सभ्यता के शिखर पर
“सभ्यता के शिखर पर” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। इसमें बताया गया है कि तथाकथित सभ्यता पाने की दौड़ में हम सच्ची सभ्यता से कितने दूर हो चुके हैं। पढ़ें और आनंद लें इस कविता का–
चढ़ रहे हम सभ्यता के शिखर पर-
किन्तु सभ्यता से दूर होते जा रहे हैं।
यंत्र की शक्ति से काम करना सीखा है,
किन्तु निज शक्ति से दूर होते जा रहे हैं।
आज ईश्वर से लगाकर होड़ हम बढ़ रहे हैं
नित्य ही नई-नई सृष्टियाँ गढ़ रहे हैं
रौंदते हैं धरा सिन्धु काँपते हैं
देवयानों से गगन भी नापते हैं
आज वश में हमारे पवन आग है –
पर स्वयं से हमी दूर होते जा रहे हैं।
चढ़ रहे हम सभ्यता के शिखर पर॥
प्यास रक्त की बढ़ी है सभी को यहाँ
कोई भी नहीं हार मानता है।
एक ही शक्ति को देख कर दूसरा-
शक्ति अपनी बढ़ाना जानता है।
चाह प्रभुता की हमें है यंत्र के बल पर-
किन्तु प्रेम – बल से दूर होते जा रहे हैं।
चढ़ रहे हम सभ्यता के शिखर पर॥
क्या हुआ यदि प्रकृति को विजय कर लिया-
जब अहं भावना मेट पाये नहीं
क्या हुआ बुद्धि बल में अगर बढ़ गये
बल हृदय का जो हमने बढ़ाया नहीं ?
कह रहे देवता बन गए आज हम,
पर मनुज भी नहीं बन पा रहे हैं।
चढ़ रहे हम सभ्यता के शिखर पर॥
स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।