जीवन परिचयधर्म

सुमित्रा माता का जीवन परिचय – Sumitra Ramayan Story

सुमित्रा रामायण में त्याग की साक्षात् प्रतिमा थीं। ये महाराज दशरथ की दूसरी पटरानी थीं। महाराज दशरथ ने जब पुत्रेष्टि यज्ञ के द्वारा खीर प्राप्त किया, तब उन्होंने खीर का भाग महारानी सुमित्रा को स्वयं न देकर महारानी कौसल्या और महारानी कैकेयी के द्वारा दिलवाया।

जब महारानी सुमित्रा को उस खीर के प्रभाव से दो पुत्र हुए तो इन्होंने निश्चय कर लिया कि इन दोनों पुत्रों पर मेरा अधिकार नहीं है। इसलिये इन्होंने अपने प्रथम पुत्र श्रीलक्ष्मण को भगवान श्रीराम और दूसरे शत्रुघ्न को श्रीभरत की सेवा में समर्पित कर दिया। त्याग का ऐसा अनुपम उदाहरण अन्यत्र मिलना कठिन है।

जब भगवान् रघुवर वन जाने लगे तब लक्ष्मण जी ने भी उनसे स्वयं को साथ ले चलने का अनुरोध किया। पहले भगवान् श्रीराम ने लक्ष्मणजी को अयोध्या में रहकर माता-पिता की सेवा करने का आदेश दिया, लेकिन लक्ष्मणजी ने किसी प्रकार भी श्री राम के बिना अयोध्या में रुकना स्वीकार नहीं किया। अन्त में श्रीराम ने लक्ष्मण को माता सुमित्रा से आदेश लेकर अपने साथ चलने की आज्ञा दो। उस समय विदा मांगने के लिये उपस्थित श्री लक्ष्मण को माता सुमित्रा ने जो उपदेश दिया उसमें भक्ति, प्रीति, त्याग, पुत्र धर्म का स्वरूप, समर्पण आदि श्रेष्ठ भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति हुई है।

माता सुमित्रा ने श्रीलक्ष्मण को उपदेश देते हुए कहा, “बेटा, विदेहनन्दिनी श्री जानकी ही तुम्हारी माता हैं और सब प्रकार से स्नेह करने वाले श्रीरामचन्द्र ही तुम्हारे पिता हैं। जहाँ श्रीराम है, वहीं अयोध्या है और जहाँ सूर्य देव का प्रकाश है वहीं दिन है। यदि श्रीसीता राम वन को जा रहे हैं तो अयोध्या में तुम्हारा कुछ भी काम नहीं है। जगत में जितने भी पूजनीय सम्बन्ध हैं, वे सब श्री राम के नाते ही पूजनीय और प्रिय मानने योग्य हैं। संसार में वही युवती पुत्रवती कहलाने योग्य है, जिसका पुत्र श्रीराम का भक्त है। श्रीराम से विमुख पुत्र को जन्म देने से निपूती रहना ही ठीक है। तुम्हारे ही भाग्य से श्री राम वन को जा रहे हैं। हे पुत्र, इसके अतिरिक्त उनके वन जाने का अन्य कोई कारण नहीं है। समस्त पुण्यों का सबसे बड़ा फल श्री सीता-राम जी के चरणों में स्वाभाविक प्रेम है। हे पुत्र राग, रोष, ईर्ष्या, मद आदि समस्त विकारों पर विजय प्राप्त करके मन, कर्म और वचन से श्रीसीताराम की सेवा करना। इसीमें तुम्हारा परम हित है।”

श्रीराम सीता और लक्ष्मण के साथ वन चले गये। अब हर तरह से माता कौसल्या को सुखी बनाना ही सुमित्रा जी का उद्देश्य हो गया। ये उन्हीं की सेवा में दिन-रात लगी रहती थीं। अपने पुत्रों के विछोह के दुःख को भूलकर कौशल्या जी के दुःख में दुःखी और उन्हीं के सुख में सुखी होना माता सुमित्रा का स्वभाव बन गया।

जिस समय लक्ष्मण को शक्ति लगने का इन्हें संदेश मिलता है, तब इनका रोम-रोम खिल उठता है। ये प्रसन्नता और उत्सर्ग के आवेश में बोल पड़ती हैं, “लक्ष्मण ने मेरी कोख में जन्म लेकर उसे सार्थक कर दिया। उसने मुझे पुत्रवती होने का सच्चा गौरव प्रदान किया है।”

इतना ही नहीं, ये श्रीराम की सहायता के लिये श्रीशत्रुघ्न को भी युद्ध में भेजने के लिये तैयार हो जाती हैं। माता सुमित्रा के जीवन में सेवा, संयम और सर्वस्व त्याग का अद्भुत समावेश है। माता सुमित्रा जैसी देवियाँ ही भारतीय कुल की गरिमा और आदर्श हैं।

हिंदीपथ पर रामायण के महत्वपूर्ण किरदार सुमित्रा का जीवन परिचय आप लोगों के लिए पेश करके हमें अत्यंत प्रसन्नता है। उनका संपूर्ण जीवन साधारण जन मानुष के लिए प्रेरणा का अच्छा स्रोत है। हम सभी को इनका जीवनी ज़रूर पढ़नी चाहिए और उससे सीख ग्रहण करके अपने जीवन में स्थापित करना चाहिए। 

आइये महारानी सुमित्रा के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें संछिप्त में संकलित करते हैं:

  • रानी सुमित्रा का जन्म काशी नरेश की पुत्री के रूप में हुआ था। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन त्याग और बलिदान में व्यतीत कर दिया। माता सुमित्रा ने अपने दोनों पुत्रों लक्ष्मण और शत्रुघ्न को भी त्याग और सेवा की शिक्षा ही प्रदान की। 
  • वे स्वभाव से अति विनम्र एवं कर्मठ स्त्री थीं। 
  • इन्हें ज़्यादातर राम कथा के मूक पात्र के रूप में देखा गया है। 
  • उन्होंने धर्म और कर्तव्य की रक्षा करने हेतु बहुत बड़े-बड़े बलिदान दिए। 
  • महारानी सुमित्रा चरित्र से संघर्षमयी, प्रभावी, एवं प्रखर थीं। 
  • उन्होंने अपने दोनों पुत्रों को राग, द्वेष, ईर्ष्या, और मद से दूर रहने का आचरण सिखाया। 
  • ऐसा माना जाता है कि सुमित्रा बाकी दोनों रानियों और चारों पुत्रों को ही प्रिय थीं। 
  • सुमित्रा का मानना था कि राम भक्ति में ही मनुष्य जीवन का सार निहित है, बिना उसके मानव जीवन पशु तुल्य है। इसीलिए उन्होंने अपने पुत्र लक्ष्मण को श्री राम की सेवा हेतु उनके साथ वनवास भेजने पर ज़ोर दिया था। 

यहां हमने महारानी सुमित्रा के जीवन की कुछ प्रमुख बातें साझा की है। आशा है कि आप इनके जीवन की अच्छी बातों से कुछ सकारात्मकता ग्रहण करके अपने जीवन को सही दिशा की और ले जाने में सफल हो पाएंगे। 

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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