धर्म

सूरह निसा – अन-निसा (सूरह 4)

सूरह निसा कुरान शरीफ का चौथा सूरा है जिसमें 176 आयतें हैं। यह सूरह मदनी है। यूँ तो सूरह निसा (Surah An Nisa) चौथा सूरह है, लेकिन इस्लामिक परंपरा के वर्गीकरण के अनुसार यह सौवाँ है। इसमें सामाजिक मुद्दों और नियमों पर चर्चा की गयी है। मान्यता है कि यदि पति-पत्नी के बीच कोई गलतफहमी हो जाए तो लगातार सात दिनों तक प्रतिदिन एक बार सूरह निसा पढ़ना चाहिए। ऐसा करने से उनके बीच की गलतफहमियाँ दूर हो जाती हैं और आपसी प्यार और भी अधिक मजबूत हो जाता है। सात ही यह भी मान्यता है कि अगर सूरह निसा के नक्श को घर की किसी दीवार पर टांग दिया जाए तो वह घर हर तरह के खतरे से सुरक्षित हो जाता है। आइए, पढ़ते हैं सूरा निसा हिंदी में।

शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।

ऐ लोगो अपने रब से डरो जिसने तुम्हें एक जान से पैदा किया और उसी से उसका जोड़ा पैदा किया और इन दोनों से बहुत से मर्द और औरतें फैला दीं। और अल्लाह से डरो जिसके वास्ते से तुम एक दूसरे से सवाल करते हो और ख़बरदार रहो संबंधियों से। बेशक अल्लाह तुम्हारी निगरानी कर रहा है। और यतीमों का माल उनके हवाले करो। और बुरे माल को अच्छे माल से न बदलो और उनके माल अपने माल के साथ मिलाकर न खाओ। यह बहुत बड़ा गुनाह है। और अगर तुम्हें अंदेशा हो कि तुम यतीमों के मामले में इंसाफ़ न कर सकोगे तो औरतों में से जो तुम्हें पसंद हों उन से दो-दो, तीन-तीन, चार-चार तक निकाह कर लो। और अगर तुम्हें अंदेशा हो कि तुम अद्ल (न्याय) न कर सकोगे तो एक ही निकाह करो या जो कनीज़ (दासी) तुम्हारे अधीन हो। इसमें उम्मीद है कि तुम इंसाफ़ से न हटोगे। और औरतों को उनके महर ख़ुशदिली के साथ अदा करो। फिर अगर वे इसमें से कुछ तुम्हारे लिए छोड़ दें अपनी ख़ुशी से तो तुम उसे हंसी-ख़ुशी से खाओ। (1-4)

और नादानों को अपना वह माल न दो जिसे अल्लाह ने तुम्हारे लिए क्रियाम का ज़रिया बनाया है और इस माल में से उन्हें खिलाओ और पहनाओ और उनसे भलाई की बात कहो। और यतीमों को जांचते रहो, यहां तक कि जब वे निकाह की उम्र को पहुंच जाएं तो अगर उनमें होशियारी देखो तो उनका माल उनके हवाले कर दो। और उनका माल अनुचित तरीक़े से और इस ख्याल से कि वे बड़े हो जाऐंगे न खा जाओ। और जिसे हाजत न हो वह यतीम के माल से परहेज़ करे और जो शख्स मोहताज हो वह दस्तूर के मुवाफ़िक़ खाए। फिर जब तुम उनका माल उनके हवाले करो तो उन पर गवाह ठहरा लो और अल्लाह हिसाब लेने के लिए काफ़ी है। मां-बाप और रिश्तेदारों के तरके (छोड़ी हुई सम्पत्ति) में से मर्दों का भी हिस्सा है। और मां-बाप और रिश्तेदारों के तरके में से औरतों का भी हिस्सा है, थोड़ा हो या ज़्यादा हो, एक मुक़र्रर किया हुआ हिस्सा। और अगर तक़्सीम के वक़्त रिश्तेदार और यतीम और मोहताज मौजूद हों तो इसमें से उन्हें भी कुछ दो और उनसे हमदर्दी की बात कहो। और ऐसे लोगों को डरना चाहिए कि अगर वे अपने पीछे कमज़ोर बच्चे छोड़ जाते तो उन्हें उनकी बहुत फ़िक्र रहती। पस उन्हें चाहिए कि अल्लाह से डरें और बात पक्की कहें। जो लोग यतीमों का माल नाहक़ खाते हैं वे लोग अपने पेटों में आग भर रहे हैं और वे जल्द ही भड़कती हुई आग में डाले जाऐँगे। (5-10)

अल्लाह तुम्हें तुम्हारी औलाद के बारे में हुक्म देता है कि मर्द का हिस्सा दो औरतों के बराबर है। अगर औरतें दो से ज़्यादा हैं तो उनके लिए दो तिहाई है उस माल से जो मूरिस (विरासत छोड़ने वाला) छोड़ गया है और अगर वह अकेली है तो उसके लिए आधा है। और मय्यत के मां-बाप को दोनों में से हर एक के लिए छठा हिस्सा है उस माल का जो वह छोड़ गया है बशर्ते कि मूरिस के औलाद हो। और अगर मूरिस की औलाद न हो और उसके मां-बाप उसके वारिस हों तो उसकी मां का तिहाई है और अगर उसके भाई बहिन हों तो उसकी मां के लिए छठा हिस्सा है। ये हिस्से वसीयत निकालने के बाद या क़र्ज़ की अदायगी के बाद हैं जो वह कर जाता है। तुम्हारे बाप हों या तुम्हारे बेटे हों, तुम नहीं जानते कि उनमें तुम्हारे लिए सबसे ज़्यादा नफ़ा देने वाला कौन है। यह अल्लाह का ठहराया हुआ फ़रीज़ा है। बेशक अल्लाह इल्म वाला, हिक्मत वाला है। और तुम्हारे लिए उस माल का आधा हिस्सा है जो तुम्हारी बीवियां छोड़ें, बशर्ते कि उनके औलाद न हो। और अगर उनके औलाद हो तो तुम्हारे लिए बीवियों के तरके का चौथाई है वसीयत निकालने के बाद जिसकी वे वसीयत कर जाएं या कर्ज़ की अदायगी के बाद। और उन बीवियों के लिए चौथाई है तुम्हारे तरके का अगर तुम्हारे औलाद नहीं है, और अगर तुम्हारे औलाद है तो उनके लिए आठवां हिस्सा है तुम्हारे तरके का वसीयत निकालने के बाद जिसकी तुम वसीयत कर जाओ या कर्ज़ की अदायगी के बाद। और अगर कोई मूरिस मर्द या औरत ऐसा हो जिसके न औलाद हो और न मां-बाप ज़िंदा हों, और उसके एक भाई या एक बहिन हो तो दोनों में से हर एक के लिए छठा हिस्सा है। और अगर वे इससे ज़्यादा हों तो वे एक तिहाई में शरीक होंगे वसीयत निकालने के बाद जिसकी वसीयत की गयी हो या क़र्ज़ की अदायगी के बाद, बगैर किसी को नुक़्सान पहुंचाए। यह हुक्म अल्लाह की तरफ़ से है और अल्लाह अलीम व हलीम है। ये अल्लाह की ठहराई हुई हदें  हैं। और जो शख्स अल्लाह और उसके रसूल की इताअत करेगा अल्लाह उसे ऐसे बाग़ों में दाख़िल करेगा जिनके नीचे नहरें बहती होंगी, उनमें वे हमेशा रहेंगे और यही बड़ी कामयाबी है। और जो शख्स अल्लाह और उसके रसूल की नाफ़रमानी करेगा और उसके मुक़र्रर किए हुए ज़ाब्तों (नियमों) से बाहर निकल जाएगा उसे वह आग में दाख़िल करेगा जिसमें वह हमेशा रहेगा और उसके लिए ज़िल्लत वाला अज़ाब है। (11-14)

और तुम्हारी औरतों में से जो कोई बदकारी करे तो उन पर अपनों में से चार मर्द गवाह करो। फिर अगर वे गवाही दे दें तो इन औरतों को घरों के अंदर बंद रखो, यहां तक कि उन्हें मौत उठा ले या अल्लाह उनके लिए कोई राह निकाल दे। और तुममें से दो मर्द जो वही बदकारी करें तो उन्हें अज़ियत (यातना) पहुंचाओ। फिर अगर वे दोनों तौबा करें और अपनी इस्लाह कर लें तो उनका ख़्याल छोड़ दो। बेशक अल्लाह तौबा क़ुबूल करने वाला मेहरबान है। तौबा जिसे क़ुबूल करना अल्लाह के ज़िम्मे है वह उन लोगों की है जो बुरी हरकत नादानी से कर बैठते हैं, फिर जल्द ही तौबा कर लेते हैं। वही हैं जिनकी तौबा अल्लाह क़ुबूल करता है और अल्लाह जानने वाला हिक्मत वाला है। और ऐसे लोगों की तौबा नहीं है जो बराबर गुनाह करते रहें, यहां तक कि जब मौत उनमें से किसी के सामने आ जाए तब वह कहे कि अब मैं तौबा करता हूं, और न उन लोगों की तौबा है जो इस हाल में मरते हैं कि वे मुंकिर हैं, उनके लिए तो हमने दर्दनाक अज़ाब तैयार कर रखा है। (15-18)

ऐ ईमान वालो तुम्हारे लिए जाइज़ नहीं कि तुम औरतों को ज़बरदस्ती अपनी मीरास में ले लो और न उन्हें इस ग़रज़ से रोके रखो कि तुमने जो कुछ उन्हें दिया है उसका कुछ हिस्सा उनसे ले लो मगर इस सूरत में कि वे खुली हुई बेहयाई करें। और उनके साथ अच्छी तरह गुज़र-बसर करो। अगर वे तुम्हें नापसंद हों तो हो सकता है कि एक चीज़ तुम्हें पसंद न हो मगर अल्लाह ने इसमें तुम्हारे लिए बहुत बड़ी भलाई रख दी हो। और अगर तुम एक बीवी की जगह दूसरी बीवी बदलना चाहो और तुम उसे बहुत सा माल दे चुके हो तो तुम उसमें से कुछ वापस न लो। क्या तुम इसे बोहतान (आक्षेप) लगाकर और सरीह ज़ुल्म करके वापस लोगे। और तुम किस तरह उसे लोगे जबकि एक दूसरे से ख़तवत कर चुका है और वे तुमसे पुख्ता अहद ले चुकी हैं। और उन औरतों से निकाह मत करो जिनसे तुम्हारे बाप निकाह कर चुके हैं, मगर जो पहले हो चुका। बेशक यह बेहयाई है और नफ़रत की बात है और बहुत बुरा तरीक़ा है। (19-22)

तुम्हारे ऊपर हराम की गईं तुम्हारी माएं, तुम्हारी बेटियां, तुम्हारी बहिनें, तुम्हारी फूफियां, तुम्हारी ख़ालाएं, तुम्हारी भतीजियां और भांजियां और तुम्हारी वे माएं जिन्होंने तुम्हें दूध पिलाया, तुम्हारी दूध शरीक बहिनें, तुम्हारी औरतों की माएं और उनकी बेटियां जो तुम्हारी परवरिश में हैं जो तुम्हारी उन बीवियों से हों जिनसे तुमने सोहबत की है, लेकिन अगर अभी तुमने उनसे सोहबत न की हो तो तुम पर कोई गुनाह नहीं। और तुम्हारे सुलबी (तुमसे पैदा) बेटों की बीवियां और यह कि तुम इकट्ठा करो दो बहिनों को मगर जो पहले हो चुका। बेशक अल्लाह बख्शने वाला मेहरबान है। और वे औरतें भी हराम हैं जो किसी दूसरे के निकाह में हों मगर यह कि वे जंग में तुम्हारे हाथ आएं। यह अल्लाह का हुक्म है तुम्हारे ऊपर। इनके अलावा जो औरतें हैं वे सब तुम्हारे लिए हलाल हैं बशर्ते कि तुम अपने माल के ज़रिए से उनके तालिब बनो, उनसे निकाह करके न कि बदकारी के तौर पर। फिर उन औरतों में से जिन्हें तुम काम में लाए उन्हें उनको तैशुदा महर दे दो। और महर के ठहराने के बाद जो तुमने आपस में राज़ीनामा किया हो तो इसमें कोई गुनाह नहीं। बेशक अल्लाह जानने वाला हिक्मत वाला है। और तुममें से जो शख्स सामर्थ्य न रखता हो कि आज़ाद मुसलमान औरतों से निकाह कर सके तो उसे चाहिए कि वह तुम्हारी उन कनीज़ों (दासियों) में से किसी के साथ निकाह कर ले जो तुम्हारे क़ब्ज़े में हों और मोमिना हों। अल्लाह तुम्हारे ईमान को खूब जानता है, तुम आपस में एक हो। पस उनके मालिकों की इजाज़त से उनसे निकाह कर लो और मारूफ़ तरीक़े से उनके महर अदा कर दो, इस तरह कि उनसे निकाह किया जाए न कि आज़ाद शहवतरानी करें और चोरी छुपे आशनाइयां करें। फिर जब वे निकाह के बंधन में आ जाएं और इसके बाद वे बदकारी करें तो आज़ाद औरतों के लिए जो सज़ा है उसकी आधी सज़ा इन पर है। यह उसके लिए है जो तुममें से बदकारी का अंदेशा रखता हो। और अगर तुम ज़ब्त (संयम) से काम लो तो यह तुम्हारे लिए ज़्यादा बेहतर है, और अल्लाह बख्शने वाला रहम करने वाला है। (23-25)

अल्लाह चाहता है कि तुम्हारे वास्ते बयान करे और तुम्हें उन लोगों के तरीक़ों की हिदायत दे जो तुमसे पहले गुज़र चुके हैं और तुम पर तवज्जोह करे, अल्लाह जानने वाला हिक्मत वाला है। और अल्लाह चाहता है कि तुम्हारे ऊपर तवज्जोह करे और जो लोग अपनी ख़्वाहिशों की पैरवी कर रहे हैं वे चाहते हैं कि तुम राहेरास्‍्त से बहुत दूर निकल जाओ। अल्लाह चाहता है कि तुम से बोझ को हल्का करे और इंसान कमज़ोर बनाया गया है। (26-28)

ऐ ईमान वालो, आपस में एक-दूसरे का माल नाहक़ तौर पर न खाओ। मगर यह कि तिजार्त हो आपस की ख़ुशी से। और ख़ून न करो आपस में। बेशक अल्लाह तुम्हारे ऊपर बड़ा मेहरबान है। और जो शख्स सरकशी और ज़ुल्म से ऐसा करेगा उसे हम ज़रूर आग में डालेंगे और यह अल्लाह के लिए आसान है। अगर तुम उन बड़े गुनाहों से बचते रहे जिनसे तुम्हें मना किया गया है तो हम तुम्हारी छोटी बुराइयों को माफ़ कर देंगे और तुम्हें इज़नत की जगह दाख़िल करेंगे। और तुम ऐसी चीज़ की तमन्ना न करो जिसमें अल्लाह ने तुममें से एक को दूसरे पर बड़ाई दी है। मर्दों के लिए हिस्सा है अपनी कमाई का और औरतों के लिए हिस्सा है अपनी कमाई का। और अल्लाह से उसका फ़ज़्ल मांगो। बेशक अल्लाह हर चीज़ का इल्म रखता है। और हमने वालिदेन और रिश्तेदारों के छोड़े हुए में से हर एक के लिए वारिस ठहरा दिए हैं और जिनसे तुमने अहद बांध रखा हो तो उन्हें उनका हिस्सा दे दो, बेशक अल्लाह के रूबरू है हर चीज़। (29-33)

मर्द औरतों के ऊपर क्व्वाम (प्रमुख) हैं। इस कारण कि अल्लाह ने एक को दूसरे पर बड़ाई दी है और इस कारण कि मर्द ने अपने माल ख़र्च किए। पस जो नेक औरतें हैं वे फ़रमांबरदारी करने वाली, पीठ पीछे निगहबानी करती हैं अल्लाह की हिफ़ाज़त से। और जिन औरतों से तुम्हें सरकशी का अंदेशा हो उन्हें समझाओ और उन्हें उनके बिस्तरों में तंहा छोड़ दो और उन्हें सज़ा दो। पस अगर वे तुम्हारी इताअत करें तो उनके ख़िलाफ़ इल्ज़ाम की राह न तलाश करो। बेशक अल्लाह सबसे ऊपर है, बहुत बड़ा है। और अगर तुम्हें मियां-बीवी के दर्मियान तअल्लुक़ात बिगड़ने का अंदेशा हो तो एक मुंसिफ़ मर्द के रिश्तेदारों में से खड़ा करो और एक मुंसिफ़ औरत के रिश्तेदारों में से खड़ा करो। अगर दोनों इस्लाह चाहेंगे तो अल्लाह उनके दर्मियान मुवाफ़िक्रत कर देगा। बेशक अल्लाह सब कुछ जानने वाला ख़बरदार है। (34-35)

और अल्लाह की इबादत करो और किसी चीज़ को उसका शरीक न बनाओ। और अच्छा सुलूक करो मां-बाप के साथ और रिश्तेदारों के साथ और यतीमों और मिस्कीनों और रिश्तेदार पड़ोसी और अजनबी पड़ौसी और पास बैठने वाले और मुसाफ़िर के साथ और ममलूक (अधीन) के साथ | बेशक अल्लाह पसंद नहीं करता इतराने वाले बड़ाई करने वाले को जोकि कंजूसी करते हैं और दूसरों को भी कंजूसी सिखाते हैं और जो कुछ उन्हें अल्लाह ने अपने फ़ज़्ल से दे रखा है उसे छुपाते हैं। और हमने मुंकिरों के लिए ज़िल्लत का अज़ाब तैयार कर रखा है। और जो लोग अपना माल लोगों को दिखाने के लिए ख़र्च करते हैं और अल्लाह पर और आख़िरत के दिन पर ईमान नहीं रखते, और जिसका साथी शैतान बन जाए तो वह बहुत बुरा साथी है। उनका क्या नुक़्सान था अगर वे अल्लाह पर और आख़िरत के दिन पर ईमान लाते और अल्लाह ने जो कुछ उन्हें दे रखा है उसमें

से खर्च करते। और अल्लाह उनसे अच्छी तरह बाख़बर है। बेशक अल्लाह ज़रा भी किसी की हक़तलफ़ी नहीं करेगा। अगर नेकी हो तो वह उसे दुगना बढ़ा देता है और अपने पास से बहुत बड़ा सवाब देता है। (36-40)

फिर उस वक़्त क्या हाल होगा जब हम हर उम्मत में से एक गवाह लाऐंगे और तुम्हें उन लोगों के ऊपर गवाह बनाकर खड़ा करेंगे। वे लोग जिन्होंने इंकार किया और पैग़म्बर की नाफ़रमानी की उस दिन तमन्ना करेंगे कि काश ज़मीन उन पर बराबर कर दी जाए, और वे अल्लाह से कोई बात न छुपा सकेंगे। ऐ ईमान वालो, नज़दीक न जाओ नमाज़ के जिस वक़्त कि तुम नशे में हो यहां तक कि समझने लगो जो तुम कहते हो, और न उस वक़्त कि ग़ुस्ल॒ की हाजत हो मगर राह चलते हुए, यहां तक कि गुस्ल॒ कर लो। और अगर तुम मरीज़ हो या सफ़र में हो या तुममें से कोई शौच से आए या तुम औरतों के पास गए हो फिर तुम्हें पानी न मिले तो तुम पाक मिट्टी से तयम्मुम कर लो और अपने चेहरे और हाथों का मसह कर लो, बेशक अल्लाह माफ़ करने वाला बख़्शने वाला है। (41-43)

क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जिन्हें किताब से हिस्सा मिला था। वे गुमराही को मोल ले रहे हैं और चाहते हैं कि तुम भी राह से भटक जाओ। अल्लाह तुम्हारे दुश्मनों को ख़ूब जानता है। और अल्लाह काफ़ी है हिमायत के लिए और अल्लाह काफ़ी है मदद के लिए। यहूद में से एक गिरोह बात को उसके ठिकाने से हटा देता है और कहता है कि हमने सुना और न माना। और कहते हैं कि सुनो और तुम्हें सुनवाया न जाए। वे अपनी ज़बान को मोड़ कर कहते हैं राइना, दीन में ऐब लगाने के लिए। और अगर वे कहते कि हमने सुना और माना, और सुनो और हम पर नज़र करो तो यह उनके हक़ में ज़्यादा बेहतर और दुरुस्त होता। मगर अल्लाह ने उनके इंकार के सबब से उन पर लानत कर दी है। पस वे ईमान न लाऐंगे मगर बहुत कम | ऐ वे लोगो जिन्हें किताब दी गई उस पर ईमान लाओ जो हमने उतारा है, तस्दीक़ करने वाली उस किताब की जो तुम्हारे पास है, इससे पहले कि हम चेहरों को मिटा दें और फिर उन्हें उलट दें पीठ की तरफ़ या उन पर लानत करें जैसे हमने लानत की सब्त वालों पर। और अल्लाह का हुक्म पूरा होकर रहता है। बेशक अल्लाह इसे नहीं बख़्शेगा कि उसके साथ शिर्क किया जाए। लेकिन इसके अलावा जो कुछ है उसे जिसके लिए चाहेगा बख्श देगा। और जिसने अल्लाह का शरीक ठहराया उसने बड़ा तूफ़ान बांधा। क्‍या तुमने देखा उन्हें जो अपने आपको पाकीज़ा कहते हैं। बल्कि अल्लाह ही पाक करता है जिसे चाहता है, और उन पर ज़रा भी ज़ुल्म न होगा। देखो, ये अल्लाह पर कैसा झूठ बांध रहे हैं और सरीह गुनाह होने के लिए यही काफ़ी है। (44-50)

क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जिन्हें किताब से हिस्सा मिला था, वे जिब्त (झूठी चीज़ों) और ताग्रूत को मानते हैं और मुंकिरों के बारे में कहते हैं कि वे ईमान वालों से ज़्यादा सही रास्ते पर हैं। यही लोग हैं जिन पर अल्लाह ने लानत की है और जिस पर अल्लाह लानत करे तुम उसका कोई मददगार न पाओगे। क्या ख़ुदा के इक़्तेदार [संप्रभुत्व) में कुछ इनका भी दखल है। फिर तो ये लोगों को एक तिल बराबर भी न दें। क्‍या ये लोगों पर हसद कर रहे हैं इस सबब कि अल्लाह ने उन्हें अपने फ़ज़्ल से दिया है। पस हमने आले इब्राहीम को किताब और हिक्मत दी है और हमने उन्हें एक बड़ी सल्तनत भी दे दी। उनमें से किसी ने इसे माना और कोई इससे रुका रहा और ऐसों के लिए जहन्नम की भड़कती हुई आग काफ़ी है। बेशक जिन लोगों ने हमारी निशानियों का इंकार किया उन्हें हम सख्त आग में डालेंगे। जब उनके जिस्म की खाल जल जाएगी तो हम उनकी खाल को बदल कर दूसरी कर देंगे ताकि वे अज़ाब चखते रहें। बेशक अल्लाह ज़बरदस्त है हिक्मत वाला है। और जो लोग ईमान लाए और नेक काम किए उन्हें हम बाग़ों में दाख़िल करेंगे जिनके नीचे नहरें बहती होंगी, उसमें वे हमेशा रहेंगे, वहां उनके लिए सुथरी बीवियां होंगी और उन्हें हम घनी छांव में रखेंगे। (51-57)

अल्लाह तुम्हें हुक्म देता है कि अमानतें उनके हक़दारों को पहुंचा दों। और जब लोगों के दर्मियान फ़ैसला करो तो इंसाफ़ के साथ फ़ैसला करो। अल्लाह अच्छी नसीहत करता है तुम्हें, बेशक अल्लाह सुनने वाला, देखने वाला है। ऐ ईमान वालो, अल्लाह की इताअत (आज्ञापालन) करो और रसूल की इताअत करो और अपने में अहले इख़्तियार की इताअत करो। फिर अगर तुम्हारे दर्मियान किसी चीज़ में इख्तेलाफ़ (मतभेद) हो जाए तो उसे अल्लाह और रसूल की तरफ़ लौटाओ, अगर तुम अल्लाह पर और आख़िरत के दिन पर ईमान रखते हो। यह बात अच्छी है और इसका अंजाम बेहतर है। कया तुमने उन लोगों को नहीं देखा जो दावा करते हैं कि वे ईमान लाए हैं उस पर जो उतारा गया है तुम्हारी तरफ़ और जो उतारा गया है तुमसे पहले, वे चाहते हैं कि विवाद ले जाएं शैतान की तरफ़, हालांकि उन्हें हुक्म हो चुका है कि उसे न मानें और शैतान चाहता है कि उन्हें बहका कर बहुत दूर डाल दे। और जब उनसे कहा जाता है कि आओ अल्लाह की उतारी हुई किताब की तरफ़ और रसूल की तरफ़ तो तुम देखोगे कि मुनाफ़िक्रीन (पाखंडी) तुमसे कतरा जाते हैं। फिर उस वक़्त क्या होगा जब उनके अपने हाथों की लाई हुई मुसीबत उन पर पहुंचेगी, उस वक़्त ये तुम्हारे पास क़समें खाते हुए आएंगे कि ख़ुदा की क़सम हमें तो सिर्फ़ भलाई और मिलाप से ग़रज़ थी। उनके दिलों में जो कुछ है अल्लाह उससे ख़ूब वाक़िफ़ है। पस तुम उनसे एराज़ (उपेक्षा) करो और उन्हें नसीहत करों और उनसे ऐसी बात कहो जो उनके दिलों में उतर जाए। (58-63) 

और हमने जो रसूल भेजा इसीलिए भेजा कि अल्लाह के हुक्म से उसकी इताअत (आज्ञापालन) की जाए। और अगर वे जबकि उन्होंने अपना बुरा किया था, तुम्हरे पास आते और अल्लाह से माफ़ी चाहते और रसूल भी उनके लिए माफ़ी चाहता तो यक्रीनन वे अल्लाह को बख्शने वाला रहम करने वाला पाते। पस तेरे रब की क़सम वे कभी ईमान वाले नहीं हो सकते जब तक वे अपने आपसी झगड़े में तुम्हें फ़ैलला करने वाला न मान लें। फिर जो फ़ैसला तुम करो उस पर अपने दिलों में कोई तंगी न पाएं और उसे ख़ुशी से क़ुबूल कर लें। और अगर हम उन्हें हुक्म देते कि अपने आपको हलाक करो या अपने घरों से निकलो तो उनमें से थोड़े ही इस पर अमल करते। और अगर ये लोग वह करते जिसकी उन्हें नसीहत की जाती है तो उनके लिए यह बात बेहतर और ईमान पर साबित रखने वाली होती। और उस वक़्त हम उन्हें अपने पास से बड़ा अज्र देते और उन्हें सीधा रास्ता दिखाते। और जो अल्लाह और रसूल की इताअत करेगा वह उन लोगों के साथ होगा जिन पर अल्लाह ने इनाम किया, यानी पैग़म्बर और सिद्दीक़ और शहीद और सालेह। कैसी अच्छी है उनकी रिफ्राक़त। यह फ़ज़्ल है अल्लाह की तरफ़ से और अल्लाह का इल्म काफ़ी है। (64-70)

ऐ ईमान वालो अपनी एहतियात कर लो फिर निकलो जुदा-जुदा या इकटूठे होकर। और तुममें कोई ऐसा भी है जो देर लगा देता है। फिर अगर तुम्हें कोई मुसीबत पहुंचे तो वह कहता है कि अल्लाह ने मुझ पर इनाम किया कि मैं उनके साथ न था। और अगर तुम्हें अल्लाह का कोई फ़ज़्ल हासिल हो तो कहता है, गोया तुम्हारे और उसके दर्मियान कोई मुहब्बत का रिश्ता ही नहीं-कि काश मैं भी उनके साथ होता तो बड़ी कामयाबी हासिल करता। पस चाहिए कि लड़ें अल्लाह की राह में वे लोग जो आख़िरत के बदले दुनिया की ज़िंदगी को बेच देते हैं। और जो शख्स अल्लाह की राह में लड़े, फिर मारा जाए या ग़ालिब हो तो हम उसे बड़ा अज् देंगे। और तुम्हें क्या हुआ कि तुम नहीं लड़ते अल्लाह की राह में और उन कमज़ोर मर्दों और औरतों और बच्चों के लिए जो कहते हैं कि ख़ुदाया हमें इस बस्ती से निकाल जिसके बाशिंदे ज़ालिम हैं और हमारे लिए अपने पास से कोई हिमायती पैदा कर दे और हमारे लिए अपने पास से कोई मददगार खड़ा कर दे। जो लोग ईमान वाले हैं वे अल्लाह की राह में लड़ते हैं और जो मुंकिर हैं वे शैतान की राह में लड़ते हैं। पस तुम शैतान के साथियों से लड़ो। बेशक शैतान की चाल बहुत कमज़ोर है। (71-76)

क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जिनसे कहा गया था कि अपने हाथ रोके रखो और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात दो। फिर जब उन्हें लड़ाई का हुक्म दिया गया तो उनमें से एक गिरोह इंसानों से ऐसा डरने लगा जैसे अल्लाह से डरना चाहिए या इससे भी ज़्यादा। वे कहते हैं ऐ हमारे रब, तूने हम पर लड़ाई क्यों फ़र्ज़ कर दी। क्यों न छोड़े रखा हमें थोड़ी मुदूदगत तक। कह दो कि दुनिया का फ़ायदा थोड़ा है और आख़िरत बेहतर है उसके लिए जो परहेज़गारी करे, और तुम्हारे साथ ज़रा भी ज़ुल्म न होगा। और तुम जहां भी होगे मौत तुम्हें पा लेगी अगरचे तुम मज़बूत क़िलों में हो। अगर उन्हें कोई भलाई पहुंचती है तो कहते हैं कि यह ख़ुदा की तरफ़ से है और अगर उन्हें कोई बुराई पहुंचती है तो कहते हैं कि यह तुम्हारे सबब से है। कह दो कि सब कुछ अल्लाह की तरफ़ से है। इन लोगों का क्‍या हाल है कि लगता है कि कोई बात ही नहीं समझते। तुम्हें जो भलाई भी पहुंचती है ख़ुदा की तरफ़ से पहुंचती है और तुम्हें जो बुराई पहुंचती है वह तुम्हारे अपने ही सबब से है। और हमने तुम्हें इंसानों की तरफ़ पैग़म्बर बना कर भेजा है और अल्लाह की गवाही काफ़ी है। (77-79)

जिसने रसूल की इताअत की उसने अल्लाह की इताअत की और जो उल्टा फिरा तो हमने उन पर तुम्हें निगरां बना कर नहीं भेजा है ओर ये लोग कहते हैं कि हमें क़ुबूल है। फिर जब तुम्हारे पास से निकलते हैं तो उनमें से एक गिरोह उसके ख़िलाफ़ मश्विरा करता है जो वह कह चुका था। और अल्लाह उनकी सरगेशियों (कुकृत्यों) को लिख रहा है। पस तुम उनसे एराज़ (उपेक्षा) करो और अल्लाह पर भरोसा रखो, और अल्लाह भरोसे के लिए काफ़ी है। कया ये लोग क़ुरआन पर ग़ौर नहीं करते, अगर यह अल्लाह के सिवा किसी और की तरफ़ से होता तो वे इसके अंदर बड़ा इख्तेलाफ़ (मतभेद) पाते। और जब उन्हें कोई बात अम्न या ख़ौफ़ की पहुंचती है तो वह उसे फैला देते हैं। और अगर वे उसे रसूल तक या अपने ज़िम्मेदार लोगों तक पहुंचाते तो उनमें से जो लोग तहक़ीक़ करने वाले हैं वे उसकी हक़ीक़त जान लेते। और अगर तुम पर अल्लाह का फ़ज़्ल और उसकी रहमत न होती तो थोड़े लोगों के सिवा तुम सब शैतान के पीछे लग जाते। (80-83)

पस लड़ो अल्लाह की राह में। तुम पर अपनी जान के सिवा किसी की ज़िम्मेदारी नहीं और मुसलमानों को उभारो। उम्मीद है कि अल्लाह मुंकिरों का ज़ोर तोड़ दे और अल्लाह बड़ा ज़ोर वाला और बहुत सख्त सज़ा देने वाला है। जो शख्स किसी अच्छी बात के हक़ में कहेगा उसके लिए उसमें से हिस्सा है और जो इसके विरोध में कहेगा उसके लिए उसमें से हिस्सा है और अल्लाह हर चीज़ पर क्रुदरत रखने वाला है। और जब कोई तुम्हें दुआ दे तो तुम भी दुआ दो उससे बेहतर या उलट कर वही कह दो, बेशक अल्लाह हर चीज़ का हिसाब लेने वाला है। अल्लाह ही माबूद है, उसके सिवा कोई माबूद (पूज्य) नहीं। वह तुम सब को क़ियामत के दिन जमा करेगा जिसके आने में कोई शुबह नहीं। और अल्लाह की बात से बढ़कर सच्ची बात और किसकी हो सकती है। (84-87)

फिर तुम्हें क्या हुआ है कि तुम मुनाफ़िक़ों (पाखंडियों) के मामले में दो गिरोह हो रहे हो। हालांकि अल्लाह ने उनके आमाल के सबब से उन्हें उल्टा फेर दिया है। कया तुम चाहते हो कि उन्हें राह पर लाओ जिन्हें अल्लाह ने गुमराह कर दिया है। और जिसे अल्लाह गुमराह कर दे तुम हरगिज़ उसके लिए कोई राह नहीं पा सकते। वे चाहते हैं कि जिस तरह उन्होंने इंकार किया है तुम भी इंकार करो ताकि तुम सब बराबर हो जाओ। पस तुम उनमें से किसी को दोस्त न बनाओ जब तक वे अल्लाह की राह में हिजरत न करें। फिर अगर वे इसे क़ुबूल न करें तो उन्हें पकड़ो और जहां कहीं उन्हें पाओ उनको क़त्ल करो और उनमें से किसी को साथी और मददगार न बनाओ। मगर वे लोग जिनका तअल्लुक़ किसी ऐसी क़ौम से हो जिनके साथ तुम्हारा समझौता है। या वे लोग जो तुम्हारे पास इस हाल में आएं कि उनके सीने तंग हो रहे हैं तुम्हारी लड़ाई से और अपनी क्रौम की लड़ाई से। और अगर अल्लाह चाहता तो उन्हें तुम पर ज़ोर दे देता तो वे ज़रूर तुमसे लड़ते। पस अगर वे तुम्हें छोड़े रहें और तुमसे जंग न करें और तुम्हारे साथ सुलह का रवैया रखें तो अल्लाह तुम्हें भी उनके ख़िलाफ़ किसी इक़दाम की इजाज़त नहीं देता। दूसरे कुछ ऐसे लोगों को भी तुम पाओगे जो चाहते हैं कि तुमसे भी अम्न में रहें और अपनी क़ौम से भी अम्न में रहें। जब कभी वे फ़ितने का मौक़ा पाएं वे उसमें कूद पड़ते हैं। ऐसे लोग अगर तुमसे यकसू न रहें और तुम्हारे साथ सुलह का रवैया न रखें और अपने हाथ न रोकें तो तुम उन्हें पकड़ो और उन्हें क़त्ल करो जहां कहीं पाओ। ये लोग हैं जिनके ख़िलाफ़ हमने तुम्हें खुली हुज्जत दी है। (88-91)

और मुसलमान का काम नहीं कि वह मुसलमान को क़त्ल करे मगर यह कि ग़लती से ऐसा हो जाए। और जो शख्स किसी मुसलमान को ग़लती से क़त्ल कर दे तो वह एक मुसलमान गुलाम को आज़ाद करे और मक़्तूल (मृतक) के वारिसों को ख़ूंबहा (क़त्ल का आर्थिक हर्जाना) दे, मगर यह कि वे माफ़ कर दें। फिर मक़्तूल अगर ऐसी क़्ौम में से था जो तुम्हारी दुश्मन है और वह ख़ुद मुसलमान था तो वह एक मुसलमान गुलाम को आज़ाद करे। और अगर वह ऐसी क्रौम से था कि तुम्हिरे और उसके दर्मियान समझौता है तो वह उसके वारिसों को ख़ूंबहा (कत्ल का आर्थिक हर्जाना) दे और एक मुसलमान को आज़ाद करे। फिर जिसे मयस्सर न हो तो वह लगातार दो महीने के रोज़े रखे। यह तौबा है अल्लाह की तरफ़ से। और अल्लाह जानने वाला हिक्मत वाला है। और जो शख्स किसी मुसलमान को जान कर क़त्ल करे तो इसकी सज़ा जहन्नम है जिसमें वह हमेशा रहेगा और उस पर अल्लाह का ग़ज़ब और उसकी लानत है और अल्लाह ने उसके लिए बड़ा अज़ाब तैयार कर रखा है। (92-93)

ऐ ईमान वालो जब तुम सफ़र करो अल्लाह की राह में तो ख़ूब तहक़ीक़ कर लिया करो और जो शख्स तुम्हें सलाम करे उसे यह न कहो कि तू मुसलमान नहीं। तुम दुनियावी ज़िंदगी का सामान चाहते हो तो अल्लाह के पास ग़नीमत के बहुत सामान है। तुम भी पहले ऐसे ही थे। फिर अल्लाह ने तुम पर फ़ज़्ल किया तो तहक़ीक़ कर लिया करों। जो कुछ तुम करते हो अल्लाह उससे ख़बरदार है। बराबर नहीं हो सकते बैठे रहने वाले मुसलमान जिनको कोई उज्ज (विवशता) नहीं और वे मुसलमान जो अल्लाह की राह में लड़ने वाले हैं अपने माल और अपनी जान से। माल व जान से जिहाद करने वालों का दर्जा अल्लाह ने बैठे रहने वालों की निस्बत बड़ा रखा है और हर एक से अल्लाह ने भलाई का वादा किया है। और अल्लाह ने जिहाद करने वालों को बैठे रहने वालों पर अज्े अज़ीम में बरतरी दी है। उनके लिए अल्लाह की तरफ़ से बड़े दर्जे हैं और मग्फ़िरत (क्षमा) और रहमत है। और अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है। (94-96)

जो लोग अपना बुरा कर रहे हैं जब उनकी जान फ़रिश्ते निकालेंगे तो वे उनसे पूछेंगे कि तुम किस हाल में थे। वे कहेंगे कि हम ज़मीन में बेबस थे। फ़रिश्ते कहेंगे क्या ख़ुदा की ज़मीन कुशादा न थी कि तुम वतन छोड़कर वहां चले जाते। ये वे लोग हैं जिनका ठिकाना जहन्नम है और वह बहुत बुरा ठिकाना है। मगर वे बेबस मर्द और औरतें और बच्चे जो कोई तदबीर नहीं कर सकते और न कोई राह पा रहे हैं, ये लोग उम्मीद है कि अल्लाह उन्हें माफ़ कर देगा और अल्लाह माफ़ करने वाला बख़्शने वाला है। और जो कोई अल्लाह की राह में वतन छोड़ेगा वह ज़मीन में बड़े ठिकाने और बड़ी वुस्अत पाएगा और जो शख्स अपने घर से अल्लाह और उसके रसूल की तरफ़ हिजरत करके निकले, फिर उसे मौत आ जाए तो उसका अज्र अल्लाह के यहां मुक़र्रर हो चुका और अल्लाह बख्शने वाला रहम करने वाला है। (97-100)

और जब तुम ज़मीन में सफ़र करो तो तुम पर कोई गुनाह नहीं कि तुम नमाज़ में कमी करो, अगर तुम्हें डर हो कि मुंकिर तुम्हें सताएंगे। बेशक मुंकिर लोग तुम्हारे खुले हुए दुश्मन हैं। और जब तुम मुसलमानों के दर्मियान हो और उनके लिए नमाज़ क़ायम करो तो चाहिए कि उनकी एक जमाअत तुम्हारे साथ खड़ी हो और वह अपने हथियार लिए हुए हो। पस जब वे सज्दा कर चुकें तो वे तुम्हारे पास से हट जाएं और दूसरी जमाअत आए जिसने अभी नमाज़ नहीं पढ़ी है और वे तुम्हारे साथ नमाज़ पढ़ें। और वे भी अपने बचाव का सामान और अपने हथियार लिए रहें। मुंकिर लोग चाहते हैं कि तुम अपने हथियारों और सामान से किसी तरह ग़ाफ़िल हो जाओ तो वे तुम पर एकबारगी टूट पड़ें। और तुम्हारे ऊपर कोई गुनाह नहीं अगर तुम्हें बारिश के सबब से तकलीफ़ हो या तुम बीमार हो तो अपने हथियार उतार दो और अपने बचाव का सामान लिए रहो। बेशक अल्लाह ने मुंकिरों के लिए रुसवा करने वाला अज़ाब तैयार कर रखा है। पस जब तुम नमाज़ अदा कर लो तो अल्लाह को याद करो खड़े और बैठे और लेटे। फिर जब इत्मीनान हो जाए तो नमाज़ की इक़रामत करो। बेशक नमाज़ अहले ईमान पर मुक़र्रर वक़्तों के साथ फ़र्ज़ है। और क़ौम का पीछा करने से हिम्मत न हारो। अगर तुम दुख उठाते हो तो वे भी तुम्हारी तरह दुख उठाते हैं और तुम अल्लाह से वह उम्मीद रखते हो जो उम्मीद वे नहीं रखते। और अल्लाह जानने वाला हिक्मत वाला है। (101-104)

बेशक हमने यह किताब तुम्हारी तरफ़ हक़ के साथ उतारी है ताकि तुम लोगों के दर्मियान उसके मुताबिक़ फ़ैसला करो जो अल्लाह ने तुम्हें दिखाया है। और बददयानत लोगों की तरफ़ से झगड़ने वाले न बनो। और अल्लाह से बख्शिश मांगो। बेशक अल्लाह बख्शने वाला मेहरबान है। और तुम उन लोगों की तरफ़ से न झगड़ो जो अपने आप से ख़ियानत कर रहे हैं। अल्लाह ऐसे शख्स को पसंद नहीं करता जो ख़ियानत वाला और गुनाहगार हो। वे आदमियों से शर्माते हैं और अल्लाह से नहीं शर्माते। हालांकि वह उनके साथ होता है जबकि वे सरगोशियां (गुप्त वार्ता) करते हैं उस बात की जिससे अल्लाह राज़ी नहीं। और जो कुछ वे करते हैं अल्लाह उसका इहाता (आच्छादन) किए हुए है। (105-108)

तुम लोगों ने दुनिया की ज़िंदगी में तो उनकी तरफ़ से झगड़ा कर लिया। मगर क़ियामत के दिन कौन उनके बदले अल्लाह से झगड़ा करेगा या कौन होगा उनका काम बनाने वाला। और जो शख्स बुराई करे या अपने आप पर ज़ुल्म करे फिर अल्लाह से बख््शिश मांगे तो वह अल्लाह को बख़्शने वाला रहम करने वाला पाएगा। और जो शख्स कोई गुनाह करता है तो वह अपने ही हक़ में करता है और अल्लाह जानने वाला हिक्मत (तत्वज्ञान) वाला है। और जो शख्स कोई गलती या गुनाह करे फिर उसकी तोहमत किसी बेगुनाह पर लगा दे तो उसने एक बड़ा बोहतान और खुला हुआ गुनाह अपने सर ले लिया। और अगर तुम पर अल्लाह का फ़ज्ल और उसकी रहमत न होती तो उनमें से एक गिरोह ने तो यह ठान ही लिया था कि तुम्हें बहका कर रहेगा। हालांकि वे अपने आप को बहका रहे हैं। वे तुम्हारा कुछ बिगाड़ नहीं सकते। और अल्लाह ने तुम पर किताब और हिक्मत(तत्वज्ञान) उतारी है और तुम्हें वह चीज़ सिखाई है जिसे तुम नहीं जानते थे और अल्लाह का फ़ज़्ल है तुम पर बहुत बड़ा। (109-113)

उनकी अक्सर सरगोशियों (कानाफूसियों) में कोई भलाई नहीं। भलाई वाली सरगोशी सिर्फ़ उसकी है जो सदक़ा करने को कहे या किसी नेक काम के लिए या लोगों में सुलह कराने के लिए कहे | जो शख़्स अल्लाह की ख़ुशी के लिए ऐसा करे तो हम उसे बड़ा अज् अता करेंगे। मगर जो शख्स रसूल की मुख़ालिफ़त करेगा और मोमिनों के रास्ते के सिवा किसी और रास्ते पर चलेगा, हालांकि उस पर राह वाज़ेह हो चुकी, तो उसे हम उसी तरफ़ चलाएंगे जिधर वह ख़ुद फिर गया और उसे जहन्नम में दाख़िल करेंगे और वह बुरा ठिकाना है। बेशक अल्लाह इसे नहीं बख़्छेगा कि उसका शरीक ठहराया जाए और इसके सिवा गुनाहों को बख्शा देगा जिसके लिए चाहेगा। और जिसने अल्लाह का शरीक ठहराया वह बहक कर बहुत दूर जा पड़ा। वे अल्लाह को छोड़कर पुकारते हैं देवियों को और वे पुकारते हैं सरकश शैतान को। उस पर अल्लाह ने लानत की है। और शैतान ने कहा था कि मैं तेरे बंदों से एक मुक़र्रर हिस्सा लेकर रहूंगा। मैं उन्हें बहकाऊंगा और उन्हें उम्मीदें दिलाऊंगा और उन्हें समझाऊंगा तो वे चौपायों के कान काटेंगे और उन्हें समझाऊंगा तो वे अल्लाह की बनावट को बदलेंगे और जो शख्स अल्लाह के सिवा शैतान को अपना दोस्त बनाए तो वह खुले हुए नुक़्सान में पड़ गया। वह उन्हें वादा देता है और उन्हें उम्मीदें दिलाता है और शैतान के तमाम वादे फ़रेब के सिवा और कुछ नहीं। ऐसे लोगों का ठिकाना जहन्नम है और वे उससे बचने की कोई राह न पाएंगे। और जो लोग ईमान लाए और उन्होंने नेक काम किए उन्हें हम ऐसे बाग़ों में दाख़िल करेंगे जिनके नीचे नहरें जारी होंगी और वे हमेशा उसमें रहेंगे। अल्लाह का वादा सच्चा है और अल्लाह से बढ़कर कौन अपनी बात में सच्चा होगा। न तुम्हारी आरज़ुओं (कामनाओं) पर है और न अहले किताब की आरज़ुओं पर। जो कोई भी बुरा करेगा उसका बदला पाएगा। और वह न पाएगा अल्लाह के सिवा अपना कोई हिमायती और न मददगार | और जो शख्स कोई नेक काम करेगा, चाहे वह मर्द हो या औरत बशर्ते कि वह मोमिन हो, तो ऐसे लोग जन्नत में दाखिल होंगे। और उन पर ज़रा भी ज़ुल्म न होगा। और उससे बेहतर किस का दीन है जो अपना चेहरा अल्लाह की तरफ़ झुका दे और वह नेकी करने वाला हो। और वह चले इब्राहीम के दीन पर जो एक तरफ़ का था और अल्लाह ने इब्राहीम को अपना दोस्त बना लिया था। और अल्लाह का है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है और अल्लाह हर चीज़ का इहाता (आच्छादन) किए हुए है। (114-126)

और लोग तुमसे औरतों के बारे में हुक्म पूछते हैं। कह दो अल्लाह तुम्हें उनके बारे में हुक्म देता है और वे आयतें भी जो तुम्हें किताब में उन यतीम औरतों के बारे में पढ़कर सुनाई जाती हैं जिन्हें तुम वह नहीं देते जो उनके लिए लिखा गया है और चाहते हो कि उन्हें निकाह में ले आओ। और जो आयतें कमज़ोर बच्चों के बारे में हैं और यतीमों के साथ इंसाफ़ करो और जो भलाई तुम करोगे वह अल्लाह को खूब मालूम है। और अगर किसी औरत को अपने शौहर की तरफ़ से बदसुलूकी या बेरुख़ी का अंदेशा हो तो इसमें कोई हर्ज नहीं कि दोनों आपस में कोई सुलह कर लें और सुलह बेहतर है। और हिर्स (लोभ) इंसान की तबीअत में बसी हुई है। और अगर तुम अच्छा सुलूक करो और ख़ुदातरसी (ईश परायणता) से काम लो तो जो कुछ तुम करोगे अल्लाह उससे बाख़बर है। और तुम हरगिज़ औरतों को बराबर नहीं रख सकते अगरचे तुम ऐसा करना चाहो | पस बिल्कुल एक ही तरफ़ न झुक पड़ो कि दूसरी को लटकी हुई की तरह छोड़ दो। और अगर तुम इस्लाह (सुधार) कर लो और डरो तो अल्लाह बख्शने वाल मेहरबान है। और अगर दोनों जुदा हो जाएं तो अल्लाह हर एक को अपनी वुस्अत [सामर्थ्य) से बेएहतियाज (निराश्चित) कर देगा और अल्लाह बड़ी वुस्अत वाला हिक्मत (तत्वदर्शिता) वाला है। (127-130)

और अल्लाह का है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है। और हमने हुक्म दिया है उन लोगों को जिन्हें तुमसे पहले किताब दी गई और तुम्हें भी कि अल्लाह से डरो। और अगर तुमने न माना तो अल्लाह ही का है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है और अल्लाह बेनियाज़ (निस्पृष्ठ) है सब ख़ूबियों वाला है। और अल्लाह ही का है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है और भरोसे के लिए अल्लाह काफ़ी है। अगर वह चाहे तो तुम सबको ले जाए ऐ लोगो, और दूसरों को ले आए। और अल्लाह इस पर क्रादिर है। जो शख्स दुनिया का सवाब चाहता हो तो अल्लाह के पास दुनिया का सवाब भी है और आख़िरत का सवाब भी। और अल्लाह सुनने वाला और देखने वाला है। (131-134)

ऐ ईमान वालो, इंसाफ़ पर ख़ूब क्रायम रहने वाले और अल्लाह के लिए गवाही देने वाले बनो, चाहे वह तुम्हारे या तुम्हारे मां-बाप या अज़ीजों के ख़िलाफ़ हो। अगर कोई मालदार है या मोहताज तो अल्लाह तुमसे ज़्यादा दोनों का ख़ैरख़्वाह है। पस तुम ख्वाहिश की पैरवी न करो कि हक़ से हट जाओ। और अगर तुम कजी (हेर-फेर) करोगे या पहलूतही (अवहेलना) करोगे तो जो कुछ तुम कर रहे हो अल्लाह उससे बाख़बर है। (135) 

ऐ ईमान वालो, ईमान लाओ अल्लाह पर और उसके रसूल पर और उस किताब पर जो उसने अपने रसूल पर उतारी और उस किताब पर जो उसने पहले नाज़िल की। और जो शख्स इंकार करे अल्लाह का और उसके फ़रिश्तों का और उसकी किताबों का और उसके रसूलों का और आख़िरत के दिन का तो वह बहक कर दूर जा पड़ा। बेशक जो लोग ईमान लाए फिर इंकार किया, फिर ईमान लाए फिर इंकार किया, फिर इंकार में बढ़ते गए तो अल्लाह उन्हें हरगिज़ नहीं बर्छोगा और न उन्हें राह दिखाएगा। मुनाफ़िक़ों (पाखंडियों) को ख़ुशख़बरी दे दो कि उनके लिए एक दर्दनाक अज़ाब है। वे लोग जो मोमिनों को छोड़कर मुंकिरों को दोस्त बनाते हैं, क्या वे उनके पास इज़्जत की तलाश कर रहे हैं, तो इज़्जत सारी अल्लाह के लिए है। (136-139)

और अल्लाह किताब में तुम पर यह हुक्म उतार चुका है कि जब तुम सुनो कि अल्लाह की निशानियों का इंकार किया जा रहा है और उनका मज़ाक़ किया जा रहा है तो तुम उनके साथ न बैठो यहां तक कि वे दूसरी बात में मशगूल हो जाएं। वर्ना तुम भी उन्हीं जैसे हो गए। अल्लाह मुनाफ़िक़ों को और मुंकिरों को जहन्नम में एक जगह इकट्ठा करने वाला है। वे मुनाफ़िक़ तुम्हारे लिए इंतिज़ार में रहते हैं। अगर तुम्हें अल्लाह की तरफ़ से कोई फ़तह हासिल होती है तो कहते हैं कि क्या हम तुम्हारे साथ न थे। और अगर मुंकिरों को कोई हिस्सा मिल जाए तो उनसे कहेंगे कि क्या हम तुम्हारे ख़िलाफ़ लड़ने पर क़ादिर (समर्थ) न थे और फिर भी हमने तुम्हें मुसलमानों से बचाया। तो अल्लाह ही तुम लोगों के दर्मियान क़ियामत के दिन फ़ैसला करेगा और अल्लाह हरगिज़ मुंकिरों को मोमिनों पर कोई राह नहीं देगा। (140-141)

मुनाफ़िक्रीन (पाखंडी) अल्लाह के साथ धोखेबाज़ी कर रहे हैं। हालांकि अल्लाह ही ने उन्हें धोखे में डाल रखा है। और जब वे नमाज़ के लिए खड़े होते हैं तो काहिली के साथ खड़े होते हैं महज़ लोगों को दिखाने के लिए। और वे अल्लाह को कम ही याद करते हैं। वे दोनों के बीच लटक रहे हैं, न इधर हैं और न उधर। और जिसे अल्लाह भटका दे तुम उसके लिए कोई राह नहीं पा सकते। ऐ ईमान वालो, मोमिनों को छोड़कर मुंकिरों को अपना दोस्त न बनाओ। क्या तुम चाहते हो कि अपने ऊपर अल्लाह की खुली हुज्जत क़ायम कर लो। बेशक मुनाफ़िक्रीन दोज़ख़ के सबसे नीचे के तबक़े में होंगे और तुम उनका कोई मददगार न पाओगे। अलबत्ता जो लोग तौबा करें और अपनी इस्लाह कर लें और अल्लाह को मज़बूती से पकड़ लें और अपने दीन को अल्लाह के लिए ख़ालिस कर लें तो ये लोग ईमान वालों के साथ होंगे और अल्लाह ईमान वालों को बड़ा सवाब देगा। अल्लाह तुम्हें अज़ाब देकर क्‍या करेगा अगर तुम शुक्रगुज़ारी करो और ईमान लाओ। अल्लाह बड़ा क़द्र करने वाला है सब कुछ जानने वाला है। (142-147)

अल्लाह बदगोई (कुवार्ता) को पसंद नहीं करता मगर यह कि किसी पर ज़ुल्म हुआ हो और अल्लाह सुनने वाला जानने वाला है। अगर तुम भलाई को ज़ाहिर करो या उसे छुपाओ या किसी बुराई से दरगुज़र करो तो अल्लाह माफ़ करने वाला कुदरत रखने वाला है। जो लोग अल्लाह और उसके रसूलों का इंकार कर रहे हैं और चाहते हैं कि अल्लाह और उसके रसूलों के दर्मियान तफ़रीक़ (विभेद) करें और कहते हैं कि हम किसी को मानेंगे और किसी को न मानेंगे। और वे चाहते हैं कि इसके बीच में एक राह निकालें। ऐसे लोग पक्के मुंकिर हैं और हमने मुंकिरों के लिए ज़िल्लत का अज़ाब तैयार कर रखा है। और जो लोग अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान लाए और उनमें से किसी को जुदा न किया उन्हें अल्लाह उनका अज् देगा और अल्लाह ग़फ़ूर (क्षमाशील) व रहीम (दयावान) है। (148-152)

अहले किताब तुमसे यह मुतालबा (मांग) करते हैं कि तुम उन पर आसमान से एक किताब उतार लाओ। पस मूसा से वे इससे भी बड़ी चीज़ का मुतालबा कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि हमें अल्लाह को बिल्कुल सामने दिखा दो। पस उनकी इस ज़्यादती के सबब उन पर बिजली आ पड़ी। फिर खुली निशानी आ चुकने के बाद उन्होंने बछड़े को माबूद (पूज्य) बना लिया। फिर हमने उससे दरगुज़र किया। और मूसा को हमने खुली हुज्जत अता की। और हमने उनके ऊपर तूर पहाड़ को उठाया उनसे अहद (वचन) लेने के वास्ते। और हमने उनसे कहा कि दरवाज़े में दाख़िल हो सर झुकाए हुए और उनसे कहा कि सब्त (सनीचर) के मामले में ज़्यादती न करना। और हमने उनसे मज़बूत अहद लिया। (153-154)

उन्हें जो सज़ा मिली वह इस पर कि उन्होंने अपने अहद (वचन) को तोड़ा और इस पर कि उन्होंने अल्लाह की निशानियों का इंकार किया और इस पर कि उन्होंने पैग़म्बरों को नाहक़ क़त्ल किया और इस कहने पर कि हमारे दिल तो बंद हैं– बल्कि अल्लाह ने उनके इंकार के सबब से उनके दिलों पर मुहर कर दी है तो वे कम ही ईमान लाते हैं। और उनके इंकार पर और मरयम पर बड़ा तूफ़ान बांधने पर और उनके इस कहने पर कि हमने मसीह बिन मरयम, अल्लाह के रसूल को क़त्ल कर दिया- हालांकि उन्होंने न उसे क़त्ल किया और न सूली दी बल्कि मामला उनके लिए संदिग्ध कर दिया गया। और जो लोग इसमें मतभेद कर रहे हैं वे इसके बारे में शक में पड़े हुए हैं। उन्हें इसका कोई इल्म नहीं, वह सिर्फ़ अटकल पर चल रहे हैं। और बेशक उन्होंने उसे क़त्ल नहीं किया। बल्कि अल्लाह ने उसे अपनी तरफ़ उठा लिया और अल्लाह ज़बरदस्त है हिक्मत (तत्वदर्शिता) वाला है। (155-158) 

और अहले किताब में से कोई ऐसा नहीं जो उसकी मौत से पहले उस पर ईमान न ले आए और क्रियामत के दिन वह उन पर गवाह होगा। पस यहूद के ज़ुल्म की वजह से हमने वे पाक चीज़ें उन पर हराम कर दीं जो उनके लिए हलाल थीं। और इस वजह से कि वे अल्लाह की राह से बहुत रोकते थे। और इस वजह से कि वे सूद लेते थे हालांकि इससे उन्हें मना किया गया था और इस वजह से कि वे लोगों का माल बातिल तरीक़े से खाते थे। और हमने उनमें से मुंकिरों के लिए दर्दनाक अज़ाब तैयार कर रखा है। मगर उनमें जो लोग इल्म में पुख्ता और ईमान वाले हैं वे ईमान लाए हैं उस पर जो तुम्हारे ऊपर उतारी गई और जो तुमसे पहले उतारी गई और वे नमाज़ के पाबंद हैं और ज़कात अदा करने वाले हैं और अल्लाह पर और क़रियामत के दिन पर ईमान रखने वाले हैं। ऐसे लोगों को हम ज़रूर बड़ा अज्र (प्रतिफल) देंगे। (159-162)

हमने तुम्हारी तरफ़ “वही” (ईश्वरीय वाणी) भेजी है जिस तरह हमने नूह़ और उसके बाद के नबियों की तरफ़ वही” भेजी थी। और हमने इब्राहीम और इस्माईल और इस्हाक़ और याकूब और औलादे याकूब और ईसा और अय्यूब और यूनुस और हारून और सुलैमान की तरफ़ “वही” भेजी थी। और हमने दाऊद को ज़बूर दी। और हमने ऐसे रसूल भेजे जिनका हाल हम तुम्हें पहले सुना चुके हैं और ऐसे रसूल भी जिनका हाल हमने तुम्हें नहीं सुनाया। और मूसा से अल्लाह ने कलाम किया। अल्लाह ने रसूलों को ख़ुशख़बरी देने वाले और डराने वाले बनाकर भेजा ताकि रसूलों के बाद लोगों के पास अल्लाह के मुक़ाबले में कोई हुज्जत बाक़ी न रहे और अल्लाह ज़बरदस्त है हिक्‍्मत (तत्वदर्शिता) वाला है। मगर अल्लाह गवाह है उस पर जो उसने तुम्हारे ऊपर उतारा है कि उसने इसे अपने इल्म के साथ उतारा है और फ़रिश्ते भी गवाही देते हैं और अल्लाह गवाही के लिए काफ़ी है। जिन लोगों ने इंकार किया और अल्लाह के रास्ते से रोका वे बहक कर बहुत दूर निकल गए। जिन लोगों ने इंकार किया और ज़ुल्म किया उन्हें अल्लाह हरगिज़ नहीं बख़्शेगा न ही उन्हें जहन्नुम के सिवा कोई रास्ता दिखाएगा जिसमें वे हमेशा रहेंगे। और अल्लाह के लिए यह आसान है। ऐ लोगो, तुम्हारे पास रसूल आ चुका तुम्हारे रब की ठीक बात लेकर। पस मान लो ताकि तुम्हारा भत्ना हो। और अगर न मानोगे तो अल्लाह का है जो कुछ आसमानों में और ज़मीन में है। और अल्लाह जानने वाला हिक्मत (तत्वदर्शिता) वाला है। (163-170)

ऐ अहले किताब अपने दीन में गुलू (अति) न करो और अल्लाह के बारे में कोई बात हक़ के सिवा न कहो। मसीह ईसा इब्ने मरयम तो बस अल्लाह के एक रसूल और उसका एक कलिमा हैं जिसे उसने मरयम की तरफ़ भेजा और उसकी जानिब से एक रूह हैं। पस अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान लाओ और यह न कहो कि ख़ुदा तीन हैं। बाज आ जाओ, यही तुम्हारे हक़ में बेहतर है। माबूद तो बस एक अल्लाह ही है। वह पाक है कि उसके औलाद हो। उसी का है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है और अल्लाह ही का कारसाज़ होना काफ़ी है। मसीह को हरगिज़ अल्लाह का बंदा बनने से संकोच न होगा और न मुक़र्रब (प्रतिष्ठित) फ़रिश्तों को होगा। और जो अल्लाह की बंदगी से संकोच करेगा और घमंड करेगा तो अल्लाह ज़रूर सबको अपने पास जमा करेगा। फिर जो लोग ईमान लाए और जिन्होंने नेक काम किए तो उन्हें वह पूरा-पूरा अज् देगा और अपने फ़ज़्ल से उन्हें और भी देगा। और जिन लोगों ने संकोच और घमंड किया होगा उन्हे दर्दनाक अज़ाब देगा और वे अल्लाह के मुक़ाबले में न किसी को अपना दोस्त पाऐँगे और न मददगार। (171-174)

ऐ लोगो, तुम्हारे पास तुम्हारे रब की तरफ़ से एक दलील आ चुकी है और हमने तुम्हारे ऊपर एक वाज़ेह (सुस्पष्ट) रोशनी उतार दी। पस जो लोग अल्लाह पर ईमान लाए और उसे उन्होंने मज़बूत पकड़ लिया उन्हें ज़रूर अल्लाह अपनी रहमत और फ़ज़्ल में दाखिल करेगा और उन्हें अपनी तरफ़ सीधा रास्ता दिखाएगा। लोग तुमसे हुक्म पूछते हैं। कह दो अल्लाह तुम्हें कलाला (जिसका कोई वारिस न हो न ही मां बाप) के बारे में हुक्म बताता है। अगर कोई शख्स मर जाए और उसके कोई औलाद न हो और उसके एक बहिन हो तो उसके लिए उसके तरके का आधा है। और वह मर्द उस बहिन का वारिस होगा अगर उस बहिन के कोई औलाद न हो। और अगर दो बहिनें हों तो उनके लिए उसके तरके का दो तिहाई होगा। और अगर कई भाई-बहिन, मर्द-औरतें हों तो एक मर्द के लिए दो औरतों के बराबर हिस्सा है। अल्लाह तुम्हारे लिए बयान करता है ताकि तुम गुमराह न हो और अल्लाह हर चीज़ का जानने वाला है। (175-177)

शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।

ऐ लोगो अपने रब से डरो जिसने तुम्हें एक जान से पैदा किया और उसी से उसका जोड़ा पैदा किया और इन दोनों से बहुत से मर्द और औरतें फैला दीं। और अल्लाह से डरो जिसके वास्ते से तुम एक दूसरे से सवाल करते हो और ख़बरदार रहो संबंधियों से। बेशक अल्लाह तुम्हारी निगरानी कर रहा है। और यतीमों का माल उनके हवाले करो। और बुरे माल को अच्छे माल से न बदलो और उनके माल अपने माल के साथ मिलाकर न खाओ। यह बहुत बड़ा गुनाह है। और अगर तुम्हें अंदेशा हो कि तुम यतीमों के मामले में इंसाफ़ न कर सकोगे तो औरतों में से जो तुम्हें पसंद हों उन से दो-दो, तीन-तीन, चार-चार तक निकाह कर लो। और अगर तुम्हें अंदेशा हो कि तुम अद्ल (न्याय) न कर सकोगे तो एक ही निकाह करो या जो कनीज़ (दासी) तुम्हारे अधीन हो। इसमें उम्मीद है कि तुम इंसाफ़ से न हटोगे। और औरतों को उनके महर ख़ुशदिली के साथ अदा करो। फिर अगर वे इसमें से कुछ तुम्हारे लिए छोड़ दें अपनी ख़ुशी से तो तुम उसे हंसी-ख़ुशी से खाओ। (1-4)

और नादानों को अपना वह माल न दो जिसे अल्लाह ने तुम्हारे लिए क्रियाम का ज़रिया बनाया है और इस माल में से उन्हें खिलाओ और पहनाओ और उनसे भलाई की बात कहो। और यतीमों को जांचते रहो, यहां तक कि जब वे निकाह की उम्र को पहुंच जाएं तो अगर उनमें होशियारी देखो तो उनका माल उनके हवाले कर दो। और उनका माल अनुचित तरीक़े से और इस ख्याल से कि वे बड़े हो जाऐंगे न खा जाओ। और जिसे हाजत न हो वह यतीम के माल से परहेज़ करे और जो शख्स मोहताज हो वह दस्तूर के मुवाफ़िक़ खाए। फिर जब तुम उनका माल उनके हवाले करो तो उन पर गवाह ठहरा लो और अल्लाह हिसाब लेने के लिए काफ़ी है। मां-बाप और रिश्तेदारों के तरके (छोड़ी हुई सम्पत्ति) में से मर्दों का भी हिस्सा है। और मां-बाप और रिश्तेदारों के तरके में से औरतों का भी हिस्सा है, थोड़ा हो या ज़्यादा हो, एक मुक़र्रर किया हुआ हिस्सा। और अगर तक़्सीम के वक़्त रिश्तेदार और यतीम और मोहताज मौजूद हों तो इसमें से उन्हें भी कुछ दो और उनसे हमदर्दी की बात कहो। और ऐसे लोगों को डरना चाहिए कि अगर वे अपने पीछे कमज़ोर बच्चे छोड़ जाते तो उन्हें उनकी बहुत फ़िक्र रहती। पस उन्हें चाहिए कि अल्लाह से डरें और बात पक्की कहें। जो लोग यतीमों का माल नाहक़ खाते हैं वे लोग अपने पेटों में आग भर रहे हैं और वे जल्द ही भड़कती हुई आग में डाले जाऐँगे। (5-10)

अल्लाह तुम्हें तुम्हारी औलाद के बारे में हुक्म देता है कि मर्द का हिस्सा दो औरतों के बराबर है। अगर औरतें दो से ज़्यादा हैं तो उनके लिए दो तिहाई है उस माल से जो मूरिस (विरासत छोड़ने वाला) छोड़ गया है और अगर वह अकेली है तो उसके लिए आधा है। और मय्यत के मां-बाप को दोनों में से हर एक के लिए छठा हिस्सा है उस माल का जो वह छोड़ गया है बशर्ते कि मूरिस के औलाद हो। और अगर मूरिस की औलाद न हो और उसके मां-बाप उसके वारिस हों तो उसकी मां का तिहाई है और अगर उसके भाई बहिन हों तो उसकी मां के लिए छठा हिस्सा है। ये हिस्से वसीयत निकालने के बाद या क़र्ज़ की अदायगी के बाद हैं जो वह कर जाता है। तुम्हारे बाप हों या तुम्हारे बेटे हों, तुम नहीं जानते कि उनमें तुम्हारे लिए सबसे ज़्यादा नफ़ा देने वाला कौन है। यह अल्लाह का ठहराया हुआ फ़रीज़ा है। बेशक अल्लाह इल्म वाला, हिक्मत वाला है। और तुम्हारे लिए उस माल का आधा हिस्सा है जो तुम्हारी बीवियां छोड़ें, बशर्ते कि उनके औलाद न हो। और अगर उनके औलाद हो तो तुम्हारे लिए बीवियों के तरके का चौथाई है वसीयत निकालने के बाद जिसकी वे वसीयत कर जाएं या कर्ज़ की अदायगी के बाद। और उन बीवियों के लिए चौथाई है तुम्हारे तरके का अगर तुम्हारे औलाद नहीं है, और अगर तुम्हारे औलाद है तो उनके लिए आठवां हिस्सा है तुम्हारे तरके का वसीयत निकालने के बाद जिसकी तुम वसीयत कर जाओ या कर्ज़ की अदायगी के बाद। और अगर कोई मूरिस मर्द या औरत ऐसा हो जिसके न औलाद हो और न मां-बाप ज़िंदा हों, और उसके एक भाई या एक बहिन हो तो दोनों में से हर एक के लिए छठा हिस्सा है। और अगर वे इससे ज़्यादा हों तो वे एक तिहाई में शरीक होंगे वसीयत निकालने के बाद जिसकी वसीयत की गयी हो या क़र्ज़ की अदायगी के बाद, बगैर किसी को नुक़्सान पहुंचाए। यह हुक्म अल्लाह की तरफ़ से है और अल्लाह अलीम व हलीम है। ये अल्लाह की ठहराई हुई हदें  हैं। और जो शख्स अल्लाह और उसके रसूल की इताअत करेगा अल्लाह उसे ऐसे बाग़ों में दाख़िल करेगा जिनके नीचे नहरें बहती होंगी, उनमें वे हमेशा रहेंगे और यही बड़ी कामयाबी है। और जो शख्स अल्लाह और उसके रसूल की नाफ़रमानी करेगा और उसके मुक़र्रर किए हुए ज़ाब्तों (नियमों) से बाहर निकल जाएगा उसे वह आग में दाख़िल करेगा जिसमें वह हमेशा रहेगा और उसके लिए ज़िल्लत वाला अज़ाब है। (11-14)

और तुम्हारी औरतों में से जो कोई बदकारी करे तो उन पर अपनों में से चार मर्द गवाह करो। फिर अगर वे गवाही दे दें तो इन औरतों को घरों के अंदर बंद रखो, यहां तक कि उन्हें मौत उठा ले या अल्लाह उनके लिए कोई राह निकाल दे। और तुममें से दो मर्द जो वही बदकारी करें तो उन्हें अज़ियत (यातना) पहुंचाओ। फिर अगर वे दोनों तौबा करें और अपनी इस्लाह कर लें तो उनका ख़्याल छोड़ दो। बेशक अल्लाह तौबा क़ुबूल करने वाला मेहरबान है। तौबा जिसे क़ुबूल करना अल्लाह के ज़िम्मे है वह उन लोगों की है जो बुरी हरकत नादानी से कर बैठते हैं, फिर जल्द ही तौबा कर लेते हैं। वही हैं जिनकी तौबा अल्लाह क़ुबूल करता है और अल्लाह जानने वाला हिक्मत वाला है। और ऐसे लोगों की तौबा नहीं है जो बराबर गुनाह करते रहें, यहां तक कि जब मौत उनमें से किसी के सामने आ जाए तब वह कहे कि अब मैं तौबा करता हूं, और न उन लोगों की तौबा है जो इस हाल में मरते हैं कि वे मुंकिर हैं, उनके लिए तो हमने दर्दनाक अज़ाब तैयार कर रखा है। (15-18)

ऐ ईमान वालो तुम्हारे लिए जाइज़ नहीं कि तुम औरतों को ज़बरदस्ती अपनी मीरास में ले लो और न उन्हें इस ग़रज़ से रोके रखो कि तुमने जो कुछ उन्हें दिया है उसका कुछ हिस्सा उनसे ले लो मगर इस सूरत में कि वे खुली हुई बेहयाई करें। और उनके साथ अच्छी तरह गुज़र-बसर करो। अगर वे तुम्हें नापसंद हों तो हो सकता है कि एक चीज़ तुम्हें पसंद न हो मगर अल्लाह ने इसमें तुम्हारे लिए बहुत बड़ी भलाई रख दी हो। और अगर तुम एक बीवी की जगह दूसरी बीवी बदलना चाहो और तुम उसे बहुत सा माल दे चुके हो तो तुम उसमें से कुछ वापस न लो। क्या तुम इसे बोहतान (आक्षेप) लगाकर और सरीह ज़ुल्म करके वापस लोगे। और तुम किस तरह उसे लोगे जबकि एक दूसरे से ख़तवत कर चुका है और वे तुमसे पुख्ता अहद ले चुकी हैं। और उन औरतों से निकाह मत करो जिनसे तुम्हारे बाप निकाह कर चुके हैं, मगर जो पहले हो चुका। बेशक यह बेहयाई है और नफ़रत की बात है और बहुत बुरा तरीक़ा है। (19-22)

तुम्हारे ऊपर हराम की गईं तुम्हारी माएं, तुम्हारी बेटियां, तुम्हारी बहिनें, तुम्हारी फूफियां, तुम्हारी ख़ालाएं, तुम्हारी भतीजियां और भांजियां और तुम्हारी वे माएं जिन्होंने तुम्हें दूध पिलाया, तुम्हारी दूध शरीक बहिनें, तुम्हारी औरतों की माएं और उनकी बेटियां जो तुम्हारी परवरिश में हैं जो तुम्हारी उन बीवियों से हों जिनसे तुमने सोहबत की है, लेकिन अगर अभी तुमने उनसे सोहबत न की हो तो तुम पर कोई गुनाह नहीं। और तुम्हारे सुलबी (तुमसे पैदा) बेटों की बीवियां और यह कि तुम इकट्ठा करो दो बहिनों को मगर जो पहले हो चुका। बेशक अल्लाह बख्शने वाला मेहरबान है। और वे औरतें भी हराम हैं जो किसी दूसरे के निकाह में हों मगर यह कि वे जंग में तुम्हारे हाथ आएं। यह अल्लाह का हुक्म है तुम्हारे ऊपर। इनके अलावा जो औरतें हैं वे सब तुम्हारे लिए हलाल हैं बशर्ते कि तुम अपने माल के ज़रिए से उनके तालिब बनो, उनसे निकाह करके न कि बदकारी के तौर पर। फिर उन औरतों में से जिन्हें तुम काम में लाए उन्हें उनको तैशुदा महर दे दो। और महर के ठहराने के बाद जो तुमने आपस में राज़ीनामा किया हो तो इसमें कोई गुनाह नहीं। बेशक अल्लाह जानने वाला हिक्मत वाला है। और तुममें से जो शख्स सामर्थ्य न रखता हो कि आज़ाद मुसलमान औरतों से निकाह कर सके तो उसे चाहिए कि वह तुम्हारी उन कनीज़ों (दासियों) में से किसी के साथ निकाह कर ले जो तुम्हारे क़ब्ज़े में हों और मोमिना हों। अल्लाह तुम्हारे ईमान को खूब जानता है, तुम आपस में एक हो। पस उनके मालिकों की इजाज़त से उनसे निकाह कर लो और मारूफ़ तरीक़े से उनके महर अदा कर दो, इस तरह कि उनसे निकाह किया जाए न कि आज़ाद शहवतरानी करें और चोरी छुपे आशनाइयां करें। फिर जब वे निकाह के बंधन में आ जाएं और इसके बाद वे बदकारी करें तो आज़ाद औरतों के लिए जो सज़ा है उसकी आधी सज़ा इन पर है। यह उसके लिए है जो तुममें से बदकारी का अंदेशा रखता हो। और अगर तुम ज़ब्त (संयम) से काम लो तो यह तुम्हारे लिए ज़्यादा बेहतर है, और अल्लाह बख्शने वाला रहम करने वाला है। (23-25)

अल्लाह चाहता है कि तुम्हारे वास्ते बयान करे और तुम्हें उन लोगों के तरीक़ों की हिदायत दे जो तुमसे पहले गुज़र चुके हैं और तुम पर तवज्जोह करे, अल्लाह जानने वाला हिक्मत वाला है। और अल्लाह चाहता है कि तुम्हारे ऊपर तवज्जोह करे और जो लोग अपनी ख़्वाहिशों की पैरवी कर रहे हैं वे चाहते हैं कि तुम राहेरास्‍्त से बहुत दूर निकल जाओ। अल्लाह चाहता है कि तुम से बोझ को हल्का करे और इंसान कमज़ोर बनाया गया है। (26-28)

ऐ ईमान वालो, आपस में एक-दूसरे का माल नाहक़ तौर पर न खाओ। मगर यह कि तिजार्त हो आपस की ख़ुशी से। और ख़ून न करो आपस में। बेशक अल्लाह तुम्हारे ऊपर बड़ा मेहरबान है। और जो शख्स सरकशी और ज़ुल्म से ऐसा करेगा उसे हम ज़रूर आग में डालेंगे और यह अल्लाह के लिए आसान है। अगर तुम उन बड़े गुनाहों से बचते रहे जिनसे तुम्हें मना किया गया है तो हम तुम्हारी छोटी बुराइयों को माफ़ कर देंगे और तुम्हें इज़नत की जगह दाख़िल करेंगे। और तुम ऐसी चीज़ की तमन्ना न करो जिसमें अल्लाह ने तुममें से एक को दूसरे पर बड़ाई दी है। मर्दों के लिए हिस्सा है अपनी कमाई का और औरतों के लिए हिस्सा है अपनी कमाई का। और अल्लाह से उसका फ़ज़्ल मांगो। बेशक अल्लाह हर चीज़ का इल्म रखता है। और हमने वालिदेन और रिश्तेदारों के छोड़े हुए में से हर एक के लिए वारिस ठहरा दिए हैं और जिनसे तुमने अहद बांध रखा हो तो उन्हें उनका हिस्सा दे दो, बेशक अल्लाह के रूबरू है हर चीज़। (29-33)

मर्द औरतों के ऊपर क्व्वाम (प्रमुख) हैं। इस कारण कि अल्लाह ने एक को दूसरे पर बड़ाई दी है और इस कारण कि मर्द ने अपने माल ख़र्च किए। पस जो नेक औरतें हैं वे फ़रमांबरदारी करने वाली, पीठ पीछे निगहबानी करती हैं अल्लाह की हिफ़ाज़त से। और जिन औरतों से तुम्हें सरकशी का अंदेशा हो उन्हें समझाओ और उन्हें उनके बिस्तरों में तंहा छोड़ दो और उन्हें सज़ा दो। पस अगर वे तुम्हारी इताअत करें तो उनके ख़िलाफ़ इल्ज़ाम की राह न तलाश करो। बेशक अल्लाह सबसे ऊपर है, बहुत बड़ा है। और अगर तुम्हें मियां-बीवी के दर्मियान तअल्लुक़ात बिगड़ने का अंदेशा हो तो एक मुंसिफ़ मर्द के रिश्तेदारों में से खड़ा करो और एक मुंसिफ़ औरत के रिश्तेदारों में से खड़ा करो। अगर दोनों इस्लाह चाहेंगे तो अल्लाह उनके दर्मियान मुवाफ़िक्रत कर देगा। बेशक अल्लाह सब कुछ जानने वाला ख़बरदार है। (34-35)

और अल्लाह की इबादत करो और किसी चीज़ को उसका शरीक न बनाओ। और अच्छा सुलूक करो मां-बाप के साथ और रिश्तेदारों के साथ और यतीमों और मिस्कीनों और रिश्तेदार पड़ोसी और अजनबी पड़ौसी और पास बैठने वाले और मुसाफ़िर के साथ और ममलूक (अधीन) के साथ | बेशक अल्लाह पसंद नहीं करता इतराने वाले बड़ाई करने वाले को जोकि कंजूसी करते हैं और दूसरों को भी कंजूसी सिखाते हैं और जो कुछ उन्हें अल्लाह ने अपने फ़ज़्ल से दे रखा है उसे छुपाते हैं। और हमने मुंकिरों के लिए ज़िल्लत का अज़ाब तैयार कर रखा है। और जो लोग अपना माल लोगों को दिखाने के लिए ख़र्च करते हैं और अल्लाह पर और आख़िरत के दिन पर ईमान नहीं रखते, और जिसका साथी शैतान बन जाए तो वह बहुत बुरा साथी है। उनका क्या नुक़्सान था अगर वे अल्लाह पर और आख़िरत के दिन पर ईमान लाते और अल्लाह ने जो कुछ उन्हें दे रखा है उसमें

से खर्च करते। और अल्लाह उनसे अच्छी तरह बाख़बर है। बेशक अल्लाह ज़रा भी किसी की हक़तलफ़ी नहीं करेगा। अगर नेकी हो तो वह उसे दुगना बढ़ा देता है और अपने पास से बहुत बड़ा सवाब देता है। (36-40)

फिर उस वक़्त क्या हाल होगा जब हम हर उम्मत में से एक गवाह लाऐंगे और तुम्हें उन लोगों के ऊपर गवाह बनाकर खड़ा करेंगे। वे लोग जिन्होंने इंकार किया और पैग़म्बर की नाफ़रमानी की उस दिन तमन्ना करेंगे कि काश ज़मीन उन पर बराबर कर दी जाए, और वे अल्लाह से कोई बात न छुपा सकेंगे। ऐ ईमान वालो, नज़दीक न जाओ नमाज़ के जिस वक़्त कि तुम नशे में हो यहां तक कि समझने लगो जो तुम कहते हो, और न उस वक़्त कि ग़ुस्ल॒ की हाजत हो मगर राह चलते हुए, यहां तक कि गुस्ल॒ कर लो। और अगर तुम मरीज़ हो या सफ़र में हो या तुममें से कोई शौच से आए या तुम औरतों के पास गए हो फिर तुम्हें पानी न मिले तो तुम पाक मिट्टी से तयम्मुम कर लो और अपने चेहरे और हाथों का मसह कर लो, बेशक अल्लाह माफ़ करने वाला बख़्शने वाला है। (41-43)

क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जिन्हें किताब से हिस्सा मिला था। वे गुमराही को मोल ले रहे हैं और चाहते हैं कि तुम भी राह से भटक जाओ। अल्लाह तुम्हारे दुश्मनों को ख़ूब जानता है। और अल्लाह काफ़ी है हिमायत के लिए और अल्लाह काफ़ी है मदद के लिए। यहूद में से एक गिरोह बात को उसके ठिकाने से हटा देता है और कहता है कि हमने सुना और न माना। और कहते हैं कि सुनो और तुम्हें सुनवाया न जाए। वे अपनी ज़बान को मोड़ कर कहते हैं राइना, दीन में ऐब लगाने के लिए। और अगर वे कहते कि हमने सुना और माना, और सुनो और हम पर नज़र करो तो यह उनके हक़ में ज़्यादा बेहतर और दुरुस्त होता। मगर अल्लाह ने उनके इंकार के सबब से उन पर लानत कर दी है। पस वे ईमान न लाऐंगे मगर बहुत कम | ऐ वे लोगो जिन्हें किताब दी गई उस पर ईमान लाओ जो हमने उतारा है, तस्दीक़ करने वाली उस किताब की जो तुम्हारे पास है, इससे पहले कि हम चेहरों को मिटा दें और फिर उन्हें उलट दें पीठ की तरफ़ या उन पर लानत करें जैसे हमने लानत की सब्त वालों पर। और अल्लाह का हुक्म पूरा होकर रहता है। बेशक अल्लाह इसे नहीं बख़्शेगा कि उसके साथ शिर्क किया जाए। लेकिन इसके अलावा जो कुछ है उसे जिसके लिए चाहेगा बख्श देगा। और जिसने अल्लाह का शरीक ठहराया उसने बड़ा तूफ़ान बांधा। क्‍या तुमने देखा उन्हें जो अपने आपको पाकीज़ा कहते हैं। बल्कि अल्लाह ही पाक करता है जिसे चाहता है, और उन पर ज़रा भी ज़ुल्म न होगा। देखो, ये अल्लाह पर कैसा झूठ बांध रहे हैं और सरीह गुनाह होने के लिए यही काफ़ी है। (44-50)

क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जिन्हें किताब से हिस्सा मिला था, वे जिब्त (झूठी चीज़ों) और ताग्रूत को मानते हैं और मुंकिरों के बारे में कहते हैं कि वे ईमान वालों से ज़्यादा सही रास्ते पर हैं। यही लोग हैं जिन पर अल्लाह ने लानत की है और जिस पर अल्लाह लानत करे तुम उसका कोई मददगार न पाओगे। क्या ख़ुदा के इक़्तेदार [संप्रभुत्व) में कुछ इनका भी दखल है। फिर तो ये लोगों को एक तिल बराबर भी न दें। क्‍या ये लोगों पर हसद कर रहे हैं इस सबब कि अल्लाह ने उन्हें अपने फ़ज़्ल से दिया है। पस हमने आले इब्राहीम को किताब और हिक्मत दी है और हमने उन्हें एक बड़ी सल्तनत भी दे दी। उनमें से किसी ने इसे माना और कोई इससे रुका रहा और ऐसों के लिए जहन्नम की भड़कती हुई आग काफ़ी है। बेशक जिन लोगों ने हमारी निशानियों का इंकार किया उन्हें हम सख्त आग में डालेंगे। जब उनके जिस्म की खाल जल जाएगी तो हम उनकी खाल को बदल कर दूसरी कर देंगे ताकि वे अज़ाब चखते रहें। बेशक अल्लाह ज़बरदस्त है हिक्मत वाला है। और जो लोग ईमान लाए और नेक काम किए उन्हें हम बाग़ों में दाख़िल करेंगे जिनके नीचे नहरें बहती होंगी, उसमें वे हमेशा रहेंगे, वहां उनके लिए सुथरी बीवियां होंगी और उन्हें हम घनी छांव में रखेंगे। (51-57)

अल्लाह तुम्हें हुक्म देता है कि अमानतें उनके हक़दारों को पहुंचा दों। और जब लोगों के दर्मियान फ़ैसला करो तो इंसाफ़ के साथ फ़ैसला करो। अल्लाह अच्छी नसीहत करता है तुम्हें, बेशक अल्लाह सुनने वाला, देखने वाला है। ऐ ईमान वालो, अल्लाह की इताअत (आज्ञापालन) करो और रसूल की इताअत करो और अपने में अहले इख़्तियार की इताअत करो। फिर अगर तुम्हारे दर्मियान किसी चीज़ में इख्तेलाफ़ (मतभेद) हो जाए तो उसे अल्लाह और रसूल की तरफ़ लौटाओ, अगर तुम अल्लाह पर और आख़िरत के दिन पर ईमान रखते हो। यह बात अच्छी है और इसका अंजाम बेहतर है। कया तुमने उन लोगों को नहीं देखा जो दावा करते हैं कि वे ईमान लाए हैं उस पर जो उतारा गया है तुम्हारी तरफ़ और जो उतारा गया है तुमसे पहले, वे चाहते हैं कि विवाद ले जाएं शैतान की तरफ़, हालांकि उन्हें हुक्म हो चुका है कि उसे न मानें और शैतान चाहता है कि उन्हें बहका कर बहुत दूर डाल दे। और जब उनसे कहा जाता है कि आओ अल्लाह की उतारी हुई किताब की तरफ़ और रसूल की तरफ़ तो तुम देखोगे कि मुनाफ़िक्रीन (पाखंडी) तुमसे कतरा जाते हैं। फिर उस वक़्त क्या होगा जब उनके अपने हाथों की लाई हुई मुसीबत उन पर पहुंचेगी, उस वक़्त ये तुम्हारे पास क़समें खाते हुए आएंगे कि ख़ुदा की क़सम हमें तो सिर्फ़ भलाई और मिलाप से ग़रज़ थी। उनके दिलों में जो कुछ है अल्लाह उससे ख़ूब वाक़िफ़ है। पस तुम उनसे एराज़ (उपेक्षा) करो और उन्हें नसीहत करों और उनसे ऐसी बात कहो जो उनके दिलों में उतर जाए। (58-63) 

और हमने जो रसूल भेजा इसीलिए भेजा कि अल्लाह के हुक्म से उसकी इताअत (आज्ञापालन) की जाए। और अगर वे जबकि उन्होंने अपना बुरा किया था, तुम्हरे पास आते और अल्लाह से माफ़ी चाहते और रसूल भी उनके लिए माफ़ी चाहता तो यक्रीनन वे अल्लाह को बख्शने वाला रहम करने वाला पाते। पस तेरे रब की क़सम वे कभी ईमान वाले नहीं हो सकते जब तक वे अपने आपसी झगड़े में तुम्हें फ़ैलला करने वाला न मान लें। फिर जो फ़ैसला तुम करो उस पर अपने दिलों में कोई तंगी न पाएं और उसे ख़ुशी से क़ुबूल कर लें। और अगर हम उन्हें हुक्म देते कि अपने आपको हलाक करो या अपने घरों से निकलो तो उनमें से थोड़े ही इस पर अमल करते। और अगर ये लोग वह करते जिसकी उन्हें नसीहत की जाती है तो उनके लिए यह बात बेहतर और ईमान पर साबित रखने वाली होती। और उस वक़्त हम उन्हें अपने पास से बड़ा अज्र देते और उन्हें सीधा रास्ता दिखाते। और जो अल्लाह और रसूल की इताअत करेगा वह उन लोगों के साथ होगा जिन पर अल्लाह ने इनाम किया, यानी पैग़म्बर और सिद्दीक़ और शहीद और सालेह। कैसी अच्छी है उनकी रिफ्राक़त। यह फ़ज़्ल है अल्लाह की तरफ़ से और अल्लाह का इल्म काफ़ी है। (64-70)

ऐ ईमान वालो अपनी एहतियात कर लो फिर निकलो जुदा-जुदा या इकटूठे होकर। और तुममें कोई ऐसा भी है जो देर लगा देता है। फिर अगर तुम्हें कोई मुसीबत पहुंचे तो वह कहता है कि अल्लाह ने मुझ पर इनाम किया कि मैं उनके साथ न था। और अगर तुम्हें अल्लाह का कोई फ़ज़्ल हासिल हो तो कहता है, गोया तुम्हारे और उसके दर्मियान कोई मुहब्बत का रिश्ता ही नहीं-कि काश मैं भी उनके साथ होता तो बड़ी कामयाबी हासिल करता। पस चाहिए कि लड़ें अल्लाह की राह में वे लोग जो आख़िरत के बदले दुनिया की ज़िंदगी को बेच देते हैं। और जो शख्स अल्लाह की राह में लड़े, फिर मारा जाए या ग़ालिब हो तो हम उसे बड़ा अज् देंगे। और तुम्हें क्या हुआ कि तुम नहीं लड़ते अल्लाह की राह में और उन कमज़ोर मर्दों और औरतों और बच्चों के लिए जो कहते हैं कि ख़ुदाया हमें इस बस्ती से निकाल जिसके बाशिंदे ज़ालिम हैं और हमारे लिए अपने पास से कोई हिमायती पैदा कर दे और हमारे लिए अपने पास से कोई मददगार खड़ा कर दे। जो लोग ईमान वाले हैं वे अल्लाह की राह में लड़ते हैं और जो मुंकिर हैं वे शैतान की राह में लड़ते हैं। पस तुम शैतान के साथियों से लड़ो। बेशक शैतान की चाल बहुत कमज़ोर है। (71-76)

क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जिनसे कहा गया था कि अपने हाथ रोके रखो और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात दो। फिर जब उन्हें लड़ाई का हुक्म दिया गया तो उनमें से एक गिरोह इंसानों से ऐसा डरने लगा जैसे अल्लाह से डरना चाहिए या इससे भी ज़्यादा। वे कहते हैं ऐ हमारे रब, तूने हम पर लड़ाई क्यों फ़र्ज़ कर दी। क्यों न छोड़े रखा हमें थोड़ी मुदूदगत तक। कह दो कि दुनिया का फ़ायदा थोड़ा है और आख़िरत बेहतर है उसके लिए जो परहेज़गारी करे, और तुम्हारे साथ ज़रा भी ज़ुल्म न होगा। और तुम जहां भी होगे मौत तुम्हें पा लेगी अगरचे तुम मज़बूत क़िलों में हो। अगर उन्हें कोई भलाई पहुंचती है तो कहते हैं कि यह ख़ुदा की तरफ़ से है और अगर उन्हें कोई बुराई पहुंचती है तो कहते हैं कि यह तुम्हारे सबब से है। कह दो कि सब कुछ अल्लाह की तरफ़ से है। इन लोगों का क्‍या हाल है कि लगता है कि कोई बात ही नहीं समझते। तुम्हें जो भलाई भी पहुंचती है ख़ुदा की तरफ़ से पहुंचती है और तुम्हें जो बुराई पहुंचती है वह तुम्हारे अपने ही सबब से है। और हमने तुम्हें इंसानों की तरफ़ पैग़म्बर बना कर भेजा है और अल्लाह की गवाही काफ़ी है। (77-79)

जिसने रसूल की इताअत की उसने अल्लाह की इताअत की और जो उल्टा फिरा तो हमने उन पर तुम्हें निगरां बना कर नहीं भेजा है ओर ये लोग कहते हैं कि हमें क़ुबूल है। फिर जब तुम्हारे पास से निकलते हैं तो उनमें से एक गिरोह उसके ख़िलाफ़ मश्विरा करता है जो वह कह चुका था। और अल्लाह उनकी सरगेशियों (कुकृत्यों) को लिख रहा है। पस तुम उनसे एराज़ (उपेक्षा) करो और अल्लाह पर भरोसा रखो, और अल्लाह भरोसे के लिए काफ़ी है। कया ये लोग क़ुरआन पर ग़ौर नहीं करते, अगर यह अल्लाह के सिवा किसी और की तरफ़ से होता तो वे इसके अंदर बड़ा इख्तेलाफ़ (मतभेद) पाते। और जब उन्हें कोई बात अम्न या ख़ौफ़ की पहुंचती है तो वह उसे फैला देते हैं। और अगर वे उसे रसूल तक या अपने ज़िम्मेदार लोगों तक पहुंचाते तो उनमें से जो लोग तहक़ीक़ करने वाले हैं वे उसकी हक़ीक़त जान लेते। और अगर तुम पर अल्लाह का फ़ज़्ल और उसकी रहमत न होती तो थोड़े लोगों के सिवा तुम सब शैतान के पीछे लग जाते। (80-83)

पस लड़ो अल्लाह की राह में। तुम पर अपनी जान के सिवा किसी की ज़िम्मेदारी नहीं और मुसलमानों को उभारो। उम्मीद है कि अल्लाह मुंकिरों का ज़ोर तोड़ दे और अल्लाह बड़ा ज़ोर वाला और बहुत सख्त सज़ा देने वाला है। जो शख्स किसी अच्छी बात के हक़ में कहेगा उसके लिए उसमें से हिस्सा है और जो इसके विरोध में कहेगा उसके लिए उसमें से हिस्सा है और अल्लाह हर चीज़ पर क्रुदरत रखने वाला है। और जब कोई तुम्हें दुआ दे तो तुम भी दुआ दो उससे बेहतर या उलट कर वही कह दो, बेशक अल्लाह हर चीज़ का हिसाब लेने वाला है। अल्लाह ही माबूद है, उसके सिवा कोई माबूद (पूज्य) नहीं। वह तुम सब को क़ियामत के दिन जमा करेगा जिसके आने में कोई शुबह नहीं। और अल्लाह की बात से बढ़कर सच्ची बात और किसकी हो सकती है। (84-87)

फिर तुम्हें क्या हुआ है कि तुम मुनाफ़िक़ों (पाखंडियों) के मामले में दो गिरोह हो रहे हो। हालांकि अल्लाह ने उनके आमाल के सबब से उन्हें उल्टा फेर दिया है। कया तुम चाहते हो कि उन्हें राह पर लाओ जिन्हें अल्लाह ने गुमराह कर दिया है। और जिसे अल्लाह गुमराह कर दे तुम हरगिज़ उसके लिए कोई राह नहीं पा सकते। वे चाहते हैं कि जिस तरह उन्होंने इंकार किया है तुम भी इंकार करो ताकि तुम सब बराबर हो जाओ। पस तुम उनमें से किसी को दोस्त न बनाओ जब तक वे अल्लाह की राह में हिजरत न करें। फिर अगर वे इसे क़ुबूल न करें तो उन्हें पकड़ो और जहां कहीं उन्हें पाओ उनको क़त्ल करो और उनमें से किसी को साथी और मददगार न बनाओ। मगर वे लोग जिनका तअल्लुक़ किसी ऐसी क़ौम से हो जिनके साथ तुम्हारा समझौता है। या वे लोग जो तुम्हारे पास इस हाल में आएं कि उनके सीने तंग हो रहे हैं तुम्हारी लड़ाई से और अपनी क्रौम की लड़ाई से। और अगर अल्लाह चाहता तो उन्हें तुम पर ज़ोर दे देता तो वे ज़रूर तुमसे लड़ते। पस अगर वे तुम्हें छोड़े रहें और तुमसे जंग न करें और तुम्हारे साथ सुलह का रवैया रखें तो अल्लाह तुम्हें भी उनके ख़िलाफ़ किसी इक़दाम की इजाज़त नहीं देता। दूसरे कुछ ऐसे लोगों को भी तुम पाओगे जो चाहते हैं कि तुमसे भी अम्न में रहें और अपनी क़ौम से भी अम्न में रहें। जब कभी वे फ़ितने का मौक़ा पाएं वे उसमें कूद पड़ते हैं। ऐसे लोग अगर तुमसे यकसू न रहें और तुम्हारे साथ सुलह का रवैया न रखें और अपने हाथ न रोकें तो तुम उन्हें पकड़ो और उन्हें क़त्ल करो जहां कहीं पाओ। ये लोग हैं जिनके ख़िलाफ़ हमने तुम्हें खुली हुज्जत दी है। (88-91)

और मुसलमान का काम नहीं कि वह मुसलमान को क़त्ल करे मगर यह कि ग़लती से ऐसा हो जाए। और जो शख्स किसी मुसलमान को ग़लती से क़त्ल कर दे तो वह एक मुसलमान गुलाम को आज़ाद करे और मक़्तूल (मृतक) के वारिसों को ख़ूंबहा (क़त्ल का आर्थिक हर्जाना) दे, मगर यह कि वे माफ़ कर दें। फिर मक़्तूल अगर ऐसी क़्ौम में से था जो तुम्हारी दुश्मन है और वह ख़ुद मुसलमान था तो वह एक मुसलमान गुलाम को आज़ाद करे। और अगर वह ऐसी क्रौम से था कि तुम्हिरे और उसके दर्मियान समझौता है तो वह उसके वारिसों को ख़ूंबहा (कत्ल का आर्थिक हर्जाना) दे और एक मुसलमान को आज़ाद करे। फिर जिसे मयस्सर न हो तो वह लगातार दो महीने के रोज़े रखे। यह तौबा है अल्लाह की तरफ़ से। और अल्लाह जानने वाला हिक्मत वाला है। और जो शख्स किसी मुसलमान को जान कर क़त्ल करे तो इसकी सज़ा जहन्नम है जिसमें वह हमेशा रहेगा और उस पर अल्लाह का ग़ज़ब और उसकी लानत है और अल्लाह ने उसके लिए बड़ा अज़ाब तैयार कर रखा है। (92-93)

ऐ ईमान वालो जब तुम सफ़र करो अल्लाह की राह में तो ख़ूब तहक़ीक़ कर लिया करो और जो शख्स तुम्हें सलाम करे उसे यह न कहो कि तू मुसलमान नहीं। तुम दुनियावी ज़िंदगी का सामान चाहते हो तो अल्लाह के पास ग़नीमत के बहुत सामान है। तुम भी पहले ऐसे ही थे। फिर अल्लाह ने तुम पर फ़ज़्ल किया तो तहक़ीक़ कर लिया करों। जो कुछ तुम करते हो अल्लाह उससे ख़बरदार है। बराबर नहीं हो सकते बैठे रहने वाले मुसलमान जिनको कोई उज्ज (विवशता) नहीं और वे मुसलमान जो अल्लाह की राह में लड़ने वाले हैं अपने माल और अपनी जान से। माल व जान से जिहाद करने वालों का दर्जा अल्लाह ने बैठे रहने वालों की निस्बत बड़ा रखा है और हर एक से अल्लाह ने भलाई का वादा किया है। और अल्लाह ने जिहाद करने वालों को बैठे रहने वालों पर अज्े अज़ीम में बरतरी दी है। उनके लिए अल्लाह की तरफ़ से बड़े दर्जे हैं और मग्फ़िरत (क्षमा) और रहमत है। और अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है। (94-96)

जो लोग अपना बुरा कर रहे हैं जब उनकी जान फ़रिश्ते निकालेंगे तो वे उनसे पूछेंगे कि तुम किस हाल में थे। वे कहेंगे कि हम ज़मीन में बेबस थे। फ़रिश्ते कहेंगे क्या ख़ुदा की ज़मीन कुशादा न थी कि तुम वतन छोड़कर वहां चले जाते। ये वे लोग हैं जिनका ठिकाना जहन्नम है और वह बहुत बुरा ठिकाना है। मगर वे बेबस मर्द और औरतें और बच्चे जो कोई तदबीर नहीं कर सकते और न कोई राह पा रहे हैं, ये लोग उम्मीद है कि अल्लाह उन्हें माफ़ कर देगा और अल्लाह माफ़ करने वाला बख़्शने वाला है। और जो कोई अल्लाह की राह में वतन छोड़ेगा वह ज़मीन में बड़े ठिकाने और बड़ी वुस्अत पाएगा और जो शख्स अपने घर से अल्लाह और उसके रसूल की तरफ़ हिजरत करके निकले, फिर उसे मौत आ जाए तो उसका अज्र अल्लाह के यहां मुक़र्रर हो चुका और अल्लाह बख्शने वाला रहम करने वाला है। (97-100)

और जब तुम ज़मीन में सफ़र करो तो तुम पर कोई गुनाह नहीं कि तुम नमाज़ में कमी करो, अगर तुम्हें डर हो कि मुंकिर तुम्हें सताएंगे। बेशक मुंकिर लोग तुम्हारे खुले हुए दुश्मन हैं। और जब तुम मुसलमानों के दर्मियान हो और उनके लिए नमाज़ क़ायम करो तो चाहिए कि उनकी एक जमाअत तुम्हारे साथ खड़ी हो और वह अपने हथियार लिए हुए हो। पस जब वे सज्दा कर चुकें तो वे तुम्हारे पास से हट जाएं और दूसरी जमाअत आए जिसने अभी नमाज़ नहीं पढ़ी है और वे तुम्हारे साथ नमाज़ पढ़ें। और वे भी अपने बचाव का सामान और अपने हथियार लिए रहें। मुंकिर लोग चाहते हैं कि तुम अपने हथियारों और सामान से किसी तरह ग़ाफ़िल हो जाओ तो वे तुम पर एकबारगी टूट पड़ें। और तुम्हारे ऊपर कोई गुनाह नहीं अगर तुम्हें बारिश के सबब से तकलीफ़ हो या तुम बीमार हो तो अपने हथियार उतार दो और अपने बचाव का सामान लिए रहो। बेशक अल्लाह ने मुंकिरों के लिए रुसवा करने वाला अज़ाब तैयार कर रखा है। पस जब तुम नमाज़ अदा कर लो तो अल्लाह को याद करो खड़े और बैठे और लेटे। फिर जब इत्मीनान हो जाए तो नमाज़ की इक़रामत करो। बेशक नमाज़ अहले ईमान पर मुक़र्रर वक़्तों के साथ फ़र्ज़ है। और क़ौम का पीछा करने से हिम्मत न हारो। अगर तुम दुख उठाते हो तो वे भी तुम्हारी तरह दुख उठाते हैं और तुम अल्लाह से वह उम्मीद रखते हो जो उम्मीद वे नहीं रखते। और अल्लाह जानने वाला हिक्मत वाला है। (101-104)

बेशक हमने यह किताब तुम्हारी तरफ़ हक़ के साथ उतारी है ताकि तुम लोगों के दर्मियान उसके मुताबिक़ फ़ैसला करो जो अल्लाह ने तुम्हें दिखाया है। और बददयानत लोगों की तरफ़ से झगड़ने वाले न बनो। और अल्लाह से बख्शिश मांगो। बेशक अल्लाह बख्शने वाला मेहरबान है। और तुम उन लोगों की तरफ़ से न झगड़ो जो अपने आप से ख़ियानत कर रहे हैं। अल्लाह ऐसे शख्स को पसंद नहीं करता जो ख़ियानत वाला और गुनाहगार हो। वे आदमियों से शर्माते हैं और अल्लाह से नहीं शर्माते। हालांकि वह उनके साथ होता है जबकि वे सरगोशियां (गुप्त वार्ता) करते हैं उस बात की जिससे अल्लाह राज़ी नहीं। और जो कुछ वे करते हैं अल्लाह उसका इहाता (आच्छादन) किए हुए है। (105-108)

तुम लोगों ने दुनिया की ज़िंदगी में तो उनकी तरफ़ से झगड़ा कर लिया। मगर क़ियामत के दिन कौन उनके बदले अल्लाह से झगड़ा करेगा या कौन होगा उनका काम बनाने वाला। और जो शख्स बुराई करे या अपने आप पर ज़ुल्म करे फिर अल्लाह से बख््शिश मांगे तो वह अल्लाह को बख़्शने वाला रहम करने वाला पाएगा। और जो शख्स कोई गुनाह करता है तो वह अपने ही हक़ में करता है और अल्लाह जानने वाला हिक्मत (तत्वज्ञान) वाला है। और जो शख्स कोई गलती या गुनाह करे फिर उसकी तोहमत किसी बेगुनाह पर लगा दे तो उसने एक बड़ा बोहतान और खुला हुआ गुनाह अपने सर ले लिया। और अगर तुम पर अल्लाह का फ़ज्ल और उसकी रहमत न होती तो उनमें से एक गिरोह ने तो यह ठान ही लिया था कि तुम्हें बहका कर रहेगा। हालांकि वे अपने आप को बहका रहे हैं। वे तुम्हारा कुछ बिगाड़ नहीं सकते। और अल्लाह ने तुम पर किताब और हिक्मत(तत्वज्ञान) उतारी है और तुम्हें वह चीज़ सिखाई है जिसे तुम नहीं जानते थे और अल्लाह का फ़ज़्ल है तुम पर बहुत बड़ा। (109-113)

उनकी अक्सर सरगोशियों (कानाफूसियों) में कोई भलाई नहीं। भलाई वाली सरगोशी सिर्फ़ उसकी है जो सदक़ा करने को कहे या किसी नेक काम के लिए या लोगों में सुलह कराने के लिए कहे | जो शख़्स अल्लाह की ख़ुशी के लिए ऐसा करे तो हम उसे बड़ा अज् अता करेंगे। मगर जो शख्स रसूल की मुख़ालिफ़त करेगा और मोमिनों के रास्ते के सिवा किसी और रास्ते पर चलेगा, हालांकि उस पर राह वाज़ेह हो चुकी, तो उसे हम उसी तरफ़ चलाएंगे जिधर वह ख़ुद फिर गया और उसे जहन्नम में दाख़िल करेंगे और वह बुरा ठिकाना है। बेशक अल्लाह इसे नहीं बख़्छेगा कि उसका शरीक ठहराया जाए और इसके सिवा गुनाहों को बख्शा देगा जिसके लिए चाहेगा। और जिसने अल्लाह का शरीक ठहराया वह बहक कर बहुत दूर जा पड़ा। वे अल्लाह को छोड़कर पुकारते हैं देवियों को और वे पुकारते हैं सरकश शैतान को। उस पर अल्लाह ने लानत की है। और शैतान ने कहा था कि मैं तेरे बंदों से एक मुक़र्रर हिस्सा लेकर रहूंगा। मैं उन्हें बहकाऊंगा और उन्हें उम्मीदें दिलाऊंगा और उन्हें समझाऊंगा तो वे चौपायों के कान काटेंगे और उन्हें समझाऊंगा तो वे अल्लाह की बनावट को बदलेंगे और जो शख्स अल्लाह के सिवा शैतान को अपना दोस्त बनाए तो वह खुले हुए नुक़्सान में पड़ गया। वह उन्हें वादा देता है और उन्हें उम्मीदें दिलाता है और शैतान के तमाम वादे फ़रेब के सिवा और कुछ नहीं। ऐसे लोगों का ठिकाना जहन्नम है और वे उससे बचने की कोई राह न पाएंगे। और जो लोग ईमान लाए और उन्होंने नेक काम किए उन्हें हम ऐसे बाग़ों में दाख़िल करेंगे जिनके नीचे नहरें जारी होंगी और वे हमेशा उसमें रहेंगे। अल्लाह का वादा सच्चा है और अल्लाह से बढ़कर कौन अपनी बात में सच्चा होगा। न तुम्हारी आरज़ुओं (कामनाओं) पर है और न अहले किताब की आरज़ुओं पर। जो कोई भी बुरा करेगा उसका बदला पाएगा। और वह न पाएगा अल्लाह के सिवा अपना कोई हिमायती और न मददगार | और जो शख्स कोई नेक काम करेगा, चाहे वह मर्द हो या औरत बशर्ते कि वह मोमिन हो, तो ऐसे लोग जन्नत में दाखिल होंगे। और उन पर ज़रा भी ज़ुल्म न होगा। और उससे बेहतर किस का दीन है जो अपना चेहरा अल्लाह की तरफ़ झुका दे और वह नेकी करने वाला हो। और वह चले इब्राहीम के दीन पर जो एक तरफ़ का था और अल्लाह ने इब्राहीम को अपना दोस्त बना लिया था। और अल्लाह का है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है और अल्लाह हर चीज़ का इहाता (आच्छादन) किए हुए है। (114-126)

और लोग तुमसे औरतों के बारे में हुक्म पूछते हैं। कह दो अल्लाह तुम्हें उनके बारे में हुक्म देता है और वे आयतें भी जो तुम्हें किताब में उन यतीम औरतों के बारे में पढ़कर सुनाई जाती हैं जिन्हें तुम वह नहीं देते जो उनके लिए लिखा गया है और चाहते हो कि उन्हें निकाह में ले आओ। और जो आयतें कमज़ोर बच्चों के बारे में हैं और यतीमों के साथ इंसाफ़ करो और जो भलाई तुम करोगे वह अल्लाह को खूब मालूम है। और अगर किसी औरत को अपने शौहर की तरफ़ से बदसुलूकी या बेरुख़ी का अंदेशा हो तो इसमें कोई हर्ज नहीं कि दोनों आपस में कोई सुलह कर लें और सुलह बेहतर है। और हिर्स (लोभ) इंसान की तबीअत में बसी हुई है। और अगर तुम अच्छा सुलूक करो और ख़ुदातरसी (ईश परायणता) से काम लो तो जो कुछ तुम करोगे अल्लाह उससे बाख़बर है। और तुम हरगिज़ औरतों को बराबर नहीं रख सकते अगरचे तुम ऐसा करना चाहो | पस बिल्कुल एक ही तरफ़ न झुक पड़ो कि दूसरी को लटकी हुई की तरह छोड़ दो। और अगर तुम इस्लाह (सुधार) कर लो और डरो तो अल्लाह बख्शने वाल मेहरबान है। और अगर दोनों जुदा हो जाएं तो अल्लाह हर एक को अपनी वुस्अत [सामर्थ्य) से बेएहतियाज (निराश्चित) कर देगा और अल्लाह बड़ी वुस्अत वाला हिक्मत (तत्वदर्शिता) वाला है। (127-130)

और अल्लाह का है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है। और हमने हुक्म दिया है उन लोगों को जिन्हें तुमसे पहले किताब दी गई और तुम्हें भी कि अल्लाह से डरो। और अगर तुमने न माना तो अल्लाह ही का है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है और अल्लाह बेनियाज़ (निस्पृष्ठ) है सब ख़ूबियों वाला है। और अल्लाह ही का है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है और भरोसे के लिए अल्लाह काफ़ी है। अगर वह चाहे तो तुम सबको ले जाए ऐ लोगो, और दूसरों को ले आए। और अल्लाह इस पर क्रादिर है। जो शख्स दुनिया का सवाब चाहता हो तो अल्लाह के पास दुनिया का सवाब भी है और आख़िरत का सवाब भी। और अल्लाह सुनने वाला और देखने वाला है। (131-134)

ऐ ईमान वालो, इंसाफ़ पर ख़ूब क्रायम रहने वाले और अल्लाह के लिए गवाही देने वाले बनो, चाहे वह तुम्हारे या तुम्हारे मां-बाप या अज़ीजों के ख़िलाफ़ हो। अगर कोई मालदार है या मोहताज तो अल्लाह तुमसे ज़्यादा दोनों का ख़ैरख़्वाह है। पस तुम ख्वाहिश की पैरवी न करो कि हक़ से हट जाओ। और अगर तुम कजी (हेर-फेर) करोगे या पहलूतही (अवहेलना) करोगे तो जो कुछ तुम कर रहे हो अल्लाह उससे बाख़बर है। (135) 

ऐ ईमान वालो, ईमान लाओ अल्लाह पर और उसके रसूल पर और उस किताब पर जो उसने अपने रसूल पर उतारी और उस किताब पर जो उसने पहले नाज़िल की। और जो शख्स इंकार करे अल्लाह का और उसके फ़रिश्तों का और उसकी किताबों का और उसके रसूलों का और आख़िरत के दिन का तो वह बहक कर दूर जा पड़ा। बेशक जो लोग ईमान लाए फिर इंकार किया, फिर ईमान लाए फिर इंकार किया, फिर इंकार में बढ़ते गए तो अल्लाह उन्हें हरगिज़ नहीं बर्छोगा और न उन्हें राह दिखाएगा। मुनाफ़िक़ों (पाखंडियों) को ख़ुशख़बरी दे दो कि उनके लिए एक दर्दनाक अज़ाब है। वे लोग जो मोमिनों को छोड़कर मुंकिरों को दोस्त बनाते हैं, क्या वे उनके पास इज़्जत की तलाश कर रहे हैं, तो इज़्जत सारी अल्लाह के लिए है। (136-139)

और अल्लाह किताब में तुम पर यह हुक्म उतार चुका है कि जब तुम सुनो कि अल्लाह की निशानियों का इंकार किया जा रहा है और उनका मज़ाक़ किया जा रहा है तो तुम उनके साथ न बैठो यहां तक कि वे दूसरी बात में मशगूल हो जाएं। वर्ना तुम भी उन्हीं जैसे हो गए। अल्लाह मुनाफ़िक़ों को और मुंकिरों को जहन्नम में एक जगह इकट्ठा करने वाला है। वे मुनाफ़िक़ तुम्हारे लिए इंतिज़ार में रहते हैं। अगर तुम्हें अल्लाह की तरफ़ से कोई फ़तह हासिल होती है तो कहते हैं कि क्या हम तुम्हारे साथ न थे। और अगर मुंकिरों को कोई हिस्सा मिल जाए तो उनसे कहेंगे कि क्या हम तुम्हारे ख़िलाफ़ लड़ने पर क़ादिर (समर्थ) न थे और फिर भी हमने तुम्हें मुसलमानों से बचाया। तो अल्लाह ही तुम लोगों के दर्मियान क़ियामत के दिन फ़ैसला करेगा और अल्लाह हरगिज़ मुंकिरों को मोमिनों पर कोई राह नहीं देगा। (140-141)

मुनाफ़िक्रीन (पाखंडी) अल्लाह के साथ धोखेबाज़ी कर रहे हैं। हालांकि अल्लाह ही ने उन्हें धोखे में डाल रखा है। और जब वे नमाज़ के लिए खड़े होते हैं तो काहिली के साथ खड़े होते हैं महज़ लोगों को दिखाने के लिए। और वे अल्लाह को कम ही याद करते हैं। वे दोनों के बीच लटक रहे हैं, न इधर हैं और न उधर। और जिसे अल्लाह भटका दे तुम उसके लिए कोई राह नहीं पा सकते। ऐ ईमान वालो, मोमिनों को छोड़कर मुंकिरों को अपना दोस्त न बनाओ। क्या तुम चाहते हो कि अपने ऊपर अल्लाह की खुली हुज्जत क़ायम कर लो। बेशक मुनाफ़िक्रीन दोज़ख़ के सबसे नीचे के तबक़े में होंगे और तुम उनका कोई मददगार न पाओगे। अलबत्ता जो लोग तौबा करें और अपनी इस्लाह कर लें और अल्लाह को मज़बूती से पकड़ लें और अपने दीन को अल्लाह के लिए ख़ालिस कर लें तो ये लोग ईमान वालों के साथ होंगे और अल्लाह ईमान वालों को बड़ा सवाब देगा। अल्लाह तुम्हें अज़ाब देकर क्‍या करेगा अगर तुम शुक्रगुज़ारी करो और ईमान लाओ। अल्लाह बड़ा क़द्र करने वाला है सब कुछ जानने वाला है। (142-147)

अल्लाह बदगोई (कुवार्ता) को पसंद नहीं करता मगर यह कि किसी पर ज़ुल्म हुआ हो और अल्लाह सुनने वाला जानने वाला है। अगर तुम भलाई को ज़ाहिर करो या उसे छुपाओ या किसी बुराई से दरगुज़र करो तो अल्लाह माफ़ करने वाला कुदरत रखने वाला है। जो लोग अल्लाह और उसके रसूलों का इंकार कर रहे हैं और चाहते हैं कि अल्लाह और उसके रसूलों के दर्मियान तफ़रीक़ (विभेद) करें और कहते हैं कि हम किसी को मानेंगे और किसी को न मानेंगे। और वे चाहते हैं कि इसके बीच में एक राह निकालें। ऐसे लोग पक्के मुंकिर हैं और हमने मुंकिरों के लिए ज़िल्लत का अज़ाब तैयार कर रखा है। और जो लोग अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान लाए और उनमें से किसी को जुदा न किया उन्हें अल्लाह उनका अज् देगा और अल्लाह ग़फ़ूर (क्षमाशील) व रहीम (दयावान) है। (148-152)

अहले किताब तुमसे यह मुतालबा (मांग) करते हैं कि तुम उन पर आसमान से एक किताब उतार लाओ। पस मूसा से वे इससे भी बड़ी चीज़ का मुतालबा कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि हमें अल्लाह को बिल्कुल सामने दिखा दो। पस उनकी इस ज़्यादती के सबब उन पर बिजली आ पड़ी। फिर खुली निशानी आ चुकने के बाद उन्होंने बछड़े को माबूद (पूज्य) बना लिया। फिर हमने उससे दरगुज़र किया। और मूसा को हमने खुली हुज्जत अता की। और हमने उनके ऊपर तूर पहाड़ को उठाया उनसे अहद (वचन) लेने के वास्ते। और हमने उनसे कहा कि दरवाज़े में दाख़िल हो सर झुकाए हुए और उनसे कहा कि सब्त (सनीचर) के मामले में ज़्यादती न करना। और हमने उनसे मज़बूत अहद लिया। (153-154)

उन्हें जो सज़ा मिली वह इस पर कि उन्होंने अपने अहद (वचन) को तोड़ा और इस पर कि उन्होंने अल्लाह की निशानियों का इंकार किया और इस पर कि उन्होंने पैग़म्बरों को नाहक़ क़त्ल किया और इस कहने पर कि हमारे दिल तो बंद हैं– बल्कि अल्लाह ने उनके इंकार के सबब से उनके दिलों पर मुहर कर दी है तो वे कम ही ईमान लाते हैं। और उनके इंकार पर और मरयम पर बड़ा तूफ़ान बांधने पर और उनके इस कहने पर कि हमने मसीह बिन मरयम, अल्लाह के रसूल को क़त्ल कर दिया- हालांकि उन्होंने न उसे क़त्ल किया और न सूली दी बल्कि मामला उनके लिए संदिग्ध कर दिया गया। और जो लोग इसमें मतभेद कर रहे हैं वे इसके बारे में शक में पड़े हुए हैं। उन्हें इसका कोई इल्म नहीं, वह सिर्फ़ अटकल पर चल रहे हैं। और बेशक उन्होंने उसे क़त्ल नहीं किया। बल्कि अल्लाह ने उसे अपनी तरफ़ उठा लिया और अल्लाह ज़बरदस्त है हिक्मत (तत्वदर्शिता) वाला है। (155-158) 

और अहले किताब में से कोई ऐसा नहीं जो उसकी मौत से पहले उस पर ईमान न ले आए और क्रियामत के दिन वह उन पर गवाह होगा। पस यहूद के ज़ुल्म की वजह से हमने वे पाक चीज़ें उन पर हराम कर दीं जो उनके लिए हलाल थीं। और इस वजह से कि वे अल्लाह की राह से बहुत रोकते थे। और इस वजह से कि वे सूद लेते थे हालांकि इससे उन्हें मना किया गया था और इस वजह से कि वे लोगों का माल बातिल तरीक़े से खाते थे। और हमने उनमें से मुंकिरों के लिए दर्दनाक अज़ाब तैयार कर रखा है। मगर उनमें जो लोग इल्म में पुख्ता और ईमान वाले हैं वे ईमान लाए हैं उस पर जो तुम्हारे ऊपर उतारी गई और जो तुमसे पहले उतारी गई और वे नमाज़ के पाबंद हैं और ज़कात अदा करने वाले हैं और अल्लाह पर और क़रियामत के दिन पर ईमान रखने वाले हैं। ऐसे लोगों को हम ज़रूर बड़ा अज्र (प्रतिफल) देंगे। (159-162)

हमने तुम्हारी तरफ़ “वही” (ईश्वरीय वाणी) भेजी है जिस तरह हमने नूह़ और उसके बाद के नबियों की तरफ़ वही” भेजी थी। और हमने इब्राहीम और इस्माईल और इस्हाक़ और याकूब और औलादे याकूब और ईसा और अय्यूब और यूनुस और हारून और सुलैमान की तरफ़ “वही” भेजी थी। और हमने दाऊद को ज़बूर दी। और हमने ऐसे रसूल भेजे जिनका हाल हम तुम्हें पहले सुना चुके हैं और ऐसे रसूल भी जिनका हाल हमने तुम्हें नहीं सुनाया। और मूसा से अल्लाह ने कलाम किया। अल्लाह ने रसूलों को ख़ुशख़बरी देने वाले और डराने वाले बनाकर भेजा ताकि रसूलों के बाद लोगों के पास अल्लाह के मुक़ाबले में कोई हुज्जत बाक़ी न रहे और अल्लाह ज़बरदस्त है हिक्‍्मत (तत्वदर्शिता) वाला है। मगर अल्लाह गवाह है उस पर जो उसने तुम्हारे ऊपर उतारा है कि उसने इसे अपने इल्म के साथ उतारा है और फ़रिश्ते भी गवाही देते हैं और अल्लाह गवाही के लिए काफ़ी है। जिन लोगों ने इंकार किया और अल्लाह के रास्ते से रोका वे बहक कर बहुत दूर निकल गए। जिन लोगों ने इंकार किया और ज़ुल्म किया उन्हें अल्लाह हरगिज़ नहीं बख़्शेगा न ही उन्हें जहन्नुम के सिवा कोई रास्ता दिखाएगा जिसमें वे हमेशा रहेंगे। और अल्लाह के लिए यह आसान है। ऐ लोगो, तुम्हारे पास रसूल आ चुका तुम्हारे रब की ठीक बात लेकर। पस मान लो ताकि तुम्हारा भत्ना हो। और अगर न मानोगे तो अल्लाह का है जो कुछ आसमानों में और ज़मीन में है। और अल्लाह जानने वाला हिक्मत (तत्वदर्शिता) वाला है। (163-170)

ऐ अहले किताब अपने दीन में गुलू (अति) न करो और अल्लाह के बारे में कोई बात हक़ के सिवा न कहो। मसीह ईसा इब्ने मरयम तो बस अल्लाह के एक रसूल और उसका एक कलिमा हैं जिसे उसने मरयम की तरफ़ भेजा और उसकी जानिब से एक रूह हैं। पस अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान लाओ और यह न कहो कि ख़ुदा तीन हैं। बाज आ जाओ, यही तुम्हारे हक़ में बेहतर है। माबूद तो बस एक अल्लाह ही है। वह पाक है कि उसके औलाद हो। उसी का है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है और अल्लाह ही का कारसाज़ होना काफ़ी है। मसीह को हरगिज़ अल्लाह का बंदा बनने से संकोच न होगा और न मुक़र्रब (प्रतिष्ठित) फ़रिश्तों को होगा। और जो अल्लाह की बंदगी से संकोच करेगा और घमंड करेगा तो अल्लाह ज़रूर सबको अपने पास जमा करेगा। फिर जो लोग ईमान लाए और जिन्होंने नेक काम किए तो उन्हें वह पूरा-पूरा अज् देगा और अपने फ़ज़्ल से उन्हें और भी देगा। और जिन लोगों ने संकोच और घमंड किया होगा उन्हे दर्दनाक अज़ाब देगा और वे अल्लाह के मुक़ाबले में न किसी को अपना दोस्त पाऐँगे और न मददगार। (171-174)

ऐ लोगो, तुम्हारे पास तुम्हारे रब की तरफ़ से एक दलील आ चुकी है और हमने तुम्हारे ऊपर एक वाज़ेह (सुस्पष्ट) रोशनी उतार दी। पस जो लोग अल्लाह पर ईमान लाए और उसे उन्होंने मज़बूत पकड़ लिया उन्हें ज़रूर अल्लाह अपनी रहमत और फ़ज़्ल में दाखिल करेगा और उन्हें अपनी तरफ़ सीधा रास्ता दिखाएगा। लोग तुमसे हुक्म पूछते हैं। कह दो अल्लाह तुम्हें कलाला (जिसका कोई वारिस न हो न ही मां बाप) के बारे में हुक्म बताता है। अगर कोई शख्स मर जाए और उसके कोई औलाद न हो और उसके एक बहिन हो तो उसके लिए उसके तरके का आधा है। और वह मर्द उस बहिन का वारिस होगा अगर उस बहिन के कोई औलाद न हो। और अगर दो बहिनें हों तो उनके लिए उसके तरके का दो तिहाई होगा। और अगर कई भाई-बहिन, मर्द-औरतें हों तो एक मर्द के लिए दो औरतों के बराबर हिस्सा है। अल्लाह तुम्हारे लिए बयान करता है ताकि तुम गुमराह न हो और अल्लाह हर चीज़ का जानने वाला है। (175-176)

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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