प्रथम अध्याय – रामायण के पाठ की महिमा
रामायण के पाठ की महिमा बताने वाला यह वाल्मीकि रामायण का प्रथम अध्याय “कल्प का अनुकीर्तन” है। इसमें कलियुग की स्थिति, कलिकाल के मनुष्यों के उद्धार का उपाय, रामायण के पाठ की महिमा, उसके श्रवण के लिये उत्तम काल आदिका वर्णन है।
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श्रीरामचन्द्रजी समस्त संसारको शरण देनेवाले हैं। श्रीराम के बिना दूसरी कौन-सी गति है। श्री राम कलियुगके समस्त दोषोंको नष्ट कर देते हैं; अत: श्रीरामचन्द्रजीको नमस्कार करना चाहिये। श्रीरामसे कालरूपी भयंकर सर्प भी डरता है। जगत्का सब कुछ भगवान् श्रीरामके वशमें है। श्रीराममें मेरी अखण्ड भक्ति बनी रहे। हे राम! आप ही मेरे आधार हैं॥ १ ॥
चित्रकूटमें निवास करनेवाले, भगवती लक्ष्मी (सीता) के आनन्दनिकेतन और भक्तोंको अभय देनेवाले परमानन्दस्वरूप भगवान् श्रीरामचन्द्रजीको मैं नमस्कार करता हूँ॥ २ ॥
सम्पूर्ण जगत्के अभीष्ट मनोरथोंको सिद्ध करनेवाले (अथवा सृष्टि, पालन एवं संहारके द्वारा जगत्की व्यावहारिक सत्ताको सिद्ध करनेवाले), ब्रह्मा, विष्णु और महेश आदि देवता जिनके अभिन्न अंशमात्र हैं, उन परम विशुद्ध सच्चिदानन्दमय परमात्मदेव श्रीरामचन्द्रजीको मैं नमस्कार करता हूँ तथा उन्हींके भजन-चिन्तनमें मन लगाता हूँ॥ ३ ॥
ऋषियोंने कहा—भगवन्! आप विद्वान् हैं, ज्ञानी हैं।
हमने जो कुछ पूछा था, वह सब आपने हमें भलीभाँति बताया है। संसार-बन्धनमें बँधे हुए जीवोंके दु:ख बहुत हैं॥ ४ ॥
इस संसारबन्धनका उच्छेद करनेवाला कौन है?
आपने कहा है कि कलियुगमें वेदोक्त मार्ग नष्ट हो जायँगे॥ ५ ॥
अधर्मपरायण पुरुषोंको प्राप्त होनेवाली यातनाओंका भी आपने वर्णन किया है। घोर कलियुग आनेपर जब वेदोक्त मार्ग लुप्त हो जायँगे, उस समय पाखण्ड फैल जायगा—यह बात प्रसिद्ध है। प्राय: सभी लोगोंने ऐसी बात कही है॥ ६ १/२ ॥
कलियुगके सभी लोग कामवेदनासे पीड़ित, नाटे शरीरके और लोभी होंगे तथा धर्म और ईश्वरका आश्रय छोड़कर आपसमें एक-दूसरेपर ही निर्भर रहनेवाले होंगे। प्राय: सब लोग थोड़ी आयु और अधिक संतानवाले होंगे*॥ ७ १/२ ॥
उस युगकी स्त्रियाँ अपने ही शरीरके पोषणमें तत्पर और वेश्याओंके समान आचरणमें प्रवृत्त होंगी। वे अपने पतिकी आज्ञाका अनादर करके सदा दूसरोंके घर जाया-आया करेंगी। दुराचारी पुरुषोंसे मिलनेकी सदैव अभिलाषा करेंगी॥ ८-९ ॥
उत्तम कुलकी स्त्रियाँ भी परपुरुषोंके निकट ओछी बातें करनेवाली होंगी, कठोर और असत्य बोलेंगी तथा शरीरको शुद्ध और सुसंस्कृत बनाये रखनेके सद्गुणोंसे वञ्चित होंगी॥ १० ॥
कलियुगमें अधिकांश स्त्रियाँ वाचाल (व्यर्थ बकवास करनेवाली) होंगी। भिक्षासे जीवन-निर्वाह करनेवाले संन्यासी भी मित्र आदिके स्नेह-सम्बन्धमें बँधे रहनेवाले होंगे॥ ११ ॥
वे भोजनके लिये चिन्तित होनेके कारण लोभवश शिष्योंका संग्रह करेंगे। स्त्रियाँ दोनों हाथोंसे सिर खुजलाती हुई गृहपतिकी आज्ञाका जान-बूझकर उल्लङ्घन करेंगी॥ १२ १/२ ॥
जब ब्राह्मण पाखण्डी लोगोंके साथ रहकर पाखण्डपूर्ण बातें करने लगें, तब जानना चाहिये कि कलियुग खूब बढ़ गया॥ १३ १/२ ॥
ब्रह्मन्! इस प्रकार घोर कलियुग आनेपर सदा पापपरायण रहनेके कारण जिनका अन्त:करण शुद्ध नहीं हो सकेगा, उन लोगोंकी मुक्ति कैसे होगी?॥ १४ १/२ ॥
धर्मात्माओंमें श्रेष्ठ सर्वज्ञ सूतजी! देवाधिदेव देवेश्वर जगद्गुरु भगवान् श्रीरामचन्द्रजी जिस प्रकार संतुष्ट हों, वह उपाय हमें बताइये॥ १५ १/२ ॥
मुनिश्रेष्ठ सूतजी! इन सारी बातोंपर आप पूर्णरूपसे प्रकाश डालिये। आपके वचनामृतका पान करनेसे किसको संतोष नहीं होता है॥ १६-१७ ॥
सूतजीने कहा—मुनिवरो! आप सब लोग सुनिये। आपको जो सुनना अभीष्ट है, वह मैं बताता हूँ। महात्मा नारदजी ने सनत्कुमारको जिस रामायण नामक महाकाव्यका गान सुनाया था, वह समस्त पापोंका नाश और दुष्ट ग्रहोंकी बाधाका निवारण करनेवाला है। वह सम्पूर्ण वेदार्थोंकी सम्मतिके अनुकूल है॥ १८-१९ ॥
उससे समस्त दु:स्वप्नोंका नाश हो जाता है। वह धन्यवादके योग्य तथा भोग और मोक्षरूप फल प्रदान करनेवाला है। उसमें भगवान् श्रीरामचन्द्रजीकी लीला-कथाका वर्णन है। वह काव्य अपने पाठक और श्रोताओंके लिये समस्त कल्याणमयी सिद्धियोंको देनेवाला है॥ २० ॥
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष—इन चारों पुरुषार्थोंका साधक है, महान् फल देनेवाला है। यह अपूर्व काव्य पुण्यमय फल प्रदान करनेकी शक्ति रखता है। आपलोग एकाग्रचित्त होकर इसे श्रवण करें॥ २१ ॥
महान् पातकों अथवा सम्पूर्ण उपपातकोंसे युक्त मनुष्य भी उस ऋषिप्रणीत दिव्य काव्यका श्रवण करनेसे शुद्धि (अथवा सिद्धि) प्राप्त कर लेता है। सम्पूर्ण जगत्के हित-साधनमें लगे रहनेवाले जो मनुष्य सदा रामायणके अनुसार बर्ताव करते हैं, वे ही सम्पूर्ण शास्त्रोंके मर्मको समझनेवाले और कृतार्थ हैं॥ २२-२३ ॥
विप्रवरो! रामायण धर्म, अर्थ, काम और मोक्षका साधन तथा परम अमृतरूप है; अत: सदा भक्तिभावसे उसका श्रवण करना चाहिये॥ २४ ॥
जिस मनुष्यके पूर्वजन्मोपार्जित सारे पाप नष्ट हो जाते हैं, उसीका रामायणके प्रति अधिक प्रेम होता है। यह निश्चित बात है॥ २५ ॥
जो पापके बन्धनमें जकड़ा हुआ है, वह रामायणकी कथा आरम्भ होनेपर उसकी अवहेलना करके दूसरी-दूसरी निम्नकोटिकी बातोंमें फँस जाता है। उन असद्गाथाओंमें अपनी बुद्धिके आसक्त होनेके कारण वह तदनुरूप ही बर्ताव करने लगता है॥ २६ ॥
इसलिये द्विजेन्द्रगण! आपलोग रामायण नामक परम पुण्यदायक उत्तम काव्यका श्रवण करें; रामायण के पाठ की महिमा से और जिसे सुननेसे जन्म, जरा और मृत्युके भयका नाश हो जाता है तथा श्रवण करनेवाला मनुष्य पाप-दोषसे रहित हो अच्युतस्वरूप हो जाता है॥ २७ ॥
रामायण काव्य अत्यन्त उत्तम, वरणीय और मनोवाञ्छित वर देनेवाला है। वह उसका पाठ और श्रवण करनेवाले समस्त जगत्को शीघ्र ही संसार-सागरसे पार कर देता है। उस आदिकाव्यको सुनकर मनुष्य श्रीरामचन्द्रजीके परमपदको प्राप्त कर लेता है॥ २८ ॥
जो ब्रह्मा, रुद्र और विष्णु नामक भिन्न-भिन्न रूप धारण करके विश्वकी सृष्टि, संहार और पालन करते हैं, उन आदिदेव परमोत्कृष्ट परमात्मा श्रीरामचन्द्रजीको अपने हृदय-मन्दिरमें स्थापित करके मनुष्य मोक्षका भागी होता है॥ २९ ॥
जो नाम तथा जाति आदि विकल्पोंसे रहित, कार्य-कारणसे परे, सर्वोत्कृष्ट, वेदान्त शास्त्रके द्वारा जाननेयोग्य एवं अपने ही प्रकाशसे प्रकाशित होनेवाला परमात्मा है, उसका समस्त वेदों और पुराणोंके द्वारा साक्षात्कार होता है (इस रामायणके अनुशीलनसे भी उसीकी प्राप्ति होती है।)॥ ३० ॥
विप्रवरो! कार्तिक, माघ और चैत्रमासके शुक्ल पक्षमें नौ दिनोंमें रामायणकी अमृतमयी कथाका श्रवण करना चाहिये॥ ३१ ॥
जो इस प्रकार श्रीरामचन्द्रजीके मंगलमय चरित्रका श्रवण करता है, वह इस लोक और परलोकमें भी अपनी समस्त उत्तम कामनाओंको प्राप्त कर लेता है॥ ३२ ॥
वह सब पापोंसे मुक्त हो अपनी इक्कीस पीढ़ियोंके साथ श्रीरामचन्द्रजीके उस परमधाममें चला जाता है, जहाँ जाकर मनुष्यको कभी शोक नहीं करना पड़ता है॥ ३३ ॥
चैत्र, माघ और कार्तिकके शुक्लपक्षमें परम पुण्यमय रामायण-कथाका नवाह-पारायण करना चाहिये तथा नौ दिनोंतक इसे प्रयत्नपूर्वक सुनना चाहिये॥ ३४ ॥
रामायण आदिकाव्य है। यह स्वर्ग और मोक्ष देनेवाला है, अत: सम्पूर्ण धर्मोंसे रहित घोर कलियुग आनेपर नौ दिनोंमें रामायणकी अमृतमयी कथाको श्रवण करना चाहिये॥ ३५ १/२ ॥
ब्राह्मणो! जो लोग भयंकर कलिकालमें श्रीराम-नामका आश्रय लेते हैं, वे ही कृतार्थ होते हैं। कलियुग उन्हें बाधा नहीं पहुँचाता॥ ३६ १/२ ॥
जिस घरमें प्रतिदिन रामायण की कथा होती है, वह तीर्थरूप हो जाता है। वहाँ जानेसे दुष्टोंके पापोंका नाश होता है॥ ३७ १/२ ॥
तपोधनो! इस शरीरमें तभीतक पाप रहते हैं, जबतक मनुष्य श्रीरामायणकथाका भलीभाँति श्रवण नहीं करता॥
संसारमें श्रीरामायणकी कथा परम दुर्लभ ही है। जब करोड़ों जन्मोंके पुण्योंका उदय होता है, तभी उसकी प्राप्ति होती है॥ ३९ १/२ ॥
श्रेष्ठ ब्राह्मणो! कार्तिक, माघ और चैत्रके शुक्ल पक्षमें रामायणके श्रवणमात्रसे (राक्षसभावापन्न) सौदास भी शापमुक्त हो गये थे॥ ४० १/२ ॥
सौदासने महर्षि गौतमके शापसे राक्षस-शरीर प्राप्त किया था। वे रामायणके प्रभावसे ही पुन: उस शापसे छुटकारा पा सके थे ॥ ४१ १/२ ॥
जो पुरुष श्री रामचन्द्र जी की भक्तिका आश्रय ले प्रेमपूर्वक इस कथाका श्रवण करता है, वह बड़े-बड़े पापों तथा पातक आदिसे मुक्त हो जाता है॥ ४२-४३ ॥
इस प्रकार श्रीस्कन्दपुराणके उत्तरखण्डमें नारद-सनत्कुमार-संवादके अन्तर्गत रामायणमाहात्म्यविषयक कल्पका अनुकीर्तन नामक प्रथम अध्याय पूरा हुआ॥ १॥
* किसी-किसी प्रतिमें ‘स्वल्पायुर्बहुपुत्रका:’ के स्थानमें ‘स्वल्परायोर्बहुप्रजा:’ पाठ है। इसके अनुसार कलियुगमें प्राय: सब लोग थोड़े धन और अधिक संतानवाले होंगे; ऐसा अर्थ समझना चाहिये।