सूरह अल मआरिज हिंदी में – सूरह 70
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।
मांगने वाले ने अज़ाब मांगा वाक़ेअ (घटित) होने वाला, मुंकिरों के लिए कोई उसे हटाने वाला नहीं। अल्लाह की तरफ़ से जो सीढ़ियों का मालिक है। उसकी तरफ़ फ़रिश्ते और जिब्रील चढ़कर जाते हैं, एक ऐसे दिन में जिसकी मिक़्दार पचास हज़ार साल है। पस तुम सब्र करो, भली तरह का सत्र। वे उसे दूर देखते हैं, और हम उसे क़रीब देख रहे हैं। जिस दिन आसमान तेल की तलछट की तरह हो जाएगा। और पहाड़ धुने हुए ऊन की तरह। और कोई दोस्त किसी दोस्त को न पूछेगा। वे उन्हें दिखाए जाएंगे। मुजरिम चाहेगा कि काश उस दिन के अज़ाब से बचने के लिए अपने बेटों और अपनी बीवी और अपने भाई और अपने कुंबे को जो उसे पनाह देने वाला था और तमाम अहले ज़मीन को फ़िदये (मुक्ति मुआवज़ा) में देकर अपने को बचा ले। (1-14)
हरगिज़ नहीं। वह तो भड़कती हुई आग की लपट होगी जो खाल उतार देगी। वह हर उस शख्स को बुलाएगी जिसने पीठ फेरी और एराज़ (उपेक्षा) किया। जमा किया और सेंत कर रखा। बेशक इंसान कमहिम्मत पैदा हुआ है। जब उसे तकलीफ़ पहुंचती है तो वह घबरा उठता है। और जब उसे फ़ारिगुलबाली (सम्पन्नता) होती है तो वह बुख़्ल (कंजूसी) करने लगता है। मगर वे नमाज़ी जो अपनी नमाज़ की पाबंदी करते हैं। और जिनके मालों में साइल (मांगने वाले) और महरूम (वंचित) का मुअय्यन हक़ है। और जो इंसाफ़ के दिन पर यक़ीन रखते हैं। और जो अपने रब के अज़ाब से डरते हैं। बेशक उनके रब के अज़ाब से किसी को निडर न होना चाहिए। और जो अपनी शर्मगाहों की हिफ़ाज़त करते हैं- मगर अपनी बीवियों से या अपनी ममलूका (अधीन) औरतों से, पस इन पर उन्हें कोई मलामत नहीं, फिर जो शख्स इसके अलावा कुछ और चाहे तो वही लोग हद से तजावुज़ (उल्लंघन) करने वाले हैं। और जो अपनी अमानतों और अपने अहदों की निभाते हैं। और जो अपनी गवाहियों पर क़ायम रहते हैं। और जो अपनी नमाज़ की हिफ़ाज़त करते हैं। यही लोग जन््नतों में इज़्जत के साथ होंगे। (15-25)
फिर इन मुंकिरों को क्या हो गया है कि वे तुम्हारी तरफ़ दौड़े चले आ रहे हैं, दाएं से और बाएं से गिरोह दर गिरोह। क्या उनमें से हर शख़्स यह लालच रखता है कि वह नेमत के बाग़ में दाख़िल कर लिया जाएगा। हरगिज़ नहीं, हमने उन्हें पैदा किया है उस चीज़ से जिसे वे जानते हैं। (36-39)
पस नहीं मैं क़सम खाता हूं मश्रिक्रों (पूर्वों) और मग्रिबों (पश्चिमों) के रब की, हम इस पर क़ादिर हैं कि बदल कर उनसे बेहतर ले आएं, और हम आजिज़ नहीं हैं। पस उन्हें छोड़ दो कि वे बातें बनाएं और खेल करें। यहां तक कि अपने उस दिन से दो चार हों जिसका उनसे वादा किया जा रहा है। जिस दिन क़्ब्रों से निकल पड़ेंगे दौड़ते हुए। जैसे वे किसी निशाने की तरफ़ भाग रहे हों। उनकी निगाहें झुकी होंगी। उन पर ज़िल्लत छाई होगी, यह है वह दिन जिसका उनसे वादा था। (40-44)