सूरह अल क़मर हिंदी में – सूरह 54
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।
क्रियामत क़रीब आ गई और चांद फट गया। और वे कोई भी निशानी देखें तो वे एराज़ (उपेक्षा) ही करेंगे। और कहेंगे कि यह तो जादू है जो पहले से चला आ रहा है। और उन्होंने झुठला दिया और अपनी ख़्वाहिशों की पैरवी की और हर काम का वक़्त मुक़र्रर है। और उन्हें वे ख़बरें पहुंच चुकी हैं जिसमें काफ़ी इबरत (सीख) है। निहायत दर्जे की हिक्मत (तत्वदर्शिता) मगर तंबीहात (चेतावनियां) उन्हें फ़ायदा नहीं देतीं। पस उनसे एराज़ करो, जिस दिन पुकारने वाला एक नागवार चीज़ की तरफ़ पुकारेगा। आंखें झुकाए हुए क़ब्रों से निकल पड़ेंगे। गोया कि वे बिखरी हुई टिड्डयां हैं, भागते हुए पुकारने वाले की तरफ़, मुंकिर कहेंगे कि यह दिन बड़ा सझ्त है। (1-8)
उनसे पहले नूह की क़ौम ने झुठलाया, उन्होंने हमारे बंदे की तकज़ीब की (झुठलाया) और कहा कि दीवाना है और झिड़क दिया। पस उसने अपने रब को पुकारा कि मैं मग़लूब (दबाव-ग्रस्त) हूं, तू बदला ले। पस हमने आसमान के दरवाज़े मूसलाधार बारिश से खोल दिए। और ज़मीन से चश्मे (स्रोत) बहा दिए। पस सब पानी एक काम पर मिल गया जो मुक़ददर हो चुका था। और हमने उसे एक तख््तों और कीलों वाली पर उठा लिया, वह हमारी आंखों के सामने चलती रही। उस शख्स का बदला लेने के लिए जिसकी नाक़द्री की गई थी। और उसे हमने निशानी के लिए छोड़ दिया। फिर कोई है सोचने वाला। फिर कैसा था मेरा अज़ाब और मेरा डराना। और हमने कुरआन को नसीहत के लिए आसान कर दिया है तो क्या कोई है नसीहत हासिल करने वाला। (9-17)
आद ने झुठलाया तो कैसा था मेरा अज़ाब और मेरा डराना। हमने उन पर एक सख्त हवा भेजी मुसलसल नहूसत के दिन में | वह लोगों को उखाड़ फेंकती थी जैसे कि वे उखड़े हुए खजूरों के तने हों। फिर कैसा था मेरा अज़ाब और मेरा डराना। और हमने क्रुरआन को नसीहत के लिए आसान कर दिया, तो क्या कोई है नसीहत हासिल करने वाला। (18-22)
समूद ने डर सुनाने को झुठलाया। पस उन्होंने कहा क्या हम अपने ही अंदर के एक आदमी के कहे पर चलेंगे, इस सूरत में तो हम गलती और जुनून में पड़ जाएंगे। क्या हम सब में से उसी पर नसीहत उतरी है, बल्कि वह झूठा है, बड़ा बनने वाला। अब वे कल के दिन जान लेंगे कि कौन झूठा है और बड़ा बनने वाला। हम ऊंटनी को भेजने वाले हैं उनके लिए आज़माइश बनाकर, पस तुम उनका इंतिज़ार करो। और सब्र करो। और उन्हें आगाह कर दो कि पानी उन में बांट दिया गया है, हर एक बारी पर हाज़िर हो। फिर उन्होंने अपने आदमी को पुकारा, पस उसने वार किया और ऊंटनी को काट डाला। फिर कैसा था मेरा अज़ाब और मेरा डराना | हमने उन पर एक चिंघाड़ भेजी, तो वे बाढ़ वाले की रौंदी हुई बाढ़ की तरह होकर रह गए। और हमने कुरआन को नसीहत के लिए आसान कर दिया, तो क्या कोई है नसीहत हासिल करने वाला। (23-32)
लूत की क़ौम ने डर सुनाने वालों को झुठलाया। हमने उन पर पत्थर बरसाने वाली हवा भेजी, सिर्फ़ लूत के घर वाले उससे बचे, उन्हें हमने बचा लिया सहर (भोर) के वक़्त। अपनी जानिब से फ़ज़्ल करके। हम इसी तरह बदला देते हैं उसे जो शुक्र करे। और लूत ने उन्हें हमारी पकड़ से डराया, फिर उन्होंने उस डराने में झगड़े पैदा किए। और वे उसके मेहमानों को उससे लेने लगे। पस हमने उनकी आंखें मिटा दीं। अब चखो मेरा अज़ाब और मेरा डराना। और सुबह सवेरे उन पर अज़ाब आ पड़ा जो ठहर चुका था। अब चखो मेरा अज़ाब और मेरा डराना। और हमने क़ुरआन को नसीहत के लिए आसान कर दिया है तो कया कोई है नसीहत हासिल करने वाला। और फ़िरऔन वालों के पास पहुंचे डराने वाले। उन्होंने हमारी तमाम निशानियों को झुठलाया तो हमने उन्हें एक ग़ालिब (प्रभुत्वशाली) और क़ुब्बत वाले के पकड़ने की तरह पकड़ा। (33-42)
क्या तुम्हारे मुंकिर उन लोगों से बेहतर हैं या तुम्हारे लिए आसमानी किताबों में माफ़ी लिख दी गई है। क्या वे कहते हैं कि हम ऐसी जमाअत हैं जो ग़ालिब रहेंगे। अनक़रीब यह जमाअत शिकस्त खाएगी और पीठ फेरकर भागेगी। बल्कि क्रियामत उनके वादे का वक़्त है और क्रियामत बड़ी सख़्त और बड़ी कड़वी चीज़ है। बेशक मुजरिम लोग गुमराही में और बेअक़्ली में हैं। जिस दिन वे मुंह के बल आग में घसीटे जाएंगे। चखो मज़ा आग का। (43-48)
हमने हर चीज़ को पैदा किया है अंदाज़े से। और हमारा हुक्म बस यकबारगी आ जाएगा जैसे आंख का झपकना | और हम हलाक कर चुके हैं तुम्हारे साथ वालों को, फिर क्या कोई है सोचने वाला। और जो कुछ उन्होंने किया सब किताबों में दर्ज है। और हर छोटी और बड़ी बात लिखी हुई है। बेशक डरने वाले बाग़ों में और नहरों में होंगे। बैठे सच्ची बैठक में, कुदरत वाले बादशाह के पास। (49-55)