सूरह माइदा – अल माइदह (सूरह 5)
सूरह माइदा कुरान शरीफ का पाँचवाँ सूरा है। यह सूरह मदनी है और इसमें 120 आयतें हैं। कहते हैं कि सूरह माइदा को पढ़ने के कई फायदे हैं। यदि कोई इसकी आयत 54 का पाठ करता है तो परिवार में प्रेम बढ़ता है। साथ ही मान्यता है कि अगर कोई अल्लाह से माफी चाहता है तो उसे हर रोज सूरह माइदा पढ़ना चाहिए। जो व्यक्ति अल माइदा पढ़ता है उसके लेखे-जोखे में दस अच्छे कर्म जुड़ जाते हैं, दस खराब कर्म कम हो जाते हैं और वह पहले की अपेक्षा अल्लाह के दस गुना नजदीक पहुँच जाता है। जो सूरह माइदा का पाठ हर गुरुवार को करता है वह गलत कामों और शिर्क से सुरक्षित हो जाता है। आइए, पढ़ते हैं सूरह माइदा हिंदी में।
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
ऐ ईमान वालो, अहद व पैमान को पूरा करो। तुम्हारे लिए मवेशी की क़िस्म के सब जानवर हलाल किए गए सिवा उनके जिनका ज़िक्र आगे किया जा रहा है। मगर एहराम की हालत में शिकार को हलाल न जानो। अल्लाह हुक्म देता है जो चाहता है। ऐ ईमान वालो, बेहुरमती न करो अल्लाह की निशानियों की और न हुरमत वाले महीनों की और न हरम में कुर्बानी वाले जानवरों की और न पड़े बंधे हुए नियाज़ के जानवरों की और न हुरमत वाले घर की तरफ़ आने वालों की जो अपने रब का फ़ज़्ल और उसकी ख़ुशी ढूंढने निकले हैं। और जब तुम एहराम की हालत से बाहर आ जाओ तो शिकार करो। और किसी क़ौम की दुश्मनी कि उसने तुम्हें मस्जिदे हराम से रोका है तुम्हें इस पर न उभारे कि तुम ज़्यादती करने लगो। तुम नेकी और तक़वा में एक दूसरे की मदद करो और गुनाह और ज़्यादती में एक दूसरे की मदद न करो। अल्लाह से डरो। बेशक अल्लाह सख्त अज़ाब देने वाला है। (1-2)
तुम पर हराम किया गया मुर्दार और ख़ून और सुअर का गोश्त और वह जानवर जो ख़ुदा के सिवा किसी और नाम पर ज़बह किया गया हो और वह जो मर गया हो गला घोंटने से या चोट से या ऊंचे से गिर कर या सींग मारने से और वह जिसे दरिंदे ने खाया हो मगर जिसे तुमने ज़बह कर लिया और वह जो किसी थान पर ज़बह किया गया हो और यह कि तक़्सीम करो जुए के तीरों से। यह गुनाह का काम है। आज मुंकिर तुम्हारे दीन की तरफ़ से मायूस हो गए। पस तुम उनसे न डरो, सिर्फ़ मुझसे डरो। आज मैंने तुम्हारे लिए तुम्हारे दीन को पूरा कर दिया और तुम पर अपनी नेमत पूरी कर दी और तुम्हारे लिए इस्लाम को दीन की हैसियत से पसंद कर लिया। पस जो भूख से मजबूर हो जाए लेकिन गुनाह पर मायल न हो तो अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है। (3)
वे पूछते हैं कि उनके लिए क्या चीज़ हलाल की गई है। कहो कि तुम्हारे लिए सुथरी चीज़ें हताल हैं। और शिकारी जानवरों में से जिन्हें तुमने सधाया है, तुम उन्हें सिखाते हो उसमें से जो अल्लाह ने तुम्हें सिखाया। पस तुम उनके शिकार में से खाओ जो वे तुम्हारे लिए पकड़ रखें। और उन पर अल्लाह का नाम लो और अल्लाह से डरो, अल्लाह बेशक जल्द हिसाब लेने वाला है। आज तुम्हारे लिए सब सुथरी चीज़ें हलाल कर दी गईं। और अहले किताब का खाना तुम्हारे लिए हलाल है और तुम्हारा खाना उनके लिए हलाल है। और हलाल हैं तुम्हारे लिए पाक दामन औरतें मुसलमान औरतों में से और पाक दामन औरतें उनमें से जिन्हें तुमसे पहले किताब दी गई जब तुम उन्हें उनके महर दे दो इस तरह कि तुम निकाह में लाने वाले हो, न एलानिया बदकारी करो और न ख़ुफ़िया आशनाई करो। और जो शख्स ईमान के साथ काफ़ करेगा तो उसका अमल ज़ाया हो जाएगा और वह आख़िरत में नुक़्सान उठाने वालों में से होगा। (4-5)
ऐ ईमान वालो, जब तुम नमाज़ के लिए उठो तो अपने चेहरों और अपने हाथों को कोहनियों तक धोओ और अपने सरों का मसह करो और अपने पैरों को टख़नों तक धोओ और अगर तुम हालते जनाबत में हो तो ग़ुस्ल॒ कर लो। और अगर तुम मरीज़ हो या सफ़र में हो या तुममें से कोई इस्तंजा से आए या तुमने औरत से सोहबत की हो फिर तुम्हें पानी न मिले तो पाक मिट्टी से तयम्मुम कर लो और अपने चेहरों और हाथों पर इससे मसह कर लो। अल्लाह नहीं चाहता कि तुम पर कोई तंगी डाले | बल्कि वह चाहता है कि तुम्हें पाक करे और तुम पर अपनी नेमत तमाम करे ताकि तुम शुक्रगुज़ार बनो। (6)
और अपने ऊपर अल्लाह की नेमत को याद करो और उसके उस अहद को याद करो जो उसने तुमसे लिया है। जब तुमने कहा कि हमने सुना और हमने माना। और अल्लाह से डरो। बेशक अल्लाह दिलों की बात तक जानता है। ऐ ईमान वालो, अल्लाह के लिए क़ायम रहने वाले और इंसाफ़ के साथ गवाही देने वाले बनो। और किसी गिरोह की दुश्मनी तुम्हें इस पर न उभारे कि तुम इंसाफ़ न करो, इंसाफ़ करो। यही तक़वा से ज़्यादा क़रीब है और अल्लाह से डरो बेशक अल्लाह को ख़बर है जो तुम करते हो। जो लोग ईमान लाए और उन्होंने नेक अमल किया उनसे अल्लाह का वादा है कि उनके लिए बख्शिश है और बड़ा अज्र है। और जिन्होंने इंकार किया और हमारी निशानियों को झुठलाया ऐसे लोग दोज़ख़ वाले हैं। ऐ ईमान वालो, अपने ऊपर अल्लाह के एहसान को याद करो जब एक क़ौम ने इरादा किया कि तुम पर दस्तदराज़ी करे तो अल्लाह ने तुमसे उनके हाथ को रोक दिया। और अल्लाह से डरो और ईमान वालों को अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिए। (7-11)
और अल्लाह ने बनी इस्राईल से अहद (वचन) लिया और हमने उनमें बारह सरदार मुक़र्रर किए। और अल्लाह ने कहा कि मैं तुम्हारे साथ हूं। अगर तुम नमाज़ क़ायम करोगे और ज़कात अदा करोगे और मेरे पैग़म्बरों पर ईमान लाओगे और उनकी मदद करोगे और अल्लाह को क़र्ज़े हसन दोगे तो मैं तुमसे तुम्हारे गुनाह ज़रूर दूर करूंगा और तुम्हें ज़रूर ऐसे बाग़ों में दाख़िल करूंगा जिनके नीचे नहरें बहती होंगी। पस तुममें से जो शख़्स इसके बाद इंकार करेगा तो वह सीधे रास्ते से भटक गया। पस उनकी अहदशिकनी की बिना पर हमने उन पर लानत कर दी और हमने उनके दिलों को सख्त कर दिया। वे कलाम को उसकी जगह से बदल देते हैं। और जो कुछ उन्हें नसीहत की गई थी उसका बड़ा हिस्सा वे भुला बैठे। और तुम बराबर उनकी किसी न किसी ख़ियानत से आगाह होते रहते हो सिवाए थोड़े लोगों के। उन्हें माफ़ करो और उनसे दरगुज़र करो, अल्लाह नेकी करने वालों को पसंद करता है। (12-13)
और जो लोग कहते हैं कि हम नसरानी (ईसाई) हैं, उनसे हमने अहद लिया था। पस जो कुछ उन्हें नसीहत की गई थी उसका बड़ा हिस्सा वे भुला बैठे | फिर हमने क्रियामत तक के लिए उनके दर्मियान दुश्मनी और बुग्ज डाल दिया। और आख़िर अल्लाह उन्हें आगाह कर देगा उससे जो कुछ वे कर रहे थे। (14)
ऐ अहले किताब, तुम्हारे पास हमारा रसूल आया है। वह किताबे इलाही की बहुत सी उन बातों को तुम्हारे सामने खोल रहा है जिन्हें तुम छुपाते थे। और वह दरगुज़र करता है बहुत सी चीज़ों से | बेशक तुम्हारे पास अल्लाह की तरफ़ से एक रोशनी और एक ज़ाहिर करने वाली किताब आ चुकी है। इसके ज़रिए से अल्लाह उन लोगों को सलामती की राहें दिखाता है जो उसकी रिज़ा के तालिब हैं और अपनी तौीफ़ीक़ से उन्हें अंधेरों से निकाल कर रोशनी में ला रहा है और सीधी राह की तरफ़ उनकी रहनुमाई करता है। बेशक उन लोगों ने कुफ्र किया जिन्होंने कहा कि ख़ुदा ही तो मसीह इब्ने मरयम है। कहो फिर कौन इख़्तियार रखता है अल्लाह के आगे अगर वह चाहे कि हलाक कर दे मसीह इब्ने मरयम को और उसकी मां को और जितने लोग ज़मीन में हैं सब को। और अल्लाह ही के लिए है बादशाही आसमानों और ज़मीन की और जो कुछ इनके दर्मियान है। वह पैदा करता है जो कुछ चाहता है और अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है। (15-17)
और यहूद व नसारा कहते हैं कि हम ख़ुदा के बेटे और उसके महबूब हैं। तुम कहो कि फिर वह तुम्हारे गुनाहों पर तुम्हें सज़ा क्यों देता है। नहीं बल्कि तुम भी उसकी पैदा की हुई मख्लूक़ में से एक आदमी हो। वह जिसे चाहेगा बर्छोगा और जिसे चाहेगा अज़ाब देगा। और अल्लाह ही के लिए है बादशाही आसमानों और ज़मीन की और जो कुछ इनके दर्मियान है और उसी की तरफ़ लौट कर जाना है। ऐ अहले किताब, तुम्हारे पास हमारा रसूल आया है, वह तुम्हें साफ़-साफ़ बता रहा है रसूलों के एक वक़्फ़ा के बाद। ताकि तुम यह न कहो कि हमारे पास कोई ख़ुशख़बरी देने वाला और डर सुनाने वाला नहीं आया। पस अब तुम्हारे पास ख़ुशख़बरी देने वाला और डराने वाला आ गया है और अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है। (18-19)
और जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा कि ऐ मेरी क्रौम, अपने ऊपर अल्लाह के एहसान को याद करो कि उसने तुम्हारे अंदर नबी पैदा किए। और तुम्हें बादशाह बनाया और तुम्हें वह दिया जो दुनिया में किसी को नहीं दिया था। ऐ मेरी क़ौम, इस पाक ज़मीन में दाख़िल हो जाओ जो अल्लाह ने तुम्हारे लिए लिख दी है। और अपनी पीठ की तरफ़ न लौटो वर्ना नुक़्सान में पड़ जाओगे। उन्होंने कहा कि वहां एक ज़बरदस्त क़ौम है। हम हरगिज़ वहां न जाएंगे जब तक वे वहां से निकल न जाएं। अगर वे वहां से निकल जाएं तो हम दाख़िल होंगे। दो आदमी जो अल्लाह से डरने वालों में से थे और उन दोनों पर अल्लाह ने इनाम किया था, उन्होंने कहा कि तुम उन पर हमला करके शहर के फाटक में दाख़िल हो जाओ। जब तुम उसमें दाख़िल हो जाओगे तो तुम ही गालिब होगे और अल्लाह पर भरोसा करो अगर तुम मोमिन हो। उन्होंने कहा कि ऐ मूसा हम कभी वहां दाखिल न होंगे जब तक वे लोग वहां हैं। पस तुम और तुम्हारा ख़ुदावंद दोनों जाकर लड़ो, हम यहां बैठे हैं। मूसा ने कहा कि ऐ मेरे रब, अपने और अपने भाई के सिवा किसी पर मेरा इख़्तियार नहीं। पस तू हमारे और इस नाफ़रमान क़ौम के दर्मियान जुदाई कर दे। अल्लाह ने कहा : वह मुल्क उन पर चालीस साल के लिए हराम कर दिया गया। ये लोग ज़मीन में भटकते फिरेंगे। पस तुम इस नाफ़रमान क़ौम पर अफ़सोस न करो। (20-26)
और उन्हें आदम के दो बेटों का क्रिस्सा हक़ के साथ सुनाओ। जबकि उन दोनों ने क्रुर्बानी पेश की तो उनमें से एक की क्रुर्बानी क़ुबूल हुई और दूसरे की कुर्बानी क्ुबूल न हुई। उसने कहा मैं तुझे मार डालूंगा। उसने जवाब दिया कि अल्लाह तो सिर्फ़ मुत्तक़रियों से क़ुबूल करता है। अगर तुम मुझे क़त्ल करने के लिए हाथ उठाओगे तो मैं तुम्हें कत्ल करने के लिए तुम पर हाथ नहीं उठाऊंगा। मैं डरता हूं अल्लाह से जो सारे जहान का रब है। मैं चाहता हूं की मेरा और अपना गुनाह तू ही ले ले फिर तू आग वालों में शामिल हो जाए। और यही सज़ा है ज़ुल्म करने वालों की। फिर उसके नफ़्स ने उसे अपने भाई के क़त्ल पर राज़ी कर लिया और उसने उसे क़त्ल कर डाला। फिर वह नुक़्सान उठाने वालों में शामिल हो गया। फिर ख़ुदा ने एक कौवे को भेजा जो ज़मीन में कुरेदता था ताकि वह उसे दिखाए कि वह अपने भाई की लाश को किस तरह छुपाए। उसने कहा कि अफ़सोस मेरी हालत पर कि मैं इस कौवे जैसा भी न हो सका कि अपने भाई की लाश को छुपा देता। पस वह बहुत शर्मिन्दा हुआ। (27-31)
इसी सबब से हमने बनी इस्राई_्न पर यह लिख दिया कि जो शख्स किसी को क़त्ल करे, बगैर इससे कि उसने किसी को क़त्ल किया हो या ज़मीन में फ़साद बरपा किया हो तो गोया उसने सारे आदमियों को क़त्ल कर डाला और जिसने एक शख्स को बचाया तो गोया उसने सारे आदमियों को बचा लिया। और हमारे पैग़म्बर उनके पास खुले अहकाम लेकर आए। इसके बावजूद उनमें से बहुत से लोग ज़मीन में ज़्यादतियां करते हैं। जो लोग अल्लाह और उसके रसूल से लड़ते हैं और ज़मीन में फ़साद करने के लिए दौड़ते हैं उनकी सज़ा यही है कि उन्हें क़त्ल किया जाए या वे सूली पर चढ़ाए जाएं या उनके हाथ और पैर विपरीत दिशा से काटे जाएं या उन्हें मुल्क से बाहर निकाल दिया जाए। यह उनकी रुस्वाई दुनिया में है और आख़िरत में उनके लिए बड़ा अज़ाब है। मगर जो लोग तौबा कर लें तुम्हारे क़ाबू पाने से पहले तो जान लो कि अल्लाह बख्शने वाला मेहरबान है। (32-34)
ऐ ईमान वालो, अल्लाह से डरो और उसका क्ुर्ब (समीपता) तलाश करो और उसकी राह में जिद्दोजहद करो ताकि तुम फ़लाह पाओ। बेशक जिन लोगों ने कुफ़ किया है अगर उनके पास वह सब कुछ हो जो ज़मीन में है और इतना ही और हो ताकि वे उसे फ़िदये (अर्थदण्ड) में देकर क्रियामत के दिन के अज़ाब से छूट जाएं तब भी वह उनसे क़ुबूल न की जाएगी और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है। वे चाहेंगे कि आग से निकल जाएं मगर वे उससे निकल न सकेंगे और उनके लिए एक मुस्तक़िल अज़ाब है। और चोर मर्द और चोर औरत दोनों के हाथ काट दो। यह उनकी कमाई का बदला है और अल्लाह की तरफ़ से इबरतनाक सज़ा। और अल्लाह ग़ालिब और हकीम (तत्वदर्शी) है। फिर जिसने अपने ज़ुल्म के बाद तौबा की और इस्लाह कर ली तो अल्लाह बेशक उस पर तवज्जोह करेगा। और अल्लाह बख्शने वाला मेहरबान है। क्या तुम नहीं जानते कि अल्लाह ज़मीन और आसमानों की सल्तनत का मालिक है। वह जिसे चाहे सज़ा दे और जिसे चाहे माफ़ कर दे। और अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है। (35-40)
ऐ पैगम्बर, तुम्हें वे लोग रंज में न डालें जो कुफ़ की राह में बड़ी तेज़ी दिखा रहे हैं। चाहे वे उनमें से हों जो अपने मुंह से कहते हैं कि हम ईमान लाए हालांकि उनके दिल ईमान नहीं लाए या उनमें से हों जो यहूदी हैं, झूठ के बड़े सुनने वाले, सुनने वाले दूसरे लोगों की ख़ातिर जो तुम्हारे पास नहीं आए। वे कलाम को उसके मक़ाम से हटा देते हैं। वे लोगों से कहते हैं कि अगर तुम्हें यह हुक्म मिले तो क़ुबूल कर लेना और अगर यह हुक्म न मिले तो उससे बचकर रहना। और जिसे अल्लाह फ़ितने में डालना चाहे तो तुम अल्लाह के मुक़ाबिल उसके मामले में कुछ नहीं कर सकते। यही वे लोग हैं कि अल्लाह ने न चाहा कि उनके दिलों को पाक करे। उनके लिए दुनिया में रुस्वाई है और आख़िरत में उनके लिए बड़ा अज़ाब है। (41)
वे झूठ के बड़े सुनने वाले हैं, हराम के बड़े खाने वाले हैं। अगर वे तुम्हारे पास आएं तो चाहे उनके दर्मियान फ़ैसला करो या उन्हें टाल दो। अगर तुम उन्हें टाल दोगे तो वे तुम्हारा कुछ बिगाड़ नहीं सकते। और अगर तुम फ़ैसला करो तो उनके दर्मियान इंसाफ़ के मुताबिक़ फ़ैसला करो। अल्लाह इंसाफ़ करने वालों को पसंद करता है। और वे कैसे तुम्हें हकम (मध्यस्थ) बनाते हैं हालांकि उनके पास तौरात है जिसमें अल्लाह का हुक्म मौजूद है। और फिर वे उससे मुंह मोड़ रहे हैं। और ये लोग हरगिज़ ईमान वाले नहीं हैं। (42-43)
बेशक हमने तौरात उतारी है जिसमें हिदायत और रोशनी है। उसी के मुताबिक़ ख़ुदा के फ़रमांबरदार अंबिया यहूदी लोगों का फ़ैसला करते थे और उनके दुर्वेश और उलमा (विद्वान) भी। इसलिए कि वे खुदा की किताब पर निगहबान ठहराए गए थे। और वे उसके गवाह थे। पस तुम इंसानों से न डरो मुझसे डरो और मेरी आयतों को तुच्छ मूल्यों के ऐवज़ न बेचो | और जो कोई उसके मुवाफ़िक़ हुक्म न करे जो अल्लाह ने उतारा है तो वही लोग मुंकिर हैं। और हमने उस किताब में उन पर लिख दिया कि जान के बदले जान और आंख के बदले आंख और नाक के बदले नाक और कान के बदले कान और दांत के बदले दांत और ज़ख््मों का बदला उनके बराबर | फिर जिसने उसे माफ़ कर दिया तो वह उसके लिए कफ़्फ़ारा (प्रायश्वित) है। और जो शख्स उसके मुवाफ़िक़ फ़ैसला न करे जो अल्लाह ने उतारा तो वही लोग ज़ालिम हैं। और हमने उनके पीछे ईसा इब्ने मरयम को भेजा तस्दीक़ (पुष्टि) करते हुए अपने से पहले की किताब तौरात की और हमने उसे इंजील दी जिसमें हिदायत और नूर है और वह तस्दीक़ करने वाली थी अपने से अगली किताब तौरात की और हिदायत और नसीहत डरने वालों के लिए। और चाहिए कि इंजील वाले उसके मुवाफ़िक़ फ़ैसला करें जो अल्लाह ने उसमें उतारा है। और जो कोई उसके मुवाफ़िक़ फ़ैसला न करे जो अल्लाह ने उतारा तो वही लोग नाफ़रमान हैं। (44-47)
और हमने तुम्हारी तरफ़ किताब उतारी हक़ के साथ, तस्दीक़ (पुष्टि) करने वाली पिछली किताब की और उसके मज़ामीन पर निगहबान। पस तुम उनके दर्मियान फ़ैसला करो उसके मुताबिक़ जो अल्लाह ने उतारा। और जो हक़ तुम्हारे पास आया है उसे छोड़कर उनकी ख़्वाहिशों की पैरवी न करो। हमने तुममें से हर एक लिए एक शरीअत और एक तरीक़ा ठहराया। और अगर ख़ुदा चाहता तो तुम्हें एक ही उम्मत बना देता। मगर अल्लाह ने चाहा कि वह अपने दिए हुए हुक्मों में तुम्हारी आज़माइश करे। पस तुम भलाइयों की तरफ़ दौड़ो। आख़िरकार तुम सबको ख़ुदा की तरफ़ पलटकर जाना है। फिर वह तुम्हें आगाह कर देगा उस चीज़ से जिसमें तुम इख्तिलाफ़ (मत-भिन्नता) कर रहे थे। और उनके दर्मियान उसके मुताबिक़ फ़ैसला करो जो अल्लाह ने उतारा है और उनकी ख़्वाहिशों की पैरवी न करो और उन लोगों से बचो कि कहीं वह तुम्हें फिसला दें तुम्हारे ऊपर अल्लाह के उतारे हुए किसी हुक्म से। पस अगर वे फिर जाएं तो जान लो कि अल्लाह उन्हें उनके कुछ गुनाहों की सज़ा देना चाहता है। और यक़ीनन लोगों में से ज़्यादा आदमी नाफ़रमान हैं। क्या ये लोग जाहिलियत का फ़ैसला चाहते हैं। और अल्लाह से बढ़कर किसका फ़ैसला हो सकता है उन लोगों के लिए जो यक़ीन करना चाहें। (48-50)
ऐ ईमान वालो, यहूद और नसारा को दोस्त न बनाओ वे एक दूसरे के दोस्त हैं। और तुममें से जो शख्स उन्हें अपना दोस्त बनाएगा तो वह उन्हीं में से होगा। अल्लाह ज़ालिम लोगों को राह नहीं दिखाता। तुम देखते हो कि जिनके दिलों में रोग है वे उन्हीं की तरफ़ दौड़ रहे हैं। वे कहते हैं कि हमें यह अंदेशा है कि हम किसी मुसीबत में न फंस जाएं। तो मुमकिन है कि अल्लाह फ़तह दे दे या अपनी तरफ़ से कोई ख़ास बात ज़ाहिर करे तो ये लोग उस चीज़ पर जिसे ये अपने दिलों में छुपाए हुए हैं नादिम होंगे। और उस वक़्त अहले ईमान कहेंगे क्या ये वही लोग हैं जो ज़ोर शोर से अल्लाह की क़समें खाकर यकीन दिलाते थे कि हम तुम्हारे साथ हैं। उनके सारे आमाल ज़ाए (नष्ट) हो गए और वे घाटे में रहे। (51-53)
ऐ ईमान वालो, तुममें से जो शख़्स अपने दीन से फिर जाए तो अल्लाह जल्द ऐसे लोगों को उठाएगा जो अल्लाह को महबूब होंगे और अल्लाह उन्हें महबूब होगा। वे मुसलमानों के लिए नर्म और मुंकिरों के ऊपर सख्त होंगे। वे अल्लाह की राह में जिहाद करेंगे और किसी मलामत करने वाले की मलामत से न डरेंगे। यह अल्लाह का फ़ज़्ल है। वह जिसे चाहता है अता करता है। और अल्लाह वुस्अत वाला और इल्म वाला है। तुम्हारे दोस्त तो बस अल्लाह और उसका रसूल और वे ईमान वाले हैं जो नमाज़ क्रायम करते हैं और ज़कात अदा करते हैं और वे अल्लाह के आगे झुकने वाले हैं। और जो शख्स अल्लाह और उसके रसूल और ईमान वालों को दोस्त बनाए तो बेशक अल्लाह की जमाअत ही ग़ालिब रहने वाली है। (54-56)
ऐ ईमान वालो, उन लोगों को अपना दोस्त न बनाओ जिन्होंने तुम्हारे दीन को मज़ाक़ और खेल बना लिया है, उन लोगों में से जिन्हें तुमसे पहले किताब दी गई और न मुंकिरों को। और अल्लाह से डरते रहो अगर तुम ईमान वाले हो। और जब तुम नमाज़ के लिए पुकारते हो तो वे लोग उसे मज़ाक़ और खेल बना लेते हैं। इसकी वजह यह है कि वे अक़्ल नहीं रखते। कहो कि ऐ अहले किताब, तुम हमसे सिर्फ़ इसलिए ज़िद रखते हो कि हम ईमान लाए अल्लाह पर और उस पर जो हमारी तरफ़ उतारा गया और उस पर जो हमसे पहले उतरा। और तुम में से अक्सर लोग नाफ़रमान हैं। कहो क्या मैं तुम्हें बताऊं वह जो अल्लाह के यहां अंजाम के एतबार से इससे भी ज़्यादा बुरा है। वह जिस पर ख़ुदा ने लानत की और जिस पर उसका ग़ज़ब हुआ। और जिनमें से बन्दर और सुअर बना दिए और उन्होंने शैतान की परस्तिश की। ऐसे लोग मक़ाम के एतबार से बदतर और राहेरास्त से बहुत दूर हैं। (57-60)
और जब वे तुम्हारे पास आते हैं तो कहते हैं कि हम ईमान लाए हालांकि वे मुंकिर आए थे और मुंकिर ही चले गए। और अल्लाह खूब जानता है उस चीज़ को जिसे वे छुपा रहे हैं। और तुम उनमें से अक्सर को देखोगे कि वे गुनाह और ज़ुल्म और हराम खाने पर दौड़ते हैं। कैसे बुरे काम हैं जो वे कर रहे हैं। उनके मशाइख़ (संत) और उलमा (विद्वान) उन्हें क्यों नहीं रोकते गुनाह की बात कहने से और हराम खाने से। कैसे बुरे काम हैं जो वे कर रहे हैं। (61-63)
और यहूद कहते हैं कि ख़ुदा के हाथ बंधे हुए हैं। उन्हीं के हाथ बंध जाएं और लानत हो उन्हें इस कहने पर। बल्कि ख़ुदा के दोनों हाथ खुले हुए हैं। वह जिस तरह चाहता है ख़र्च करता है। और तुम्हारे ऊपर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से जो कुछ उतरा है वह उनमें से अक्सर लोगों की सरकशी और इंकार को बढ़ा रहा है। और हमने उनके दर्मियान दुश्मनी और कीना क़ियामत तक के लिए डाल दिया है। जब कभी वे लड़ाई की आग भड़काते हैं तो अल्लाह उसे बुझा देता है। और वे ज़मीन में फ़साद फैलाने में सरगर्म हैं। हालांकि अल्लाह फ़साद बरपा करने वालों को पसंद नहीं करता। और अगर अहले किताब ईमान लाते और अल्लाह से डरते तो हम ज़रूर उनकी बुराइयां उनसे दूर कर देते और उन्हें नेमत के बाग़ों में दाखिल करते। और अगर वे तौरात और इंजील की पाबंदी करते और उसकी जो उन पर उनके रब के तरफ़ से उतारा गया है तो वे खाते अपने ऊपर से और अपने क्रदमों की नीचे से। कुछ लोग उनमें सीधी राह पर हैं। लेकिन ज़्यादा उनमें ऐसे हैं जो बहुत बुरा कर रहे हैं। (64-66)
ऐ पैग़म्बर, जो कुछ तुम्हारे ऊपर तुम्हारे रब की तरफ़ से उतरा है उसे पहुंचा दो। और अगर तुमने ऐसा न किया तो तुमने अल्लाह के पैगाम को नहीं पहुंचाया। और अल्लाह तुम्हें लोगों से बचाएगा। अल्लाह यक्रीनन मुंकिर लोगों को राह नहीं देता। कह दो, ऐ अहले किताब तुम किसी चीज़ पर नहीं जब तक तुम कायम न करो तौरात और इंजील को और उसे जो तुम्हारे ऊपर उतरा है तुम्हारे रब की तरफ़ से। और जो कुछ तुम्हारे ऊपर तुम्हारे रब की तरफ़ से उतारा गया है वह यक्रीनन उनमें से अक्सर की सरकशी और इंकार को बढ़ाएगा। पस तुम इंकार करने वालों के ऊपर अफ़सोस न करो। बेशक जो लोग ईमान लाए और जो लोग यहूदी हुए और साबी और नसरानी, जो शख्स भी ईमान लाए अल्लाह पर और आख़िरत (परलोक) के दिन पर और नेक अमल करे तो उनके लिए न कोई अंदेशा है और न वे ग़मगीन होंगे। हमने बनी इस्राईल से अहद (वचन) लिया और उनकी तरफ़ बहुत से रसूल भेजे। जब कोई रसूल उनके पास ऐसी बात लेकर आया जिसे उनका जी न चाहता था तो कुछ को उन्होंने झुठलाया और कुछ को क़त्ल कर दिया। और ख्याल किया कि कुछ ख़राबी न होगी। पस वे अंधे और बहरे बन गए। फिर अल्लाह ने उन पर तवज्जोह की | फिर उनमें से बहुत से अंधे और बहरे बन गए। और अल्लाह देखता है जो कुछ वे कर रहे हैं। (67-71)
यक़ीनन उन लोगों ने कुफ़ किया जिन्होंने कहा कि ख़ुदा ही तो मसीह इब्ने मरयम है। हालांकि मसीह ने कहा था कि ऐ बनी इस्राईल अल्लाह की इबादत करो जो मेरा रब है और तुम्हारा रब भी। जो शख्स अल्लाह का शरीक ठहराएगा तो अल्लाह ने हराम की उस पर जन्नत और उसका ठिकाना आग है। और ज़ालिमों का कोई मददगार नहीं। यक़ीनन उन लोगों ने कुफ़ किया जिन्होंने कहा कि ख़ुदा तीन में का तीसरा है। हालांकि कोई माबूद (पूज्य) नहीं सिवाए एक माबूद के। और अगर वे बाज न आए उससे जो वे कहते हैं तो उनमें से कुफ़ पर क़ायम रहने वालों को एक दर्दनाक अज़ाब पकड़ लेगा। ये लोग अल्लाह के आगे तौबा क्यों नहीं करते और उससे माफ़ी क्यों नहीं चाहते। और अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है। मसीह इब्ने मरयम तो सिर्फ़ एक रसूल हैं। उनसे पहले भी बहुत रसूल गुज़र चुके हैं। और उनकी मां एक रास्तबाज़ (नेक) ख़ातून थीं। दोनों खाना खाते थे। देखो हम किस तरह उनके सामने दलीलें बयान कर रहे हैं। फिर देखो वे किधर उल्टे चले जा रहे हैं। कहो क्या तुम अल्लाह को छोड़कर ऐसी चीज़ की इबादत करते हो जो न तुम्हारे नुक़्सान का इख़्तियार रखती है और न नफ़ा का। और सुनने वाला और जानने वाला सिर्फ़ अल्लाह ही है। (72-76)
कहो, ऐ अहले किताब अपने दीन में नाहक़ ग़ुलू (अति) न करो और उन लोगों के ख़्यालात की पैरवी न करो जो इससे पहले गुमराह हुए और जिन्होंने बहुत से लोगों को गुमराह किया। और वे सीधी राह से भटक गए। बनी इस्नराईल में से जिन लोगों ने कुफ़ किया उन पर लानत की गई दाऊद और ईसा इब्ने मरयम की ज़बान से | इसलिए कि उन्होंने नाफ़रमानी की और वे हद से आगे बढ़ जाते थे। वे एक दूसरे को मना नहीं करते थे बुराई से जो वे करते थे। निहायत बुरा काम था जो वे कर रहे थे। तुम उनमें बहुत आदमी देखोगे कि कुफ़ करने वालों से दोस्ती रखते हैं। कैसी बुरी चीज़ है जो उन्होंने अपने लिए आगे भेजी है कि ख़ुदा का ग़ज़ब हुआ उन पर और वे हमेशा अज़ाब में पड़े रहेंगे। अगर वे ईमान रखने वाले होते अल्लाह पर और नबी पर और उस पर जो उसकी तरफ़ उतरा तो वे मुंकिरों को दोस्त न बनाते। मगर उनमें अक्सर नाफ़रमान हैं। (77-81)
ईमान वालों के साथ दुश्मनी में तुम सबसे बढ़कर यहूद और मुश्रिकीन को पाओगे। और ईमान वालों के साथ दोस्ती में तुम सबसे ज़्यादा उन लोगों को पाओगे जो अपने को नसारा कहते हैं। यह इसलिए कि उनमें आलिम और राहिब हैं। और इसलिए कि वे तकब्बुर (घमंड) नहीं करते। और जब वे उस कलाम को सुनते हैं जो रसूल पर उतारा गया है तो तुम देखोगे कि उनकी आंखों से आंसू जारी हैं इस सबब से कि उन्होंनें हक़ को पहचान लिया। वे पुकार उठते हैं कि ऐ हमारे रब हम ईमान लाए। पस तू हमें गवाही देने वालों में लिख ले। और हम क्यों न ईमान लाएं अल्लाह पर और उस हक़ पर जो हमें पहुंचा है जबकि हम यह आरज़ू रखते हैं कि हमारा रब हमें सालेह (नेक) लोगों में शामिल करे | पस अल्लाह उन्हें इस क़ौल के बदले में ऐसे बाग़ देगा जिनके नीचे नहरें बहती होंगी वे उनमें हमेशा रहेंगे। और यही बदला है नेक अमल करने वालों का। और जिन्होंने इंकार किया और हमारी निशानियों को झुठलाया तो वही लोग दोज़ख़ वाले हैं। (82-86)
ऐ ईमान वालो, उन सुथरी चीज़ों को हराम न ठहराओ जो अल्लाह ने तुम्हारे लिए हलाल की हैं और हद से न बढ़ो | अल्लाह हद से बढ़ने वालों को पसंद नहीं करता, और अल्लाह ने तुम्हें जो हलाल चीज़ें दी हैं उनमें से खाओ। और अल्लाह से डरो जिस पर तुम ईमान लाए हो। अल्लाह तुमसे तुम्हारी बेमअना क़समों पर गिरफ़्त नहीं करता। मगर जिन क़समों को तुमने मज़बूत बांधा उन पर वह ज़रूर तुम्हारी गिरफ़्त करेगा। ऐसी क़सम का कफ़्फ़ारा (प्रायश्चित) है दस मिस्कीनों को औसत दर्जे का खाना खिलाना जो तुम अपने घर वालों को खिलाते हो या कपड़ा पहना देना या एक गर्दन आज़ाद करना। और जिसे मयस्सर न हो वह तीन दिन के रोज़े रखे। यह कफ़्फ़ारा है तुम्हारी क़समों का जबकि तुम क़सम खा बैठो। और अपनी क़समों की हिफ़ाज़त करो। इस तरह अल्लाह तुम्हारे लिए अपने अहकाम बयान करता है ताकि तुम शुक्र अदा करो। (87-89)
ऐ ईमान वालो, शराब और जुआ और देव-स्थान और पांसे सब गंदे काम हैं शैतान के। पस तुम इनसे बचो ताकि तुम फ़लाह (कल्याण) पाओ। शैतान तो यही चाहता है कि शराब और जुऐ के ज़रिए तुम्हारे दर्मियान दुश्मनी और बुग्ज़ द्वेष) डाल दे और तुम्हें अल्लाह की याद और नमाज़ से रोक दे। तो क्या तुम इनसे बाज़ आओगे। और इताअत करो अल्लाह की और इताअत करो रसूल की और बचो। अगर तुम ऐराज़ (उपेक्षा) करोगे तो जान लो कि हमारे रसूल के ज़िम्मे सिर्फ़ खोल कर पहुंचा देना है। जो लोग ईमान लाए और नेक काम किए उन पर उस चीज़ में कोई गुनाह नहीं जो वे खा चुके। जबकि वे डरे और ईमान लाए और नेक काम किया। फिर डरे और ईमान लाए फिर डरे और नेक काम किया। और अल्लाह नेक काम करने वालों के साथ मुहब्बत रखता है। (90-93)
ऐ ईमान वालो, अल्लाह तुम्हें उस शिकार के ज़रिए से आज़माइश में डालेगा जो बिल्कुल तुम्हारे हाथों और तुम्हारे नेज़ों की ज़द में होगा ताकि अल्लाह जाने की कौन शख्स उससे बिना देखे डरता है। फिर जिसने इसके बाद ज़्यादती की तो उसके लिए दर्दनाक अज़ाब है। ऐ ईमान वालो, शिकार को न मारो जबकि तुम हालते एहराम में हो। और तुममें से जो शख्स उसे जान बूझकर मारे तो इसका बदला उसी तरह का जानवर है जैसा कि उसने मारा है जिसका फ़ैसला तुममें से दो आदिल आदमी करेंगे और यह नज़राना काबा पहुंचाया जाए। या इसके कफ़्फ़ारे (प्रायश्चित) में कुछ मोहताजों को खाना खिलाना होगा। या इसके बराबर रोज़े रखने होंगे, ताकि वह अपने किए की सज़ा चखे। अल्लाह ने माफ़ किया जो कुछ हो चुका। और जो शख्स फिरेगा तो अल्लाह उससे बदला लेगा। और अल्लाह ज़बरदस्त है बदला लेने वाला है। (94-95)
तुम्हारे लिए दरिया का शिकार और उसका खाना जाइज़ किया गया, तुम्हारे फ़ायदे के लिए और क़ाफ़िलों के लिए। और जब तक तुम एहराम में हो ख़ुश्की का शिकार तुम्हारे ऊपर हराम किया गया। और अल्लाह से डरो जिसके पास तुम हाज़िर किए जाओगे। अल्लाह ने काबा, हुरमत वाले घर, को लोगों के लिए क़याम का जरिया बनाया। और हुरमत वाले महीनों को और कुर्बानी के जानवरों को और गले में पट्टा पड़े हुए जानवरों को भी, यह इसलिए कि तुम जानो कि अल्लाह को मालूम है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है। और अल्लाह हर चीज़ से वाक़रिफ़ है। जान लो कि अल्लाह का अज़ाब सख्त है और बेशक अल्लाह बख्शने वाला मेहरबान है। रसूल पर सिर्फ़ पहुंचा देने की ज़िम्मेदारी है। अल्लाह जानता है जो कुछ तुम ज़ाहिर करते हो और जो कुछ तुम छुपाते हो। कहो कि नापाक और पाक बराबर नहीं हो सकते, अगरचे नापाक की अधिकता तुम्हें भली लगे। पस अल्लाह से डरो ऐ अक़्ल वालो, ताकि तुम फ़लाह पाओ। (96-100)
ऐ ईमान वालो, ऐसी बातों के मुतअल्लिक़ सवाल न करो कि अगर वे तुम पर ज़ाहिर कर दी जाएं तो तुम्हें गिरां गुज़रें। और अगर तुम उनके मुतअल्लिक़ सवाल करोगे ऐसे वक़्त में जबकि क़ुरआन उतर रहा है तो वे तुम पर ज़ाहिर कर दी जाएंगी। अल्लाह ने उनसे दरगुज़र किया। और अल्लाह बख्क्षने वाला, तहम्मुल (उदारता) वाला है। ऐसी ही बातें तुमसे पहले एक जमाअत ने पूछीं | फिर वे उनके मुंकिर होकर रह गए। अल्लाह ने बहीरा और साएबा और वसीला और हाम (बुतों के नाम पर छोड़े हुए जानवर) मुक़र्रर नहीं किए। मगर जिन लोगों ने कुफ़ किया वे अल्लाह पर झूठ बांधते हैं और उनमें से अक्सर अक़्ल से काम नहीं लेते। और जब उनसे कहा जाता है कि अल्लाह ने जो कुछ उतारा है उसकी तरफ़ आओ और रसूल की तरफ़ आओ तो वे कहते हैं कि हमारे लिए वही काफ़ी है जिस पर हमने अपने बड़ों को पाया है। क्या अगरचे उनके बड़े न कुछ जानते हों और न हिदायत पर हों। ऐ ईमान वालो, तुम अपनी फ़िक्र रखो। कोई गुमराह हो तो इससे तुम्हारा कुछ नुक़्सान नहीं अगर तुम हिदायत पर हो। तुम सबको अल्लाह के पास लौटकर जाना है फिर वह तुम्हें बता देगा जो कुछ तुम कर रहे थे। (101-105)
ऐ ईमान वालो, तुम्हारे दर्मियान गवाही वसीयत के वक़्त, जबकि तुममें से किसी की मौत का वक़्त आ जाए, इस तरह है कि दो मोतबर (विश्वसनीय) आदमी तुममें से गवाह हों। या अगर तुम सफ़र की हालत में हो और वहां मौत की मुसीबत पेश आ जाए तो तुम्हारे गैरों में से दो गवाह ले लिए जाएं। फिर अगर तुम्हें शुबह हो जाए तो दोनों गवाहों को नमाज़ के बाद रोक लो और वे दोनों ख़ुदा की क़सम खाकर कहें कि हम किसी क़ीमत के ऐवज़ इसे न बेचेंगे चाहे कोई संबंधी ही क्यों न हो। और न हम अल्लाह की गवाही को छुपाएंगे। अगर हम ऐसा करें तो बेशक हम गुनाहगार होंगे। फिर अगर पता चले कि उन दोनों ने कोई हक़तल्फ़ी की है तो उनकी जगह दो और शख्स उन लोगों में से खड़े हों जिनका हक़ पिछले दो गवाहों ने मारना चाहा था। वे ख़ुदा की क़सम खाएं कि हमारी गवाही उन दोनों की गवाही से ज़्यादा बरहक़ है और हमने कोई ज़्यादती नहीं की है। अगर हम ऐसा करें तो हम ज़ालिमों में से होंगे। यह क़रीबतरीन तरीक़ा है कि लोग गवाही ठीक दें। या इससे डरें कि हमारी क़सम उनकी क़सम के बाद उल्टी पड़ेगी। और अल्लाह से डरो और सुनो। अल्लाह नाफ़रमानों को सीधी राह नहीं चलाता। (106-108)
जिस दिन अल्लाह पैग़म्बरों को जमा करेगा फिर पूछेगा तुम्हें क्या जवाब मिला था। वह कहेंगे हमें कुछ इल्म नहीं, छुपी हुई बातों को जानने वाला तू ही है। जब अल्लाह कहेगा ऐ ईसा इब्ने मरयम, मेरी उस नेमत को याद करो जो मैंने तुम पर और तुम्हारी मां पर किया जबकि मैंने रूहे पाक से तुम्हारी मदद की। तुम लोगों से कलाम करते थे गोद में भी और बड़ी उम्र में भी। और जब मैंने तुम्हें किताब और हिक्मत और तौरात और इंजील की तालीम दी। और जब तुम मिट्टी से परिंदे जैसी सूरत मेरे हुक्म से बनाते थे फिर उसमें फूंक मारते थे तो वह मेरे हुक्म से परिंदा बन जाती थी। और तुम अंधे और कोढ़ी को मेरे हुक्म से अच्छा कर देते थे। और जब तुम मुर्दों को मेरे हुक्म से निकाल खड़ा करते थे। और जब मैंने बनी इस्राईल को तुमसे रोका जबकि तुम उनके पास खुली निशानियां लेकर आए तो उनके मुंकिरों ने कहा यह तो बस एक खुला हुआ जादू है। (109-110)
और जब मैंने हवारियों (साथियों) के दिल में डाल दिया कि मुझ पर ईमान लाओ और मेरे रसूल पर ईमान लाओ तो उन्होंने कहा कि हम ईमान लाए और तू गवाह रह कि हम फ़रमांबरदार हैं। जब हवारियों ने कहा कि ऐ ईसा इब्ने मरयम, क्या तुम्हारा रब यह कर सकता है कि हम पर आसमान से एक ख़्वान (भोजन भरा थाल) उतारे। ईसा ने कहा अल्लाह से डरो अगर तुम ईमान वाले हो। उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं कि हम उसमें से खाएं और हमारे दिल मुतमइन (संतुष्ट) हों और हम यह जान लें कि तूने हमसे सच कहा और हम उस पर गवाही देने वाले बन जाएं। ईसा इब्ने मरयम ने दुआ कि ऐ अल्लाह, हमारे रब, तू आसमान से हम पर एक ख़्वान उतार जो हमारे लिए एक ईद बन जाए, हमारे अगलों के लिए और हमारे पिछलों के लिए और तेरी तरफ़ से एक निशानी हो। और हमें अता कर, तू ही बेहतरीन अता करने वाला है। अल्लाह ने कहा मैं यह ख़्वान ज़रूर तुम पर उतारूंगा। फिर इसके बाद तुममें से जो शख्स मुंकिर होगा उसे मैं ऐसी सज़ा दूंगा जो दुनिया में किसी को न दी होगी। (111-115)
और जब अल्लाह पूछेगा कि ऐ ईसा इब्ने मरयम क्या तुमने लोगों से कहा था कि मुझे और मेरी मां को ख़ुदा के सिवा माबूद (पूज्य) बना लो। वह जवाब देंगे कि तू पाक है, मेरा यह काम न था कि मैं वह बात कहूं जिसका मुझे कोई हक़ नहीं। अगर मैंने यह कहा होगा तो तुझे ज़रूर मालूम होगा। तू जानता है जो मेरे जी में है और मैं नहीं जानता जो तेरे जी में है। बेशक तू ही है छुपी बातों का जानने वाला। मैंने उनसे वही बात कही जिसका तूने मुझे हुक्म दिया था। यह कि अल्लाह की इबादत करो जो मेरा रब है और तुम्हारा भी। और मैं उन पर गवाह था जब तक मैं उनमें रहा | फिर जब तूने मुझे उठा लिया तो उन पर तू ही निगरां था और तू हर चीज़ पर गवाह है। अगर तू उन्हें सज़ा दे तो वे तेरे बंदे हैं और अगर तू उन्हें माफ़ कर दे तो तू ही ज़बरदस्त है हिक्मत वाला है। अल्लाह कहेगा कि आज वह दिन है कि सच्चों को उनका सच काम आएगा। उनके लिए बाग़ हैं जिनके नीचे नहरें बह रही हैं। उनमें वे हमेशा रहेंगे। अल्लाह उनसे राज़ी हुआ और वे अल्लाह से राज़ी हुए। यही है बड़ी कामयाबी। आसमानों और ज़मीन में और जो कुछ उनमें है सबकी बादशाही अल्लाह ही के लिए है और वह हर चीज़ पर क़ादिर है। (116-120)