सूरह इसराईल हिंदी में – बानी इसराईल (सूरह 17)
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।
पाक है वह जो ले गया एक रात अपने बंदे को मस्जिदे हराम से दूर की उस मस्जिद तक जिसके माहौल को हमने बाबरकत बनाया है ताकि हम उसे अपनी कुछ निशानियां दिखाएं। बेशक वह सुनने वाला, देखने वाला है। और हमने मूसा को किताब दी और उसे बनी इस्राईल के लिए हिदायत बनाया कि मेरे सिवा किसी को अपना कारसाज़ (कार्य-साधक) न बनाओ। तुम उन लोगों की औलाद हो जिन्हें हमने नूह के साथ सवार किया था, बेशक वह एक शुक्रगुज़ार बंदा था। और हमने बनी इस्राईल को किताब में बता दिया था कि तुम दो मर्तबा ज़मीन (शाम) में ख़राबी करोगे और बड़ी सरकशी दिखाओगे। फिर जब उनमें से पहला वादा आया तो हमने तुम पर अपने बंदे भेजे, निहायत ज़ोर वाले। वे घरों में घुस पड़े और वादा पूरा होकर रहा। फिर हमने तुम्हारी बारी उन पर लौटा दी और माल और औलाद से तुम्हारी मदद की और तुम्हें ज़्यादा बड़ी जमाअत बना दिया। (1-6)
अगर तुम अच्छा काम करोगे तो तुम अपने लिए अच्छा करोगे और अगर तुम बुरा काम करोगे तब भी अपने लिए बुरा करोगे। फिर जब दूसरे वादे का वक़्त आया तो हमने और बंदे भेजे कि वे तुम्हारे चेहरे को बिगाड़ दें और मस्जिद (बैतुल मक्दिस) में घुस जाएं जिस तरह उसमें पहली बार घुसे थे और जिस चीज़ पर उनका ज़ोर चले उसे बर्बाद कर दें। बईद (असंभव) नहीं कि तुम्हारा रब तुम्हारे ऊपर रहम करे। और अगर तुम फिर वही करोगे तो हम भी वही करेंगे और हमने जहन्नम को मुंकिरीन के लिए क़ैदखाना बना दिया है। बिला शुबह यह क़ुरआन वह राह दिखाता है जो बिल्कुल सीधी है और वह बशारत (शुभ सूचना) देता है ईमान वालों को जो अच्छे अमल करते हैं कि उनके लिए बड़ा अज्र (प्रतिफल) है। और यह कि जो लोग आख़िरत (परलोक) को नहीं मानते उनके लिए हमने एक दर्दनाक अज़ाब तैयार कर रखा है। (7-10)
और इंसान बुराई मांगता है जिस तरह उसे भलाई मांगना चाहिए और इंसान बड़ा जल्दबाज़ है। और हमने रात और दिन को दो निशानियां बनाया। फिर हमने रात की निशानी को मिटा दिया और दिन की निशानी को हमने रोशन कर दिया ताकि तुम अपने रब का फ़ज़्ल (अनुग्रह) तलाश करो और ताकि तुम वर्षों की गिनती और हिसाब मालूम करो। और हमने हर चीज़ को ख़ूब खोलकर बयान किया है। और हमने हर इंसान की क्रिस्मत उसके गले के साथ बांध दी है। और हम क्रियामत के दिन उसके लिए एक किताब निकालेंगे जिसे वह खुला हुआ पाएगा- पढ़ अपनी किताब। आज अपना हिसाब लेने के लिए तू ख़ुद ही काफ़ी है। जो शख्स हिदायत की राह चलता है तो वह अपने ही लिए चलता है। और जो शख्स बेराही करता है वह भी अपने ही नुक़्सान के लिए बेराह होता है। और कोई बोझ उठाने वाला दूसरे का बोझ न उठाएगा। और हम कभी सज़ा नहीं देते जब तक हम किसी रसूल को न भेजें। (11-15)
और जब हम किसी बस्ती को हलाक करना चाहते हैं तो उसके ख़ुशऐश (सुखभोगी) लोगों को हुक्म देते हैं, फिर वे उसमें नाफ़रमानी करते हैं। तब उन पर बात साबित हो जाती है। फिर हम उस बस्ती को तबाह व बर्बाद कर देते हैं। और नूह के बाद हमने कितनी ही क़ौमें हलाक कर दीं। और तेरा रब काफ़ी है अपने बंदों के गुनाहों को जानने के लिए और उन्हें देखने के लिए। जो शख्स आजिला (जल्द हासिल होने वाली दुनिया) को चाहता हो, उसे हम उसमें से दे देते हैं, जितना भी हम जिसे देना चाहें। फिर हमने उसके लिए जहन्नम ठहरा दी है, वह उसमें दाखिल होगा बदहाल और रांदह (ठुकराया हुआ) होकर। और जिसने आख़िरत को चाहा और उसके लिए दौड़ की जो कि उसकी दौड़ है और वह मोमिन हो तो ऐसे लोगों की कोशिश मक़बूल होगी। हम हर एक को तेरे रब की बख्िशिश में से पहुंचाते हैं, इन्हें भी और उन्हें भी। और तेरे रब की बख़््शिश किसी के ऊपर बंद नहीं। देखो हमने उनके एक को दूसरे पर किस तरह फ़ौक़ियत (अग्रसरता) दी है। और यक़ीनन आख़िरत और भी ज़्यादा बड़ी है दर्जे के एतबार से और फ़ज़ीलत (श्रेष्ठता) के एतबार से। (16-21)
तू अल्लाह के साथ किसी और को माबूद (पूज्य) न बना वर्ना तू मज़्मूम (निंदित) और बेकस होकर रह जाएगा। और तेरे रब ने फ़ैसला कर दिया है कि तुम उसके सिवा किसी और की इबादत न करो और मां-बाप के साथ अच्छा सुलूक करो। अगर वे तेरे सामने बुढ़ापे को पहुंच जाएं, उनमें से एक या दोनों, तो उन्हें उफ़ न कहो और न उन्हें झिड़को, और उनसे एहतराम के साथ बात करो। और उनके सामने नर्मी से इज्ज़ (सदाशयता) के बाज़ू झुका दो। और कहो कि ऐ रब इन दोनों पर रहम फ़रमा जैसा कि इन्होंने मुझे बचपन में पाला। तुम्हारा रब खूब जानता है कि तुम्हारे दिलों में क्या है। अगर तुम नेक रहोगे तो वह तौबा करने वालों को माफ़ कर देने वाला है। और रिश्तेदार को उसका हक़ दो और मिस्कीन को और मुसाफ़िर को। और फ़ुज़ूल ख़र्ची न करो। बेशक फ़ुज़ूलख़र्ची करने वाले शैतान के भाई हैं, और शैतान अपने रब का बड़ा नाशुक्रा है। और अगर तुम्हें अपने रब के फ़ज़्ल (अनुग्रह) के इंतिज़ार में जिसकी तुम्हें उम्मीद है, उनसे एराज़ करना (बचना) पड़े तो तुम उनसे नर्मी की बात कहो। (22-28)
और न तो अपना हाथ गर्दन से बांध लो और न उसे बिल्कुल खुला छोड़ दो कि तुम मलामतज़दा (निंदित) और आजिज़ (असहाय) बनकर रह जाओ। बेशक तेरा रब जिसे चाहता है ज़्यादा रिज़्क़ देता है। और जिसके लिए चाहता है तंग कर देता है। बेशक वह अपने बंदों को जानने वाला, देखने वाला है। और अपनी औलाद को मुफ़्लिसी के अंदेशे से क़त्ल न करो, हम उन्हें भी रिज़्क़ देते हैं और तुम्हें भी। बेशक उन्हें क़त्ल करना बड़ा गुनाह है। और ज़िना (व्यभिचार) के क़रीब न जाओ, वह बेहयाई है और बुरा रास्ता है। और जिस जान को ख़ुदा ने मोहतरम ठहराया है उसे क़त्ल मत करो मगर हक़ पर। और जो शख्स नाहक़ क़त्ल किया जाए तो हमने उसके वारिस को इख़्तियार दिया है। पस वह क़त्ल में हद से न गुज़रे, उसकी मदद की जाएगी। (29-33)
और तुम यतीम (अनाथ) के माल के पास न जाओ मगर जिस तरह कि बेहतर हो। यहां तक कि वह अपनी जवानी को पहुंच जाए। और अहद (वचन) को पूरा करो। बेशक अहद की पूछ होगी। और जब नाप कर दो तो पूरा नापो और ठीक तराज़ू से तौल कर दो | यह बेहतर तरीक़ा है और इसका अंजाम भी अच्छा है। और ऐसी चीज़ के पीछे न लगो जिसकी तुम्हें ख़बर नहीं। बेशक कान और आंख और दिल सबकी आदमी से पूछ होगी। और ज़मीन में अकड़ कर न चलो। तुम ज़मीन को फाड़ नहीं सकते और न तुम पहाड़ों की लम्बाई को पहुंच सकते हो। ये सारे बुरे काम तेरे रब के नज़दीक नापसंदीदा हैं। ये वे बातें हैं जो तुम्हारे रब ने हिक्मत (तत्वदर्शिता) में से तुम्हारी तरफ़ वही” (प्रकाशना) की हैं। और अल्लाह के साथ कोई और माबूद न बनाना, वर्ना तुम जहन्नम में डाल दिए जाओगे, मलामतज़दा (निंदित) और रांदह (ठुकराया हुआ) होकर। (34-39)
क्या तुम्हारे रब ने तुम्हें बेटे चुनकर दिए और अपने लिए फ़रिश्तों में से बेटियां बना लीं। बेशक तुम बड़ी सख़्त बात कहते हो। और हमने इस क्कुरआन में तरह-तरह से बयान किया है ताकि वे याददिहानी (अनुस्मरण) हासिल करें। लेकिन उनकी बेज़ारी बढ़ती ही जाती है। कहो कि अगर अल्लाह के साथ और भी माबूद (पूज्य) होते जैसा कि ये लोग कहते हैं तो वे अर्श वाले की तरफ़ ज़रूर रास्ता निकालते | अल्लाह पाक और बरतर है उससे जो ये लोग कहते हैं। सातों आसमान और ज़मीन और जो उनमें हैं सब उसकी पाकी बयान करते हैं। और कोई चीज़ ऐसी नहीं जो तारीफ़ के साथ उसकी पाकी बयान न करती हो। मगर तुम उनकी तस्बीह को नहीं समझते | बिला शुबह वह हिल्म (उदारता) वाला, बख्शने वाला है। और जब तुम क़रुरआन पढ़ते हो तो हम तुम्हारे और उन लोगों के दर्मियान एक छुपा हुआ पर्दा हायल कर देते हैं जो आख़िरत को नहीं मानते। और हम उनके दिलों पर पर्दा रख देते हैं कि वे उसे न समझें और उनके कानों में गिरानी (बोझ) पैदा कर देते हैं और जब तुम क्कुरआन में तंहा अपने रब का ज़िक्र करते हो तो वे नफ़रत के साथ पीठ फेर लेते हैं। और हम जानते हैं कि जब वे तुम्हारी तरफ़ कान लगाते हैं तो वे किस लिए सुनते हैं और जबकि वे आपस में सरगोशियां करते हैं। ये ज़ालिम कहते हैं कि तुम लोग तो बस एक सहरज़दा (जादूग्रस्त) आदमी के पीछे चल रहे हो देखो तुम्हारे ऊपर वह कैसी-कैसी मिसालें चसपां कर रहे हैं। ये लोग खोए गए, वे रास्ता नहीं पा सकते। (40-48)
और वे कहते हैं कि क्या जब हम हड्डी और रेज़ा हो जाएंगे तो क्या हम नए सिरे से उठाए जाएंगे। कहो कि तुम पत्थर या लोहा हो जाओ या और कोई चीज़ जो तुम्हारे ख़्याल में इनसे भी ज़्यादा मुश्किल हो। फिर वे कहेंगे कि वह कौन है जो हमें दुबारा ज़िंदा करेगा। तुम कहो कि वही जिसने तुम्हें पहली बार पैदा किया है। फिर वे तुम्हरे आगे अपना सर हिलाएंगे और कहेंगे कि यह कब होगा, कहो कि अजब नहीं कि उसका वक़्त क़रीब आ पहुंचा हो, जिस दिन ख़ुदा तुम्हें पुकारेगा तो तुम उसकी हम्द (प्रशंसा) करते हुए उसकी पुकार पर चले आओगे और तुम यह ख्याल करोगे कि तुम बहुत थोड़ी मुद्दत रहे। (49-52)
और मेरे बंदों से कहो कि वही बात कहें जो बेहतर हो। शैतान उनके दर्मियान फ़साद डालता है। बेशक शैतान इंसान का खुला हुआ दुश्मन है। तुम्हारा रब तुम्हें ख़ूब जानता है, अगर वह चाहे तो तुम पर रहम करे या अगर वह चाहे तो तुम्हें अज़ाब दे। और हमने तुम्हें उनका ज़िम्मेदार बनाकर नहीं भेजा। और तुम्हारा रब ख़ूब जानता है उन्हें जो आसमानों और ज़मीन में हैं और हमने कुछ नबियों को कुछ पर फ़ज़ीलत (श्रेष्ठता) दी है और हमने दाऊद को ज़बूर दी कहो कि उन्हें पुकारो जिन्हें तुमने ख़ुदा के सिवा माबूद (पूज्य) समझ रखा है। वे न तुमसे किसी मुसीबत को दूर करने का इख़्तियार रखते हैं और न उसे बदल सकते हैं। जिन्हें ये लोग पुकारते हैं वे ख़ुद अपने रब का क्रुर्ब (सामीप्य) ढूंढते हैं कि उनमें से कौन सबसे ज़्यादा क़रीब हो जाए। और वे अपने रब की रहमत के उम्मीदवार हैं। और वे उसके अज़ाब से डरते हैं। वाक़ई तुम्हारे रब का अज़ाब डरने ही की चीज़ है। (54-57)
और कोई बस्ती ऐसी नहीं जिसे हम क्रियामत से पहले हलाक न करें या सख्त अज़ाब न दें। यह बात किताब में लिखी हुई है। और हमें निशानियां भेजने से नहीं रोका मगर उस चीज़ ने कि अगलों ने उन्हें झुठला दिया। और हमने समूद को ऊंटनी दी उन्हें समझाने के लिए। फिर उन्होंने उस पर ज़ुल्म किया। और निशानियां हम सिर्फ़ डराने के लिए भेजते हैं। और जब हमने तुमसे कहा कि तुम्हारे रब ने लोगों को घेरे में ले लिया है। और वह रूया (अलौकिक दृश्य) जो हमने तुम्हें दिखाया वह सिर्फ़ लोगों की जांच के लिए था, और उस दरख़्त को भी जिसकी क़ुरआन में मज़म्मत (निंदा) की गई है। और हम उन्हें डराते हैं, लेकिन उनकी बढ़ी हुई सरकशी बढ़ती ही जा रही है। (58-60)
और जब हमने फ़रिश्तों से कहा कि आदम को सज्दा करो तो उन्होंने सज्दा किया मगर इब्लीस (शैतान) ने नहीं किया। उसने कहा कया मैं ऐसे शख्स को सज्दा करूं जिसे तूने मिट॒टी से बनाया है। उसने कहा, ज़रा देख, यह शख्स जिसे तूने मुझ पर इज़्ज़त दी है अगर तू मुझे क्रियामत के दिन तक मोहलत दे तो मैं थोड़े लोगों के सिवा इसकी तमाम औलाद को खा जाऊंगा। (61-62)
ख़ुदा ने कहा कि जा उनमें से जो भी तेरा साथी बना तो जहन्नम तुम सबका पूरा-पूरा बदला है। और उनमें से जिस पर तेरा बस चले, तू अपनी आवाज़ से उनका क़दम उखाड़ दे और उन पर अपने सवार और प्यादे (पैदल सेना) चढ़ा ला और उनके माल और औलाद में उनका साझी बन जा और उनसे वादा कर। और शैतान का वादा एक धोखे के सिवा और कुछ नहीं। बेशक जो मेरे बंदे हैं उन पर तेरा ज़ोर नहीं चलेगा और तेरा रब कारसाज़ी (कार्य-सिद्धि) के लिए काफ़ी है। (63-65)
तुम्हारा रब वह है जो तुम्हारे लिए समुद्र में कश्ती चलाता है ताकि तुम उसका फ़ज़्ल (अनुग्रह) तलाश करो। बेशक वह तुम्हारे ऊपर मेहरबान है। और जब समुद्र में तुम पर कोई आफ़त आती है तो तुम उन माबूदों (पूज्यों) को भूल जाते हो जिन्हें तुम अल्लाह के सिवा पुकारते थे। फिर जब वह तुम्हें ख़ुश्की की तरफ़ बचा लाता है तो तुम दुबारा फिर जाते हो, और इंसान बड़ा ही नाशुक्रा है। (66-67)
क्या तुम इससे बेडर हो गए कि ख़ुदा तुम्हें ख़ुश्की की तरफ़ लाकर ज़मीन में धंसा दे या तुम पर पत्थर बरसाने वाली आंधी भेज दे, फिर तुम किसी को अपना कारसाज़ न पाओ। या तुम इससे बेडर हो गए कि वह तुम्हें दुबारा समुद्र में ले जाए फिर तुम पर हवा का सख्त तूफ़ान भेज दे और तुम्हें तुम्हारे इंकार के सबब से ग़र्क़ कर दे। फिर तुम इस पर कोई हमारा पीछा करने वाला न पाओ। (68-69)
और हमने आदम की औलाद को इज़्ज़त दी और हमने उन्हें ख़ुश्की और तरी में सवार किया और उन्हें पाकीज़ा (पवित्र) चीज़ों का रिज़्क़ दिया और हमने उन्हें अपनी बहुत सी मख्लूक़ात पर फ़ौक़ियत (श्रेष्ठता) दी। (70)
जिस दिन हम हर गिरोह को उसके रहनुमा के साथ बुलाएंगे। पस जिसका आमालनामा (कर्म-पत्र) उसके दाएं हाथ में दिया जाएगा वे लोग अपना आमालनामा पढ़ेंग और उनके साथ ज़रा भी नाइंसाफ़ी न की जाएगी। और जो शख्स इस दुनिया में अंधा रहा वह आख़िरत में भी अंधा रहेगा और बहुत दूर पड़ा होगा रास्ते से। (71-72)
और क़रीब था कि ये लोग फ़ितने में डाल कर तुम्हें उससे हटा दें जो हमने तुम पर “वही” (प्रकाशना) की है ताकि तुम उसके सिवा हमारी तरफ़ ग़लत बात मंसूब करो और तब वे तुम्हें अपना दोस्त बना लेते। और अगर हमने तुम्हें जमाए न रखा होता तो क़रीब था कि तुम उनकी तरफ़ कुछ झुक पड़ो। फिर हम तुम्हें ज़िंदगी और मौत दोनों का दोहरा (अज़ाब) चखाते | इसके बाद तुम हमारे मुक़ाबले में अपना कोई मददगार न पाते। (73-75)
और ये लोग इस सरज़मीन से तुम्हारे क़दम उखाड़ने लगे थे ताकि तुम्हें इससे निकाल दें। और अगर ऐसा होता तो तुम्हारे बाद ये भी बहुत कम ठहरने पाते। जैसा कि उन रसूलों के बारे में हमारा तरीक़ा रहा है जिन्हें हमने तुमसे पहले भेजा था और तुम हमारे तरीक़े में तब्दीली न पाओगे। (76-77)
नमाज़ क़ायम करो सूरज ढलने के बाद से रात के अंधेरे तक। और ख़ास कर फ़ज़ की क़िरात। बेशक फ़ज़ की क़िरात मशहूद (उपस्थित) होती है। (78)
और रात को तहज्जुद पढ़ो, यह नफ़्ल है तुम्हारे लिए। उम्मीद है कि तुम्हारा रब तुम्हें मक़ामे महमूद (प्रशंसित-स्थल) पर खड़ा करे। (79)
और कहो कि ऐ मेरे रब मुझे दाख़िल कर सच्चा दाखिल करना और मुझे निकाल सच्चा निकालना। और मुझे अपने पास से मददगार क़रुव्वत (शक्ति) अता कर और कह कि हक़ (सत्य) आया और बातिल (असत्य) मिट गया। बेशक बातिल मिटने ही वाला था। (80-81)
और हम क्रुरआन में से उतारते हैं जिसमें शिफ़ा (निदान) और रहमत है ईमान वालों के लिए, और ज़ालिमों के लिए इससे नुक़्सान के सिवा और कुछ नहीं बढ़ता। (82)
और आदमी पर जब हम इनाम करते हैं तो वह एराज़ (उपेक्षा) करता है और पीठ मोड़ लेता है। और जब उसे तकलीफ़ पहुंचती है तो वह नाउम्मीद हो जाता है। कहो कि हर एक अपने तरीक़े पर अमल कर रहा है। अब तुम्हारा रब ही बेहतर जानता है कि कौन ज़्यादा ठीक रास्ते पर है। (83-84)
और वे तुमसे रूह (आत्मा) के बारे में पूछते हैं। कहो कि रूह मेरे रब के हुक्म से है। और तुम्हें बहुत थोड़ा इल्म दिया गया है। (85)
और अगर हम चाहें तो वह सब कुछ तुमसे छीन लें जो हमने ‘वहीं (प्रकाशना) के ज़रिए तुम्हें दिया है, फिर तुम इसके लिए हमारे मुक़ाबले में कोई हिमायती न पाओ, मगर यह सिर्फ़ तुम्हारे रब की रहमत है, बेशक तुम्हारे ऊपर उसका बड़ा फ़ज़्ल है। कहो कि अगर तमाम इंसान और जिन्नात जमा हो जाएं कि ऐसा कुरआन बना लाएं तब भी वे इसके जैसा न ला सकेंगे। अगरचे वे एक दूसरे के मददगार बन जाएं। (86-88)
और हमने लोगों के लिए इस कुरआन में हर क़्रिस्म का मज़्मून तरह-तरह से बयान किया है, फिर भी अक्सर लोग इंकार ही पर जमे रहे और वे कहते हैं कि हम हरगिज़ तुम पर ईमान न लाएंगे जब तक तुम हमारे लिए ज़मीन से कोई चशमा (स्रोत) जारी न कर दो या तुम्हारे पास खजूरों और अंगूरों का कोई बाग़ हो जाए, फिर तुम उस बाग़ के बीच में बहुत सी नहरें जारी कर दो। या जैसा कि तुम कहते हो, हमारे ऊपर आसमान से टुकड़े गिरा दो या अल्लाह और फ़रिश्तों को लाकर हमारे सामने खड़ा कर दो या तुम्हारे पास सोने का कोई घर हो जाए या तुम आसमान पर चढ़ जाओ और हम तुम्हारे चढ़ने को भी न मानेंगे जब तक तुम वहां से हम पर कोई किताब न उतार दो जिसे हम पढ़ें। कहो कि मेरा रब पाक है, मैं तो सिर्फ़ एक बशर (इंसान) हूं, अल्लाह का रसूल। (89-93)
और जब उनके पास हिदायत आ गई तो उन्हें ईमान लाने से इसके सिवा और कोई चीज़ रुकावट नहीं बनी कि उन्होंने कहा कि क्या अल्लाह ने बशर (इंसान) को रसूल बनाकर भेजा है। कहो कि अगर ज़मीन में फ़रिश्ते होते कि उसमें चलते फिरते तो अलबत्ता हम उन पर आसमान से फ़रिश्ते को रसूल बनाकर भेजते। कहो कि अल्लाह मेरे और तुम्हारे दर्मियान गवाही के लिए काफ़ी है। बेशक वह अपने बंदों को जानने वाला, देखने वाला है। (94-96)
अल्लाह जिसे राह दिखाए वही राह पाने वाला है। और जिसे वह बेराह कर दे तो तुम उनके लिए अल्लाह के सिवा किसी को मददगार न पाओगे। और हम क़ियामत के दिन उन्हें उनके मुंह के बल अंधे और गूंगे और बहरे इकट्ठा करेंगे उनका ठिकाना जहन्नम है। जब-जब उसकी आग धीमी होगी हम उसे मज़ीद भड़का देंगे। यह है उनका बदला इस सबब से कि उन्होंने हमारी निशानियों का इंकार किया। और कहा कि जब हम हड्डी और रेज़ा हो जाएंगे तो क्या हम नए सिरे से पैदा करके उठाए जाएंगे। (97-98)
क्या उन लोगों ने नहीं देखा कि जिस अल्लाह ने आसमानों और ज़मीन को पैदा किया वह इस पर क़ादिर है कि उनके मानिंद दुबारा पैदा कर दे और उसने उनके लिए एक मुददत मुक़र्रर कर रखी है, इसमें कोई शक नहीं। इस पर भी ज़ालिम लोग बेइंकार किए न रहे। (99)
कहो कि अगर तुम लोग मेरे रब की रहमत के ख़ज़ानों के माल्रिक होते तो इस सूरत में तुम ख़र्च हो जाने के अंदेशे से ज़रूर हाथ रोक लेते और इंसान बड़ा ही तंग दिल है। (100)
और हमने मूसा को नौ निशानियां खुली हुई दीं। तो बनी इस्राईल से पूछ लो जबकि वह उनके पास आया तो फ़िरऔन ने उससे कहा कि ऐ मूसा, मेरे ख्याल में तो ज़रूर तुम पर किसी ने जादू कर दिया है। मूसा ने कहा कि तू ख़ूब जानता है कि उन्हें आसमानों और ज़मीन के रब ही ने उतारा है, आंखें खोल देखने के लिए और मेरा ख्याल है कि ऐ फ़िरऔन, तू ज़रूर शामतज़दा (प्रकोषित) आदमी है। फिर फ़िरऔन ने चाहा कि उन्हें इस सरज़मीन से उखाड़ दे। पस हमने उसे और जो उसके साथ थे सबको ग़र्क़ कर दिया। और हमने बनी इस्राईल से कहा कि तुम ज़मीन में रहो। फिर जब आख़िरत का वादा आ जाएगा तो हम तुम सबको इकट्ठा करके लाएंगे। (101-104)
और हमने क़ुरआन को हक़ के साथ उतारा है और वह हक़ ही के साथ उतरा है। और हमने तुम्हें सिर्फ़ ख़ुशख़बरी देने वाला और डराने वाला बनाकर भेजा है और हमने कुरआन को थोड़ा-थोड़ा करके उतारा ताकि तुम उसे लोगों के सामने ठहर-ठहर कर पढ़ो। और उसे हमने बतदरीज (क्रमवार) उतारा है। (105-106)
कहो कि तुम इस पर ईमान लाओ या ईमान न लाओ, वे लोग जिन्हें इससे पहले इल्म दिया गया था जब वह उनके सामने पढ़ा जाता है तो वे ठोड़ियों के बल सज्दे में गिर पड़ते हैं। और वे कहते हैं कि हमारा रब पाक है। बेशक हमारे रब का वादा ज़रूर पूरा होता है। और वे ठोड़ियों के बल रोते हुए गिरते हैं और कुरआन उनका ख़ुशूअ (विनय) बढ़ा देता है। (107-109)
कहो कि चाहे अल्लाह कहकर पुकारो या रहमान (कृपाशील) कहकर पुकारो, उसके लिए सब अच्छे नाम हैं। और तुम अपनी नमाज़ न बहुत पुकार कर पढ़ो और न बिल्कुल चुपके-चुपके पढ़ो। और दोनों के दर्मियान का तरीक़ा इख़्तियार करो | और कहो कि तमाम खूबियां उस अल्लाह के लिए हैं जो न औलाद रखता है और न बादशाही में कोई उसका शरीक है। और न कमज़ोरी की वजह से उसका कोई मददगार है। और तुम उसकी ख़ूब बड़ाई बयान करो। (110-111)