राष्ट्र पर्व (15 अगस्त 1959)
“राष्ट्र पर्व” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। यह कविता 15 अगस्त सन् 1959 को लिखी गयी थी।
इसमें आज़ादी मिलने के बाद जिन विसंगतियों से आम आदमी को रू-ब-रू होना पड़ा, उसकी चर्चा है। आज भी इस कविता की प्रासंगिकता रत्ती भर भी कम नहीं हुई है। पढ़ें यह कविता–
तुम कहते हो वर्षगाँठ है, आज़ादी की खुशी मनाओ।
भीतर से बाहर तक अपने गेह सजाओ।।
गाँधी, नेहरू अरु पटेल की तस्वीरों से।
अपनी बैठक खूब सजाओ।।
मोटा – ऊँचा लट्ठा लेकर घर के ऊपर।
ध्वजा तिरंगा को फहराओ।।
और रात को दीप जलाओ और इस तरह।
राष्ट्र पर्व में हाथ बँटाओ।।
किन्तु कभी क्या तुमने सोचा खुशी कहाँ है ?
खुशी बन्द है उन तिजोरियों में जिनके ताले भारी हैं।
खुशी मिली है उन लोगों को जो गाँधी टोपी धारी है ।
नई-नई रोटियाँ मिल गई, नई-नई कोठियाँ बन गई।
नई-नई कारों में चलते, आज पुरानापन भूले हैं।।
यही समझते हैं हम मन में, अब न कभी वे दिन आयेंगे।
जब दगरे में टूटी चप्पल पहने वे घूमा करते थे।।
कभी-कभी पेटों में घुटने देकर सो जाया करते थे।
पर इससे क्या ?
आज हुआ शासन अपना है, हम शासक हैं
जनता तो यह एक ऊँट है
खूब लाद लो जब तक बागडोर हाथों में
टस से मस यह हो न सकेगी
ज्यादा से ज्यादा रोयेगी
पर रोकर कुछ कर न सकेगी
मौज उड़ा लो, समय मिला है।
उसका पूरा लाभ उठाओ।
मंचों पर चढ़ करके बोलो –
हमें देश का बड़ा ध्यान है
तुम्हें नहीं मालूम देश को –
बाहर किसने दिया मान है।
किसने मान दिलाया, समझे?
काँग्रेस ने काँग्रेस ने
फिर भी क्यों ऊधम करते हो?
हेल-मेल से रहना सीखो
हम चाहें कुछ भी कर डालें –
उस पर तुम चुप रहना सीखो
उच्छश्रृंखलता बहुत बुरी है,
अनुशासन में रहना सीखो।
इसी तरह भाषण देकर,
नाम कमाओ, काम चलाओ।
जितनी भी दावतें मिले तुम उनको खाओ ॥
जनता से झूठ वायदे करके बहकाओ।
इसी तरह से कट जायेगी, उम्र अभी जो शेष रही है,
पर ओ उम्र काटने वाले, कल तक की किसने जानी है,
क्षण भर का तो पता नहीं है, बात यही सबने मानी है
जनता का शोषण करके नहीं चैन सो सकते अब हो
काली करतूतों के धब्बे नहीं कभी भी धो सकते हो
समय आ गया निकट तुम्हारा
जितने बेबस, कंगालों को तुमने लूटा –
वे ही अब तुमको लूटेंगे
तुम अपनी आँखों से देखोगे
सत्य मानना
सारी जनता जाग गई, बौखला गई है।
जान गई है, जितनी भेद भरी चालें हैं।
अब न चलेंगी “
शीघ्र क्रान्ति होने वाली है।
सावधान! जनता-सागरअब उमड़ उठा है।
अपनी मर्यादा तोड़ेगा –
क्योंकि आज बाल-वृद्ध यह बोल उठा है
शोषण का हम बदला लेंगें नहीं डरेंगे
घुड़की, धमकी, हथियारों से
क्रान्ति के बाद देश में –
अमर शान्ति को हम लायेंगे
जिसमें कोई नंगा-भूखा नहीं रहेगा
मानव, मानव कहलायेगा
तब यह सच्चा पर्व मनेगा ॥
स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।