धर्म

सूरह मरयम हिंदी में – सूरह 19

शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।

काफ़० हा० या० अइन० साद०। यह उस रहमत का ज़िक्र है जो तेरे रब ने अपने बंदे ज़करिया पर की। जब उसने अपने रब को छुपी आवाज़ से पुकारा। (1-3)

ज़करिया ने कहा, ऐ मेरे रब, मेरी हड्डियां कमज़ोर हो गई हैं। और सर में बालों की सफ़ेदी फैल गई है और ऐ मेरे रब, तुझसे मांग कर मैं कभी महरूम नहीं रहा। और मैं अपने बाद रिश्तेदारों की तरफ़ से अंदेशा रखता हूं। और मेरी बीवी बांझ है, पस मुझे अपने पास से एक वारिस दे जो मेरी जगह ले और याक़ूब की आल (संत॒ति) की भी। और ऐ मेरे रब उसे अपना पसंदीदा बना। (4-6)

ऐ ज़करिया, हम तुम्हें एक लड़के की बशारत (शुभ सूचना) देते हैं जिसका नाम यहया होगा। हमने इससे पहले इस नाम का कोई आदमी नहीं बनाया। उसने कहा, ऐ मेरे रब, मेरे यहां लड़का कैसे होगा जबकि मेरी बीवी बांझ है। और में बुढ़ापे के इंतिहाई दर्जे को पहुंच चुका हूं। (7-8)

जवाब मिला कि ऐसा ही होगा। तेरा रब फ़रमाता है कि यह मेरे लिए आसान है। मैंने इससे पहले तुम्हें पैदा किया, हालांकि तुम कुछ भी न थे। ज़करिया ने कहा कि ऐ मेरे रब, मेरे लिए कोई निशानी मुक़र्रर कर दे। फ़रमाया कि तुम्हारे लिए निशानी यह है कि तुम तीन शब व रोज़ लोगों से बात न कर सकोगे हालांकि तुम तंदुरुस्त होगे। फिर ज़करिया इबादत की मेहराब से निकल कर लोगों के पास आया और उनसे इशारे से कहा कि तुम सुबह व शाम ख़ुदा की पाकी बयान करो। (9-11)

ऐ यहया किताब को मज़बूती से पकड़ो। और हमने उसे बचपन ही में दीन की समझ अता की। और अपनी तरफ़ से उसे नर्मदिली और पाकीज़गी (पवित्रता) अता की | और वह परहेज़गार और अपने वालिदैन का ख़िदमतगुज़ार था। और वह सरकश और नाफ़रमान न था। और उस पर सलामती है जिस दिन वह पैदा हुआ और जिस दिन वह मरेगा और जिस दिन वह ज़िंदा करके उठाया जाएगा। (12-15)

और किताब में मरयम का ज़िक्र करो जबकि वह अपने लोगों से अलग होकर शरक़ी (पूर्वी) मकान में चली गई। फिर उसने अपने आपको उनसे पर्दे में कर लिया। फिर हमने उसके पास अपना फ़रिश्ता भेजा जो उसके सामने एक पूरा आदमी बनकर ज़ाहिर हुआ। मरयम ने कहा, मैं तुझसे ख़ुदाए रहमान की पनाह मांगती हूं अगर तू ख़ुदा से डरने वाला है। उसने कहा, मैं तुम्हारे रब का भेजा हुआ हूं ताकि तुम्हें एक पाकीज़ा लड़का दूं। मरयम ने कहा, मेरे यहां कैसे लड़का होगा, जबकि मुझे किसी आदमी ने नहीं छुवा और न मैं बदकार (बदचलन) हूं। फ़रिश्ते ने कहा कि ऐसा ही होगा। तेरा रब फ़रमाता है कि यह मेरे लिए आसान है। और ताकि हम उसे लोगों के लिए निशानी बना दें और अपनी जानिब से एक रहमत | और यह एक तैश्ञदा बात है। (16-21)

पस मरयम ने उसका हमल (गर्भ) उठा लिया और वह उसे लेकर एक दूर की जगह चली गई। फिर दर्देज़ह (प्रसव-पीड़ा) उसे खजूर के दरख़्त की तरफ़ ले गया। उसने कहा, काश मैं इससे पहले मर जाती और भूली बिसरी चीज़ हो जाती। (22-23)

फिर मरयम को उसने उसके नीचे से आवाज़ दी कि ग़मगीन न हो। तेरे रब ने तेरे नीचे एक चशमा (स्रोत) जारी कर दिया है और तुम खजूर के तने को अपनी तरफ़ हिलाओ | उससे तुम्हारे ऊपर पकी खजूरें गिरेंगी। पस खाओ और पियो और आंखे ठंडी करो। फिर अगर तुम कोई आदमी देखो तो उससे कह दो कि मैंने रहमान का रोज़ा मान रखा है तो आज मैं किसी इंसान से नहीं बोलूंगी। (24-26)

फिर वह उसे गोद में लिए हुए अपनी क़ौम के पास आई। लोगों ने कहा, ऐ मरयम, तुमने बड़ा तूफ़ान कर डाला। ऐ हारून की बहिन, न तुम्हारा बाप कोई बुरा आदमी था और न तुम्हारी मां बदकार (बदचलन) थी। (27-28)

फिर मरयम ने उसकी तरफ़ इशारा किया। लोगों ने कहा, हम इससे किस तरह बात करें जो कि गोद में बच्चा है। बच्चा बोला, मैं अल्लाह का बंदा हूं। उसने मुझे किताब दी और मुझे नबी बनाया। और मैं जहां कहीं भी हूं उसने मुझे बरकत वाला बनाया है। और उसने मुझे नमाज़ और ज़कात की ताकीद की है जब तक मैं ज़िंदा रहूं। और मुझे मेरी मां का ख़िदमतगुज़ार बनाया है। और मुझे सरकश, बदबख्त नहीं बनाया है। और मुझ पर सलामती है जिस दिन मैं पैदा हुआ और जिस दिन मैं मरूंगा और जिस दिन मैं ज़िंदा करके उठाया जाऊंगा। (29-33)

यह है ईसा इब्ने मरयम, सच्ची बात जिसमें लोग झगड़ रहे हैं। अल्लाह ऐसा नहीं कि वह कोई औलाद बनाए। वह पाक है। जब वह किसी काम का फ़ैसला करता है तो कहता है कि हो जा तो वह हो जाता है। (34-35)

और बेशक अल्लाह मेरा रब है और तुम्हारा रब भी, पस तुम उसी की इबादत करो। यही सीधा रास्ता है। फिर उनके फ़िरक़ों (समुदायों) ने आपस में मतभेद किया। पस इंकार करने वालों के लिए एक बड़े दिन के आने से ख़राबी है। जिस दिन ये लोग हमारे पास आएंगे। वे ख़ूब सुनते और ख़ूब देखते होंगे, मगर आज ये ज़ालिम खुली हुई गुमराही में हैं। (36-38)

और इन लोगों को उस हसरत (पश्चाताप) के दिन से डरा दो जब मामले का फ़ैसला कर दिया जाएगा, और वे ग़फ़लत में हैं। और वे ईमान नहीं ला रहे हैं। बेशक हम ही ज़मीन और ज़मीन के रहने वालों के वारिस होंगे। और लोग हमारी ही तरफ़ लौटाए जाएंगे। (39-40)

और किताब में इब्राहीम का ज़िक्र करो। बेशक वह सच्चा था और नबी था। जब उसने अपने बाप से कहा कि ऐ मेरे बाप, ऐसी चीज़ की इबादत क्‍यों करते हो जो न सुने और न देखे, और न तुम्हारे कुछ काम आ सके। ऐ मेरे बाप मेरे पास ऐसा इल्म आया है जो तुम्हारे पास नहीं है तो तुम मेरे कहने पर चलो। मैं तुम्हें सीधा रास्ता दिखाऊंगा। ऐ मेरे बाप शैतान की इबादत न करो, बेशक शैतान ख़ुदाए रहमान की नाफ़रमानी करने वाला है। ऐ मेरे बाप, मुझे डर है कि तुम्हें ख़ुदाए रहमान का कोई अज़ाब पकड़ ले और तुम शैतान के साथी बनकर रह जाओ। (41-45)

बाप ने कहा कि ऐ इब्राहीम, क्या तुम मेरे माबूदों (पूज्यों) से फिर गए हो। अगर तुम बाज़ न आए तो मैं तुम्हें संगसार (पत्थरों से मार डालना) कर दूंगा। और तुम मुझसे हमेशा के लिए दूर हो जाओ इब्राहीम ने कहा, तुम पर सलामती हो। मैं अपने रब से तुम्हारे लिए बख्िशिश की दुआ करूंगा, बेशक वह मुझ पर मेहरबान है। और मैं तुम लोगों को छोड़ता हूं और उन्हें भी जिन्हें तुम अल्लाह के सिवा पुकारते हो। और मैं अपने रब ही को पुकारूंगा। उम्मीद है कि मैं अपने रब को पुकार कर महरूम (वंचित) नहीं रहूंगा। (46-48)

पस जब वह लोगों से जुदा हो गया। और उनसे जिन्हें वे अल्लाह के सिवा पूजते थे तो हमने उसे इस्हाक़ और याक्रूब अता किए और हमने उनमें से हर एक को नबी बनाया। और उन्हें अपनी रहमत का हिस्सा दिया और हमने उनका नाम नेक और बुलन्द किया। (49-50)

और किताब में मूसा का ज़िक्र करो। बेशक वह चुना हुआ था और रसूल नबी था। और हमने उसे कोहे तूर के दाहिनी जानिब से पुकारा और उसे हमने राज़ की बातें करने के लिए क़रीब किया। और अपनी रहमत से हमने उसके भाई हारून को नबी बनाकर उसे दिया। (51-53)

और किताब में इस्माईल का ज़िक्र करो। वह वादे का सच्चा था और रसूल नबी था। वह अपने लोगों को नमाज़ और ज़कात का हुक्म देता था। और अपने रब के नज़दीक पसंदीदा था। और किताब में इदरीस का ज़िक्र करो। बेशक वह सच्चा था और नबी था। और हमने उसे बुलन्द रुतबे तक पहुंचाया। (54-57)

ये वे लोग हैं जिन पर अल्लाह ने पैग़म्बरों में से अपना फ़ज़्ल फ़रमाया। आदम की औलाद में से और उन लोगों में से जिन्हें हमने नूह के साथ सवार किया था। और इब्राहीम और इस्राईल की नस्ल से और उन लोगों में से जिन्हें हमने हिदायत बख्शी और उन्हें मक़बूल बनाया। जब उन्हें ख़ुदाए रहमान की आयतें सुनाई जातीं तो वे सज्दा करते हुए और रोते हुए गिर पड़ते। (58)

फिर उनके बाद ऐसे नाख़लफ़ जानशीन (बुरे उत्तराधिकारी) हुए जिन्होंने नमाज़ को खो दिया और ख़्वाहिशों के पीछे पड़ गए, पस अनक़रीब वे अपनी ख़राबी को देखेंगे, अलबत्ता जिसने तौबा की और ईमान ले आया और नेक काम किया तो यही लोग जन्नत में दाखिल होंगे और उनकी ज़रा भी हक़तलफ़ी नहीं की जाएगी। (59-60)

उनके लिए हमेशा रहने वाले बाग़ हैं जिनका रहमान ने अपने बंदों से ग़ायबाना वादा कर रखा है। और यह वादा पूरा होकर रहना है। उसमें वे लोग कोई फ़ुज़ूल बात नहीं सुनेंगे सिवाए सलाम के। और उसमें उनका रिज़्क़ सुबह व शाम मिलेगा, यह वह जन्नत है जिसका वारिस हम अपने बंदों में से उन्हें बनाएंगे जो ख़ुदा से डरने वाले हों। (61-63)

और हम नहीं उतरते मगर तुम्हारे रब के हुक्म से। उसी का है जो हमारे आगे है और जो हमारे पीछे है और जो इसके बीच में है। और तुम्हारा रब भूलने वाला नहीं। वह रब है आसमानों का और ज़मीन का और जो इनके बीच में है, पस तुम उसी की इबादत करो और उसकी इबादत पर क़ायम रहो। कया तुम उसका कोई हमसिफ़्त (उसके गुणों जैसा) जानते हो। (64-65)

और इंसान कहता है क्‍या जब मैं मर जाऊंगा तो फिर ज़िंदा करके निकाला जाऊंगा। क्‍या इंसान को याद नहीं आता कि हमने उसे इससे पहले पैदा किया और वह कुछ भी न था। पस तेरे रब की क़सम, हम उन्हें जमा करेंगे और शैतानों को भी, फिर उन्हें जहन्नम के गिर्द इस तरह हाज़िर करेंगे कि वे घुटनों के बल गिरे होंगे। (66-68)

फिर हम हर गिरोह में से उन लोगों को जुदा करेंगे जो रहमान के मुक़ाबले में सबसे ज़्यादा सरकश बने हुए थे। फिर हम ऐसे लोगों को ख़ूब जानते हैं जो जहन्नम में दाख़िल होने के ज़्यादा मुस्तहिक़ हैं और तुम में से कोई नहीं जिसका उस पर से गुज़र न हो, यह तेरे रब के ऊपर लाज़िम है जो पूरा होकर रहेगा। फिर हम उन लोगों को बचा लेंगे जो डरते थे और ज़ालिमों को उसमें गिरा हुआ छोड़ देंगे। और जब उन्हें हमारी खुली-खुली आयतें सुनाई जाती हैं तो इंकार करने वाले ईमान लाने वालों से कहते हैं कि दोनों गिरोहों में से कौन बेहतर हालत में है और किस की मज्लिस ज़्यादा अच्छी है। और उनसे पहले हमने कितनी ही क्रौमें हलाक कर दीं जो उनसे ज़्यादा असबाब (संसाधन) वाली और उनसे ज़्यादा शान वाली थीं। (69-74)

कहो कि जो शख्स गुमराही में होता है तो रहमान उसे ढील दिया करता है यहां तक कि जब वे देख लेंगे उस चीज़ को जिसका उनसे वादा किया जा रहा है, अज़ाब या क्रियामत, तो उन्हें मालूम हो जाएगा कि किस का हाल बुरा है और किस का जत्था कमज़ोर। (75)

और अल्लाह हिदायत पकड़ने वालों की हिदायत में इज़ाफ़ा करता है और बाक़ी रहने वाली नेकियां तुम्हारे रब के नज़दीक अज्र (प्रतिफल) के एतबार से बेहतर हैं और अंजाम के एतबार से भी बेहतर। (76)

क्या तुमने उसे देखा जिसने हमारी आयतों का इंकार किया और कहा कि मुझे माल और औलाद मिलकर रहेंगे। क्या उसने गैब में झांक कर देखा है या उसने अल्लाह से कोई अहद (वचन) ले लिया है, हरगिज़ नहीं, जो कुछ वह कहता है उसे हम लिख लेंगे और उसकी सज़ा में इज़ाफ़ा करेंगे। और जिन चीज़ों का वह दावेदार है उसके वारिस हम बनेंगे और वह हमारे पास अकेला आएगा। (77-80)

और उन्होंने अल्लाह के सिवा माबूद (पूज्य) बनाए हैं ताकि वे उनके लिए मदद बनें। हरगिज़ नहीं, वे उनकी इबादत का इंकार करेंगे और उनके मुख़ालिफ़ बन जाएंगे। (81-82)

क्या तुमने नहीं देखा कि हमने मुंकिरों पर शैतानों को छोड़ दिया है, वे उन्हें खूब उभार रहे हैं। पस तुम उनके लिए जल्दी न करो। हम उनकी गिनती पूरी कर रहे हैं। जिस दिन हम डरने वालों को रहमान की तरफ़ महमान बनाकर जमा करेंगे। और मुजरिमों को जहन्नम की तरफ़ प्यासा हांकेंगे। किसी को शफ़ाअत का इसख्तियार न होगा मगर उसे जिसने रहमान के पास से इजाज़त ली हो। (83-87)

और ये लोग कहते हैं कि रहमान ने किसी को बेटा बनाया है। यह तुमने बड़ी संगीन बात कही है। क़रीब है कि इससे आसमान फट पड़ें और ज़मीन टुकड़े हो जाए और पहाड़ टूट कर गिर पड़ें, इस पर कि लोग रहमान की तरफ़ औलाद की निस्बत करते हैं। हालांकि रहमान की यह शान नहीं कि वह औलाद इख़्तियार करे। आसमानों और ज़मीन में कोई नहीं जो रहमान का बंदा होकर न आए। उसके पास उनका शुमार है और उसने उन्हें अच्छी तरह गिन रखा है और उनमें से हर एक क्रियामत के दिन उसके सामने अकेला आएगा। अलबत्ता जो लोग ईमान लाए और जिन्होंने नेक अमल किए उनके लिए ख़ुदा मुहब्बत पैदा कर देगा। (88-96)

पस हमने इस क्रुरआन को तुम्हारी ज़बान में इसलिए आसान कर दिया है कि तुम मुत्तक़रियों (ईश परायण लोगों) को ख़ुशख़बरी सुना दो। और हठधर्म लोगों को डरा दो। और इनसे पहले हम कितनी ही क्रौमों को हलाक कर चुके हैं। क्या तुम उनमें से किसी को देखते हो या उनकी कोई आहट सुनते हो। (97-98)

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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