धर्म

सरस्वती माता की आरती – Saraswati Mata Ki Aarti

सरस्वती माता की आरती विद्या, बुद्धि और ज्ञान देने वाली है। मां शारदा का आशीर्वाद पाने के लिए पढ़ें यह आरती–

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आरती कीजे सरस्वती जी की,
जननि विद्या बुद्धि भक्ति की।

जाकी कृपा कुमति मिट जाए,
सुमिरन करत सुमति गति आये।
शुक सनकादिक जासु गुण गाये,
वाणि रूप अनादि शक्ति की॥
आरती कीजे सरस्वती जी की…

नाम जपत भ्रम छुटें हिय के,
दिव्य दृष्टि शिशु खुलें हिय के।
मिलहि दर्श पावन सिय पिय के,
उड़ाई सुरभि युग-युग कीर्ति की॥
आरती कीजे सरस्वती जी की…

रचित जासु बल वेद पुराणा,
जेते ग्रन्थ रचित जगनाना।
तालु छन्द स्वर मिश्रित गाना,
जो आधार कवि यति सति की॥
आरती कीजे सरस्वती जी की…

सरस्वती जी की आरती – Saraswati Ji Ki Aarti

यहाँ एक अन्य लोकप्रिय सरस्वती जी की आरती (Saraswati Aarti) भी आपके सामने प्रस्तुत है। मां सरस्वती की कृपा प्राप्त करने के लिए पढ़ें यह आरती–

आरती करूं सरस्वती मातु,
हमारी हो भव भय हारी हो।
हंस वाहन पद्मासन तेरा,
शुभ्र वस्त्र अनुपम है तेरा॥
आरती करूं सरस्वती मातु…

रावण का मन कैसे फेरा,
वर मांगत बन गया सबेरा।
यह सब कृपा तिहारी,
उपकारी हो मातु हमारी हो॥
आरती करूं सरस्वती मातु…

तमोज्ञान नाशक तुम रवि हो,
हम अम्बुजन विकास करती हो।
मंगल भवन मातु सरस्वती हो,
बहुमूकन वाचाल करती हो॥
आरती करूं सरस्वती मातु…

विद्या देने वाली वीणा-
धारी हो मातु हमारी।
तुम्हारी कृपा गणनायक,
लायक विष्णु भये जग के पालक॥
आरती करूं सरस्वती मातु…

अम्बा कहायी सृष्टि की कारण,
भये शम्भु संसार ही घालक।
बन्दों आदि भवानी जग, सुखकारी हो मातु हमारी॥
आरती करूं सरस्वती मातु…

सद्बुद्धि विद्याबल मोही दीजै,
तुम अज्ञान हटा रख लीजै।
जन्मभूमि हित अर्पण कीजै,
कर्मवीर भस्महिं कर दीजे॥
आरती करूं सरस्वती मातु…

ऐसी विनय हमारी भवभय, हरी, मातु हमारी हो,
आरती करूं सरस्वती मातु…

सरस्वती आरती के नियम

  1. पूजा की समाप्ति पर सरस्वती माता की आरती (Saraswati Mata Ki Aarti) करने से पूजा के दौरान हुई त्रुटियों का परिहार हो जाता है।
  2. शंख, घड़ियाल या घंटे आदि बजाते हुए स्वच्छ पात्र में घी या कपूर से विषम संख्या की अनेक बत्तियाँ जलाकर सरस्वती जी की आरती करें।
  3. सरस्वती आरती (Saraswati Ji Ki Aarti) के समय सर्वप्रथम इसे चार बार मां की मूर्ति के चरणों के आगे घुमाएँ, फिर दो बार नाभि के समक्ष, उसके बाद एक बार मुख के सम्मुख और अन्त में सात बार सभी अंगों पर घुमाएँ।

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