सूरह तौबा – अत-तोबह (सूरह 9)
सूरह तौबा (अत-तौबा) कुरान शरीफ का नौवाँ सूरह है, जिसमें कुल 129 आयतें और 16 रुकुस हैं। यह सूरह मदनी है। सूरह तौबा एक ही ऐसा सूरह है जिसका आग़ाज़ बिस्मिल्लाह से नहीं होता। तौबा का ज़र/अर्थ होता है खज़ालत यानी पश्चाताप। इसलिए जो भी सूरह तौबा का पाठ करता है उसे हर कुफ़्र से रिहाई मिलती है। सूरह अल-तौबा का रोज़ाना पाठ करने से अल्लाह द्वारा सभी गुनाहों से आज़ाद कर दिया जाता है और जन्नत के दरवाज़े खुल जाते हैं। जो लोग सूरह तौबा को काग़ज़ पर लिखकर अपने सिरहाने पर या अपने शरीर के पास रखते हैं, उनके सब दुःख, तकलीफ़ें और मुसीबतें दूर होती है। सूरह तौबा बदख़्वाहों से रिहाई दिलाता है। मान्यता है कि जो अल्लाह की इबादत में सूरह तौबा (अल-तौबा) पढ़ते हैं वे अल्लाह की बंदगी करते हुए गुनाहों से मुक्ति पाते हैं।
बरा-त (विरक्ति) का एलान है अल्लाह और उसके रसूल की तरफ़ से उन मुश्रिकीन (बहुदेववादियों) को जिनसे तुमने मुआहिदे (संधि) किए थे। पस तुम लोग मुल्क में चार महीने चल फिर लो और जान लो कि तुम अल्लाह को आजिज़ नहीं कर सकते और यह कि अल्लाह मुंकिरों को रुसवा करने वाला है। एलान है अल्लाह और रसूल की तरफ़ से बड़े हज के दिन लोगों के लिए कि अल्लाह और उसका रसूल मुश्रिकों से बरीउज़्ज़िम्मा (ज़िम्मेदारी-मुक्त) हैं। अब अगर तुम लोग तौबा करो तो तुम्हारे हक़ में बेहतर है। और अगर तुम मुंह फेरोगे तो जान लो कि तुम अल्लाह को आजिज़ करने वाले नहीं हो। और इंकार करने वालों को सख्त अज़ाब की ख़ुशख़बरी दे दो। मगर जिन मुश्रिकों से तुमने मुआहिदा किया था फिर उन्होंने तुम्हारे साथ कोई कमी नहीं की और न तुम्हारे ख़िलाफ़ किसी की मदद की तो उनका मुआहिदा (संधि) उनकी मुद्दत तक पूरा करो। बेशक अल्लाह परहेज़गारों को पसंद करता है। फिर जब हुरमत (गरिमा) वाले महीने गुज़र जाएं तो मुश्रिकीन को क़त्ल करो जहां पाओ और उन्हें पकड़ो और उन्हें घेरो और बैठो हर जगह उनकी घात में | फिर अगर वे तौबा कर लें और नमाज़ क़ायम करें और ज़कात अदा करें तो उन्हें छोड़ दो। अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है। और अगर मुश्रिकीन में से कोई शख्स तुमसे पनाह मांगे तो उसे पनाह दे दो ताकि वह अल्लाह का कलाम सुने फिर उसे उसके अमान (सुरक्षा) की जगह पहुंचा दो। यह इसलिए कि वे लोग इल्म नहीं रखते। (1-6)
इन मुश्रिकों के लिए अल्लाह और उसके रसूल के ज़िम्मे कोई अहद (वचन) कैसे रह सकता है, मगर जिन लोगों से तुमने अहद किया था मस्जिदे हराम के पास, पस जब तक वे तुमसे सीधे रहें तुम भी उनसे सीधे रहो, बेशक अल्लाह परहेज़गारों को पसंद करता है। कैसे अहद रहेगा जबकि यह हाल है कि अगर वे तुम्हारे ऊपर क़ाबू पाएं तो तुम्हारे बारे में न क़राबत (निकट के संबंधों) का लिहाज़ करें और न अहद का। वे तुम्हें अपने मुंह की बात से राज़ी करना चाहते हैं मगर उनके दिल इंकार करते हैं। और उनमें अक्सर बदअहद हैं। उन्होंने अल्लाह की आयतों को थोड़ी क़ीमत पर बेच दिया, फिर उन्होंने अल्लाह के रास्ते से रोका। बहुत बुरा है जो वे कर रहे हैं। किसी मोमिन के मामले में वे न क़राबत का लिहाज़ करते हैं और न अहद का, यही लोग हैं ज़्यादती करने वाले। पस अगर वे तौबा करें और नमाज़ क़ायम करें और ज़कात अदा करें तो वे तुम्हारे दीनी भाई हैं। और हम खोलकर बयान करते हैं आयतों को जानने वालों के लिए। और अगर अहद (वचन) के बाद ये अपनी क़समों को तोड़ डालें और तुम्हारे दीन में ऐब लगाएं तो कुफ़ के इन सरदारों से लड़ो। बेशक उनकी क़समें कुछ नहीं, ताकि वे बाज़ आएं। क्या तुम न लड़ोगे ऐसे लोगों से जिन्होंने अपने अहद तोड़ दिए और रसूल को निकालने की जसारत (दुस्साहस) की और वही हैं जिन्होंने तुमसे जंग में पहल की। क्या तुम उनसे डरोगे। अल्लाह ज़्यादा मुस्तहिक़ है कि तुम उससे डरो अगर तुम मोमिन हो। उनसे लड़ो | अल्लाह तुम्हारे हाथों उन्हें सज़ा देगा और उन्हें रुसवा करेगा और तुम्हें उन पर ग़लबा देगा और मुसलमान लोगों के सीने को ठंडा करेगा और उनके दिल की जलन को दूर कर देगा और अल्लाह तौबा नसीब करेगा जिसे चाहेगा और अल्लाह जानने वाला है हिक्मत (तत्वदर्शिता) वाला है। (7-15)
क्या तुम्हारा यह गुमान है कि तुम छोड़ दिए जाओगे हालांकि अभी अल्लाह ने तुम में से उन लोगों को जाना ही नहीं जिन्होंने जिहाद किया और जिन्होंने अल्लाह और रसूल और मोमिनीन के सिवा किसी को दोस्त नहीं बनाया और अल्लाह जानता है जो कुछ तुम करते हो। (16)
मुश्रिकों का काम नहीं कि वे अल्लाह की मस्जिदों को आबाद करें हालांकि वे ख़ुद अपने ऊपर काफ़ के गवाह हैं। उन लोगों के आमाल अकारत गए और वे हमेशा आग में रहने वाले हैं। अल्लाह की मस्जिदों को तो वह आबाद करता है जो अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान लाए और नमाज़ क़ायम करे और ज़कात अदा करे और अल्लाह के सिवा किसी से न डरे। ऐसे लोग उम्मीद है कि हिदायत पाने वालों में से बनें। क्या तुमने हाजियों के पानी पिलाने और मस्जिदे हराम के बसाने को बराबर कर दिया उस शख्स के जो अल्लाह और आख़िरत पर ईमान लाया और अल्लाह की राह में जिहाद किया, अल्लाह के नज़दीक ये दोनों बराबर नहीं हो सकते। और अल्लाह ज़ालिम लोगों को राह नहीं दिखाता। जो लोग ईमान लाए और उन्होंने हिजरत की और अल्लाह के रास्ते में अपने जान व माल से जिहाद किया, उनका दर्जा अल्लाह के यहां बड़ा है और यही लोग कामयाब हैं। उनका रब उन्हें ख़ुशख़बरी देता है अपनी रहमत और ख़ुशनूदी (प्रसन्नता) की और ऐसे बाग़ों की जिनमें उनके लिए दाइमी (हमेशा रहने वाली) नेमत होगी, उनमें वे हमेशा रहेंगे। बेशक अल्लाह ही के पास बड़ा अज्र (प्रतिफल) है। ऐ ईमान वालो अपने बापों और अपने भाइयों को दोस्त न बनाओ अगर वे ईमान के मुक़ाबले में कुफ़ को अज़ीज़ रखें। और तुम में से जो उन्हें अपना दोस्त बनाएंगे तो ऐसे ही लोग ज़ालिम हैं। कहो कि अगर तुम्हारे बाप और तुम्हारे लड़के और तुम्हारे भाई और तुम्हारी बीवियां और तुम्हारा ख़ानदान और वे माल जो तुमने कमाए हैं और वह तिजारत जिसके बंद होने से तुम डरते हो और वे घर जिन्हें तुम पसंद करते हो, ये सब तुम्हें अल्लाह और उसके रसूल और उसकी राह में जिहाद करने से ज़्यादा महबूब हैं तो इंतिज़ार करो यहां तक कि अल्लाह अपना हुक्म भेज दे और अल्लाह नाफ़रमान लोगों को रास्ता नहीं देता। (17-24)
बेशक अल्लाह ने बहुत से मौक़ों पर तुम्हारी मदद की है और हुनैन के दिन भी जब तुम्हारी कसरत ने तुम्हें नाज़ में मुब्तिता कर दिया था। फिर वह तुम्हारे कुछ काम न आई। और ज़मीन अपनी वुस्अत के बावजूद तुम पर तंग हो गई, फिर तुम पीठ फेर कर भागे। इसके बाद अल्लाह ने अपने रसूल और मोमिनीन पर अपनी सकीनत (शांति) उतारी और ऐसे लश्कर उतारे जिन्हें तुमने नहीं देखा और अल्लाह ने मुंकिरों को सज़ा दी और यही मुंकिरों का बदला है। फिर इसके बाद अल्लाह जिसे चाहे तौबा नसीब कर दे और अल्लाह बखझ्शने वाला मेहरबान है। ऐ ईमान वालो, मुश्रिकीन बिल्कुल नापाक हैं। पस वे इस साल के बाद मस्जिदे हराम के पास न आएं और अगर तुम्हें मुफ़्लिसी का अंदेशा हो तो अल्लाह अगर चाहेगा तो अपने फ़ज़्ल से तुम्हें धनी कर देगा अल्लाह अलीम (्ञानवान) व हकीम (तत्वदर्शी) है। (25-28)
उन अहले किताब से लड़ो जो न अल्लाह पर ईमान रखते हैं और न आख़िरत के दिन पर और न अल्लाह और उसके रसूल के हराम ठहराए हुए को हराम ठहराते और न दीने हक़ को अपना दीन बनाते यहां तक कि वे अपने हाथ से जिज़्या (जान माल की हिफाज़त के बदले कर) दें और छोटे बनकर रहें। और यहूद ने कहा कि उज़ैर अल्लाह के बेटे हैं और नसारा (ईसाइयों) ने कहा कि मसीह अल्लाह के बेटे हैं। ये उनके अपने मुंह की बातें हैं। वे उन लोगों की बात की नक़ल कर रहे हैं जिन्होंने इनसे पहले कुफ़ किया। अल्लाह इन्हें हलाक करे, वे किधर बहके जा रहे हैं। उन्होंने अल्लाह के सिवा अपने उलमा (विद्वानों) और मशाइख़ (धर्म गुरुओं) को रब बना डाला और मसीह इब्ने मरयम को भी। हालांकि उन्हें सिर्फ़ यह हुक्म था कि वे एक माबूद (पूज्य) की इबादत करें। उसके सिवा कोई माबूद नहीं। वह पाक है इससे जो वे शरीक करते हैं। वे चाहते हैं कि अल्लाह की रोशनी को अपने मुंह से बुझा दें और अल्लाह अपनी रोशनी को पूरा किए बगैर मानने वाला नहीं, चाहे मुंकिरों को यह कितना ही नागवार हो। उसी ने अपने रसूल को भेजा है हिदायत और दीने हक़ के साथ ताकि उसे सारे दीन पर ग़ालिब कर दे चाहे यह मुश्रिकों को कितना ही नागवार हो। (29-33)
ऐ ईमान वालो, अहले किताब के अक्सर उलमा (विद्वान) व मशाइख़ (धर्म गुरु) लोगों के माल बातिल (अवैध) तरीक़ों से खाते हैं और लोगों को अल्लाह के रास्ते से रोकते हैं और जो लोग सोना और चांदी जमा करके रखते हैं और उन्हें अल्लाह की राह में खर्च नहीं करते उन्हें एक दर्दनाक अज़ाब की ख़ुशख़बरी दे दो। उस दिन इस माल पर दोज़ख़ की आग दहकाई जाएगी। फिर उससे उनकी पेशानियां और उनके पहलू और उनकी पीठें दाग़ी जाएंगी। यही है वह जिसे तुमने अपने वास्ते जमा किया था। पस अब चखो जो तुम जमा करते रहे। (34-35)
महीनों की गिनती अल्लाह के नज़दीक बारह महीने हैं अल्लाह की किताब में जिस दिन से उसने आसमानों और ज़मीन को पैदा किया, इनमें से चार हुरमत (गरिमा) वाले हैं। यही है सीधा दीन। पस उनमें तुम अपने ऊपर ज़ुल्म न करो। और मुश्रिकों से सब मिलकर लड़ो जिस तरह वे सब मिलकर तुमसे लड़ते हैं और जान लो कि अल्लाह मुत्तक्रियों (ईश परायण लोगों) के साथ है। महीनों का हटा देना कुफ़ में एक इज़ाफ़ा है। इससे कुफ़ करने वाले गुमराही में पड़ते हैं। वे किसी साल हराम महीने को हलाल कर लेते हैं और किसी साल उसे हराम कर देते हैं ताकि ख़ुदा के हराम किए हुए की गिनती पूरी करके उसके हराम किए हुए को हलाल कर लें। उनके बुरे आमाल उनके लिए ख़ुशनुमा बना दिए गए हैं। और अल्लाह इंकार करने वालों को रास्ता नहीं दिखाता। (36-37)
ऐ ईमान वालो, तुम्हें क्या हो गया है कि जब तुमसे कहा जाता है कि अल्लाह की राह में निकलो तो तुम ज़मीन से लगे जाते हो। क्या तुम आख़िरत (परलोक) के मुक़ाबले में दुनिया की ज़िंदगी पर राज़ी हो गए। आख़िरत के मुक़ाबले में दुनिया की ज़िंदगी का सामान तो बहुत थोड़ा है। अगर तुम न निकलोगे तो ख़ुदा तुम्हें दर्दनाक सज़ा देगा और तुम्हारी जगह दूसरी क़ौम ले आएगा और तुम ख़ुदा का कुछ भी न बिगाड़ सकोगे। और ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है। अगर तुम रसूल की मदद न करोगे तो अल्लाह ख़ुद उसकी मदद कर चुका है जबकि मुंकिरों उसे निकाल दिया था, वह सिर्फ़ दो में का दूसरा था। जब वे दोनों ग़ार में थे। जब वह अपने साथी से कह रहा था कि ग़म न करो, अल्लाह हमारे साथ है। पस अल्लाह ने उस पर अपनी सकीनत (शांति) नाज़िल फ़रमाई और उसकी मदद ऐसे लक्करों से की जो तुम्हें नज़र न आते थे और अल्लाह ने मुंकिरों की बात नीची कर दी और अल्लाह ही की बात तो ऊंची है और अल्लाह ज़बरदस्त है हिक्मत (तत्वदर्शिता) वाला है। हल्के और बोझल और अपने माल और अपनी जान से अल्लाह की राह में जिहाद करो, यह तुम्हारे लिए बेहतर है अगर तुम जानों। अगर नफ़ा क़रीब होता और सफ़र हल्का होता तो वे ज़रूर तुम्हारे पीछे हो लेते मगर यह मंज़िल उन पर कठिन हो गई। अब वे क़समें खाएंगे कि अगर हमसे हो सकता तो हम ज़रूर तुम्हारे साथ चलते। वे अपने आपको हलाकत में डाल रहे हैं। और अल्लाह जानता है कि ये लोग यक़ीनन झूठे हैं। (38-42)
अल्लाह तुम्हें माफ़ करे, तुमने क्यों उन्हें इजाज़त दे दी। यहां तक कि तुम पर खुल जाता कि कौन लोग सच्चे हैं और झूठों को भी तुम जान लेते। जो लोग अल्लाह पर और आख़िरत के दिन पर ईमान रखते हैं वे कभी तुमसे यह दरख्वास्त न करेंगे कि वे अपने माल और अपनी जान से जिहाद न करें और अल्लाह डरने वालों को ख़ूब जानता है। तुमसे इजाज़त तो वही लोग मांगते हैं जो अल्लाह पर और आख़िरत के दिन पर ईमान नहीं रखते और उनके दिल शक में पड़े हुए हैं। पस वे अपने शक में भटक रहे हैं। और अगर वे निकलना चाहते तो ज़रूर वे इसका कुछ सामान कर लेते। मगर अल्लाह ने उनका उठना पसंद न किया इसलिए उन्हें जमा रहने दिया और कह दिया गया कि बैठने वालों के साथ बैठे रहो। अगर ये लोग तुम्हारे साथ निकलते तो वे तुम्हारे लिए ख़राबी ही बढ़ाने का सबब बनते और वे तुम्हारे दर्मियान फ़ितनापरदाज़ी (उपद्रव) के लिए दौड़धूप करते और तुम में उनकी सुनने वाले हैं और अल्लाह ज़ालिमों से ख़ूब वाक्रिफ़ है। ये पहले भी फ़ितने (उपद्रव) की कोशिश कर चुके हैं और वे तुम्हारे लिए कामों का उल्नट फेर करते रहे हैं। यहां तक कि हक़ आ गया और अल्लाह का हुक्म ज़ाहिर हो गया और वे नाख़ुश ही रहे। (43-48)
और उनमें वे भी हैं जो कहते हैं कि मुझे रुखसत दे दीजिए और मुझे फ़ितने में न डालिए। सुन लो, वे तो फ़ितने में पड़ चुके। और बेशक जहन्नम मुंकिरों को घेरे हुए है। अगर तुम्हें कोई अच्छाई पेश आती है तो उन्हें दुख होता है और अगर तुम्हें कोई मुसीबत पहुंचती है तो कहते हैं हमने पहले ही अपना बचाव कर लिया था और वे ख़ुश होकर लौटते हैं। कहो, हमें सिर्फ़ वही चीज़ पहुंचेगी जो अल्लाह ने हमारे लिए लिख दी है। वह हमारा कारसाज़ (कार्य साधक) है और अहले ईमान को अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिए। कहो तुम हमारे लिए सिर्फ़ दो भलाइयों में से एक भलाई के मुंतज़िर हो। मगर हम तुम्हारे हक़ में इसके मुंतज़िर हैं कि अल्लाह तुम पर अज़ाब भेजे अपनी तरफ़ से या हमारे हाथों से। पस तुम इंतिज़ार करो हम भी तुम्हारे साथ इंतिज़ार करने वालों में हैं। कहो तुम ख़ुशी से ख़र्च करो या नाखुशी से, तुमसे हरगिज़ न क़ुबूल किया जाएगा। बेशक तुम नाफ़रमान लोग हो। और वे अपने ख़र्च की क्रुबूलियत से सिर्फ़ इसलिए महरूम हुए कि उन्होंने अल्लाह और उसके रसूल का इंकार किया और ये लोग नमाज़ के लिए आते हैं तो गरानी (बेदिली) के साथ आते हैं और ख़र्च करते हैं तो नागवारी के साथ। तुम उनके माल और औलाद को कुछ वक़॒अत (महत्व) न दो। अल्लाह तो यह चाहता है कि उनके ज़रिए से उन्हें दुनिया की ज़िंदगी में अज़ाब दे और उनकी जानें इस हालत में निकलें कि वे मुंकिर हों। वे ख़ुदा की क़सम खाकर कहते हैं कि वे तुम में से हैं हालांकि वे तुम में से नहीं। बल्कि वे ऐसे लोग हैं जो तुमसे डरते हैं। अगर वे कोई पनाह की जगह पाएं या कोई खोह या घुस बैठने की जगह तो वे भाग कर उसमें जा छुपें। (49-57)
और उनमें ऐसे भी हैं जो तुम पर सदक़ात के बारे में ऐब लगाते हैं। अगर उसमें से उन्हें दे दिया जाए तो राज़ी रहते हैं और अगर न दिया जाए तो नाराज़ हो जाते हैं। क्या अच्छा होता कि अल्लाह और रसूल ने जो कुछ उन्हें दिया था उस पर वे राज़ी रहते और कहते कि अल्लाह हमारे लिए काफ़ी है। अल्लाह अपने फ़ज़्ल से हमें और भी देगा और उसका रसूल भी, हमें तो अल्लाह ही चाहिए। सदक़ात (ज़कात) तो दरअसल फ़क़ीरों और मिस्कीनों के लिए हैं और उन कारकुनों के लिए जो सदक़ात के काम पर मुक़र्रर हैं। और उनके लिए जिनकी तालीफ़े क़ल्ब (दिल भराई) मत्लूब है। और गर्दनों के छुड़ाने में और जो तावान भरें और अल्लाह के रास्ते में और मुसाफ़िर की इम्दाद में | यह एक फ़रीज़ा है अल्लाह की तरफ़ से और अल्लाह इल्म वाला हिक्मत (तत्वदर्शिता) वाला है। (58-60)
और उनमें वे लोग भी हैं जो नबी को दुख देते हैं और कहते हैं कि यह शख्स तो कान है। कहो कि वह तुम्हारी भलाई के लिए कान है। वह अल्लाह पर ईमान रखता है और अहले ईमान पर एतेमाद करता है और वह रहमत है उनके लिए जो तुम में अहले ईमान हैं। और जो लोग अल्लाह के रसूल को दुख देते हैं उनके लिए दर्दनाक सज़ा है। वे तुम्हारे सामने अल्लाह की क़समें खाते हैं ताकि तुम्हें राज़ी करें| हालांकि अल्लाह और उसका रसूल ज़्यादा हक़दार हैं कि वे उसे राज़ी करें अगर वे मोमिन हैं। क्या उन्हें मालूम नहीं कि जो अल्लाह और उसके रसूल की मुख़ालिफ़त (विरोध) करे उसके लिए जहन्नम की आग है जिसमें वह हमेशा रहेगा। यह बहुत बड़ी रुस्वाई है। मुनाफ़िक्रीन (पाखंडी) डरते हैं कि कहीं मुसलमानों पर ऐसी सूरह नाज़िल न हो जाए जो उन्हें उनके दिलों के भेदों से आगाह कर दे। कहो कि तुम मज़ाक़ उड़ा लो, अल्लाह यक्रीनन उसे ज़ाहिर कर देगा जिससे तुम डरते हो। और अगर तुम उनसे पूछो तो वे कहेंगे कि हम तो हंसी और दिल्लगी कर रहे थे। कहो, क्या तुम अल्लाह से और उसकी आयतों से और उसके रसूल से हंसी दिल््लगी कर रहे थे। बहाने मत बनाओ, तुमने ईमान लाने के बाद कुफ्र किया है। अगर हम तुम में से एक गिरोह को माफ़ कर दें तो दूसरे गिरोह को तो ज़रूर सज़ा देंगे क्योंकि वे मुजरिम हैं। (61-66)
मुनाफ़िक़ (पाखंडी) मर्द और मुनाफ़िक़ औरतें सब एक ही तरह के हैं। वे बुराई का हुक्म देते हैं और भलाई से मना करते हैं। और अपने हाथों को बंद रखते हैं। उन्होंने अल्लाह को भुला दिया तो अल्लाह ने भी उन्हें भुला दिया। बेशक मुनाफ़िक़ीन बहुत नाफ़रमान हैं। मुनाफ़िक़ मर्दों और मुनाफ़िक़ औरतों और मुंकिरों से अल्लाह ने जहन्नम की आग का वादा कर रखा है जिसमें वे हमेशा रहेंगे। यही उनके लिए बस है। उन पर अल्लाह की लानत है और उनके लिए क़ायम रहने वाला अज़ाब है। जिस तरह तुमसे अगले लोग, वे तुमसे ज़ोर में ज़्यादा थे और माल व औलाद की कसरत में तुमसे बढ़े हुए थे तो उन्होंने अपने हिस्से से फ़ायदा उठाया और तुमने भी अपने हिस्से से फ़ायदा उठाया, जैसा कि तुम्हारे अगलों ने अपने हिस्से से फ़ायदा उठाया था। और तुमने भी वही बहसें कीं जैसी बहसें उन्होंने की थीं। यही वे लोग हैं जिनके आमाल दुनिया व आख़िरत में ज़ाया हो गए और यही लोग घाटे में पड़ने वाले हैं। क्या उन्हें उन लोगों की ख़बर नहीं पहुंची जो इनसे पहले गुज़रे। क़ौमे नूह और आद और समूद और क्ौमे इब्राहीम और असहाबे मदयन और उल्टी हुई बस्तियों की। उनके पास उनके रसूल दलीलों के साथ आए। तो ऐसा न था कि अल्लाह उन पर ज़ुल्म करता मगर वे ख़ुद अपनी जानों पर ज़ुल्म करते रहे। (67-70)
और मोमिन मर्द और मोमिन औरतें एक दूसरे के मददगार हैं। वे भलाई का हुक्म देते हैं और बुराई से रोकते हैं और नमाज़ क़ायम करते हैं और ज़कात अदा करते हैं और अल्लाह और उसके रसूल की इताअत (आज्ञापालन) करते हैं। यही लोग हैं जिन पर अल्लाह रहम करेगा। बेशक अल्लाह ज़बरदस्त है हिक्मत (तत्वदर्शिता) वाला है। मोमिन मर्दों और मोमिन औरतों से अल्लाह का वादा है बाग़ों का कि उनके नीचे नहरें जारी होंगी, उनमें वे हमेशा रहेंगे। और वादा है, सुथरे मकानों का हमेशगी के बाग़ों में, और अल्लाह की रिज़ामंदी जो सबसे बढ़कर है। यही बड़ी कामयाबी है। ऐ नबी मुंकिरों (सत्य का इंकार करने वालों) और मुनाफ़िक़ों (पाखंडियों) से जिहाद करों और उन पर कड़े बन जाओ। और उनका ठिकाना जहन्नम है और वह बहुत बुरा ठिकाना है। वे ख़ुदा की क़सम खाते हैं कि उन्होंने नहीं कहा। हालांकि उन्होंने कुफ़ की बात कही और वे इस्लाम के बाद मुंकिर हो गए और उन्होंने वह चाहा जो उन्हें हासिल न हो सकी। और यह सिर्फ़ इसका बदला था कि उन्हें अल्लाह और रसूल ने अपने फ़ज़्ल से ग़नी कर दिया। अगर वे तौबा करें तो उनके हक़ में बेहतर है और अगर वे एराज़ (उपेक्षा) करें तो ख़ुदा उन्हें दर्दनाक अज़ाब देगा दुनिया में भी और आख़िरत में भी। और ज़मीन में उनका न कोई हिमायती होगा और न मददगार। (71-74)
और उनमें वे भी हैं जिन्होंने अल्लाह से अहद किया कि अगर उसने हमें अपने फ़ज़्ल से अता किया तो हम ज़रूर सदक़ा करेंगे और हम सालेह (नेक) बनकर रहेंगे। फिर जब अल्लाह ने उन्हें अपने फ़ज़्ल से अता किया तो वे बुख्ल करने लगे और बेपरवाह होकर मुंह फेर लिया। पस अल्लाह ने उनके दिलों में निफ़ाक़ (पाखंड) बिठा दिया उस दिन तक के लिए जबकि वे उससे मिलेंगे इस सबब से कि उन्होंने अल्लाह के किए हुए वादे की ख़िलाफ़वर्ज़ी की और इस सबब से कि वे झूठ बोलते रहे। क्या उन्हें ख़बर नहीं कि अल्लाह उनके राज़ और उनकी सरगोशी (गुप्त वार्ता) को जानता है और अल्लाह तमाम छुपी हुई बातों को जानने वाला है। वे लोग जो तअन (कटाक्ष) करते हैं उन मुसलमानों पर जो दिल खोल कर सदक़ात देते हैं और जो सिर्फ़ अपनी मेहनत मज़दूरी में से देते हैं उनका मज़ाक़ उड़ाते हैं। अल्लाह इन मज़ाक़ उड़ाने वालों का मज़ाक़ उड़ाता है और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है। तुम उनके लिए माफ़ी की दरख़्वास्त करो या न करो, अगर तुम सत्तर मर्तबा उन्हें माफ़ करने की दरख्वास्त करोगे तो अल्लाह उन्हें माफ़ करने वाला नहीं। यह इसलिए कि उन्होंने अल्लाह और रसूल का इंकार किया और अल्लाह नाफ़रमानों को राह नहीं दिखाता। (75-80)
पीछे रह जाने वाले अल्लाह के रसूल से पीछे बैठे रहने पर बहुत ख़ुश हुए और उन्हें गिरां (भारी) गुज़रा कि वे अपने माल और जान से अल्लाह की राह में जिहाद करें। और उन्होंने कहा कि गर्मी में न निकलो | कह दो कि दोज़्ब की आग इससे ज़्यादा गर्म है, काश उन्हें समझ होती। पस वे हंसें कम और रोऐं ज़्यादा, इसके बदले में जो वे करते थे। पस अगर अल्लाह तुम्हें उनमें से किसी गिरोह की तरफ़ वापस लाए और वे तुमसे जिहाद के लिए निकलने की इजाज़त मांगें तो कह देना कि तुम मेरे साथ कभी नहीं चलोगे और न मेरे साथ होकर किसी दुश्मन से लड़ोगे। तुमने पहली बार भी बैठे रहने को पसंद किया था पस पीछे रहने वालों के साथ बैठे रहो। और उनमें से जो कोई मर जाए उस पर तुम कभी नमाज़ न पढ़ो और न उसकी क़ब्र पर खड़े हो। बेशक उन्होंने अल्लाह और उसके रसूल का इंकार किया और वे इस हाल में मरे कि वे नाफ़रमान थे। और उनके माल और उनकी औलाद तुम्हें तअज्जुब में न डालें। अल्लाह तो बस यह चाहता है कि इनके ज़रिए से उन्हें दुनिया में अज़ाब दे और उनकी जानें इस हाल में निकलें कि वे मुंकिर हों। और जब कोई सूरह उतरती है कि अल्लाह पर ईमान लाओ और उसके रसूल के साथ जिहाद करो तो उनके मक़दूर वाले (सामर्थ्यवान) तुमसे रुख्सत मांगने लगते हैं और कहते हैं कि हमें छोड़ दीजिए कि हम यहां ठहरने वालों के साथ रह जाएं। उन्होंने इसको पसंद किया कि पीछे रहने वाली औरतों के साथ रह जाएं। और उनके दिलों पर मुहर कर दी गई पस वे कुछ नहीं समझते। लेकिन रसूल और जो लोग उसके साथ ईमान लाए हैं उन्होंने अपने माल और जान से जिहाद किया और उन्हीं के लिए हैं खूबियां और वही फ़लाह (कल्याण) पाने वाले हैं। उनके लिए अल्लाह ने ऐसे बाग़ तैयार कर रखे हैं जिनके नीचे नहरें बहती हैं। उनमें वे हमेशा रहेंगे। यही बड़ी कामयाबी है। (81-89)
देहाती अरबों में से भी बहाना करने वाले आए कि उन्हें इजाज़त मिल जाए और जो अल्लाह और उसके रसूल से झूठ बोले वह बैठा रहे। उनमें से जिन्होंने इंकार किया उन्हें एक दर्दनाक अज़ाब पकड़ेगा। कोई गुनाह कमज़ोरों पर नहीं है और न बीमारों पर और न उन पर जो ख़र्च करने को कुछ नहीं पाते जबकि वे अल्लाह और उसके रसूल के साथ ख़ैरख़्वाही करें। नेककारों पर कोई इल्ज़ाम नहीं और अल्लाह बख्शने वाला मेहरबान है। और न उन लोगों पर कोई इल्ज़ाम है कि जब तुम्हारे पास आए कि तुम उन्हें सवारी दो। तुमने कहा कि मेरे पास कोई चीज़ नहीं कि तुम्हें उस पर सवार कर दूं तो वे इस हाल में वापस हुए कि उनकी आंखों से आंसू जारी थे इस ग़म में कि उन्हें कुछ मयस्सर नहीं जो वे खर्च करें। इल्ज़ाम तो बस उन लोगों पर है जो तुमसे इजाज़त मांगते हैं हालांकि वे मालदार हैं। वे इस पर राज़ी हो गए कि पीछे रहने वाली औरतों के साथ रह जाएं और अल्लाह ने उनके दिलों पर मुहर कर दी, पस वे नहीं जानते। (90-93)
तुम जब उनकी तरफ़ पलटोगे तो वे तुम्हारे सामने उज़ (विवशताएं) पेश करेंगे। कह दो कि बहाने न बनाओ। हम हरगिज़ तुम्हारी बात न मानेंगे। बेशक अल्लाह ने हमें तुम्हारे हालात बता दिए हैं। अब अल्लाह और रसूल तुम्हारे अमल को देखेंगे। फिर तुम उसकी तरफ़ लौटाए जाओगे जो खुले और छुपे का जानने वाला है, वह तुम्हें बता देगा जो कुछ तुम कर रहे थे। ये लोग तुम्हारी वापसी पर तुम्हारे सामने अल्लाह की क़समें खाएंगे ताकि तुम उनसे दरगुज़र करो। पस तुम उनसे दरगुज़र करो बेशक वे नापाक हैं और उनका ठिकाना जहन्नम है बदले में उसके जो वे करते रहे। वे तुम्हारे सामने क़समें खाएंगे कि तुम उनसे राज़ी हो जाओ। अगर तुम उनसे राज़ी भी हो जाओ तो अल्लाह नाफ़रमान लोगों से राज़ी होने वाला नहीं। देहात वाले कुफ़ व निफ़ाक़ में ज़्यादा सख़्त हैं और इसी लायक़ हैं कि अल्लाह ने अपने रसूल पर जो कुछ उतारा है उसके हुदूद से बेख़बर रहें। और अल्लाह सब कुछ जानने वाला हिक्मत वाला है। और देहातियों में ऐसे भी हैं जो ख़ुदा की राह में ख़र्च को एक तावान (जुर्माना) समझते हैं और तुम्हारे लिए ज़माने की गर्दिशों के मुंतज़िर हैं। बुरी गर्दिश ख़ुद उन्हीं पर है और अल्लाह सुनने वाला जानने वाला है। और देहातियों में वे भी हैं जो अल्लाह पर और आख़िरत के दिन पर ईमान रखते हैं और जो कुछ ख़र्च करते हैं उसे अल्लाह के यहां कूुर्ब (समीपता) का और रसूल के लिए दुआएं लेने का ज़रिया बनाते हैं। हां बेशक वह उनके लिए क़रुर्ब का ज़रिया है। अल्लाह उन्हें अपनी रहमत में दाख़िल करेगा। यक़ीनन अल्लाह बख्शने वाला मेहरबान है। (94-99)
और मुहाजिरीन व अंसार में जो लोग साबिक़ और मुक़द्दम हैं और जिन्होंने ख़ूबी के साथ उनकी पैरवी की, अल्लाह उनसे राज़ी हुआ और वे उससे राज़ी हुए। और अल्लाह ने उनके लिए ऐसे बाग़ तैयार कर रखे हैं जिनके नीचे नहरें बहती होंगी। वे उनमें हमेशा रहेंगे। यही है बड़ी कामयाबी। और तुम्हारे गिर्द व पेश जो देहाती हैं उनमें मुनाफ़िक्र (पाखंडी) हैं और मदीना वालों में भी मुनाफ़िक़ हैं। वे निफ़ाक़ (पाखंड) पर जम गए हैं। तुम उन्हें नहीं जानते, हम उन्हें जानते हैं। हम उन्हें दोहरा अज़ाब देंगे। फिर वे एक अज़ाबे अज़ीम (महा-यातना) की तरफ़ भेजे जाएंगे। (100-101)
कुछ और लोग हैं जिन्होंने अपने क़ुसूरों का एतराफ़ कर लिया है। उन्होंने मिले जुले अमल किए थे, कुछ भले और कुछ बुरे। उम्मीद है कि अल्लाह उन पर तवज्जोह करें। बेशक अल्लाह बख्शने वाला मेहरबान है। तुम उनके मालों में से सदक़ा लो, इससे तुम उन्हें पाक करोगे और उनका तज़्किया (पवित्रीकरण) करोगे। और तुम उनके लिए दुआ करो। बेशक तुम्हारी दुआ उनके लिए तस्कीन (शांति) का जरिया होगी। अल्लाह सब कुछ सुनने वाला जानने वाला है। क्या वे नहीं जानते कि अल्लाह ही अपने बंदों की तौबा क़ुबूल करता है। और वही सदक़ों को क़ुबूल करता है। और अल्लाह तौबा क़ुबूल करने वाला मेहरबान है। कहो कि अमल करो, अल्लाह और उसका रसूल और अहले ईमान तुम्हारे अमल को देखेंगे और तुम जल्द उसके पास लौटाए जाओगे जो तमाम खुले और छुपे को जानता है। वह तुम्हें बता देगा जो कुछ तुम कर रहे थे। कुछ दूसरे लोग हैं जिनका मामला अभी ख़ुदा का हुक्म आने तक ठहरा हुआ है, या वह उन्हें सज़ा देगा या उनकी तौबा क़्ुबूल करेगा, और अल्लाह जानने वाला हिक्मत (तत्वदर्शिता) वाला है। (102-106)
और उनमें ऐसे भी हैं जिन्होंने एक मस्जिद बनाई नुक़्सान पहुंचाने के लिए और काुफ़ के लिए और अहले ईमान में फूट डालने के लिए और इसलिए ताकि कमीनगाह (शरण-स्थल) फ़राहम करें उस शख्स के लिए जो पहले से अल्लाह और उसके रसूल से लड़ रहा है। और ये लोग क़समें खाएंगे कि हमने तो सिर्फ़ भलाई चाही थी और अल्लाह गवाह है कि वे झूठे हैं। तुम उस इमारत में कभी खड़े न होना। अलबत्ता जिस मस्जिद की बुनियाद अव्वल दिन से तक़वे (ईश-परायणता) पर पड़ी है वह इस लायक़ है कि तुम उसमें खड़े हो। उसमें ऐसे लोग हैं जो पाक रहने को पसंद करते हैं और अल्लाह पाक रहने वालों को पसंद करता है। क्या वह शख्स बेहतर है जिसने अपनी इमारत की बुनियाद ख़ुदा से डर पर और ख़ुदा की ख़ुशनूदी पर रखी या वह शख्स बेहतर है जिसने अपनी इमारत की बुनियाद एक खाई के किनारे पर रखी जो गिरने को है। फिर वह इमारत उसे लेकर जहन्नम की आग में गिर पड़ी। और अल्लाह ज़ालिम लोगों को राह नहीं दिखाता। और यह इमारत जो उन्होंने बनाई हमेशा उनके दिलों में शक की बुनियाद बनी रहेगी सिवाए इसके कि उनके दिल ही टुकड़े हो जाएं। और अल्लाह अलीम (ज्ञानवान) व हकीम (तत्वदर्शी) है। (107-110)
बिलाशुबह अल्लाह ने मोमिनों से उनके जान और उनके माल को ख़रीद लिया है जन्नत के बदले। वे अल्लाह की राह में लड़ते हैं। फिर मारते हैं और मारे जाते हैं। यह अल्लाह के ज़िम्मे एक सच्चा वादा है, तौरात में और इंजील में और कुरआन में। और अल्लाह से बढ़कर अपने वादे को पूरा करने वाला कौन है। पस तुम ख़ुशियां करो उस मामले पर जो तुमने अल्लाह से किया है। और यही है सबसे बड़ी कामयाबी | वे तौबा करने वाले हैं। इबादत करने वाले हैं। हम्द (ईश-प्रशंसा) करने वाले हैं। ख़ुदा की राह में फिरने वाले हैं। रुकूअ करने वाले हैं। सज्दा करने वाले हैं। भलाई का हुक्म देने वाले है। बुराई से रोकने वाले हैं। अल्लाह की हदों का ख्याल रखने वाले हैं। और मोमिनों को ख़ुशख़बरी दे दो। (111-112)
नबी को और उन लोगों को जो ईमान लाए हैं रवा नहीं कि मुश्रिकों के लिए मग्फ़िरत (क्षमा) की दुआ करें, चाहे वे उनके रिश्तेदार ही हों जबकि उन पर खुल चुका कि ये जहन्नम में जाने वाले लोग हैं। और इब्राहीम का अपने बाप के लिए मग्फ़िरत की दुआ मांगना सिर्फ़ इस वादे के सबब से था जो उसने उससे कर लिया था। फिर जब उस पर खुल गया कि वह अल्लाह का दुश्मन है तो वह उससे बेतअल्लुक़ हो गया। बेशक इब्राहीम बड़ा नर्मदिल और बुर्दबार (उदार) था। और अल्लाह किसी क़ौम को, उसे हिदायत देने के बाद गुमराह नहीं करता जब तक उन्हें साफ़-साफ़ वे चीज़ें बता न दे जिनसे उन्हें बचना है, बेशक अल्लाह हर चीज़ का इल्म रखता है। अल्लाह ही की सल्तनत है आसमानों में और जमीन में, वह जिलाता है और वही मारता है। और अल्लाह के सिवा न तुम्हारा कोई दोस्त है ओर न मददगार। (113-116)
अल्लाह ने नबी पर और मुहाजिरीन व अन्सार पर तवज्जोह फ़रमाई जिन्होंने तंगी के वक़्त मे नबी का साथ दिया, बाद इसके कि उनमें से कुछ लोगों के दिल कजी की तरफ़ मायल हो चुके थे। फिर अल्लाह ने उन पर तवज्जोह फ़रमाई। बेशक अल्लाह उन पर मेहरबान है रहम करने वाला है। और उन तीनों पर भी उसने तवज्जोह फ़रमाई जिनका मामला उठा रखा गया था। यहां तक कि जब ज़मीन अपनी वुस्अत के बावजूद उन पर तंग हो गई और वे ख़ुद अपनी जानों से तंग आ गए और उन्होंने समझ लिया कि अल्लाह से बचने के लिए ख़ुद अल्लाह के सिवा कोई जाएपनाह (शरण-स्थल) नहीं। फिर अल्लाह उनकी तरफ़ पलटा ताकि वे उसकी तरफ़ पलट आएं। बेशक अल्लाह तौबा क़ुबूल करने वाला रहम करने वाला है। (117-118)
ऐ ईमान वालो, अल्लाह से डरो और सच्चे लोगों के साथ रहो। मदीना वालों और अतराफ़ (आसपास) के देहातियों के लिए ज़ेबा न था कि वे अल्लाह के रसूल को छोड़कर पीछे बैठे रहें और न यह कि अपनी जान को उसकी जान से अज़ीज़ रखें। यह इसलिए कि जो प्यास और थकान और भूख भी उन्हें ख़ुदा की राह में लाहिक़ होती है और जो क़दम भी वे मुंकिरों को रंज पहुंचाने वाला उठाते हैं और जो चीज़ भी वे दुश्मन से छीनते हैं इनके बदले में उनके लिए एक नेकी लिख दी जाती है। अल्लाह नेकी करने वालों का अज्ज (प्रतिफल) ज़ाया नहीं करता। और जो छोटा या बड़ा ख़र्च उन्होंने किया और जो मैदान उन्होंने तै किए वे सब उनके लिए लिखा गया ताकि अल्लाह उनके अमल का अच्छे से अच्छा बदला दे। (119-121)
और यह मुमकिन न था कि अहले ईमान सबके सब निकल खड़े हों। तो ऐसा क्यों न हुआ कि उनके हर गिरोह में से एक हिस्सा निकल कर आता ताकि वह दीन में समझ पैदा करता और वापस जाकर अपनी क्रौम के लोगों को आगाह (दीक्षित) करता ताकि वे भी परहेज़ करने वाले बनते। ऐ ईमान वालो, उन मुंकिरों से जंग करो जो तुम्हारे आस-पास हैं और चाहिए कि वे तुम्हारे अंदर सख्ती पाएं और जान लो कि अल्लाह डरने वालों के साथ है। और जब कोई सूरह उतरती है तो उनमें से कुछ कहते हैं कि इसने तुम में से किस का ईमान ज़्यादा कर दिया। पस जो ईमान वाले हैं उनका इसने ईमान ज़्यादा कर दिया और वे ख़ुश हो रहे हैं। और जिन लोगों के दिलों में रोग है तो उसने बढ़ा दी उनकी गंदगी पर गंदगी। और वे मरने तक मुंकिर ही रहे। क्या ये लोग देखते नहीं कि वे हर साल एक बार या दो बार आज़माइश में डाले जाते हैं, फिर भी न तौबा करते हैं और न सबक़ हासिल करते हैं। और जब कोई सूरह उतारी जाती है तो ये लोग एक दूसरे को देखते हैं कि कोई देखता तो नहीं, फिर चल देते हैं। अल्लाह ने उनके दिलों को फेर दिया इस वजह से कि ये समझ से काम लेने वाले लोग नहीं हैं। (122-127)
तुम्हारे पास एक रसूल आया है जो ख़ुद तुम में से है। तुम्हारा नुक़्सान में पड़ना उस पर शाक़ (असहूय) है। वह तुम्हारी भलाई का हरीस (लालसा रखने वाला) है। ईमान वालों पर निहायत शफ़ीक़ (करुणामय) और मेहरबान है। फिर भी अगर वे मुंह फेरें तो कह दो कि अल्लाह मेरे लिए काफ़ी है। उसके सिवा कोई माबूद नहीं। उसी पर मैंने भरोसा किया। और वही मालिक है अर्शे अज़ीम का। (128-129)