कविता

शब्द गंगाजल चढ़ाता ही रहूँगा

“शब्द गंगाजल चढ़ाता ही रहूँगा” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। इस कविता की रचना 26 जनवरी सन् 1969 में की गयी थी। इसमें कवि चिर गीत गाने का वादा कर रहा है। पढ़ें और आनंद लें “शब्द गंगाजल चढ़ाता ही रहूँगा” कविता का–

मौन रहने की शपथ खाई नहीं है
तुम सुनो तो गीत गाता ही रहूँगा
गीत मेरे तो तुम्हारी ही धरोहर
पास बैठो गुनगुनाता ही रहूँगा।

गीत क्या है? हृदय की गहराइयाँ हैं
भाव की बजती हुई शहनाइयाँ हैं
दो हृदय के बीच की दूरी न समझो
गीत जीवन की मधुर परछाइयाँ हैं।

तुम इसे मानो न मानो किन्तु मैं तो
गीत जीवन से मिलाता ही रहूँगा।
बहुत से मैंने अभी तक गीत गाए
बन गए निष्ठुर नहीं तुम पास आए
चुप हुआ तब सह न पाए मौन मेरा
गीत की ध्वनि बन, तार से झनझनाये।

गीत का वरदान तुम को मानता हूँ
शब्द गंगाजल चढ़ाता ही रहूँगा।

गीत खुद दुःख दर्द का मारा हुआ है
इसलिए हर आँख का प्यारा हुआ है
यह घुटन के बीच लेकर जन्म पलता
जीत करके भी सदा हारा हुआ है।

ढुलक पड़ता नयन से दो बूंद बनकर
आँसुओं की उस धरोहर को सजाता ही रहूँगा।

यह अभावों का सदा साथी रहा है
वेदना की यह अमर थाथी रहा है
बुझ न पाई आज तक जो युग-युगों से
गीत उर के दीप की बाती रहा है।

स्नेह चुक जाए नहीं भय आँधियों का
प्यार का दीपक जलाता ही रहूँगा।

गीत ने मुझको सदा ही बल दिया है
डगमगाया हूँ कभी सम्बल दिया है
क्या कहूँ इससे अधिक मैं गीत ने ही –
हृदय के हर प्रश्न का भी हल दिया है।

सत्य कहता हूँ अगर तुम मुस्करा दो
गीत की फसलें उगाता ही रहूँगा।

दिनांक 26-1-69

स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।

यह भी पढ़ें

गंगा स्तोत्रगंगा दशहरा स्तोत्रगंगा चालीसागंगा के 108 नामगंगा मैया की आरतीशीश गंग अर्धंग पार्वतीगंगा किनारे 2गंगा किनारे चले जानागंगोत्री धामश्री गंगा दशहराहर हर गंगे

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी पथ
error: यह सामग्री सुरक्षित है !!
Exit mobile version