सभ्य हो जायेंगे
“सभ्य हो जायेंगे” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। इस कविता में सभ्यता के स्वरूप और दशा का चित्रण भी है और उसके ऊपर चिंतन भी। पढ़ें यह कविता–
रोक पाये नहीं यंत्र की शक्ति हम,
चाह हमको हमारी ही खा जाएगी।
पश्चिमी सभ्यता पूरबी को मिटा,
भाग्य रवि पर मेघ बन छा जाएगी।
जीत करके अहं को पशु से मनुज
जब बनेंगे तभी सभ्य हो जायेंगे।
मुक्त मानव बनेगा नहीं विश्व में,
कालिमा घोर तब तक मिलेगी नहीं।
स्वार्थ जब तक रहेगा उसे घेरता,
प्यास प्रभुता की उसकी मिटेगी नहीं।
मुक्त होकर मनुज स्वार्थ सोचे नहीं
तो सुखी सब मनुज शीघ्र हो जायेंगे।
सुन सका यदि मनुज ही मनुज की कथा
तो व्यथा की कथा फिर रहेगी नहीं।
प्राण देना अगर प्रेम पर सीख लें
युद्ध की नीति कोई रहेगी नहीं।
प्रेम से साथ रहकर बने सब मनुज
स्वर्ग लाखों धरा पर ही हो जायेंगे।
स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।