭī jagata kī॥

“anupekṣā dvādaśa samajhāīṃ।
dharma svarupa vicāro bhāī॥

śukla dhyāna kī mahimā gāī।
śukla dhyāna se hoṃ śivarāī॥

cāroṃ bheda sahita dhāroṃ mana।
mokṣamahala meṃ pahu~co tatkṣaṇa॥

mokṣa mārga darśāyā prabhu ne।
harṣita hue sakala jana mana meṃ॥

indra kareṃ prārthanā joḍa़ kara।
sukhada vihāra huā śrī jinavara॥

gae anta meṃ śikhara sammeda।
dhyāna meṃ līna hue niraveda॥

śukla dhyāna se kiyā karmakṣaya।
sandhyā samaya pāyā pada akṣaya॥
āśvina aṣṭamī śukla mahāna।
mokṣa kalyāṇaka kareṃ sura āna॥

suprabha kūṭa kī karate pūjā।
suvidhi nātha nāma hai dūjā॥

‘magaramaccha’ hai lakṣaṇa prabhu kā।
maṃgalamaya jīvana thā unakā॥

śikhara sammeda meṃ bhārī atiśaya।
prabhu pratimā hai camatkāramaya॥

kaliyuga meṃ bhī āte deva।
pratidina nṛtya kareṃ svayameva॥

ghugharu kī jhaṃkāra gūṃjatī।
sabake mana ko mohita karatī॥

dhvani sunī hamane kānoṃ se।
pūjā kī bahu upamānoṃ se॥

hamako hai ye dṛḍha़ śraddhāna।
bhakti se pāyeṃ śivathāna॥

bhakti meṃ śakti hai nyārī।
rāha dikhāyeṃ karuṇādhārī॥

puṣpadanta guṇagāna se,
niścita ho kalyāṇa।

‘aruṇā’ anukrama se mile,
antima pada nirvāṇa॥

jāpa: – oṃ hrīṃ aha~ puṣpadanta namaḥ

हिंदीपथ पर पुष्पदंत भगवान की चालीसा (Pushpdant bhagwan chalisa) पेश करके हम अत्यंत गौरवान्वित हैं। पुष्पदंत भगवान की चालीसा (Pushpdant chalisa pdf download) को डाउनलोड करके आप अपने पास सेव करके या प्रिंट करवा कर भी रख सकते हैं। जैन धर्म में पुष्पदंत चालीसा के पाठ का विशेष महत्व है। आइये जानते हैं भगवान पुष्पदंत से जुड़े कुछ अन्य महत्वपूर्ण तथ्य। 

  • भगवान पुष्पदंत का एक नाम सुविधिनाथ भी था। 
  • इनका जन्म चिन्ह मगर एवं शरीर का वर्ण श्वेत था। 
  • पुष्पदंत भगवान की कुल आयु 20000 वर्ष पूर्व थी। 
  • इनकी कुल ऊंचाई एक सौ धनुष थी। 
  • भगवान पुष्पदंत जी का गर्भ कल्याण फाल्गुन कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि के मूल नक्षत्र में हुआ था।
  • इनका जन्म मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को काकंदी नगरी के इक्ष्वाकुश वंश में हुआ था। 
  • पुष्पदंत जी के पिता का नाम राजा सुग्रीव और माता का नाम जयारामदेवी था। 
  • इनके यक्ष का नाम अजीत और सुतरका था तथा यक्षिणी का नाम महाकाली था। 
  • इनके प्रथम आर्य का नाम वराहका एवं प्रथम आर्यिका का नाम वरुणी था। 
  • बहुत कम उम्र में ही इन्हें ज्ञान की प्राप्ति हो चुकी थी। 
  • पुष्पक वन में इन्होंने दीक्षा ग्रहण की थी। 
  • पुष्पदंत जी ने चार माह तक कठिन तपस्या कर कैवल्य प्राप्ति करके धर्म तीर्थ की स्थापना की थी।  
  • इन्होंने सम्मेद शिखर पर निर्वाण की प्राप्ति की थी। 

हिंदी में अन्य महत्वपूर्ण एवं रोचक जानकारियां प्राप्त करने के लिए हिंदीपथ पर बने रहें। हमारा यह प्रयास है कि आप तक जानकारियां पहुंचाने में कभी चूक न हो।

यह भी पढ़ें

जैन चालीसा मुख्य-पृष्ठआदिनाथ चालीसाअजितनाथ चालीसासंभवनाथ चालीसा
अभिनंदननाथ चालीसासुमतिनाथ चालीसापद्मप्रभु चालीसासुपार्श्वनाथ चालीसा
चंद्रप्रभु चालीसाशीतलनाथ चालीसाश्रेयांसनाथ चालीसावासुपूज्य चालीसा
विमलनाथ चालीसाअनंतनाथ चालीसाधर्मनाथ चालीसाशांतिनाथ चालीसा
कुंथुनाथ चालीसाअरहनाथ चालीसामल्लिनाथ चालीसामुनि सुव्रतनाथ चालीसा
नमिनाथ चालीसानेमिनाथ चालीसापार्श्वनाथ चालीसामहावीर चालीसा

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी पथ
error: यह सामग्री सुरक्षित है !!
Exit mobile version