धर्म

सूरह अल क़ियामह हिंदी में – सूरह 75

शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।

नहीं, मैं क़सम खाता हूं क्रियामत के दिन की। और नहीं, मैं क़सम खाता हूं मलामत करने वाले नफ़्स की। क्‍या इंसान ख्याल करता है कि हम उसकी हड्डियों को जमा न करेंगे। क्‍यों नहीं, हम इस पर क़ादिर हैं कि उसकी उंगलियों की पोर-पोर तक दुरुस्त कर दें। बल्कि इंसान चाहता है कि ढिठाई करे उसके सामने। वह पूछता है कि क्रियामत का दिन कब आएगा। पस जब आंखें ख़ीरह (चौंधिया जाना) हो जाएंगी। और चांद बेनूर हो जाएगा। और सूरज और चांद इकट्ठा कर  दिए जाएंगे। उस दिन इंसान कहेगा कि कहां भागूं। हरगिज़ नहीं, कहीं पनाह नहीं। उस दिन तेरे रब ही के पास ठिकाना है। उस दिन इंसान को बताया जाएगा कि उसने क्‍या आगे भेजा और क्या पीछे छोड़ा | बल्कि इंसान ख़ुद अपने आपको जानता है, चाहे वह कितने ही बहाने पेश करे। (1-15)

तुम उसके पढ़ने पर अपनी ज़बान न चलाओ ताकि तुम उसे जल्दी सीख लो। हमारे ऊपर है उसे जमा करना और उसे सुनाना। पस जब हम उसे सुनाएं तो तुम उस सुनाने की पैरवी करो। फिर हमारे ऊपर है उसे बयान कर देना। (16-19)

हरगिज़ नहीं, बल्कि तुम चाहते हो जो जल्द आए। और तुम छोड़ते हो जो देर में आए। कुछ चेहरे उस दिन बारौनक़ होंगे। अपने रब की तरफ़ देख रहे होंगे। और कुछ चेहरे उस दिन उदास होंगे। गुमान कर रहे होंगे कि उनके साथ कमर तोड़ देने वाला मामला किया जाएगा। हरगिज़ नहीं, जब जान हलक़ तक पहुंच जाएगी। और कहा जाएगा कि कौन है झाड़ फूंक करने वाला। और वह गुमान करेगा कि यह जुदाई का वक़्त है। और पिंडली से पिंडली लिपट जाएगी। वह दिन होगा तेरे रब की तरफ़ जाने का। (20-30)

तो उसने न सच माना और न नमाज़ पढ़ी। बल्कि झुठलाया और मुंह मोड़ा। फिर अकड़ता हुआ अपने लोगों की तरफ़ चला गया। अफ़सोस है तुझ पर अफ़सोस है। फिर अफ़सोस है तुझ पर अफ़सोस है। कया इंसान ख्याल करता है कि वह बस यूं ही छोड़ दिया जाएगा। क्या वह टपकाई हुई मनी (वीर्य) की एक बूंद न था। फिर वह अलक़ा (जोंक की तरह) हो गया, फिर अल्लाह ने बनाया, फिर आज़ा (शरीरांग) दुरुस्त किए। फिर उसकी दो क़्िस्में कर दीं, मर्द और औरत। क्या वह इस पर क़ादिर नहीं कि मुर्दों को ज़िंदा कर दे। (31-40)

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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