धर्म

सूरह अल इमरान – आले इमरान (सूरह 3)

सूरह अल इमरान या आले इमरान में 200 आयतें हैं। आले इमरान का हिंदी में अर्थ होता है इमरान की संतान। यह कुरान शरीफ की तीसरी सूरह है। दरअस्ल, इमरान ईसा मसीह की माँ मरियम के पिता का नाम था। इसलिए जैसा कि नाम से ज़ाहिर है, सूरह अल इमरान में ईसा और मरियम से जुड़े तथ्यों का विवरण प्रस्तुत किया गया है। कहते हैं कि जो सूरह अल इमरान का पाठ शुक्रवार के दिन करता है वह अल्लाह की कृपा प्राप्त करता है। ऐसे व्यक्ति की माफ़ी के लिए फ़रिश्ते भी दुआ करते हैं। धनोपार्जन के लिए सूरह अल इमरान को काग़ज़ पर लिख कपड़े में लपेटकर जेब में रखने से पैसों की कमी नहीं रहती है। साथ ही मान्यता है जिस काग़ज़ पर सूरह अल इमरान लिखा हो उसे कपड़ें में लपेटकर कोई स्त्री अपने पास रखे तो उसे संतान की प्राप्ति भी संभव है।

शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।

अलिफ़० लाम० मीम०। अल्लाह उसके सिवा कोई माबूद नहीं, ज़िंदा और सबका थामने वाला | उसने तुम पर किताब उतारी हक़ के साथ, सच्चा करने वाली उस चीज़ को जो उसके आगे है और उसने तौरात और इंजील उतारी इससे पहले लोगों की हिदायत के लिए और अल्लाह ने फ़ुरक्रान उतारा। बेशक जिन लोगों ने अल्लाह की निशानियों का इंकार किया उनके लिए सख्त अज़ाब है और अल्लाह ज़बरदस्त है, बदला लेने वाला है। बेशक अल्लाह से कोई चीज़ छुपी हुई नहीं न ज़मीन में और न आसमान में। वही तुम्हारी सूरत बनाता है मां के पेट में जिस तरह चाहता है। उसके सिवा कोई माबूद नहीं वह ज़बरदस्त है, हिक्मत वाला है। (1-6)

वही है जिसने तुम्हारे ऊपर किताब उतारी। इसमें कुछ आयतें मोहकम (सुदृढ़, सुस्पष्ट) हैं, वे किताब की असल हैं। और दूसरी आयतें मुताशाबह (संदेहास्पद, अस्पष्ट) हैं। पस जिनके दिलों में टेढ़ है वे मुताशाबह आयतों के पीछे पड़ जाते हैं फ़ितने की तलाश में और इनके अर्थों की तलाश में | हालांकि इनका अर्थ अल्लाह के सिवा कोई नहीं जानता। और जो लोग पुख्ता इल्म वाले हैं वे कहते हैं कि हम उन पर ईमान लाए। सब हमारे रब की तरफ़ से है। और नसीहत वही लोग कुबूल करते हैं जो अक़्ल वाले हैं। ऐ हमारे रब, हमारे दिलों को न फेर जबकि तू हमें हिदायत दे चुका। और हमें अपने पास से रहमत दे। बेशक तू ही सब कुछ देने वाला है। ऐ हमारे रब, तू जमा करने वाला है लोगों को एक दिन जिसमें कोई शुबह नहीं। बेशक अल्लाह वादे के ख़िलाफ़ नहीं करता। (7-9)

बेशक जिन लोगों ने इंकार किया, उनके माल और उनकी औलाद अल्लाह के मुक़ाबले में उनके कुछ काम न आएंगे और यही लोग आग के ईंधन बनेंगे। इनका अंजाम वैसा ही होगा जैसा फ़िरऔन वालों का और इनसे पहले वालों का हुआ। उन्होंने हमारी निशानियों को झुठलाया। इस पर अल्लाह ने उनके गुनाहों के सबब उन्हें पकड़ लिया। और अल्लाह सख्त सज़ा देने वाला है। इंकार करने वालों से कह दो कि अब तुम मगलूब किए जाओगे और जहन्नम की तरफ़ जमा करके ले जाए जाओगे और जहन्नम बहुत बुरा ठिकाना है। बेशक तुम्हारे लिए निशानी है उन दो गिरोहों में जिनमें (बद्र में) मुठभेड़ हुई। एक गिरोह अल्लाह की राह में लड़ रहा था और दूसरा मुंकिर था। ये मुंकिर खुली आंखों से उन्हें दुगना देखते थे। और अल्लाह जिसे चाहता है अपनी मदद का ज़ोर दे देता है। इसमें आंख वालों के लिए बड़ा सबक़ है। (10-13)

लोगों के लिए ख़ुशनुमा कर दी गई है मुहब्बत ख़्वाहिशों की- औरतें, बेटे, सोने-चांदी के ढेर, निशान लगे हुए घोड़े, मवेशी और खेती। ये दुनियावी ज़िंदगी के सामान हैं। और अल्लाह के पास अच्छा ठिकाना है। कहो, क्या मैं तुम्हें बताऊं इससे बेहतर चीज़। उन लोगों के लिए जो डरते हैं, उनके रब के पास बाग हैं जिनके नीचे नहरें जारी होंगी। वे इनमें हमेशा रहेंगे। और सुथरी बीवियां होंगी और अल्लाह की रिज़ामंदी होगी। और अल्लाह की निगाह में हैं उसके बंदे, जो कहते हैं ऐ हमारे रब, हम ईमान ले आए। पस तू हमारे गुनाहों को माफ़ कर दे और हमें आग के अज़ाब से बचा। वे सब्र करने वाले हैं और सच्चे हैं, फ़रमांबरदार हैं और ख़र्च करने वाले हैं और पिछली रात को मग्फ़िरत (क्षमा) मांगने वाले हैं। (14-17)

अल्लाह की गवाही है और फ़रिश्तों की और अहलेइल्म की कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं। वह क़ायम रखने वाला है इंसाफ़ का। उसके सिवा कोई माबूद नहीं। वह ज़बरदस्त है, हिकक्‍्मत वाला है। दीन अल्लाह के नज़दीक सिर्फ़ इस्लाम है। और अहले किताब ने इसमें जो इख़्तेलाफ़ (मतभेद) किया वह आपस की ज़िद की वजह से किया, बाद इसके कि उन्हें सही इल्म पहुंच चुका था। और जो अल्लाह की आयतों का इंकार करे तो अल्लाह यक़्ीनन जल्द हिसाब लेने वाला है। फिर अगर वे तुम से इस बारे में झगड़ें तो उनसे कह दो कि मैं अपना रुख़ अल्लाह की तरफ़ कर चुका। और जो मेरे पैरोकार हैं वे भी। और अहले किताब से और अनपढ़ों से पूछो, क्या तुम भी इसी तरह इस्लाम लाते हो। अगर वे इस्लाम लाएं तो उन्होंने राह पा ली। और अगर वे फिर जाएं तो तुम्हारे ऊपर सिर्फ़ पहुंचा देना है। और अल्लाह की निगाह में हैं उसके बंदे | जो लोग अल्लाह की निशानियों का इंकार करते हैं और पैग़म्बरों को नाहक़ क़त्ल करते हैं और उन लोगों को मार डालते हैं जो लोगों में से इंसाफ़ की दावत लेकर उठते हैं, इन्हें एक दर्दनाक सज़ा की ख़ुशख़बरी दे दो। यही वे लोग हैं जिनके आमाल दुनिया और आख़िरत में ज़ाये (विनष्ट) हो गए और उनका मददगार कोई नहीं। (18-22)

क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जिन्हें अल्लाह की किताब का एक हिस्सा दिया गया था। उन्हें अल्लाह की किताब की तरफ़ बुलाया जा रहा है कि वह उनके दर्मियान फ़ैसला करे | फिर उनका एक गिरोह मुंह फेर लेता है बेरुख़ी करते हुए। यह इस सबब से कि वे लोग कहते हैं कि हमें हरगिज़ आग न छुऐगी सिवाए गिने हुए कुछ दिनों के। और उनकी बनाई हुई बातों ने उन्हें उनके दीन के बारे में धोखे में डाल दिया है। फिर उस वक़्त क्या होगा जब हम उन्हें जमा करेंगे एक दिन जिसके आने में कोई शक नहीं। और हर शख्स को जो कुछ उसने किया है, इसका पूरा-पूरा बदला दिया जाएगा और उन पर ज़ुल्म न किया जाएगा। तुम कहो, ऐ अल्लाह, सल्तनत के मालिक तू जिसे चाहे सल्तनत दे और जिससे चाहे सल्तनत छीन ले। और तू जिसे चाहे इज़्ज़त दे और जिसे चाहे ज़लील करे। तेरे हाथ में है सब ख़ूबी | बेशक तू हर चीज़ पर क़ादिर है। तू रात को दिन में दाख़िल करता है और दिन को रात में दाखिल करता है। और तू बेजान से जानदार को निकालता है और तू जानदार से बेजान को निकालता है। और तू जिसे चाहता है बेहिसाब रिज़्क़ देता है। (23-27)

मुसलमानों को चाहिए कि मुसलमानों को छोड़ कर हक़ का इंकार करने वालों को दोस्त न बनाएं। और जो शख्स ऐसा करेगा तो अल्लाह से उसका कोई तअल्लुक़ नहीं। मगर ऐसी हालत में कि तुम उनसे बचाव करना चाहो। और अल्लाह तुम्हें डगाता है अपनी ज़ात से। और अल्लाह ही की तरफ़ लौटना है। कह दो कि जो कुछ तुम्हारे सीनों में है उसे छुपाओ या ज़ाहिर करो, अल्लाह उसे जानता है। और वह जानता है जो कुछ आसमानों में है और जो ज़मीन में है। और अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है। जिस दिन हर शख्स अपनी की हुई नेकी को अपने सामने मौजूद पाएगा, और जो बुराई की होगी उसे भी। उस दिन हर आदमी यह चाहेगा कि काश अभी यह दिन उससे बहुत दूर होता। और अल्लाह तुम्हें डराता है अपनी ज़ात से। और अल्लाह अपने बंदों पर बहुत मेहरबान है। कहो, अगर तुम अल्लाह से मुहब्बत करते हो तो मेरी पैरवी करो, अल्लाह तुमसे मुहब्बत करेगा। और तुम्हारे गुनाहों को माफ़ कर देगा। अल्लाह बड़ा माफ़ करने वाला, बड़ा मेहरबान है। कहो, अल्लाह की इताअत करो और रसूल की। फिर अगर वे मुंह मोड़ें तो अल्लाह हक़ का इंकार करने वालों को दोस्त नहीं रखता। (28-32)

बेशक अल्लाह ने आदम को और नूह को और आले इब्राहीम को और आले इमरान को सारे आलम के ऊपर मुंतख़ब किया है। ये एक-दूसरे की औलाद हैं। और अल्लाह सुनने वाला जानने वाला है। जब इमरान की बीवी ने कहा ऐ मेरे रब मैंने नज्ञ (अर्पित) किया तेरे लिए जो मेरे पेट में है वह आज़ाद रखा जाएगा। पस तू मुझसे क़ुबूल कर बेशक तू सुनने वाला, जानने वाला है। फिर जब उसने बच्चा जन्मा तो उसने कहा ऐ मेरे रब मैंने तो लड़की को जन्मा है और अल्लाह ख़ूब जानता है कि उसने क्‍या जन्मा है और लड़का नहीं होता लड़की की मानिंद। और मैंने उसका नाम मरयम रखा है और मैं उसे और उसकी औलाद को शैतान मरदूद से तेरी पनाह में देती हूं। पस उसके रब ने उसे अच्छी तरह क़ुबूल किया और उसे उम्दा तरीक़े से परवान चढ़ाया और ज़करिया को उसका सरपरस्त बनाया। जब कभी ज़करिया उनके पास हुजरे में आता तो वहां रिज़्क़ पाता। उसने पूछा ऐ मरयम ये चीज़ तुम्हें कहां से मिलती है मरयम ने कहा यह अल्लाह के पास से है बेशक अल्लाह जिसको चाहता है बेहिसाब रिज़्क़ दे देता है। उस वक़्त ज़करिया ने अपने रब को पुकारा। उसने कहा ऐ मेरे रब मुझे अपने पास से पाकीज़ा औलाद अता कर बेशक तू दुआ का सुनने वाला है। फिर फ़रिश्तों ने उसे आवाज़ दी जबकि वह हुजरे में खड़ा हुआ नमाज़ पढ़ रहा था कि अल्लाह तुझे याहिया की ख़ुशख़बरी देता है जो अल्लाह के कलिमे की तस्दीक़ करने वाला होगा और सरदार होगा और अपने नफ़्स को रोकने वाला होगा और नबी होगा नेकों में से। ज़करिया ने कहा ऐ मेरे रब मेरे लड़का किस तरह होगा हालांकि मैं बूढ़ा हो चुका और मेरी औरत बांझ है। फ़रमाया उसी तरह अल्लाह कर देता है जो वह चाहता है। ज़करिया ने कहा कि ऐ मेरे रब मेरे लिए कोई निशानी मुक़र्रर कर दे। कहा तुम्हारे लिए निशानी यह है कि तुम तीन दिन तक लोगों से बात न कर सकोगे मगर इशारे से और अपने रब को कसरत से याद करते रहो और शाम व सुबह उसकी तस्बीह करो। और जब फ़रिश्तों ने कहा ऐ मरयम अल्लाह ने तुम्हें मुंतब किया और तुम्हें पाक किया और तुम्हें दुनिया भर की औरतों के मुक़ाबले में मुंतखब किया है (चुना है)। ऐ मरयम अपने रब की फ़रमांबरदारी करो और सज्दा करो और रुकूअ करने वालों के साथ रुकूअ करो। यह गैब की ख़बरे हैं जो हम तुम्हें वही” (अवतरित) कर रहे हैं और तुम उनके पास मौजूद न थे जब वे अपने क़ुर॒ओ डाल रहे थे कि कौन मरयम की सरपरस्ती करे और न तुम उस वक़्त उनके पास मौजूद थे जब वे आपस में झगड़ रहे थे। (33-44)

जब फ़रिश्तों ने कहा ऐ मरयम, अल्लाह तुम्हें ख़ुशख़बरी देता है अपनी तरफ़ से एक कलिमे की। उसका नाम मसीह ईसा बिन मरयम होगा। वह दुनिया और आख़िरत में मर्तबे वाला होगा और अल्लाह के मुक़र्रब बंदों में होगा। वह लोगों से बातें करेगा जब मां की गोद में होगा और जब पूरी उम्र का होगा। और वह सालेहीन (सज्जनों) में से होगा। मरयम ने कहा ऐ मेरे रब, मेरे किस तरह लड़का होगा जबकि किसी मर्द ने मुझे हाथ नहीं लगाया। फ़रमाया उसी तरह अल्लाह पैदा करता है जो चाहता है। जब वह किसी काम का फ़ैसला करता है तो उसे कहता है कि हो जा और वह हो जाता है। और अल्लाह उसे किताब और हिक्मत और तौरात और इंजील सिखाएगा और वह रसूल होगा बनी इस्राईल की तरफ़ कि मैं तुम्हारे पास तुम्हारे रब की निशानी लेकर आया हूं। मैं तुम्हारे लिए मिट्टी से परिंदे की आकृति बनाता हूं, फिर उसमें फूंक मारता हूं तो वह अल्लाह के हुक्म से वाक़ई परिंदा बन जाती है। और मैं अल्लाह के हुक्म से जन्मजात अंधे और कोढ़ी को अच्छा करता हूं। और मैं अल्लाह के हुक्म से मुर्दे को जिंदा करता हूं। और मैं तुम्हें बताता हूं कि तुम क्या खाते हो और अपने घरों में क्या ज़ख़ीरा करते हो। बेशक इसमें तुम्हारे लिए निशानी है अगर तुम ईमान रखते हो। और मैं तस्दीक़ करने वाला हूं तौरात की जो मुझ से पहले की है और मैं इसलिए आया हूं कि कुछ उन चीज़ों को तुम्हारे लिए हलाल ठहराऊं जो तुम पर हराम कर दी गई हैं। और मैं तुम्हारे पास तुम्हारे रब की तरफ़ से निशानी लेकर आया हूं। पस तुम अल्लाह से डरो और मेरी इताअत करो। बेशक अल्लाह मेरा रब है और तुम्हारा भी। पस उसकी इबादत करो, यही सीधी राह है। (45-51)

फिर जब ईसा ने उनका इंकार देखा तो कहा कि कौन मेरा मददगार बनता है अल्लाह की राह में। हवारियों ने कहा कि हम हैं अल्लाह के मददगार। हम ईमान लाए हैं अल्लाह पर और आप गवाह रहिए कि हम फ़रमांबरदार हैं। ऐ हमारे रब हम ईमान लाए उस पर जो तूने उतारा, और हमने रसूल की पैरवी की। पस तू लिख ले हमें गवाही देने वालों में। और उन्होंने ख़ुफ़िया तदबीर की और अल्लाह ने भी ख़ुफ़िया तदबीर की। और अल्लाह सबसे बेहतर तदबीर करने वाला है। जब अल्लाह ने कहा ऐ ईसा मैं तुम्हें वापस लेने वाला हूं और तुम्हें अपनी तरफ़ उठा लेने वाला हूं और जिन लोगों ने इंकार किया है उनसे तुम्हें पाक करने वाला हूं। और जो तुम्हारे पैरोकार हैं उन्हें क्रियामत तक उन लोगों पर ग़ालिब करने वाला हूं जिन्होंने तुम्हारा इंकार किया है। फिर मेरी तरफ़ होगी सबकी वापसी। पस मैं तुम्हारे दर्मियान उन चीज़ों के बारे में फ़ैसला करूंगा जिनमें तुम झगड़ते थे। फिर जो लोग मुंकिर हुए उन्हें सख्त अज़ाब दूंगा दुनिया में और आख़िरत में और उनका कोई मददगार न होगा। और जो लोग ईमान लाए और नेक काम किए उन्हें अल्लाह उनका पूरा अज् देगा और अल्लाह ज़ालिमों को दोस्त नहीं रखता। यह हम तुम्हें सुनाते हैं अपनी आयतें और हिकमत भरी बातें। (52-58)

बेशक ईसा की मिसाल अल्लाह के नज़दीक आदम की-सी है। अल्लाह ने उसे मिट्टी से बनाया। फिर उसको कहा कि हो जा तो वह हो गया। हक़ बात है तेरे रब की तरफ़ से | पस तुम न हो शक करने वालों में। फिर जो तुमसे इस बारे में हुज्जत करे बाद इसके कि तुम्हारे पास इल्म आ चुका है तो उनसे कहो कि आओ, हम बुलाएं अपने बेटों को और तुम्हारे बेटों को, अपनी औरतों को और तुम्हारी औरतों को। और हम और तुम ख़ुद भी जमा हों। फिर हम मिलकर दुआ करें कि जो झूठा हो उस पर अल्लाह की लानत हो। बेशक यह सच्चा बयान है। और अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और अल्लाह ही ज़बरदस्त है, हिक्‍्मत वाला है। फिर अगर वे कुबूल न करें तो अल्लाह फसाद करने वालों को जानता है। (59-63)

कहो ऐ अहले किताब, आओ एक ऐसी बात की तरफ़ जो हमारे और तुम्हारे दर्मियान मुसल्लम (साझी) है कि हम अल्लाह के सिवा किसी की इबादत न करें और अल्लाह के साथ किसी को शरीक न ठहराएं। और हममें से कोई किसी दूसरे को अल्लाह के सिवा रब न बनाए। फिर अगर वे इससे मुंह मोड़ें तो कह दो कि तुम गवाह रहो, हम फ़रमांबरदार हैं। ऐ अहले किताब, तुम इब्राहीम के बारे में क्‍यों झगड़ते हो। हालांकि तौरात और इंजील तो उसके बाद उतरी हैं। क्या तुम इसे नहीं समझते। तुम वे लोग हो कि तुम उस बात के बारे में झगड़े जिसका तुम्हें कुछ इल्म था। अब तुम ऐसी बात में क्‍यों झगड़ते हो जिसका तुम्हें कोई इल्म नहीं। और अल्लाह जानता है, तुम नहीं जानते। इब्राहीम न यहूदी था और न नसरानी | बल्कि सिर्फ अल्लाह का ही रहे वाला मुस्लिम था और वह शिर्क करने वालों में से न था। लोगों में ज़्यादा मुनासिबत इब्राहीम से उन्हें है जिन्होंने उसकी पैरवी की और यह पैग़म्बर और जो उस पर ईमान लाए। और अल्लाह ईमान वालों का साथी है। अहले किताब में से एक गिरोह चाहता है कि किसी तरह तुम्हें गुमराह कर दे। हालांकि वे नहीं गुमराह करते मगर ख़ुद अपने आपको। मगर वे इसका एहसास नहीं करते| ऐ अहले किताब, अल्लाह की निशानियों का क्यों इंकार करते हो हालांकि तुम गवाह हो। ऐ अहले किताब, तुम क्‍यों सही में ग़लत को मिलाते हो और हक़ को छुपाते हो, हालांकि तुम जानते हो। (64-71)

और अहले किताब के एक गिरोह ने कहा कि मुसलमानों पर जो चीज़ उतारी गई है उस पर सुबह को ईमान लाओ और शाम को उसका इंकार कर दो, शायद कि मुसलमान भी इससे फिर जाएं। और यक्रीन न करो मगर सिर्फ़ उसका जो चले तुम्हारे दीन पर। कहो हिदायत वही है जो अल्लाह हिदायत करे। और यह उसी की देन है कि किसी को वही कुछ दे दिया जाए जो तुम्हें दिया गया था। या वे तुमसे तुम्हारे रब के यहां हुज्जत करें। कहो बड़ाई अल्लाह के हाथ में है। वह जिसे चाहता है देता है और अल्लाह बड़ा वुस्अत वाला है, इल्म वाला है। वह जिसे चाहता है अपनी रहमत के लिए ख़ास कर लेता है। और अल्लाह बड़ा फ़ज़्ल वाला है। और अहले किताब में कोई ऐसा भी है कि अगर तुम उसके पास अमानत का ढेर रखो तो वह उसे तुम्हें अदा कर दे। और इनमें कोई ऐसा है कि अगर तुम उसके पास एक दीनार अमानत रख दो तो वह तुम्हें अदा न करे इल्ला यह कि तुम उसके सिर पर खड़े हो जाओ, यह इस सबब से कि वे कहते हैं कि गैर-अहले किताब के बारे में हम पर कोई इल्ज़ाम नहीं। और वे अल्लाह के ऊपर झूठ लगाते हैं हालांकि वे जानते हैं। बल्कि जो शख्स अपने अहद को पूरा करे और अल्लाह से डरे तो बेशक अल्लाह ऐसे मुत्तक्रियों को दोस्त रखता है। (72-76)

जो लोग अल्लाह के अहद और अपनी क़समों को थोड़ी क्रीमत पर बेचते हैं उनके लिए आख़िरत में कोई हिस्सा नहीं। अल्लाह न उनसे बात करेगा न उनकी तरफ़ देखेगा क्रियामत के दिन, और न उन्हें पाक करेगा। और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है। और इनमें कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपनी ज़बानों को किताब में मोड़ते हैं ताकि तुम उसे किताब में से समझो हालांकि वह किताब में से नहीं। और वे कहते हैं कि यह अल्लाह की जानिब से है हालांकि वह अल्लाह की जानिब से नहीं। और वे जान कर अल्लाह पर झूठ बोलते हैं। किसी इंसान का यह काम नहीं कि अल्लाह उसे किताब और हिक्मत और नुबुब्वत दे और वह लोगों से यह कहे कि तुम अल्लाह को छोड़कर मेरे बंदे बन जाओ। बल्कि वह तो कहेगा कि तुम अल्लाह वाले बनो, इस वास्ते कि तुम दूसरों को किताब की तालीम देते हो और ख़ुद भी उसे पढ़ते हो। और न वह तुम्हें यह हुक्म देगा कि तुम फ़रिश्तों और पैग़म्बरों को रब बनाओ। क्या वह तुम्हें क्ुफ़ का हुक्म देगा, बाद इसके कि तुम इस्लाम ला चुके हो। (77-80)

और जब अल्लाह ने पैग़म्बरों का अहद लिया कि जो कुछ मैंने तुम्हें किताब और हिक्मत दी, फिर तुम्हारे पास पैग़म्बब आए जो सच्चा साबित करे उन पेशेनगोइयों (भविष्यवाणियों) को जो तुम्हारे पास हैं तो तुम उस पर ईमान लाओगे और उसकी मदद करोगे। अल्लाह ने कहा क्‍या तुमने इक़रार किया और उस पर मेरा अहद क़ुबूल किया। उन्होंने कहा हम इक़रार करते हैं। फ़रमाया अब गवाह रहो और मैं भी तुम्हारे साथ गवाह हूं। पस जो शख्स फिर जाए तो ऐसे ही लोग नाफ़रमान हैं। क्या ये लोग अल्लाह के दीन के सिवा कोई और दीन चाहते हैं। हालांकि उसी के हुक्म में है जो कोई आसमान और ज़मीन में है, ख़ुशी से या नाख़ुशी से और सब उसी की तरफ़ लौटाए जाऐंगे। कहो हम अल्लाह पर ईमान लाए और उस पर जो हमारे ऊपर उतारा गया है और जो उतारा गया इब्राहीम पर इस्माईल पर इस्हाक़ पर और याकूब पर और याकूब की औलाद पर। और जो दिया गया मूसा और ईसा और दूसरे नबियों को उनके रब की तरफ़ से | हम इनके दर्मियान फ़र्क़ नहीं करते। और हम उसी के फ़रमांबरदार हैं। और जो शख्स इस्लाम के सिवा किसी दूसरे दीन को चाहेगा तो वह उससे हरगिज़ क्ुबूल नहीं किया जाएगा और वह आख़िरत में नामुरादों में से होगा। अल्लाह क्योंकर ऐसे लोगों को हिदायत देगा जो ईमान लोने के बाद मुंकिर हो गए। हालांकि वे गवाही दे चुके कि यह रसूल बरहक़ है और उनके पास रोशन निशानियां आ चुकी हैं। और अल्लाह ज़ालिमों को हिदायत नहीं देता। ऐसे लोगों की सज़ा यह है कि उन पर अल्लाह की, उसके फ़रिश्तों की और सारे इंसानों की लानत होगी। वे इसमें हमेशा रहेंगे, न उनका अज़ाब हल्का किया जाएगा और न उन्हें मोहलत दी जाएगी। अलबत्ता जो लोग इसके बाद तौबा कर लें और अपनी इस्लाह कर लें तो बेशक अल्लाह बख्शने वाला, मेहरबान है। बेशक जो लोग ईमान लाने के बाद मुंकिर हो गए फिर कुफ्र में बढ़ते रहे, उनकी तौबा हरगिज़ कुबूल न की जाएगी और यही लोग गुमराह हैं। बेशक जिन लोगों ने इंकार किया और इंकार की हालत में मर गए, अगर वे ज़मीन भर सोना भी फ़िदये में दें तो कुबूल नहीं किया जाएगा। उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है और उनका कोई मददगार न होगा। (81-91)

तुम हरगिज़ नेकी के मर्तबे को नहीं पहुंच सकते जब तक तुम उन चीज़ों में से ख़र्च न करो जिन्हें तुम महबूब रखते हो। और जो चीज़ भी तुम ख़र्च करोगे उससे अल्लाह बाख़बर है। सब खाने की चीज़ें बनी इस्राईल के लिए हलाल थीं सिवाए उसके जो इस्राईल ने अपने ऊपर हराम कर लिया था इससे पहले कि तौरात उतरे। कहो कि तौरात लाओ और उसे पढ़ो, अगर तुम सच्चे हो। इसके बाद भी जो लोग अल्लाह पर झूठ बांधें वही ज़ालिम हैं। कहो अल्लाह ने सच कहा। अब इब्राहीम के दीन की पैरवी करो जो हनीफ़ था और वह शिर्क करने वाला न था। बेशक पहला घर जो लोगों के लिए बनाया गया वह वही है जो मक्का में है, बरकत वाला और सारे जहान के लिए हिदायत का मर्कज़। इसमें खुली हुई निशानियां हैं, मक़ामे इब्राहीम है, जो इसमें दाख़िल हो जाए वह मामून (सुरक्षित) है। और लोगों पर अल्लाह का यह हक़ है कि जो इस घर तक पहुंचने की ताक़त रखता हो वह इसका हज करे और जो कोई मुंकिर हुआ तो अल्लाह तमाम दुनिया वालों से बेनियाज़ है। कहो ऐ अहले किताब तुम क्‍यों अल्लाह की निशानियों का इंकार करते हो। हालांकि अल्लाह देख रहा है जो कुछ तुम करते हो। कहो ऐ अहले किताब तुम ईमान लाने वालों को अल्लाह की राह से क्‍यों रोकते हो। तुम उसमें ऐब दूंढते हो। हालांकि तुम गवाह बनाए गए हो। और अल्लाह तुम्हारे कामों से बेख़बर नहीं। (92-99)

ऐ ईमान वालो अगर तुम अहले किताब में से एक गिरोह की बात मान लोगे तो वे तुम्हें ईमान के बाद फिर मुंकिर बना देंगे। और तुम किस तरह इंकार करोगे हालांकि तुम्हें अल्लाह की आयतें सुनाई जा रही हैं और तुम्हारे दर्मियान उसका रसूल मौजूद है। और जो शख्स अल्लाह को मज़बूती से पकड़ेगा तो वह पहुंच गया सीधी राह पर। ऐ ईमान वालो, अल्लाह से डरो जैसा कि उससे डरना चाहिए। और तुम्हें मौत न आए मगर इस हाल में कि तुम मुस्लिम हो। और सब मिलकर अल्लाह की रस्सी को मज़बूत पकड़ लो और फूट न डालो। और अल्लाह का यह इनाम अपने ऊपर याद रखो कि तुम एक-दूसरे के दुश्मन थे। फिर उसने तुम्हारे दिलों में उल्फ़त डाल दी। पस तुम उसके फ़ज़्ल से भाई-भाई बन गए। और तुम आग के गढ़े के किनारे खड़े थे तो अल्लाह ने तुम्हें उससे बचा लिया। इस तरह अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी निशानियां बयान करता है ताकि तुम राह पाओ। (100-103)

और ज़रूर है कि तुममें एक गिरोह हो जो नेकी की तरफ़ बुलाए, भलाई का हुक्म दे और बुराई से रोके और ऐसे ही लोग कामयाब होंगे। और उन लोगों की तरह न हो जाना जो फ़िरक़ों में बंट गए और आपस में इख़्तेलाफ़ (मतभेद) कर लिया बाद इसके कि उनके पास वाज़ेह हुक्म आ चुके थे। और उनके लिए बड़ा अज़ाब है। जिस दिन कुछ चेहरे रोशन होंगे और कुछ चेहरे काले होंगे, तो जिनके चेहरे काले होंगे उनसे कहा जाएगा क्‍या तुम अपने ईमान के बाद मुंकिर हो गए, तो अब चखो अज़ाब अपने कुफ्र के सबब से। और जिनके चेहरे रोशन होंगे वे अल्लाह की रहमत में होंगे, वे उसमें हमेशा रहेंगे। ये अल्लाह की आयतें हैं जो हम तुम्हें हक़ के साथ सुना रहे हैं और अल्लाह जहान वालों पर ज़ुल्म नहीं चाहता। और जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है सब अल्लाह के लिए है और सारे मामलात अल्लाह ही की तरफ़ लौटाए जाऐंगे। (104-109)

अब तुम बेहतरीन गिरोह हो जिसे लोगों के लिए निकाला गया है। तुम भलाई का हुक्म देते हो और बुराई से रोकते हो और अल्लाह पर ईमान रखते हो और अगर अहले किताब भी ईमान लाते तो उनके लिए बेहतर होता। इनमें से कुछ ईमान वाले हैं और इनमें अक्सर नाफ़रमान हैं। वे तुम्हारा कुछ बिगाड़ नहीं सकते मगर कुछ सताना। और अगर वे तुमसे मुक़ाबला करेंगे तो तुम्हें पीठ दिखाएंगे। फिर उन्हें मदद भी न पहुंचेगी और उन पर मुसल्लत कर दी गई ज़िल्लत चाहे वे कहीं भी पाए जाऐं, सिवा इसके कि अल्लाह की तरफ़ से कोई अहद (वचन) हो या लोगों की तरफ़ से कोई अहद हो और वे अल्लाह के ग़ज़ब के मुस्तहिक़ हो गए और उन पर मुसल्‍्लत कर दी गई पस्ती, यह इसलिए कि वे अल्लाह की निशानियों का इंकार करते रहे और उन्होंने पैग़म्बरों को नाहक़ क़त्ल किया। यह इस सबब से हुआ कि उन्होंने नाफ़रमानी की और वे हद से निकल जाते थे। (110-112)

सब अहले किताब एक जैसे नहीं। इनमें एक गिरोह अहद पर क़ायम है। वे रातों को अल्लाह की आयतें पढ़ते हैं और वे सज्दा करते हैं। वे अल्लाह पर और आख़िरत के दिन पर ईमान रखते हैं, और भलाई का हुक्म देते हैं और बुराई से रोकते हैं और नेक कामों में दौड़ते हैं। ये सालेह (नेक) लोग हैं जो नेकी भी वे करेंगे उसकी नाक़द्री न की जाएगी और अल्लाह परहेज़गारों को ख़ूब जानता है। बेशक जिन लोगों ने इंकार किया तो अल्लाह के मुक़ाबले में उनके माल और औलाद उनके कुछ काम न आएऐंगे। और वे लोग दोज़ख़ वाले हैं वे इसमें हमेशा रहेंगे। वे इस दुनिया की ज़िंदगी में जो कुछ ख़र्च करते हैं उसकी मिसाल उस हवा की सी है जिसमें पाला हो और वह उन लोगों की खेती पर चले जिन्होंने अपने ऊपर ज़ुल्म किया है फिर वह उसको बर्बाद कर दे। अल्लाह ने उन पर ज़ुल्म नहीं किया बल्कि वे खुद अपनी जानों पर ज़ुल्म करते हैं। (113-117)

ऐ ईमान वालो, अपने गैर को अपना राज़दार न बनाओ, वे तुम्हें नुक़्सान पहुंचाने में कोई कमी नहीं करते। उन्हें ख़ुशी होती है तुम जितनी तकलीफ़ पाओ। उनकी अदावत उनकी ज़बान से निकल पड़ती है जो उनके दिलों में है वह इससे भी सख्त है, हमने तुम्हारे लिए निशानियां खोल कर ज़ाहिर कर दीं हैं अगर तुम अक़्ल रखते हो। तुम उनसे मुहब्बत रखते हो मगर वे तुमसे मुहब्बत नहीं रखते। हालांकि तुम सब आसमानी किताबों को मानते हो। और वे जब तुमसे मिलते हैं तो कहते हैं कि हम ईमान लाए और जब आपस में मिलते हैं तो तुम पर गुस्से से उंगलियां काटते हैं। कहो कि तुम अपने गुस्से में मर जाओ। बेशक अल्लाह दिलों की बात को जानता है। अगर तुम्हें कोई अच्छी हालत पेश आती है तो उन्हें रंज होता है और अगर तुम पर कोई मुसीबत आती है तो वे इससे ख़ुश होते हैं। अगर तुम सब्र करो और अल्लाह से डरो तो उनकी कोई तदबीर तुम्हें कोई नुक़्सान न पहुंचा सकेगी। जो कुछ वे कर रहे हैं सब अल्लाह के बस में है। (118-120)

जब तुम सुबह को अपने घर से निकले और मुसलमानों को जंग के मक़ामात पर तैनात किया और अल्लाह सुनने वाला, जानने वाला है। जब तुममें से दो जमाअतों ने इरादा किया कि हिम्मत हार दें और अल्लाह इन दोनों जमाअतों पर मददगार था। और मुसलमानों को चाहिए कि अल्लाह पर ही भरोसा करें। और अल्लाह तुम्हारी मदद कर चुका है बद्र में जबकि तुम कमज़ोर थे। पस अल्लाह से डरो ताकि तुम शुक्रगुज़ार रहो। जब तुम मुसलमानों से कह रहे थे कि क्‍या तुम्हारे लिए काफ़ी नहीं कि तुम्हारा रब तीन हज़ार फ़रिश्ते उतार कर तुम्हारी मदद करे। अगर तुम सब्र करो और अल्लाह से डरो और दुश्मन तुम्हारे ऊपर अचानक आ पहुंचे तो तुम्हारा रब पांच हज़ार निशान किए हुए फ़रिश्तों से तुम्हारी मदद करेगा। और यह अल्लाह ने इसलिए किया ताकि तुम्हारे लिए ख़ुशख़बरी हो और तुम्हारे दिल इससे मुतमइन हो जाएं और मदद सिर्फ़ अल्लाह ही की तरफ़ से है जो ज़बरदस्त है, हिक्मत वाला है, ताकि अल्लाह मुंकिरों के एक हिस्से को काट दे या उन्हें ज़लील कर दे कि वे नाकाम लौट जाएं। तुम्हें इस मामले में कोई दखल नहीं। अल्लाह इनकी तौबा क़ुबूल करे या उन्हें अज़ाब दे, क्योंकि वे ज़ालिम हैं। और अल्लाह ही के इख़्तियार में है जो कुछ आसमान में है और जो कुछ ज़मीन में है। वह जिसे चाहे बख़्श दे और जिसे चाहे अज़ाब दे और अल्लाह ग़फ़ूर व रहीम है। (121-129)

ऐ ईमान वालो, सूद कई-कई हिस्सा बढ़ाकर न खाओ और अल्लाह से डरो ताकि तुम कामयाब हो। और डरो उस आग से जो मुंकिरों के लिए तैयार की गई है। और अल्लाह और रसूल की इताअत करो ताकि तुम पर रहम किया जाए। और दौड़ो अपने रब की बख्शिश की तरफ़ और उस जन्नत की तरफ़ जिसकी वुस्अत (व्यापकता) आसमान और ज़मीन जैसी है। वह तैयार की गई है अल्लाह से डरने वालों के लिए। जो लोग कि ख़र्च करते हैं फ़रागत और तंगी में। वे गुस्से को पी जाने वाले हैं और लोगों से दरगुज़र करने वाले हैं। और अल्लाह नेकी करने वालों को दोस्त रखता है। और ऐसे लोग कि जब वे कोई खुली बुराई कर बैठें या अपनी जान पर कोई ज़ुल्म कर डालें तो वे अल्लाह को याद करके अपने गुनाहों की माफ़ी मांगें। अल्लाह के सिवा कौन है जो गुनाहों को माफ़ करे और वे जानते बूझते अपने किए पर इसरार नहीं करते। ये लोग हैं कि इनका बदला उनके रब की तरफ़ से मग्फ़िरत (क्षमा, मुक्ति) है और ऐसे बाग़ हैं जिनके नीचे नहरें बहती होंगी। इनमें वे हमेशा रहेंगे। कैसा अच्छा बदला है काम करने वालों का। तुमसे पहले बहुत-सी मिसालें गुज़र चुकी हैं तो ज़मीन में चल-फिर कर देखो कि क्या अंजाम हुआ झुठलाने वालों का। यह बयान है लोगों के लिए और हिदायत व नसीहत है डरने वालों के लिए। (130-138)

और हिम्मत न हारो और ग़म न करो, तुम ही ग़ालिब रहोगे अगर तुम मोमिन हो। अगर तुम्हें कोई ज़ख्म पहुंचे तो दुश्मन को भी वैसा ही ज़ख्म पहुंचा है। और हम इन दिनों को लोगों के दर्मियान बदलते रहते हैं। ताकि अल्लाह ईमान वालों को जान ले और तुममें से कुछ लोगों को गवाह बनाए और अल्लाह ज़ालिमों को दोस्त नहीं रखता। और ताकि अल्लाह ईमान वालों को छांट ले और इंकार करने वालों को मिटा दे। क्‍या तुम ख्याल करते हो कि तुम जन्नत में दाख़िल हो जाओगे, हालांकि अभी अल्लाह ने तुममें से उन लोगों को जाना नहीं जिन्होंने जिहाद किया और न उन्हें जो साबितक़दम रहने वाले हैं। और तुम मौत की तमन्ना कर रहे थे इससे मिलने से पहले, सो अब तुमने इसे खुली आंखों से देख लिया। (139-143)

मुहम्मद बस एक रसूल हैं। इनसे पहले भी रसूल गुज़र चुके हैं। फिर क्‍या अगर वह मर जाएं या क़त्ल कर दिए जाएं तो तुम उल्टे पैर फिर जाओगे | और जो शख्स फिर जाए वह अल्लाह का कुछ नहीं बिगाड़ेगा और अल्लाह शुक्रगुज़ारों को बदला देगा। और कोई जान मर नहीं सकती बगैर अल्लाह के हुक्म के। अल्लाह का लिखा हुआ वादा है। और जो शख्स दुनिया का फ़ायदा चाहता है उसे हम दुनिया में से दे देते हैं और जो आख़िरत का फ़ायदा चाहता है उसे हम आख़िरत में से दे देते हैं। और शुक्र करने वालों को हम उनका बदला ज़रूर अता करेंगे। और कितने नबी हैं जिनके साथ होकर बहुत से अल्लाह वालों ने जंग की | अल्लाह की राह में जो मुसीबतें उन पर पड़ीं उनसे न वे पस्तहिम्मत हुए न उन्होंने कमज़ोरी दिखाई | और न वे दबे। और अल्लाह सब्र करने वालों को दोस्त रखता है। उनकी ज़बान से इसके सिवा कुछ और न निकला कि ऐ हमारे रब हमारे गुनाहों को बख़्श दे और हमारे काम में हमसे जो ज़्यादती हुई उसे माफ़ फ़रमा और हमें साबितक़दम रख और मुंकिर क़ौम के मुक़ाबले में हमारी मदद फ़रमा। पस अल्लाह ने उन्हें दुनिया का बदला भी दिया और आख़िरत का अच्छा बदला भी। और अल्लाह नेकी करने वालों को दोस्त रखता है। (144-148)

ऐ ईमान वालो अगर तुम मुंकिरों की बात मानोगे तो वे तुम्हें उल्टे पैरों फेर देंगे फिर तुम नाकाम होकर रह जाओगे। बल्कि अल्लाह तुम्हारा मददगार है और वह सबसे बेहतर मदद करने वाला है। हम मुंकिरों के दिलों में तुम्हारा रौब डाल देंगे क्योंकि उन्होंने ऐसी चीज़ को अल्लाह का शरीक ठहराया जिसके हक़ में अल्लाह ने कोई दलील नहीं उतारी। उनका ठिकाना जहन्नम है और वह बुरी जगह है ज़ालिमों के लिए। और अल्लाह ने तुमसे अपने वादे को सच्चा कर दिखाया जबकि तुम उन्हें अल्लाह के हुक्म से क़त्ल कर रहे थे। यहां तक कि जब तुम ख़ुद कमज़ोर पड़ गए और तुमने काम में झगड़ा किया और तुम कहने पर न चले जबकि अल्लाह ने तुम्हें वह चीज़ दिखा दी थी जो कि तुम चाहते थे। तुममें से कुछ दुनिया चाहते थे और तुममें से कुछ आख़िरत चाहते थे। फिर अल्लाह ने तुम्हारा रुख़ उनसे फेर दिया ताकि तुम्हारी आज़माइश करे और अल्लाह ने तुम्हें माफ़ कर दिया और अल्लाह ईमान वालो के हक़ में बड़ा फ़ज़्ल वाला है। जब तुम चढ़े जा रहे थे और मुड़कर भी किसी को न देखते थे और रसूल तुम्हें तुम्हारे पीछे से पुकार रहा था। फिर अल्लाह ने तुम्हें गम पर ग़म दिया ताकि तुम रंजीदा न हो उस चीज़ पर जो तुम्हारे हाथ से चूक गई और न उस मुसीबत पर जो तुम पर पड़े। और अल्लाह ख़बरदार है जो कुछ तुम करते हो। (149-153)

फिर अल्लाह ने तुम्हारे ऊपर ग़म के बाद इत्मीनान उतारा यानी ऊंध कि इसका तुममें से एक जमाअत पर ग़लबा हो रहा था और एक जमाअत वह थी कि उसे अपनी जानों कि फ़िक्र पड़ी हुई थी। वे अल्लाह के बारे में हक़ीक़त के ख़िलाफ़ ख़्यालात, जाहिलियत के ख़्यालात क़ायम कर रहे थे। वे कहते थे कि क्या हमारा भी कुछ इख्तियार है। कहो सारा मामला अल्लाह के इख़्तियार में है। वे अपने दिलों में ऐसी बात छुपाए हुए हैं जो तुम पर ज़ाहिर नहीं करते। वे कहते हैं कि अगर इस मामले में कुछ हमारा भी दख़ल होता तो हम यहां न मारे जाते। कहो अगर तुम अपने घरों में होते तब भी जिनका क़त्ल होना लिख गया था वे अपनी क़त्लगाहों की तरफ़ निकल पड़ते। यह इसलिए हुआ कि अल्लाह को आज़माना था जो कुछ तुम्हारे सीनों में है और निखारना था जो कुछ तुम्हारे दिलों में है। और अल्लाह जानता है सीनों वाली बात को | तुममें से जो लोग फिर गए थे उस दिन कि दोनों गिरोहों में मुठभेड़ हुई इन्हें शैतान ने इनके कुछ आमाल के सबब से फिसला दिया था। अल्लाह ने इन्हें माफ़ कर दिया। बेशक अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है। (154-155)

ऐ ईमान वालो तुम उन लोगों की तरह न हो जाना जिन्होंने इंकार किया। वे अपने भाइयों के बारे में कहते हैं, जबकि वे सफ़र या जिहाद में निकलते हैं और उन्हें मौत आ जाती है, कि अगर वे हमारे पास रहते तो न मरते और न मारे जाते। ताकि अल्लाह इसे उनके दिलों में हसरत का सबब बना दे। और अल्लाह ही जिलाता है और मारता है, और जो कुछ तुम करते हो अल्लाह उसे देख रहा है। और अगर तुम अल्लाह की राह में मारे जाओ या मर जाओ तो अल्लाह की मग्फ़िरत और रहमत उससे बेहतर है जिसे वे जमा कर रहे हैं। और तुम मर गए या मारे गए बहरहाल तुम अल्लाह ही के पास जमा किए जाओगे। यह अल्लाह की बड़ी रहमत है कि तुम उनके लिए नर्म हो। अगर तुम तुंदखू (कठोर) और सख्त दिल होते तो ये लोग तुम्हारे पास से भाग जाते। पस इन्हें माफ़ कर दो और इनके लिए मग्फ़िरत मांगो और मामलात में इनसे मश्विरा लो। फिर जब फ़ैसला कर लो तो अल्लाह पर भरोसा करो। बेशक अल्लाह उनसे मुहब्बत करता है जो उस पर भरोसा रखते हैं। अगर अल्लाह तुम्हारा साथ दे तो कोई तुम पर ग़ालिब नहीं आ सकता और अगर वह तुम्हारा साथ छोड़ दे तो उसके बाद कौन है जो तुम्हारी मदद करे। और अल्लाह ही के ऊपर भरोसा करना चाहिए ईमान वालों को। (156-160)

और नबी का यह काम नहीं कि वह कुछ छुपाए रखे और जो कोई छुपाएगा वह अपनी छुपाई हुई चीज़ को क्रियामत के दिन हाज़िर करेगा। फिर हर जान को उसके किए हुए का पूरा बदला मिलेगा और उन पर कुछ ज़ुल्म न होगा। क्या वह शख्स जो अल्लाह की मर्ज़ी का ताबेअ (अधीन) है वह उस शख्स की तरह हो जाएगा जो अल्लाह का ग़ज़ब लेकर लौटा और उसका ठिकाना जहन्नम है और वह कैसा बुरा ठिकाना है। अल्लाह के यहां उनके दर्जे अलग-अलग होंगे। और अल्लाह देख रहा है जो वे करते हैं। अल्लाह ने ईमान वालों पर एहसान किया कि उनमें उन्हीं में से एक रसूल भेजा जो उन्हें अल्लाह की आयतें सुनाता है और उन्हें पाक करता है और उन्हें किताब व हिक्मत (तत्वदर्शिता) की तालीम देता है। बेशक ये इससे पहले खुली हुई गुमराही में थे। (161-164)

और जब तुम्हें ऐसी मुसीबत पहुंची जिसकी दुगनी मुसीबत तुम पहुंचा चुके थे तो तुमने कहा कि यह कहां से आ गई। कहो यह तुम्हारे अपने पास से है। बेशक अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है। और दोनों जमाअतों के मुठभेड़ के दिन तुम्हें जो मुसीबत पहुंची वह अल्लाह के हुक्म से पहुंची और इस वास्ते कि अल्लाह मोमिनों को जान ले और उन्हें भी जान ले जो मुनाफ़िक़ (पाखंड़ी) थे जिनसे कहा गया कि आओ अल्लाह की राह में लड़ो या दुश्मन को हटाओ। उन्होंने कहा अगर हम जानते कि जंग होना है तो हम ज़रूर तुम्हारे साथ चलते। ये लोग उस दिन ईमान से ज़्यादा कुफ़ के क़रीब थे। वे अपने मुंह से वह बात कहते हैं जो उनके दिलों में नहीं है और अल्लाह उस चीज़ को ख़ूब जानता है जिसे वे छुपाते हैं। ये लोग जो ख़ुद बैठे रहे, अपने भाइयों के बारे में कहते हैं कि अगर वे हमारी बात मानते तो वे मारे न जाते। कहो तुम अपने ऊपर से मौत को हटा दो अगर तुम सच्चे हो। (165-168)

और जो लोग अल्लाह की राह में मारे गए उन्हें मुर्दा न समझो। बल्कि वे ज़िंदा हैं अपने रब के पास, उन्हें रोज़ी मिल रही है। वे ख़ुश हैं उस पर जो अल्लाह ने अपने फ़ज़्ल में से उन्हें दिया है और ख़ुशख़बरी ले रहे हैं कि जो लोग उनके पीछे हैं और अभी वहां नहीं पहुंचे हैं उनके लिए भी न कोई ख़ौफ़ है और न वे ग़मगीन होंगे। वे ख़ुश हो रहे हैं अल्लाह के इनाम और फ़ज़्ल पर और इस पर कि अल्लाह ईमान वालों का अज् ज़ाये नहीं करता। जिन लोगों ने अल्लाह और रसूल के हुक्म को माना बाद इसके कि उन्हें ज़ख्म लग चुका था, इनमें से जो नेक और मुत्तक़ी हैं उनके लिए बड़ा अज़ है जिनसे लोगों ने कहा कि दुश्मन ने तुम्हारे ख़िलाफ़ बड़ी ताक़त जमा कर ली है उससे डरो। लेकिन इस चीज़ ने उनके ईमान में और इज़ाफ़ा कर दिया और वे बोले कि अल्लाह हमारे लिए काफ़ी है और वह बेहतरीन कारसाज़ है। पस वे अल्लाह की नेमत और उसके फ़ज़्ल के साथ वापस आए। इन लोगों को कोई बुराई पेश न आयी। और वे अल्लाह की रिज़ामंदी पर चले और अल्लाह बड़ा फ़ज़्ल वाला है। यह शैतान है जो तुम्हें अपने दोस्तों के ज़रिए डराता है। तुम उनसे न डरो बल्कि मुझसे डरो अगर तुम मोमिन हो। (169-175)

और वे लोग तुम्हारे लिए ग़म का सबब न बनें जो इंकार में सबक़त (तत्परता, जल्दी) कर रहे हैं। वे अल्लाह को हरगिज़ कोई नुक़्सान नहीं पहुंचा सकेंगे। अल्लाह चाहता है कि उनके लिए आख़िरत में कोई हिस्सा न रखे | उनके लिए बड़ा अज़ाब है। जिन लोगों ने ईमान के बदले कुफ़ को ख़रीदा है वे अल्लाह का कुछ बिगाड़ नहीं सकते और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है। और जो लोग कुफ़ कर रहे हैं यह ख़्याल न करें कि हम जो उन्हें मोहलत दे रहे हैं यह उनके हक़ में बेहतर है। हम तो बस इसलिए मोहलत दे रहे हैं कि वे जुर्म में और बढ़ जाएं और उनके लिए ज़लील करने वाला अज़ाब है। अल्लाह वह नहीं कि मुसलमानों को उस हालत पर छोड़ दे जिस तरह कि तुम अब हो जब तक कि वह नापाक को पाक से जुदा न कर ले। और अल्लाह यूं नहीं कि तुम्हें गैब से ख़बरदार कर दे। बल्कि अल्लाह छांट लेता है अपने रसूलों में जिसे चाहता है। पस तुम ईमान लाओ अल्लाह पर और उसके रसूलों पर। और अगर तुम ईमान लाओ और परहेज़गारी अपनाओ तो तुम्हारे लिए बड़ा अज़ है। (176-179)

और जो लोग बुख्ल (कंजूसी) करते हैं उस चीज़ में जो अल्लाह ने उन्हें अपने फ़ज़्ल में से दिया है वे हरगिज़ यह न समझें कि यह उनके हक़ में अच्छा है। बल्कि यह उनके हक़ में बहुत बुरा है जिस चीज़ में वे बुख़्ल कर रहे हैं उसका क़ियामत के दिन उन्हें तौक़ पहनाया जाएगा। और अल्लाह ही वारिस है ज़मीन और आसमान का और जो कुछ तुम करते हो अल्लाह उससे बाख़बर है। अल्लाह ने उन लोगों का क़ौल सुना जिन्होंने कहा कि अल्लाह मोहताज है और हम ग़नी हैं। हम लिख लेंगे उनके इस क़ौल को और उनके पैग़म्बरों को नाहक़ मार डालने को भी। और हम कहेंगे कि अब आग का अज़ाब चखो। यह तुम्हारे अपने हाथों की कमाई है और अल्लाह अपने बंदों के साथ नाइंसाफ़ी करने वाला नहीं। जो लोग कहते हैं कि अल्लाह ने हमें हुक्म दिया है कि हम किसी रसूल को तस्लीम न करें जब तक कि वह हमारे सामने ऐसी कुर्बानी पेश न करे जिसे आग खाले, उनसे कहो कि मुझसे पहले तुम्हारे पास रसूल आए खुली निशानियां लेकर और वह चीज़ लेकर जिसे तुम कह रहे हो फिर तुमने क्‍यों उन्हें मार डाला, अगर तुम सच्चे हो। पस अगर ये तुम्हें झुठलाते हैं तो तुमसे पहले भी बहुत से रसूल झुठलाए जा चुके हैं जो खुली निशानियां और सहीफ़े और रोशन किताब लेकर आए थे। हर शख्स को मौत का मज़ा चखना है और तुम्हें पूरा अज़ तो बस क़रियामत के दिन मिलेगा। पस जो शख्स आग से बच जाए और जन्नत में दाख़िल किया जाए वही कामयाब रहा और दुनिया की ज़िंदगी तो बस धोखे का सौदा है। (180-185)

यक़ीनन तुम अपने जान व माल में आज़माए जाओगे। और तुम बहुत सी तकलीफ़देह बातें सुनोगे उनसे जिन्हें तुमसे पहले किताब मिली और उनसे भी जिन्होंने शिर्क किया। और अगर तुम सब्र करो और तक़वा इख़्तियार करो तो यह बड़े हौसले का काम है। और जब अल्लाह ने अहले किताब से अहद लिया कि तुम ख़ुदा की किताब को पूरी तरह लोगों के लिए ज़ाहिर करोगे और उसे नहीं छुपाओगे। मगर उन्होंने इसे पीठ पीछे डाल दिया और इसे थोड़ी क़ीमत पर बेच डाला। कैसी बुरी चीज़ है जिसे वे ख़रीद रहे हैं। जो लोग अपने इन करतूतों पर ख़ुश हैं और चाहते हैं कि जो काम उन्होंने नहीं किए उस पर उनकी तारीफ़ हो, उन्हें अज़ाब से बरी न समझो। उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है। और अल्लाह ही के लिए है ज़मीन और आसमान की बादशाही, और अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है। (186-189)

आसमानों और ज़मीन की पैदाइश और रात दिन के बारी-बारी आने में अक़्ल वालों के लिए बहुत निशानियां हैं। जो खड़े और बैठे और अपनी करवटों पर अल्लाह को याद करते हैं और आसमानों और ज़मीन की पैदाइश पर ग़ौर करते रहते हैं। वे कह उठते हैं ऐ हमारे रब तूने यह सब बेमक़्सद नहीं बनाया है। तू पाक है, पस हमें आग के अज़ाब से बचा। ऐ हमारे रब तूने जिसे आग में डाला उसे तूने वाक़ई रुसवा कर दिया। और ज़ालिमों का कोई मददगार नहीं। ऐ हमारे रब हमने एक पुकारने वाले को सुना जो ईमान की तरफ़ पुकार रहा था कि अपने रब पर ईमान लाओ। पस हम ईमान लाए। ऐ हमारे रब हमारे गुनाहों को बख्शा दे और हमारी बुराइयों को हमसे दूर कर दे और हमारा ख़ात्मा नेक लोगों के साथ कर। ऐ हमारे रब तूने जो वादे अपने रसूलों के ज़रिए हमसे किए हैं उन्हें हमारे साथ पूरा कर और क़रियामत के दिन हमें रुसवाई में न डाल | बेशक तू अपने वादे के ख़िलाफ़ करने वाला नहीं है। (190-194)

उनके रब ने उनकी दुआ कुबूल फ़रमाई कि मैं तुममें से किसी का अमल ज़ाये करने वाला नहीं, चाहे वह मर्द हो या औरत, तुम सब एक-दूसरे से हो। पस जिन लोगों ने हिजतत की और जो अपने घरों से निकाले गए और मेरी राह में सताए गए और वे लड़े और मारे गए उनकी ख़ताएं ज़रूर उनसे दूर कर दूंगा और उन्हें ऐसे बाग़ों में दाख़िल करूंगा जिनके नीचे नहरें बहती होंगी। यह उनका बदला है अल्लाह के यहां और बेहतरीन बदला अल्लाह ही के पास है। और मुल्क के अंदर मुंकिरों की सरगर्मियां तुम्हें धोखे में न डालें यह थोड़ा सा फ़ायदा है। फिर उनका ठिकाना जहन्नम है और वह कैसा बुरा ठिकाना है। अलबत्ता जो लोग अपने रब से डरते हैं उनके लिए बाग़ होंगे जिनके नीचे नहरें बहती होंगी वे उसमें हमेशा रहेंगे। यह अल्लाह की तरफ़ से उनकी मेज़बानी होगी और जो कुछ अल्लाह के पास है नेक लोगों के लिए है वही सबसे बेहतर है। और बेशक अहले किताब में कुछ ऐसे भी हैं जो अल्लाह पर ईमान रखते हैं और उस किताब को भी मानते हैं जो तुम्हारी तरफ़ भेजी गई है और उस किताब को भी मानते हैं जो इससे पहले ख़ुद उनकी तरफ़ भेजी गई थी, वे अल्लाह के आगे झुके हुए हैं और अल्लाह की आयतों को थोड़ी क़ीमत पर बेच नहीं देते। उनका अज़ उनके रब के पास है और अल्लाह जल्द हिसाब लेने वाला है। ऐ ईमान वालो, सब्र करो और मुक़ाबले में मज़बूत रहो और लगे रहो और अल्लाह से डरो, उम्मीद है कि तुम कामयाब होगे। (195-200)

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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