धर्म

सूरह अल क़सस हिंदी में – सूरह 28

शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।

ता० सीन० मीम० | ये वाज़ेह किताब की आयतें हैं। हम मूसा और फ़िरऔन का कुछ हाल तुम्हें ठीक-ठीक सुनाते हैं, उन लोगों के लिए जो ईमान लाएं। बेशक फ़िरऔन ने ज़मीन में सरकशी की। और उसने उसके बाशिंदों को गिरोहों में तक़्सीम कर दिया। उनमें से एक गिरोह को उसने कमज़ोर कर रखा था। वह उनके लड़कों को ज़बह करता था और उनकी औरतों को ज़िंदा रखता था। बेशक वह फ़साद करने वालों में से था। और हम चाहते थे कि उन लोगों पर एहसान करें जो ज़मीन में कमज़ारे कर दिए गए थे और उन्हें पेशवा (नायक) बनाएं और उन्हें वारिस बना दें और उन्हें ज़मीन में इक़्तेदार (सत्ता) अता करें। और फ़िरऔन और हामान और उनकी फ़ौजों को उनसे वही दिखा दें जिससे वे डरते थे। (1-6)

और हमने मूसा की मां को इल्हाम (दिव्य संकेत) किया कि उसे दूध पिलाओ। फिर जब तुम्हें उसके बारे में डर हो तो तुम उसे दरिया में डाल दो। और न अंदेशा करो और न ग़मगीन हो। हम उसे तुम्हारे पास लौटा कर लाएंगे। और उसे पैग़म्बरों में से बनाएंगे। फिर उसे फ़िरऔन के घर वालों ने उठा लिया ताकि वह उनके लिए दुश्मन हो और ग़म का बाइस बने। बेशक फ़िरऔन और हामान और उनके लश्कर ख़ताकार थे। और फ़िरऔन की बीवी ने कहा कि यह आंख की ठंडक है, मेरे लिए और तुम्हारे लिए। इसे क़त्ल न करो। क्या अजब कि यह हमें नफ़ा दे या हम इसे बेटा बना लें। और वे समझते न थे। (7-9)

और मूसा की मां का दिल बेचैन हो गया। क़रीब था कि वह उसे ज़ाहिर कर दे अगर हम उसके दिल को न संभालते कि वह यक्रीन करने वालों में से रहे। और उसने उसकी बहिन से कहा कि तू इसके पीछे-पीछे जा। तो वह उसे अजनबी बनकर देखती रही और उन लोगों को ख़बर नहीं हुई। और हमने पहले ही मूसा से दाइयों को रोक रखा था। तो लड़की ने कहा, क्या मैं तुम्हें ऐसे घर वालों का पता दूं जो इसे तुम्हारे लिए पालें और वे इसकी ख़ैरख़्वाही करें। पस हमने उसे उसकी मां की तरफ़ लौटा दिया ताकि उसकी आंखें ठंडी हों। और वह ग़मगीन न हो। और ताकि वह जान ले कि अल्लाह का वादा सच्चा है, मगर अक्सर लोग नहीं जानते। और जब मूसा अपनी जवानी को पहुंचा और पूरा हो गया तो हमने उसे हिक्मत (तत्वदर्शिता) और इल्म अता किया और हम इसी तरह बदला देते हैं नेकी करने वालों को। (10-14)

और शहर में वह ऐसे वक़्त में दाख़िल हुआ जबकि शहर वाले ग़फ़लत में थे तो उसने वहां दो आदमियों को लड़ते हुए पाया। एक उसकी अपनी क़ौम का था और दूसरा दुश्मनों में से था। तो जो उसकी क़ौम में से था उसने उसके ख़िलाफ़ मदद तलब की जो उसके दुश्मनों में से था। पस मूसा ने उसे घूंसा मारा। फिर उसका काम तमाम कर दिया। मूसा ने कहा कि यह श्ेतान के काम से है। बेशक वह दुश्मन है, खुला गुमराह करने वाला। उसने कहा कि ऐ मेरे रब, मैंने अपनी जान पर ज़ुल्म किया है। पस तू मुझे बख़्श दे तो ख़ुदा ने उसे बख्श दिया। बेशक वह बख्छने वाला, रहम करने वाला है। उसने कहा कि ऐ मेरे रब, जैसा तूने मेरे ऊपर फ़ज़्ल किया तो मैं कभी मुजरिमों का मददगार नहीं बनूंगा। (15-17)

फिर सुबह को वह शहर में उठा डरता हुआ, ख़बर लेता हुआ। तो देखा कि वही शख्स जिसने कल मदद मांगी थी, वही आज फिर उसे मदद के लिए पुकार रहा है। मूसा ने उससे कहा, बेशक तुम सरीह गुमराह हो। फिर जब उसने चाहा कि उसे पकड़े जो उन दोनों का दुश्मन था तो उसने कहा कि ऐ मूसा कया तुम मुझे क़त्ल करना चाहते हो जिस तरह तुमने कल एक शख्स को क़त्ल किया। तो तुम ज़मीन में सरकश बनकर रहना चाहते हो। तुम सुलह करने वालों में से बनना नहीं चाहते। और एक शख्स शहर के किनारे से दौड़ता हुआ आया। उसने कहा ऐ मूसा, दरबार वाले मश्विरा कर रहे हैं कि तुम्हें मार डालें। पस तुम निकल जाओ, मैं तुम्हारे ख़ैरख़्वाहों में से हूं। फिर वह वहां से निकला डरता हुआ, ख़बर लेता हुआ। उसने कहा कि ऐ मेरे रब, मुझे ज़ालिम लोगों से नजात दे। (18-21) 

और जब उसने मदयन का रुख़ किया तो उसने कहा, उम्मीद है कि मेरा रब मुझे सीधा रास्ता दिखा दे। और जब वह मदयन के पानी पर पहुंचा तो वहां लोगों की एक जमाअत को पानी पिलाते हुए पाया। और उनसे अलग एक तरफ़ दो औरतों को देखा कि वे अपनी बकरियों को रोके हुए खड़ी हैं। मूसा ने उनसे पूछा कि तुम्हारा क्या माजरा है। उन्होंने कहा कि हम पानी नहीं पिलाते जब तक चरवाहे अपनी बकरियां न हटा लें। और हमारा बाप बहुत बूढ़ा है तो उसने उनके जानवरों को पानी पिलाया। फिर साये की तरफ़ हट गया। फिर कहा कि ऐ मेरे रब, तू जो चीज़ मेरी तरफ़ उतारे मैं उसका मोहताज हूं। (22-24)

फिर उन दोनों में से एक आई शर्म से चलती हुई। उसने कहा कि मेरा बाप आपको बुला रहा है कि आपने हमारी ख़ातिर जो पानी पिलाया उसका आपको बदला दे। फिर जब वह उसके पास आया और उससे सारा क़िस्सा बयान किया तो उसने कहा कि अंदेशा न करो। तुमने ज़ालिमों से नजात पाई। उनमें से एक ने कहा कि ऐ बाप इसे मुलाज़िम रख लीजिए। बेहतरीन आदमी जिसे आप मुलाज़िम रखें वही है जो मज़बूत और अमानतदार हो। उसने कहा कि मैं चाहता हूं कि अपनी इन दो लड़कियों में से एक का निकाह तुम्हारे साथ कर दूं। इस शर्त पर कि तुम आठ साल मेरी मुलाज़िमत करो। फिर अगर तुम दस साल पूरे कर दो तो वह तुम्हारी तरफ़ से है। और मैं तुम पर मशक़्क़त डालना नहीं चाहता। इंशाअल्लाह तुम मुझे भला आदमी पाओगे। मूसा ने कहा कि यह बात मेरे और आपके दर्मियान ते है। इन दोनों मुददतों में से जो भी मैं पूरी करूं तो मुझ पर कोई जब्र न होगा। और अल्लाह हमारे क़ौल व क़रार पर गवाह है। (25-28)

फिर मूसा ने मुदृदत पूरी कर दी और वह अपने घर वालों के साथ रवाना हुआ तो उसने तूर की तरफ़ से एक आग देखी। उसने अपने घर वालों से कहा कि तुम ठहरो, मैंने एक आग देखी है। शायद मैं वहां से कोई ख़बर ले आऊं या आग का अंगारा ताकि तुम तापो। फिर जब वह वहां पहुंचा तो वादी के दाहिने किनारे से बरकत वाले ख़ित्ते में दरख़्त से पुकारा गया कि ऐ मूसा, मैं अल्लाह हूं, सारे जहान का मालिक | और यह कि तुम अपना असा (डंडा) डाल दो। तो जब उसने उसे हरकत करते हुए देखा कि गोया सांप हो, तो वह पीठ फेरकर भागा और उसने मुड़कर न देखा | ऐ मूसा आगे आओ और न डरो। तुम बिल्कुल महफ़ूज़ हो। अपना हाथ गरेबान में डालो, वह चमकता हुआ निकलेगा बगैर किसी मरज़ के, और ख़ौफ़ के वास्ते अपना बाज़ू अपनी तरफ़ मिला लो। पस यह तुम्हारे रब की तरफ़ से दो सनदें हैं फ़िरऔन और उसके दरबारियों के पास जाने के लिए। बेशक वे नाफ़रमान लोग हैं। (29-32)

मूसा ने कहा ऐ मेरे रब मैंने उनमें से एक शख्स को क़त्ल किया है तो मैं डरता हूं कि वे मुझे मार डालेंगे। और मेरा भाई हारून वह मुझसे ज़्यादा फ़सीह (वाक-कुशल) है ज़बान में, पस तू उसे मेरे साथ मददगार की हैसियत से भेज कि वह मेरी ताईद करे। मैं डरता हूं कि वे लोग मुझे झुठला देंगे। फ़रमाया कि हम तुम्हारे भाई के ज़रिए तुम्हारे बाज़ू को मज़बूत कर देंगे और हम तुम दोनों को ग़लबा देंगे तो वे तुम लोगों तक न पहुंच सकेंगे। हमारी निशानियों के साथ, तुम दोनों और तुम्हारी पैरवी करने वाले ही ग़ालिब रहेंगे। (33-55)

फिर जब मूसा उन लोगों के पास हमारी वाज़ेह निशानियों के साथ पहुंचा, उन्होंने कहा कि यह महज़ गढ़ा हुआ जादू है। और यह बात हमने अपने अगले बाप दादा में नहीं सुनी। और मूसा ने कहा मेरा रब खूब जानता है उसे जो उसकी तरफ़ से हिदायत लेकर आया है और जिसे आख़िरत का घर मिलेगा। बेशक ज़ालिम फ़लाह न पाएंगे। और फ़िरऔन ने कहा कि ऐ दरबार वालो, मैं तुम्हारे लिए अपने सिवा किसी माबूद को नहीं जानता। तो ऐ हामान मेरे लिए मिट्टी को आग दे, फिर मेरे लिए एक ऊंची इमारत बना ताकि मैं मूसा के रब को झांक कर देखूं, और मैं तो इसे एक झूठा आदमी समझता हूं। (36-38)

और उसने और उसकी फ़ौजों ने ज़मीन में नाहक़ घमंड किया और उन्होंने समझा कि उन्हें हमारी तरफ़ लौट कर आना नहीं है। तो हमने उसे और उसकी फ़ौजों को पकड़ा। फिर उन्हें समुद्र में फेंक दिया। तो देखो कि ज़ालिमों का अंजाम क्‍या हुआ। और हमने उन्हें सरदार बनाया कि आग की तरफ़ बुलाते हैं। और क्रियामत के दिन उन्हें मदद नहीं मिलेगी। और हमने इस दुनिया में उनके पीछे लानत लगा दी। और क्रियामत के दिन वे बदहाल लोगों में से होंगे, और हमने अगली उम्मतों को हलाक करने के बाद मूसा को किताब दी। लोगों के लिए बसीरत (सूझबूझ) का सामान, और हिदायत और रहमत ताकि वे नसीहत पकड़ें | (39-43)

और तुम पहाड़ के मग्रिबी (पश्चिमी) जानिब मौजूद न थे जबकि हमने मूसा को अहकाम दिए और न तुम गवाहों में शामिल थे। लेकिन हमने बहुत सी नस्‍्ेें पैदा कीं फिर उन पर बहुत ज़माना गुज़र गया। और तुम मदयन वालों में भी न रहते थे कि उन्हें हमारी आयतें सुनाते। मगर हम हैं पैग़म्बर भेजने वाले। और तुम तूर के किनारे न थे जब हमने मूसा को पुकारा, लेकिन यह तुम्हारे रब का इनाम है, ताकि तुम एक ऐसी क़ौम को डरा दो जिनके पास तुमसे पहले कोई डराने वाला नहीं आया ताकि वे नसीहत पकड़ें। (44-46)

और अगर ऐसा न होता कि उन पर उनके आमाल के सबब से कोई आफ़त आई तो वे कहेंगे कि ऐ हमारे रब, तूने हमारी तरफ़ कोई रसूल क्‍यों न भेजा कि हम तेरी आयतों की पैरवी करते और हम ईमान वालों में से होते। फिर जब उनके पास हमारी तरफ़ से हक़ (सत्य) आया तो उन्होंने कहा कि क्‍यों न इसे वैसा मिला जैसा मूसा को मिला था। क्या लोगों ने उसका इंकार नहीं किया जो इससे पहले मूसा को दिया गया था, उन्होंने कहा कि दोनों जादू हैं एक दूसरे के मददगार, और उन्होंने कहा कि हम दोनों का इंकार करते हैं। (47-48)

कहो कि तुम अल्लाह के पास से कोई किताब ले आओ जो हिदायत करने में इन दोनों से बेहतर हो, मैं उसकी पैरवी करूंगा अगर तुम सच्चे हो। पस अगर ये लोग तुम्हारा कहा न कर सकें तो जान लो कि वे सिर्फ़ अपनी ख्वाहिश की पैरवी कर रहे हैं। और उससे ज़्यादा गुमराह कौन होगा जो अल्लाह की हिदायत के बगैर अपनी ख़्वाहिश की पैरवी करे | बेशक अल्लाह ज़ालिम लोगों को हिदायत नहीं देता। और हमने उन लोगों के लिए पे दर पे अपना कलाम भेजा ताकि वे नसीहत पकड़ें। (49-51)

जिन लोगों को हमने इससे पहले किताब दी है वे इस (कुरआन) पर ईमान लाते हैं। और जब वह उन्हें सुनाया जाता है तो वे कहते हैं कि हम इस पर ईमान लाए। बेशक यह हक़ (सत्य) है हमारे रब की तरफ़ से, हम तो पहले ही से इसे मानने वाले हैं। ये लोग हैं कि उन्हें उनका अज्र (प्रतिफल) दोहरा दिया जाएगा इस पर कि इन्होंने सब्र किया। और वे बुराई को भलाई से दूर करते हैं और हमने जो कुछ उन्हें दिया है उसमें से ख़र्च करते हैं और जब वे लग्व (घटिया निरर्थक) बात सुनते हैं तो उससे एराज़ (उपेक्षा) करते हैं और कहते हैं कि हमारे लिए हमारे आमाल हैं और तुम्हारे लिए तुम्हारे आमाल। तुम्हें सलाम, हम बेसमझ लोगों से उलझना नहीं चाहते। तुम जिसे चाहो हिदायत नहीं दे सकते। बल्कि अल्लाह जिसे चाहता है हिदायत देता है। और वही ख़ूब जानता है जो हिदायत क़ुबूल करने वाले हैं। (52-56)

और वे कहते हैं कि अगर हम तुम्हारे साथ होकर इस हिदायत पर चलने लगें तो हम अपनी ज़मीन से उचक लिए जाएंगे। कया हमने उन्हें अम्न व अमान वाले हरम में जगह नहीं दी। जहां हर क़िस्म के फल खिंचे चले आते हैं, हमारी तरफ़ से रिज़्फ़ के तौर पर, लेकिन उनमें से अक्सर लोग नहीं जानते। (57)

और हमने कितनी ही बस्तियां हलाक कर दीं जो अपने सामाने मईशत (जीविका के साधन) पर नाज़ां (गौरवांवित) थीं। पस ये हैं उनकी बस्तियां जो उनके बाद आबाद नहीं हुईं मगर बहुत कम, और हम ही उनके वारिस हुए और तेरा रब बस्तियों को हलाक करने वाला न था जब तक उनकी बड़ी बस्ती में किसी पैग़म्बर को न भेज ले जो उन्हें हमारी आयतें पढ़कर सुनाए और हम हरगिज़ बस्तियों को हलाक करने वाले नहीं मगर जबकि वहां के लोग ज़ालिम हों। (58-59)

और जो चीज़ भी तुम्हें दी गई है तो वह बस दुनिया की ज़िंदगी का सामान और उसकी रौनक़ है। और जो कुछ अल्लाह के पास है वह बेहतर है और बाक़ी रहने वाला है, फिर क्या तुम समझते नहीं। भल्ला वह शख्स जिससे हमने अच्छा वादा किया है फिर वह उसे पाने वाला है, क्या उस शख्स जैसा हो सकता है जिसे हमने सिर्फ़ दुनियावी ज़िंदगी का फ़ायदा दिया है, फिर क्रियामत के दिन वह हाज़िर किए जाने वालों में से है। (60-61)

और जिस दिन ख़ुदा उन्हें पुकारेगा फिर कहेगा कि कहां हैं मेरे वे शरीक जिनका तुम दावा करते थे। जिन पर बात साबित हो चुकी होगी वे कहेंगे कि ऐ हमारे रब ये लोग हैं जिन्होंने हमें बहकाया। हमने उन्हें उसी तरह बहकाया जिस तरह हम ख़ुद बहके थे। हम इनसे बरा-त (विरक्ति) करते हैं। ये लोग हमारी इबादत नहीं करते थे। (62-63)

और कहा जाएगा कि अपने शरीकों को बुलाओ तो वे उन्हें पुकारेंगे तो वे उन्हें जवाब न देंगे। और वे अज़ाब को देखेंगे। काश वे हिदायत इख़्तियार करने वाले होते। और जिस दिन ख़ुदा उन्हें पुकारेगा और फ़रमाएगा कि तुमने पैग़ाम पहुंचाने वालों को क्या जवाब दिया था। फिर उस दिन उनकी तमाम बातें गुम हो जाएंगी। तो वे आपस में भी न पूछ सकेंगे। अलबत्ता जिसने तौबा की और ईमान लाया और नेक अमल किया तो उम्मीद है कि वह फ़लाह (कल्याण, सफलता) पाने वालों में से होगा। (64-67)

और तेरा रब पैदा करता है जो चाहे और वह पसंद करता है जिसे चाहे | उनके हाथ में नहीं है पसंद करना। अल्लाह पाक और बरतर है उससे जिसे वे शरीक ठहराते हैं और तेरा रब जानता है जो कुछ उनके सीने छुपाते हैं और जो कुछ वे ज़ाहिर करते हैं। और वही अल्लाह है, उसके सिवा कोई माबूद (पूज्य) नहीं। उसी के लिए हम्द (प्रशंसा) है दुनिया में और आख़िरत में। और उसी के लिए फ़ैसला है और उसी की तरफ़ तुम लौटाए जाओगे। (68-70)

कहो कि बताओ, अगर अल्लाह क़रियामत के दिन तक तुम पर हमेशा के लिए रात कर दे तो अल्लाह के सिवा कौन माबूद (पूज्य) है जो तुम्हारे लिए रोशनी ले आए। तो क्या तुम लोग सुनते नहीं। कहो कि बताओ अगर अल्लाह क़रियामत तक तुम पर हमेशा के लिए दिन कर दे तो अल्लाह के सिवा कौन माबूद है जो तुम्हारे लिए रात को ले आए जिसमें तुम सुकून हासिल करते हो। क्या तुम लोग देखते नहीं। और उसने अपनी रहमत से तुम्हारे लिए रात और दिन को बनाया ताकि तुम उसमें सुकून हासिल करो और ताकि तुम उसका फ़ज़्ल (जीविका) तलाश करो और ताकि तुम शुक्र करो। (71-73)

और जिस दिन अल्लाह उन्हें पुकारेगा फिर कहेगा कि कहां हैं मेरे शरीक जिनका तुम गुमान रखते थे। और हम हर उम्मत में से एक गवाह निकाल कर लाएंगे। फिर लोगों से कहेंगे कि अपनी दलील लाओ, तब वे जान लेंगे कि हक़ अल्लाह की तरफ़ है। और वे बातें उनसे गुम हो जाएंगी जो वे गढ़ते थे। (74-75)

क़ारून मूसा की क़ौम में से था। फिर वह उनके ख़िलाफ़ सरकश हो गया। और हमने उसे इतने ख़ज़ाने दिए थे कि उनकी कुंजियां उठाने से कई ताक़तवर मर्द थक जाते थे। जब उसकी क़ौम ने उससे कहा कि इतराओ मत, अल्लाह इतराने वालों को पसंद नहीं करता | और जो कुछ अल्लाह ने तुम्हें दिया है उसमें आख़िरत के तालिब बनो। और दुनिया में से अपने हिस्से को न भूलो। और लोगों के साथ भलाई करो जिस तरह अल्लाह ने तुम्हारे साथ भलाई की है। और ज़मीन में फ़साद के तालिब न बनो, अल्लाह फ़साद करने वालों को पसंद नहीं करता। (76-77)

उसने कहा, यह माल मुझे एक इल्म की बिना पर मिला है जो मेरे पास है। क्या उसने यह नहीं जाना कि अल्लाह उससे पहले कितनी जमाअतों को हलाक कर चुका है जो उससे ज़्यादा क्ुव्वत और जमीयत (जन-समूह) रखती थीं। और मुजरिमों से उनके गुनाह पूछे नहीं जाते। (78)

पस वह अपनी क़ौम के सामने अपनी पूरी आराइश (भव्यता) के साथ निकला। जो लोग हयाते दुनिया के तालिब थे उन्होंने कहा, काश हमें भी वही मिलता जो क़ारून को दिया गया है, बेशक वह बड़ी क़िस्मत वाला है, और जिन लोगों को इल्म मिला था उन्होंने कहा, तुम्हारा बुरा हो अल्लाह का सवाब बेहतर है उस शख्स के लिए जो ईमान लाए और नेक अमल करे। और यह उन्हीं को मिलता है जो सब्र करने वाले हैं। (79-80)

फिर हमने उसे और उसके घर को ज़मीन में धंसा दिया। फिर उसके लिए कोई जमाअत न उठी जो अल्लाह के मुक़ाबले में उसकी मदद करती।| और न वह ख़ुद ही अपने को बचा सका। और जो लोग कल उसके जैसा होने की तमन्ना कर रहे थे वे कहने लगे कि अफ़सोस, बेशक अल्लाह अपने बंदों में से जिसके लिए चाहता है रिज़्क़ कुशादा कर देता है और जिसके लिए चाहता है तंग कर देता है। अगर अल्लाह ने हम पर एहसान न किया होता तो हमें भी ज़मीन में धंसा देता। अफ़सोस, बेशक इंकार करने वाले फ़लाह (कल्याण, सफलता) नहीं पाएंगे। (81-82)

यह आख़िरत का घर हम उन लोगों को देंगे जो ज़मीन में न बड़ा बनना चाहते हैं और न फ़साद करना। और आख़िरी अंजाम डरने वालों के लिए है। जो शख्स नेकी लेकर आएगा उसके लिए उससे बेहतर है और जो शख्स बुराई लेकर आएगा तो जो लोग बुराई करते हैं उन्हें वही मिलेगा जो उन्होंने किया। (83-84)

बेशक जिसने तुम पर क़ुरआन को फ़र्ज़ किया है वह तुम्हें एक अच्छे अंजाम तक पहुंचा कर रहेगा। कहो कि मेरा रब ख़ूब जानता है कि कौन हिदायत लेकर आया है और कौन खुली हुई गुमराही में है। और तुम्हें यह उम्मीद न थी कि तुम पर किताब उतारी जाएगी। मगर तुम्हारे रब की मेहरबानी से। पस तुम मुंकिरों के मददगार न बनो। और वे तुम्हें अल्लाह की आयतों से रोक न दें जबकि वे तुम्हारी तरफ़ उतारी जा चुकी हैं। और तुम अपने रब की तरफ़ बुलाओ और मुश्रिकों में से न बनो। और अल्लाह के साथ किसी दूसरे माबूद (पूज्य) को न पुकारो। उसके सिवा कोई माबूद नहीं। हर चीज़ हलाक (विनष्ट) होने वाली है सिवा उसकी ज़ात के। फ़ैसला उसी के लिए है और तुम लोग उसी की तरफ़ लौटाए जाओगे। (85-88)

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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