रामायण के नवाह श्रवण की विधि, महिमा तथा फल का वर्णन – पाँचवाँ अध्याय
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सनत्कुमार बोले—मुनीश्वर! आपने रामायण का माहात्म्य कहा। अब मैं उसकी विधि सुनना चाहता हूँ॥
महाभाग मुने! आप तत्त्वार्थ-ज्ञान में कुशल हैं; अत: अत्यन्त कृपा पूर्वक इस विषय को यथार्थ रूप से बतायें॥
नारदजीने कहा—महर्षियो! तुम लोग एका ग्रचित्त होकर रामायण की वह विधि सुनो, जो सम्पूर्ण लोकों में विख्यात है। वह स्वर्ग तथा मोक्ष-सम्पत्तिकी वृद्धि करने वाली है॥ ४ ॥
मैं रामायण कथा-श्रवण का विधान बता रहा हूँ; तुम सब लोग उसे सुनो। रामायण कथा का अनुष्ठान करने वाले वक्ता एवं श्रोता को भक्तिभाव से भावित होकर उस विधान का पालन करना चाहिये॥ ५ ॥
उस विधि का पालन करने से करोड़ों पाप नष्ट हो जाते हैं। चैत्र, माघ तथा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पञ्चमी तिथि को कथा आरम्भ करनी चाहिये॥ ६ ॥
पहले स्वस्तिवाचन करके फिर यह संकल्प करे कि ‘हम नौ दिनों तक रामायण की अमृतमयी कथा सुनेंगे’॥ फिर भगवान से प्रार्थना करे—‘श्रीराम! आज से प्रतिदिन मैं आपकी अमृतमयी कथा सुनूँगा। यह आपके कृपा प्रसाद से परिपूर्ण हो’॥ ८ ॥
नित्यप्रति अपामार्ग की शाखा से दन्तशुद्धि करके राम भक्ति में तत्पर हो विधिपूर्वक स्नान करे॥ ९ ॥
अपनी इन्द्रियोंको संयममें रखकर भाई-बन्धुओं के साथ स्वयं कथा सुने। पहले अपने कुलाचार के अनुसार दन्तधावन पूर्वक स्नान करके श्वेत वस्त्र धारण करे और शुद्ध हो घर आकर मौनभाव से दोनों पैर धोने के पश्चात् आचमन करके भगवान् नारायण का स्मरण करे॥ १०-११ ॥
फिर प्रतिदिन देव पूजन करके संकल्प पूर्वक भक्तिभाव से रामायण ग्रन्थ की पूजा करे॥ १२ ॥
व्रती पुरुष आवाहन, आसन, गन्ध, पुष्प आदिके द्वारा ‘ॐ नमो नारायणाय’ इस मन्त्र से भक्ति परायण होकर पूजन करे॥ १३ ॥
सम्पूर्ण पापों की निवृत्ति के लिये अपनी शक्ति के अनुसार एक, दो या तीन बार प्रयत्न पूर्वक होम करे॥
इस प्रकार जो मन और इन्द्रियों को संयम में रखकर रामायण की विधि का अनुष्ठान करता है, वह भगवान् विष्णु के धाम में जाता है; जहाँ से लौटकर वह फिर इस संसार में नहीं आता॥ १४ ॥
जो रामायण सम्बन्धी व्रत को धारण करने वाला तथा धर्मात्मा है, वह श्रेष्ठ पुरुष चाण्डाल अथवा पतित मनुष्य का वस्त्र और अन्न से भी सत्कार न करे॥ १५ ॥
जो नास्तिक, धर्म मर्यादा को तोड़ने वाले, परनिन्दक और चुगलखोर हैं, उनका रामायणव्रतधारी पुरुष वाणीमात्र से भी आदर न करे॥ १६ ॥
जो पति के जीवित रहते ही पर पुरुष के समागम से माता द्वारा उत्पन्न किया जाता है, उस जारज पुत्र को ‘कुण्ड’ कहते हैं। ऐसे कुण्ड के यहाँ जो भोजन करता है, जो गीत गाकर जीविका चलाता है, देवता पर चढ़ी हुइ वस्तु का उपभोग करने वाले मनुष्य का अन्न खाता है, वैद्य है, लोगों की मिथ्या प्रशंसा में कविता लिखता है, देवताओं तथा ब्राह्मणों का विरोध करता है, पराये अन्न का लोभी है और पर-स्त्री में आसक्त रहता है, ऐसे मनुष्य का भी रामायण व्रती पुरुष वाणी मात्र से भी आदर न करे॥ १७ -१८ ॥
इस प्रकार दोषों से दूर एवं शुद्ध होकर जितेन्द्रिय एवं सबके हित में तत्पर रहते हुए जो रामायण का आश्रय लेता है, वह परमसिद्धि को प्राप्त होता है॥ १९ ॥
गंगा के समान तीर्थ, माता के तुल्य गुरु, भगवान् विष्णुके सदृश देवता तथा रामायणसे बढ़कर कोर्इ उत्तम वस्तु नहीं है॥ २०॥
वेदके समान शास्त्र, शान्तिके समान सुख, शान्तिसे बढ़कर ज्योति तथा रामायणसे उत्कृष्ट कोर्इ काव्य नहीं है॥ २१ ॥
क्षमा के सदृश बल, कीर्ति के समान धन, ज्ञानके सदृश लाभ तथा रामायण से बढ़कर कोई उत्तम ग्रन्थ नहीं है॥ २२ ॥
रामायण कथा के अन्त में वेदज्ञ वाचक को दक्षिणा सहित गौका दान करे। उन्हें रामायण की पुस्तक तथा वस्त्र और आभूषण आदि दे॥ २३ ॥
जो वाचक को रामायण की पुस्तक देता है, वह भगवान् विष्णु के धाम में जाता है; जहाँ जाकर उसे कभी शोक नहीं करना पड़ता॥ २४ ॥
धर्मात्माओं में श्रेष्ठ सनत्कुमार! रामायण की नवाह कथा सुनने से यजमान को जो फल प्राप्त होता है, उसे सुनो। पञ्चमी तिथिको रामायणकी अमृतमयी कथा को आरम्भ करके उसके श्रवणमात्र से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है॥ २५ ॥
यदि दो बार यह कथा श्रवण की गयी तो श्रोता को पुण्डरीक यज्ञ का फल मिलता है। जो जितेन्द्रिय पुरुष व्रत धारण पूर्वक रामायण-कथा को श्रवण करता है, वह दो अश्वमेध यज्ञों का फल पाता है। मुनिवरो! जिसने चार बार इस कथाका श्रवण किया है, वह आठ अगि्नष्टोम के परम पुण्य फल का भागी होता है॥ २६ —२७ ॥
जिस महामनस्वी पुरुषने पाँच बार रामायणकथाश्रवणका व्रत पूरा कर लिया है, वह अत्यगि्नष्टोमयज्ञके द्विगुण पुण्य-फलका भागी होता है॥ २८ ॥
जो एकाग्रचित्त होकर इस प्रकार छ: बार रामायणकथाके व्रतका अनुष्ठान पूरा कर लेता है, वह अगि्नष्टोमयज्ञके आठगुने फलका भागी होता है॥ २९ ॥
मुनीश्वरो! स्त्री हो या पुरुष, जो आठ बार रामायणकथाको सुन लेता है, वह नरमेधयज्ञका पाँचगुना फल पाता है॥ ३० ॥
जो स्त्री या पुरुष नौ बार इस व्रतका आचरण करता है, उसे तीन गोमेध-यज्ञका पुण्यफल प्राप्त होता है॥
जो पुरुष शान्तचित्त और जितेन्द्रिय होकर रामायणयज्ञका अनुष्ठान करता है, वह उस परमानन्दमय धाममें जाता है, जहाँ जाकर उसे कभी शोक नहीं करना पड़ता॥ ३१ ॥
जो प्रतिदिन रामायणका पाठ अथवा श्रवण करता है, गंगा नहाता है और धर्ममार्गका उपदेश देता है; ऐसे लोग संसारसागरसे मुक्त ही हैं, इसमें संशय नहीं है॥
महात्माओ! यतियों, ब्रह्मचारियों तथा प्रवीरोंको भी रामायणकी नवाह कथा सुननी चाहिये॥ ३२ ॥
रामकथाको अत्यन्त भक्तिपूर्वक सुनकर मनुष्य महान् तेजसे उद्दीप्त हो उठता है और ब्रह्मलोकमें जाकर वहीं आनन्दका अनुभव करता है॥ ३३ ॥
इसलिये विप्रेन्द्रगण! आपलोग रामायणकी अमृतमयी कथा सुनिये। श्रोताओंके लिये यह सर्वोत्तम श्रवणीय वस्तु है और पवित्रोंमें भी परम उत्तम है॥ ३४ ॥
दु:स्वप्नको नष्ट करनेवाली यह कथा धन्य है। इसे प्रयत्नपूर्वक सुनना चाहिये। जो मनुष्य श्रद्धायुक्त होकर इसका एक श्लोक या आधा श्लोक भी पढ़ता है, वह तत्काल ही करोड़ों उपपातकोंसे छुटकारा पा जाता है। यह गुह्यसे भी गुह्यतम वस्तु है, इसे सत्पुरुषोंको ही सुनाना चाहिये॥ ३५ -३६ ॥
भगवान् श्रीराम के मन्दिर में अथवा किसी पुण्यक्षेत्रमें, सत्पुरुषोंकी सभामें रामायणकथाका प्रवचन करना चाहिये। जो ब्रह्मद्रोही, पाखण्डपूर्ण आचारमें तत्पर तथा लोगोंको ठगनेवाली वृत्तिसे युक्त हैं, उन्हें यह परम उत्तम कथा नहीं सुनानी चाहिये॥ ३७ – ३८ ॥
जो काम आदि दोषों का त्याग कर चुके हैं, जिनका मन राम भक्ति में अनुरक्त रहता है तथा जो गुरुजनों की सेवामें तत्पर हैं, उन्हीं के समक्ष यह मोक्षकी साधन भूत कथा बाँचनी चाहिये॥ ३९ – ४० ॥
श्रीराम सर्वदेवमय माने गये हैं। वे आर्त प्राणियों की पीड़ाका नाश करनेवाले हैं तथा श्रेष्ठ भक्तों पर सदा ही स्नेह रखते हैं। वे भगवान् भक्ति से ही संतुष्ट होते हैं, दूसरे किसी उपाय से नहीं॥ ४१ – ४२॥
मनुष्य विवश होकर भी उनके नाम का कीर्तन अथवा स्मरण कर लेनेपर समस्त पातकों से मुक्त हो परमपद का भागी होता है॥ ४३ – ४४ ॥
महात्माओ! भगवान् मधुसूदन संसाररूपी भयंकर एवं दुर्गम वनको भस्म करने के लिये दावानल के समान हैं। वे अपना स्मरण करनेवाले मनुष्यों के समस्त पापों का शीघ्र ही नाश कर देते हैं॥ ४५ ॥
इस पवित्र काव्य के प्रतिपाद्य विषय वे ही हैं, अत: यह परम उत्तम काव्य सदा ही श्रवण करने योग्य है। इसका श्रवण अथवा पाठ करनेसे यह समस्त पापों का नाश करने वाला है॥ ४६ ॥
जिसकी श्रीराम-रस में प्रीति एवं भक्ति है, वही सम्पूर्ण शास्त्रों के अर्थ ज्ञान में निपुण और कृतकृत्य है॥
ब्राह्मणो! उसकी उपार्जित की हुर्इ तपस्या पवित्र, सत्य और सफल है; क्योंकि राम-रसमें प्रीति हुए बिना रामायण के अर्थ-श्रवणमें प्रेम नहीं होता है॥ ४७ ॥
जो द्विज इस भयंकर कलिकालमें रामायण तथा श्रीरामनामका सहारा लेते हैं, वे ही कृतकृत्य हैं॥ ४८ ॥
रामायणकी इस अमृतमयी कथाका नवाह श्रवण करना चाहिये। जो महात्मा ऐसा करते हैं, वे कृतज्ञ हैं। उन्हें प्रतिदिन मेरा बारम्बार नमस्कार है॥ ४९ ॥
श्रीरामका नाम—केवल श्रीराम-नाम ही मेरा जीवन है। कलियुगमें और किसी उपायसे जीवोंकी सद्गति नहीं होती, नहीं होती, नहीं होती॥ ५० ॥
सूतजी कहते हैं—महात्मा नारदजीके द्वारा इस प्रकार ज्ञानोपदेश पाकर सनत्कुमारजीको तत्काल ही परमानन्दकी प्राप्ति हो गयी॥ ५१ ॥
अत: विप्रवरो! तुम सब लोग रामायणकी अमृतमयी कथा सुनो। रामायणको नौ दिनोंमें ही सुनना चाहिये। ऐसा करनेवाला समस्त पापोंसे मुक्त हो जाता है॥ ५२ ॥
द्विजोत्तमो! इस महान् काव्यको सुनकर जो वाचककी पूजा करता है, उसपर लक्ष्मीसहित भगवान् विष्णु प्रसन्न होते हैं॥ ५ ३ ॥
विप्रेन्द्रगण! वाचकके प्रसन्न होनेपर ब्रह्मा, विष्णु और महादेवजी प्रसन्न हो जाते हैं। इस विषयमें कोर्इ अन्यथा विचार नहीं करना चाहिये॥ ५४ ॥
रामायणके वाचकको अपने वैभवके अनुसार गौ, वस्त्र, सुवर्ण तथा रामायणकी पुस्तक आदि वस्तुएँ देनी चाहिये॥ ५५ ॥
उस दानका पुण्यफल बता रहा हूँ, आपलोग एकाग्रचित्त होकर सुनें। उस दाताको ग्रह तथा भूतवेताल आदि कभी बाधा नहीं पहुँचाते। श्रीरामचरित्रका श्रवण करनेपर श्रोताके सम्पूर्ण श्रेयकी वृद्धि होती है॥
उसे न तो अगि्नकी बाधा प्राप्त होती है और न चोर आदिका भय ही। वह इस जन्ममें उपार्जित किये हुए समस्त पापोंसे तत्काल मुक्त हो जाता है। वह इस शरीरका अन्त होनेपर अपनी सात पीढ़ियोंके साथ मोक्षका भागी होता है॥ ५६ ॥
पूर्वकालमें सनत्कुमार मुनिके भक्तिपूर्वक पूछनेपर नारदजीने उनसे जो कुछ कहा था, वह सब मैंने आपलोगोंको बता दिया॥ ५७ ॥
रामायण आदिकाव्य है। यह सम्पूर्ण वेदार्थोंकी सम्मतिके अनुकूल है। इसके द्वारा समस्त पापोंका निवारण हो जाता है। यह पुण्यमय काव्य सम्पूर्ण दु:खोंका विनाशक तथा समस्त पुण्यों और यज्ञोंका फल देनेवाला है॥ ५८॥
जो विद्वान् इसके एक या आधे श्लोकका भी पाठ करते हैं, उन्हें कभी पापोंका बन्धन नहीं प्राप्त होता॥ ५९ ॥
श्रीरामको समर्पित किया हुआ यह पुण्यकाव्य सम्पूर्ण कामनाओंको देनेवाला है। जो लोग भक्तिपूर्वक इसे सुनते और समझते हैं, उनको प्राप्त होनेवाले पुण्यफलका वर्णन सुनो॥६०॥
वे लोग सौ जन्मोंमें उपार्जित किये हुए पापोंसे तत्काल मुक्त हो अपनी हजारों पीढ़ियोंके साथ परमपदको प्राप्त होते हैं॥ ६१ ॥
जो प्रतिदिन श्रीरामका कीर्तन सुनते हैं, उनके लिये तीर्थ-सेवन, गोदान, तपस्या तथा यज्ञोंकी क्या आवश्यकता है॥ ६२ ॥
चैत्र, माघ तथा कार्तिकमें रामायणकी अमृतमयी कथाका नवाह-पारायण सुनना चाहिये॥ ६३ ॥
रामायण श्रीरामचन्द्रजीकी प्रसन्नता प्राप्त करानेवाला, श्रीरामभक्तिको बढ़ानेवाला, समस्त पापोंका विनाशक तथा सभी सम्पत्तियोंकी वृद्धि करनेवाला है॥ ६४ ॥
जो एकाग्रचित्त होकर रामायणको सुनता अथवा पढ़ता है, वह सब पापोंसे मुक्त हो भगवान् विष्णु के लोक में जाता है॥ ६५ ॥
इस प्रकार श्रीस्कन्दपुराणके उत्तरखण्डमें श्रीनारद-सनत्कुमार-संवादके अन्तर्गत रामायणमाहात्म्यके प्रसंगमें फलका वर्णन नामक पाँचवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ ६६॥