सूरह अल हिज्र हिंदी में – सूरह 15
सूरह अल हिज्र कुरान शरीफ का पंद्रहवाँ सूरह है, जिसमें कुल 99 आयतें और 6 रुकुस हैं। यह सूरह मक्की है। माना जाता है कि पैगंबर मुहम्मद ने मक्का में अपने आख़िरी वर्षों के दौरान बारहवें सूरह यूसुफ़ के तुरंत बाद सूरह अल हिज्र को पाया था। सूरह अल हिज्र अपना नाम 80वीं आयत से लेता है, जो एक पूर्व-इस्लामिक पुरातात्विक जगह मदीन सालेह के लोगों से जुड़ा है। कई जगहों पर इसे अल-हिज्र या हेग्रा भी कहा जाता है। सूरह हिज्र को सफ़ेद कागज़ पर लिख कर हाथ में पहन लेने से काम और व्यापार में बहुत तरक्की मिलती है, साथ ही जब तक व्यापारी इस सूरह को पाने पास रखता है तब तक उसे खाने-पीने और दौलत-शोहरत की कमी नहीं होती है। कहते हैं जो व्यक्ति सूरह अल हिज्र की नौवीं आयत को 1000 बार पढ़ता है अल्लाह उसकी सारी इच्छाओं को पूरा करते हैं। जो कोई सूरह हिज्र पढ़ता है, अल्लाह उसे मुहाजिरुन और अंसार की संख्या में इनाम देते हैं। पढ़ें सूरह अल हिज्र हिंदी में (Surah Hijr in Hindi)-
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।
अलिफ़० लाम० रा०। ये आयतें हैं किताब की और एक वाज़ेह (सुस्पष्ट) क़ुरआन की। वह वक़्त आएगा जब इंकार करने वाले लोग तमन्ना करेंगे कि काश वे मानने वाले बने होते। उन्हें छोड़ो कि वे खाएं और फ़ायदा उठाएं और ख़्याली उम्मीद उन्हें भुलावे में डाले रखे, पस आइंदा वे जान लेंगे। और हमने इससे पहले जिस बस्ती को भी हलाक किया है उसका एक मुक़र्रर वक़्त लिखा हुआ था। कोई क़ौम न अपने मुक़र्रर वक़्त से आगे बढ़ती और न पीछे हटती। (1-5)
और ये लोग कहते हैं कि ऐ वह शख्स जिस पर नसीहत उतरी है तू बेशक दीवाना है। अगर तू सच्चा है तो हमारे पास फ़रिश्तों को क्यों नहीं ले आता। हम फ़रिश्तों को सिर्फ़ फ़ैसले के लिए उतारते हैं और उस वक़्त लोगों को मोहलत नहीं दी जाती। यह याददिहानी (किताब) हम ही ने उतारी है और हम ही इसके मुहाफ़िज़ (संरक्षक) हैं। और हम तुमसे पहले गुज़री हुई क्रौमों में रसूल भेज चुके हैं। और जो रसूल भी उनके पास आया वे उसका मज़ाक़ उड़ाते रहे। इसी तरह हम यह (मज़ाक़) मुजरिमीन के दिलों में डाल देते हैं। वे इस पर ईमान नहीं लाएंगे। और यह दस्तूर अगलों से होता आया है। और अगर हम उन पर आसमान का कोई दरवाज़ा खोल देते जिस पर वे चढ़ने लगते तब भी वे कह देते कि हमारी आंखों को धोखा हो रहा है, बल्कि हम पर जादू कर दिया गया है। और हमने आसमान में बुर्ज बनाए और देखने वालों के लिए उसे रौनक़ दी। और उसे हर शैतान मर्दूद से महफ़ूज़ किया। अगर कोई चोरी छुपे सुनने के लिए कान लगाता है तो एक रोशन शोला उसका पीछा करता है। (6-18)
और हमने ज़मीन को फैलाया और उस पर हमने पहाड़ रख दिए और उसमें हर चीज़ एक अंदाज़े से उगाई। और हमने तुम्हारे लिए उसमें मईशत (जीविका) के असबाब बनाए और वे चीज़ें जिन्हें तुम रोज़ी नहीं देते। और कोई चीज़ ऐसी नहीं जिसके ख़ज़ाने हमारे पास न हों और हम उसे एक मुअय्यन (निर्धारित) अंदाज़े के साथ ही उतारते हैं। और हम ही हवाओं को बारआवर (वर्षा लाने वाली) बनाकर चलाते हैं। फिर हम आसमान से पानी बरसाते हैं फिर उस पानी से तुम्हें सैराब करते हैं। और तुम्हारे वश में न था कि तुम उसका ज़ख़ीरा जमा करके रखते। (19-22) और बेशक हम ही ज़िंदा करते हैं और हम ही मारते हैं। और हम ही बाक़ी रह जाएंगे और हम तुम्हारे अगलों को भी जानते हैं और तुम्हारे पिछलों को भी जानते हैं। और बेशक तुम्हारा रब उन सबको इकट्ठा करेगा। वह इल्म वाला है, हिक्मत (तत्वदर्शिता) वाला है। और हमने इंसान को सने हुए गारे की खनखनाती मिट्टी से पैदा किया और इससे पहले जिन्नों को हमने आग की लपट से पैदा किया। और जब तेरे रब ने फ़रिश्तों से कहा कि मैं सने हुए गारे की सूखी मिट्टी से एक बशर (इंसान) पैदा करने वाला हूं। जब मैं उसे पूरा बना लूं और उसमें अपनी रूह में से फूंक दूं तो तुम उसके लिए सज्दे में गिर पड़ना। पस तमाम फ़रिश्तों ने सज्दा किया मगर इब्लीस (शैतान), कि उसने सज्दा करने वालों का साथ देने से इंकार कर दिया। ख़ुदा ने कहा ऐ इब्लीस, तुझे क्या हुआ कि तू सज्दा करने वालों में शामिल न हुआ। इब्लीस ने कहा कि मैं ऐसा नहीं कि बशर को सज्दा करूं जिसे तूने सने हुए गारे की सूखी मिट्टी से पैदा किया है। (23-33)
ख़ुदा ने कहा तू यहां से निकल जा क्योंकि तू मरदूद (धुत्कारा हुआ) है, और बेशक तुझ पर रोज़े जज़ा (बदले के दिन) तक लानत है। इब्लीस ने कहा, ऐ मेरे रब, तू मुझे उस दिन तक के लिए मोहलत दे जिस दिन लोग उठाए जाएंगे। ख़ुदा ने कहा, तुझे मोहलत है उस मुक़र्रर वक़्त के दिन तक। इब्लीस ने कहा, ऐ मेरे रब, जैसे तूने मुझे गुमराह किया है इसी तरह मैं ज़मीन में उनके लिए मुज़य्यन (दिलकशी) करूंगा और सबको गुमराह कर दूंगा। सिवा उनके जो तेरे चुने हुए बंदे हैं। अल्लाह ने फ़रमाया, यह एक सीधा रास्ता है जो मुझ तक पहुंचता है। बेशक जो मेरे बंदे हैं उन पर तेरा ज़ोर नहीं चलेगा। सिवा उनके जो गुमराहों में से तेरी पैरवी करें। और उन सबके लिए जहन्नम का वादा है। उसके सात दरवाज़े हैं। हर दरवाज़े के लिए उन लोगों के अलग-अलग हिस्से हैं। बेशक डरने वाले बाग़ों और चशमों (स्रोतों) में होंगे। दाख़िल हो जाओ इनमें सलामती और अम्न के साथ। और उनके सीनों की कुदूरतें (मन-मुटाव) हम निकाल देंगे, सब भाई-भाई की तरह रहेंगे तख़्तों पर आमने सामने। वहां उन्हें कोई तकलीफ़ नहीं पहुंचेगी और न वे वहां से निकाले जाएंगे। मेरे बंदों को ख़बर दे दो कि मैं बख़्शने वाला रहमत वाला हूं और मेरी सज़ा दर्दनाक सज़ा है। (34-50)
और उन्हें इब्राहीम के महमानों से आगाह करो। जब वे उसके पास आए फिर उन्होंने सलाम किया। इब्राहीम ने कहा कि हम तुम लोगों से डरते हैं। उन्होंने कहा कि अंदेशा न करो हम तुम्हें एक लड़के की बशारत (शुभ सूचना) देते हैं जो बड़ा आलिम होगा। इब्राहीम ने कहा कया तुम इस बुढ़ापे में मुझे औलाद की बशारत देते हो। पस तुम किस चीज़ की बशारत मुझे दे रहे हो। उन्होंने कहा कि हम तुम्हें हक़ के साथ बशारत देते हैं। पस तू नाउम्मीद होने वालों में से न हो। इब्राहीम ने कहा कि अपने रब की रहमत से गुमराहों के सिवा और कौन नाउम्मीद हो सकता है। (51-56)
कहा ऐ भेजे हुए फ़रिश्तो अब तुम्हारी मुहिम कया है। उन्होंने कहा कि हम एक मुजरिम क़ौम की तरफ़ भेजे गए हैं। मगर लूत के घर वाले कि हम उन सबको बचा लेंगे सिवाए उसकी बीवी के कि हमने ठहरा लिया है कि वह ज़रूर मुजरिम लोगों में रह जाएगी। फिर जब भेजे हुए फ़रिश्ते लूत के ख़ानदान के पास आए। उन्होंने कहा कि तुम लोग अजनबी मालूम होते हो। उन्होंने कहा कि नहीं बल्कि हम तुम्हारे पास वह चीज़ लेकर आए हैं जिसमें ये लोग शक करते हैं। और हम तुम्हारे पास हक़ के साथ आए हैं, और हम बिल्कुल सच्चे हैं। पस तुम कुछ रात रहे अपने घर वालों के साथ निकल जाओ। और तुम उनके पीछे चलो और तुम में से कोई पीछे मुढ़कर न देखे और वहां चले जाओ जहां तुम्हें जाने का हुक्म है। और हमने लूत के पास यह हुक्म भेजा कि सुबह होते ही उन लोगों की जड़ कट जाएगी। और शहर के लोग ख़ुश होकर आए। उसने कहा ये लोग मेरे महमान हैं, तुम लोग मुझे रुसवा न करो। और तुम अल्लाह से डरो और मुझे ज़लील न करो। उन्होंने कहा, क्या हमने तुम्हें दुनिया भर के लोगों से मना नहीं कर दिया। उसने कहा ये मेरी बेटियां हैं अगर तुम्हें करना है। (57-71)
तेरी जान की क़सम, वे अपनी सरमस्ती में मदहोश थे। पस दिन निकलते ही उन्हें चिंघाड़ ने पकड़ लिया। फिर हमने उस बस्ती को तलपट कर दिया और उन लोगों पर कंकर के पत्थर की बारिश कर दी। बेशक इसमें निशानियां हैं ध्यान करने वालों के लिए। और यह बस्ती एक सीधी राह पर वाक़ेअ (स्थित) है। बेशक इसमें निशानी है ईमान वालों के लिए। और ऐका वाले यक़ीनन ज़ालिम थे। पस हमने उनसे इंतिक्राम लिया। और ये दोनों बस्तियां खुले रास्ते पर वाक़ेअ (स्थित) हैं। और हिज़ वालों ने भी रसूलों को झुठलाया। और हमने उन्हें अपनी निशानियां दीं। मगर वे उससे मुंह फेरते रहे और वे पहाड़ों को तराशकर उनमें घर बनाते थे कि अम्न में रहें। पस उन्हें सुबह के वक़्त सख्त आवाज़ ने पकड़ लिया। पस उनका किया हुआ उनके कुछ काम न आया। (72-84)
और हमने आसमानों और ज़मीन को और जो कुछ उनके दर्मियान है हिक्मत (तत्वदर्शिता) के बगैर नहीं बनाया और बिलाशुबह क़ियामत आने वाली है। पस तुम ख़ूबी के साथ दरगुज़र (क्षमा) करो। बेशक तुम्हारा रब सबका ख़ालिक़ (स्रष्टा) है, जानने वाला है। और हमने तुम्हें सात मसानी और क़ुरआने अज़ीम अता किया है। तुम इस दुनिया की मताअ (सुख-सामग्री) की तरफ़ आंख उठाकर न देखो जो हमने उनमें से मुख्तलिफ़ लोगों को दी हैं और उन पर ग़म न करो और ईमान वालों पर अपने शफ़क़त (स्नेह) के बाज़ू झुका दो और कहो कि मैं एक खुला हुआ डराने वाला हूं। इसी तरह हमने तक़्सीम करने वालों पर भी उतारा था जिन्होंने अपने क्रुरआन के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। पस तेरे रब की क़सम, हम उन सबसे ज़रूर पूछेंगे, जो कुछ वे करते थे। (85-93)
पस जिस चीज़ का तुम्हें हुक्म मिला है उसे खोलकर सुना दो और मुश्रिकों से एराज़ (उपेक्षा) करो। हम तुम्हारी तरफ़ से उन मज़ाक़ उड़ाने वालों के लिए काफ़ी हैं जो अल्लाह के साथ दूसरे माबूद को शरीक करते हैं। पस अनक़रीब वे जान लेंगे। और हम जानते हैं कि जो कुछ वे कहते हैं उससे तुम्हारा दिल तंग होता है। पस तुम अपने रब की हम्द (प्रशंसा) के साथ उसकी तस्बीह करो। और सज्दा करने वालों में से बनो और अपने रब की इबादत करो। यहां तक कि तुम्हारे पास यक़ीनी बात आ जाए। (94-99)