धर्म

सूरह यूसुफ इन हिंदी – यूसुफ़ (सूरह 12)

सूरह यूसुफ कुरान शरीफ में बारहवाँ सूरा है। सूरह यूसुफ कुरान शरीफ का बारहवाँ सूरह है। इस सूरह में कुल 111 आयतें और 12 रुकुस हैं। सूरह यूसुफ मक्की सूरह है। इसमें पैगंबर यूसुफ़ की कहानी बताई गई है, जो किसी भी और इस्लामिक खाते में नहीं लिखी गई है।  सूरह यूसुफ कुरआन के सबसे शक्तिशाली और दिलचस्प सूरों में से एक माना गया है क्योंकि यह सोचने-समझने की शक्ति के साथ-साथ ध्यान को भी गहरा करता है। कहते हैं जो कोई भी इस सूरह यूसुफ को अपने खानदान के साथ पढ़ता है, अल्लाह की रहमत से उसे जन्नत नसीब होती है। इसके अलावा इस सूरह को पढ़ने से डर, तकलीफ़ें और वासनाओं जैसी बुराइयों से भी रिहाई होती है। निकाह में होने वाली देरी या फिर उसमें आई किसी भी बुराई के लिए सूरह यूसुफ़ की 86वीं आयत को पढ़ना सारी बुरी बलाओं को दूर करता है। पढ़ें सूरह यूसुफ इन हिंदी-

शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।

अलिफ़० लाम० रा०। ये वाज़ेह (स्पष्ट) किताब की आयतें हैं। हमने इसे अरबी कुरआन बनाकर उतारा है ताकि तुम समझो। हम तुम्हें बेहतरीन सरगुज़श्त (किस्से) सुनाते हैं इस कुरआन की बदौलत जो हमने तुम्हारी तरफ़ “वहीं (प्रकाशना) किया। इससे पहले बेशक तू बेख़बरों में था। जब यूसुफ़ ने अपने बाप से कहा कि अब्बाजान मैंने ख़्वाब में ग्यारह सितारे और सूरज और चांद देखे हैं। मैंने उन्हें देखा कि वे मुझे सज्दा कर रहे हैं। उसके बाप ने कहा कि ऐ मेरे बेटे, तुम अपना यह ख़्वाब अपने भाइयों को न सुनाना कि वे तुम्हारे ख़िलाफ़ कोई साज़िश करने लगें। बेशक शैतान आदमी का खुला हुआ दुश्मन है। और इसी तरह तेरा रब तुझे मुंतखब करेगा और तुम्हें बातों की हक़ीक़त तक पहुंचना सिखाएगा और तुम पर और आले याकूब पर अपनी नेमत पूरी करेगा जिस तरह वह इससे पहले तुम्हारे अज्दाद (पूर्वजों) इब्राहीम और इस्हाक़ पर अपनी नेमत पूरी कर चुका है। यक़ीनन तेरा रब अलीम (ज्ञानवान) और हकीम (तत्वदर्शी) है। (1-6)

हक़ीक़त यह है कि यूसुफ़ और उसके भाइयों में पूछने वालों के लिए बड़ी निशानियां हैं। जब उसके भाइयों ने आपस में कहा कि यूसुफ़ और उसका भाई हमारे बाप को हमसे ज़्यादा महबूब हैं। हालांकि हम एक पूरा जत्धा हैं। यक्रीनन हमारा बाप एक खुली हुई गलती में मुब्तिला है। यूसुफ़ को क़त्ल कर दो या उसे किसी जगह फेंक दो ताकि तुम्हारे बाप की तवज्जोह सिर्फ़ तुम्हारी तरफ़ हो जाए। और इसके बाद तुम बिल्कुल ठीक हो जाना। उनमें से एक कहने वाले ने कहा कि यूसुफ़ को क़त्ल न करो। अगर तुम कुछ करने ही वाले हो तो उसे किसी अंधे कुवें में डाल दो। कोई राह चलता क़ाफ़िला उसे निकाल ले जाएगा। (7-10) 

उन्होंने अपने बाप से कहा, ऐ हमारे बाप, क्या बात है कि आप यूसुफ़ के मामले में हम पर भरोसा नहीं करते | हालांकि हम तो उसके ख़ैरख़्वाह हैं। कल उसे हमारे साथ भेज दीजिए, खाए और खेले, और हम उसके निगहबान हैं। बाप ने कहा मैं इससे ग़मगीन होता हूं कि तुम उसे ले जाओ और मुझे अंदेशा है कि उसे कोई भेड़िया खा जाए जबकि तुम उससे ग़ाफ़िल हो। उन्होंने कहा कि अगर उसे भेड़िया खा गया जबकि हम एक पूरी जमाअत हैं, तो हम बड़े ख़सारे (घाटे) वाले साबित होंगे। फिर जब वे उसे ले गए और यह ते कर लिया कि उसे एक अंधे कुवें में डाल दें और हमने यूसुफ़ को वही” (प्रकाशना) की कि तू उन्हें उनका यह काम जताएगा और वे तुझे न जानेंगे और वे शाम को अपने बाप के पास रोते हुए आए। उन्होंने कहा कि ऐ हमारे बाप हम दौड़ का मुक़ाबला करने लगे और यूसुफ़ को हमने अपने सामान के पास छोड़ दिया। फिर उसे भेड़िया खा गया। और आप हमारी बात का यक़ीन न करेंगे चाहे हम सच्चे हों। और वे यूसुफ़ की क़मीज़ पर झूठा ख़ून लगाकर ले आए। बाप ने कहा नहीं, बल्कि तुम्हारे नफ़्स ने तुम्हारे लिए एक बात बना दी है। अब सब्र ही बेहतर है। और जो बात तुम ज़ाहिर कर रहे हो उस पर अल्लाह ही से मदद मांगता हूं। और एक क़ाफ़िला आया तो उन्होंने अपना पानी भरने वाला भेजा। उसने अपना डोल लटकाया। उसने कहा, ख़ुशख़बरी हो यह तो एक लड़का है। और उसे तिजारत का माल समझ कर महफ़ूज़ कर लिया। और अल्लाह खूब जानता था जो वे कर रहे थे। और उन्होंने उसे थोड़ी सी क्रीमत चन्द दिरहम के ऐवज़ बेच दिया। और वे उससे बेरगबत (उदासीन) थे। और अहले मिस्र में से जिस शख्स ने उसे ख़रीदा उसने अपनी बीवी से कहा कि इसे अच्छी तरह रखो। उम्मीद है कि वह हमारे लिए मुफ़ीद हो या हम उसे बेटा बना लें। और इस तरह हमने यूसुफ़ को उस मुल्क में जगह दी। और ताकि हम उसे बातों की तावील (निहितार्थ) सिखाएं। और अल्लाह अपने काम पर ग़ालिब (अधिकार प्राप्त) रहता है। लेकिन अक्सर लोग नहीं जानते। और जब वह अपनी पुख्तगी को पहुंचा हमने उसे हुक्म और इल्म अता किया। और नेकी करने वालों को हम ऐसा ही बदला देते हैं। (11-22)

और यूसुफ़ जिस औरत के घर में था वह उसे फुसलाने लगी और एक रोज़ दरवाज़े बंद कर दिए और बोली कि आ जा। यूसुफ़ ने कहा ख़ुदा की पनाह। वह मेरा आक़ा है, उसने मुझे अच्छी तरह रखा है। बेशक ज़ालिम लोग कभी फ़लाह नहीं पाते। और औरत ने उसका इरादा कर लिया और वह भी उसका इरादा करता अगर वह अपने रब की बुरहान (स्पष्ट-प्रमाण) न देख लेता। ऐसा हुआ ताकि हम उससे बुराई और बेहयाई को दूर कर दें। बेशक वह हमारे चुने हुए बंदों में से था। (23-24) 

और दोनों दरवाज़े की तरफ़ भागे। और औरत ने यूसुफ़ का कुर्ता पीछे से फाड़ दिया। और दोनों ने उसके शौहर को दरवाज़े पर पाया। औरत बोली जो तेरी घरवाली के साथ बुराई का इरादा करे उसकी सज़ा इसके सिवा क्‍या है कि उसे क़ैद किया जाए या उसे सख्त अज़ाब दिया जाए। यूसुफ़ ने कहा कि इसी ने मुझे फुसलाने की कोशिश की। और औरत के कुनबे वालों में से एक शख्स ने गवाही दी कि अगर उसका काुर्ता आगे से फटा हुआ हो तो औरत सच्ची है और वह झूठा है। और अगर उसका काूर्ता पीछे से फटा हुआ हो तो औरत झूठी है और वह सच्चा है। फिर जब अज़ीज़ ने देखा कि उसका कुर्ता पीछे से फटा हुआ है तो उसने कहा कि बेशक यह तुम औरतों की चाल है। और तुम्हारी चालें बहुत बड़ी होती हैं। यूसुफ़, इससे दरगुज़र करो। और ऐ औरत तू अपनी ग़लती की माफ़ी मांग।| बेशक तू ही ख़ताकार थी। (25-29)

और शहर की औरतें कहने लगीं कि अज़ीज़ की बीवी अपने नौजवान ग़ुलाम के पीछे पड़ी हुई है। वह उसकी मुहब्बत में फ़रेफ़्ता है। हम देखते हैं कि वह खुली हुई गलती पर है। फिर जब उसने उनका फ़रेब सुना तो उसने उन्हें बुला भेजा। और उनके लिए एक मज्लिस तैयार की और उनमें से हर एक को एक-एक छुरी दी और यूसुफ़ से कहा कि तुम उनके सामने आओ। फिर जब औरतों ने उसे देखा तो वे दंग रह गईं। और उन्होंने अपने हाथ काट डाले। और उन्होंने कहा पाक है अल्लाह, यह आदमी नहीं है, यह तो कोई बुज़ुर्ग फ़रिश्ता है। उसने कहा यह वही है जिसके बारे में तुम मुझे मलामत कर रही थीं और मैंने इसे रिझाने की कोशिश की थी मगर वह बच गया। और अगर उसने वह नहीं किया जो मैं उससे कह रही हूं तो वह क्रैद में पड़ेगा और ज़रूर बेइज़्ज़त होगा। यूसुफ़ ने कहा, ऐ मेरे रब, क़रैदख़ाना मुझे उस चीज़ से ज़्यादा पसंद है जिसकी तरफ़ ये मुझे बुला रही हैं। और अगर तूने उनके फ़रेब को मुझसे दफ़ा न किया तो मैं उनकी तरफ़ मायल हो जाऊंगा और जाहिलों में से हो जाऊंगा। पस उसके रब ने उसकी दुआ क़ूबूल कर ली और उनके फ़रेब को उससे दफ़ा कर दिया। बेशक वह सुनने वाला और जानने वाला है। (30-34)

फिर निशानियां देख लेने के बाद उन लोगों की समझ में आया कि एक मुदृदत के लिए इसको क़ैद कर दें। और क्रैदखाने में उसके साथ दो और जवान दाखिल हुए। उनमें से एक ने (एक रोज़) कहा कि मैं ख़्वाब में देखता हूं कि मैं शराब निचोड़ रहा हूं और दूसरे ने कहा कि मैं ख़्वाब में देखता हूं कि अपने सर पर रोटी उठाए हुए हूं जिसमें से चिड़ियां खा रही हैं। हमें इसकी ताबीर (अर्थ) बताओ। हम देखते हैं कि तुम नेक लोगों में से हो। (35-36)

यूसुफ़ ने कहा, जो खाना तुम्हें मिलता है उसके आने से पहले मैं तुम्हें इन ख़्वाबों की ताबीर बता दूंगा। यह उस इल्म में से है जो मेरे रब ने मुझे सिखाया है। मैंने उन लोगों के मज़हब को छोड़ा जो अल्लाह पर ईमान नहीं लाते और वे लोग आख़िरत (परलोक) के मुंकिर हैं और मैंने अपने बुजुर्गों इब्राहीम और इस्हाक़ और याक़ूब के मज़हब की पैरवी की | हमें यह हक़ नहीं कि हम किसी चीज़ को अल्लाह का शरीक ठहराएं। यह अल्लाह का फ़ज़्ल है हमारे ऊपर और सब लोगों के ऊपर मगर अक्सर लोग शुक्र नहीं करते। ऐ मेरे जेल के साथियो, कया जुदा जुदा कई माबूद (पूज्य) बेहतर हैं या अल्लाह अकेला ज़बरदस्त | तुम उसके सिवा नहीं पूजते हो मगर कुछ नामों को जो तुमने और तुम्हारे बाप दादा ने रख लिए हैं। अल्लाह ने इसकी कोई सनद नहीं उतारी। इक़्तेदार (संप्रभुत्व) सिर्फ़ अल्लाह के लिए है। उसने हुक्म दिया है कि उसके सिवा किसी की इबादत न करो। यही सीधा दीन है। मगर बहुत लोग नहीं जानते। ऐ मेरे क़ैदखाने के साथियो तुम में से एक अपने आक़ा को शराब पिलाएगा। और जो दूसरा है उसे सूली दी जाएगी। फिर परिंदे उसके सर में से खाएंगे। उस अम्र मामला का फ़ैसला हो गया जिस अम्न के बारे में तुम पूछ रहे थे। और यूसुफ़ ने उस शख्स से कहा जिसके बारे में उसने गुमान किया था कि बच जाएगा कि अपने आक़ा के पास मेरा ज़िक्र करना। फिर शैतान ने उसे अपने आक़ा से ज़िक्र करना भुला दिया। पस वह क्रैदखाने में कई साल पड़ा रहा। और बादशाह ने कहा कि मैं ख़्वाब में देखता हूं कि सात मोटी गायें हैं जिन्हें सात दुबली गायें खा रही हैं और सात हरी बालियां हैं और दूसरी सात सूखी, ऐ दरबार वालो मेरे ख़्वाब की ताबीर मुझे बताओ, अगर तुम ख़्वाब की ताबीर देते हो। वे बोले ये ख़्याली ख़्वाब हैं। और हमें ऐसे ख़्वाबों की ताबीर मालूम नहीं। उन दो क्रैदियों में से जो शख् बच गया था और उसे एक मुद्दत के बाद याद आया, उसने कहा कि मैं तुम लोगों को इसकी ताबीर बताऊंगा, पस मुझे (यूसुफ़ के पास) जाने दो। (37-45)

यूसुफ़ ऐ सच्चे, मुझे इस ख़्वाब का मतलब बता कि सात मोटी गायें हैं जिन्हें सात दुबली गायें खा रही हैं। और सात बालें हरी हैं और सात सूखी। ताकि मैं उन लोगों के पास जाऊं ताकि वे जान लें। यूसुफ़ ने कहा कि तुम सात साल तक बराबर खेती करोगे। पस जो फ़स्ल तुम काटो उसे उसकी बालियों में छोड़ दो मगर थोड़ा सा जो तुम खाओ। फिर इसके बाद सात सख्त साल आएंगे। उस ज़माने में वह ग़ल्ला खा लिया जाएगा जो तुम उस वक़्त के लिए जमा करोगे, सिवाय थोड़े के जो तुम महफ़ूज़ कर लोगे। फिर इसके बाद एक साल आएगा जिसमें लोगों पर मेंह बरसेगा। और वे उसमें रस निचोड़ेंगे। (46-49) 

और बादशाह ने कहा कि उसे मेरे पास लाओ | फिर जब क़ासिद (संदेशवाहक) उसके पास आया तो उसने कहा कि तुम अपने आक़ा के पास वापस जाओ और उससे पूछो कि उन औरतों का क्‍या मामला है जिन्होंने अपने हाथ काट लिए थे। मेरा रब तो उनके फ़रेब से ख़ूब वाक़िफ़ है। बादशाह ने पूछा, तुम्हारा क्या माजरा है जब तुमने यूसुफ़ को फुसलाने की कोशिश की थी। उन्होंने कहा कि पाक है अल्लाह, हमने उसमें कुछ बुराई नहीं पाई। अज़ीज़ की बीवी ने कहा अब हक़ खुल गया। मैंने ही इसे फुसलाने की कोशिश की थी और बिलाशुबह वह सच्चा है। यह इसलिए कि (अज़ीज़े मिस्र) यह जान ले कि मैंने दरपर्दा उसकी ख़ियानत नहीं की। और बेशक अल्लाह ख़ियानत (विश्वासघात) करने वालों की चाल चलने नहीं देता। और मैं अपने नफ़्स को बरी नहीं करता। नफ़्स (मन) तो बदी ही सिखाता है मगर यह कि मेरा रब रहम फ़रमाए | बेशक मेरा रब बख्शने वाला मेहरबान है। (50-53)

और बादशाह ने कहा उसे मेरे पास लाओ। मैं उसे ख़ास अपने लिए रखूंगा। फिर जब यूसुफ़ ने उससे बात की तो बादशाह ने कहा, आज से तुम हमारे यहां मुअज़्ज़ज़ और मोअतमद (विश्वसनीय) हुए। यूसुफ़ ने कहा मुझे मुल्क के ख़ज़ानों पर मुक़र्रर कर दो। मैं निगहबान हूं और जानने वाला हूं। और इस तरह हमने यूसुफ़ को मुल्क में बाइसख़्तियार बना दिया। वह उसमें जहां चाहे जगह बनाए। हम जिस पर चाहें अपनी इनायत मुतवज्जह कर दें। और हम नेकी करने वालों का अज्र ज़ाए (नष्ट) नहीं करते। और आख़िरत का अन्न (प्रतिफल) कहीं ज़्यादा बढ़कर है ईमान और तक़वा (ईश-भय) वालों के लिए। (54-57)

और यूसुफ़ के भाई मिस्र आए फिर उसके पास पहुंचे, पस यूसुफ़ ने उन्हें पहचान लिया। और उन्होंने यूसुफ़ को नहीं पहचाना। और जब उसने उनका सामान तैयार कर दिया तो कहा कि अपने सौतेले भाई को भी मेरे पास ले आना। तुम देखते नहीं हो कि मैं ग़ल्ला भी पूरा नाप कर देता हूं और बेहतरीन मेज़बानी करने वाला भी हूं। और अगर तुम उसे मेरे पास न लाए तो न मेरे पास तुम्हारे लिए ग़ल्ला है और न तुम मेरे पास आना। उन्होंने कहा कि हम उसके बारे में उसके बाप को राज़ी करने की कोशिश करेंगे और हमें यह काम करना है। (58-61)

और उसने अपने कारिंदों से कहा कि इनका माल इनके असबाब में रख दो ताकि जब वे अपने घर पहुंचें तो उसे पहचान लें, शायद वे फिर आएं। फिर जब वे अपने बाप के पास लौटे तो कहा कि ऐ बाप, हमसे ग़ल्ला रोक दिया गया, पस हमारे भाई (बिन यामीन) को हमारे साथ जाने दे कि हम ग़ल्ला लाएं और हम उसके निगहबान हैं। याक़ूब ने कहा, कया मैं इसके बारे में तुम्हारा वैसा ही एतबार करूं जैसा इससे पहले इसके भाई के बारे में तुम्हारा एतबार कर चुका हूं। पस अल्लाह बेहतर निगहबान है और वह सब मेहरबानों से ज़्यादा मेहरबान है। (62-64)

और जब उन्होंने अपना सामान खोला तो देखा कि उनकी पूंजी भी उन्हें लौटा दी गई है। उन्होंने कहा, ऐ हमारे बाप और हमें क्या चाहिए। यह हमारी पूंजी भी हमें लौटा दी गई है। अब हम जाएंगे और अपने अहल व अयाल (परिवारजनों) के लिए रसद लाएंगे। और अपने भाई की हिफ़ाज़त करेंगे। और एक ऊंट का बोझ ग़ल्ला और ज़्यादा लाएंगे। यह ग़ल्ला तो थोड़ा है। याक़ूब ने कहा, मैं उसे तुम्हारे साथ हरगिज़ न भेजूंगा जब तक तुम मुझसे ख़ुदा के नाम पर यह अहद न करो कि तुम इसे ज़रूर मेरे पास ले आओगे, इल्ला यह कि तुम सब घिर जाओ। फिर जब उन्होंने उसे अपना पक्का क़ौल (वादा) दे दिया, उसने कहा कि जो हम कह रहे हैं उस पर अल्लाह निगहबान है। (65-66)

और याकूब ने कहा कि ऐ मेरे बेटो, तुम सब एक ही दरवाज़े से दाख़िल न होना बल्कि अलग-अलग दरवाज़ों से दाखिल होना। और मैं तुम्हें अल्लाह की किसी बात से नहीं बचा सकता | हुक्म तो बस अल्लाह का है। मैं उसी पर भरोसा रखता हूं और भरोसा करने वालों को उसी पर भरोसा करना चाहिए। और जब वे दाखिल हुए जहां से उनके बाप ने उन्हें हिदायत की थी, वह उन्हें नहीं बचा सकता था अल्लाह की किसी बात से। वह बस याक्रूब के दिल में एक ख्याल था जो उसने पूरा किया। बेशक वह हमारी दी हुई तालीम से इल्म वाला था मगर अक्सर लोग नहीं जानते। (67-68)

और जब वे यूसुफ़ के पास पहुंचे तो उसने अपने भाई को अपने पास रखा। कहा कि मैं तुम्हारा भाई (यूसुफ़) हूं। पस ग़मगीन न हो उससे जो वे कर रहे हैं। फिर जब उनका सामान तैयार करा दिया तो पीने का प्याला अपने भाई के असबाब में रख दिया। फिर एक पुकारने वाले ने पुकारा कि ऐ क़ाफ़िले वालो, तुम लोग चोर हो। उन्होंने उनकी तरफ़ मुतवज्जह होकर कहा, तुम्हारी क्या चीज़ खोई गई है। उन्होंने कहा, हम शाही पैमाना नहीं पा रहे हैं। और जो उसे लाएगा उसके लिए एक ऊंट के बोझ भर ग़ल्ला है और मैं इसका ज़िम्मेदार हूं। उन्होंने कहा, ख़ुदा की क़सम तुम्हें मालूम है कि हम लोग इस मुल्क में फ़साद करने के लिए नहीं आए और न हम कभी चोर थे। उन्होंने कहा अगर तुम झूठे निकले तो उस चोरी करने वाले की सज़ा क्या है। उन्होंने कहा, इसकी सज़ा यह है कि जिस शख्स के असबाब में मिले पस वही शख्स अपनी सज़ा है। हम लोग ज़ालिमों को ऐसी ही सज़ा दिया करते हैं। फिर उसने उसके (छोटे) भाई से पहले उनके थैलों की तलाशी लेना शुरू किया। फिर उसके भाई के थेले से उसे बरामद कर लिया। इस तरह हमने यूसुफ़ के लिए तदबीर की | वह बादशाह के क़ानून की रू से अपने भाई को नहीं ले सकता था मगर यह कि अल्लाह चाहे। हम जिसके दर्जे चाहते हैं बुलन्द कर देते हैं। और हर इल्म वाले के उपर एक इल्म वाला है। (69-76)

उन्होंने कहा कि अगर यह चोरी करे तो इससे पहले इसका एक भाई भी चोरी कर चुका है। पस यूसुफ़ ने इस बात को अपने दिल में रखा। और इसे उन पर ज़ाहिर नहीं किया। उसने अपने जी में कहा, तुम ख़ुद ही बुरे लोग हो, और जो कुछ तुम बयान कर रहे हो अल्लाह उसे ख़ूब जानता है। उन्होंने कहा कि ऐ अज़ीज़, इसका एक बहुत बूढ़ा बाप है सो तू इसकी जगह हम में से किसी को रख ले। हम तुझे बहुत नेक देखते हैं। उसने कहा, अल्लाह की पनाह कि हम उसके सिवा किसी को पकड़ें जिसके पास हमने अपनी चीज़ पाई है। इस सूरत में हम ज़रूर ज़ालिम ठहरेंगे। (77-79)

जब वे उससे नाउम्मीद हो गए तो अलग होकर बाहम मश्विरा करने लगे। उनके बड़े ने कहा क्या तुम्हें मालूम नहीं कि तुम्हारे बाप ने अल्लाह के नाम पर पक्का इक़रार लिया और इससे पहले यूसुफ़ के मामले में जो ज़्यादती तुम कर चुके हो वह भी तुम्हें मालूम है। पस मैं इस सरज़मीन से हरगिज़ नहीं टलूंगा जब तक मेरा बाप मुझे इजाज़त न दे या अल्लाह मेरे लिए कोई फ़ैसला फ़रमा दे। और वह सबसे बेहतर फ़ैसला करने वाला है। तुम लोग अपने बाप के पास जाओ और कहो कि ऐ हमारे बाप, तेरे बेटे ने चोरी की और हम वही बात कह रहे हैं जो हमें मालूम हुई और हम ग़ैब (अप्रकट) के निगहबान नहीं और तू उस बस्ती के लोगों से पूछ ले जहां हम थे और उस क़ाफ़िले से पूछ ले जिसके साथ हम आए हैं। और हम बिल्कुल सच्चे हैं। बाप ने कहा, बल्कि तुमने अपने दिल से एक बात बना ली है, पस मैं सब्र करूंगा। उम्मीद है कि अल्लाह उन सबको मेरे पास लाएगा। वह जानने वाला, हकीम (तत्वदर्शी) है। और उसने रुख़ फेर लिया और कहा, हाय यूसुफ़, और ग़म से उसकी आंखे सफ़ेद पड़ गईं। वह घुटा घुटा रहने लगा। उन्होंने कहा, ख़ुदा की क़सम तू यूसुफ़ ही की याद में रहेगा। यहां तक कि घुल जाए या हलाक हो जाए। उसने कहा, मैं अपनी परेशानी और अपने ग़म का शिकवा सिर्फ़ अल्लाह से करता हूं और मैं अल्लाह की तरफ़ से वे बातें जानता हूं जो तुम नहीं जानते। ऐ मेरे बेटो, जाओ यूसुफ़ और उसके भाई की तलाश करो और अल्लाह की रहमत से नाउम्मीद न हो। अल्लाह की रहमत से सिर्फ़ मुंकिर ही नाउम्मीद होते हैं। (80-87)

फिर जब वे यूसुफ़ के पास पहुंचे, उन्होंने कहा, ऐ अज़ीज़, हमें और हमारे घर वालों को बड़ी तकलीफ़ पहुंच रही है और हम थोड़ी पूंजी लेकर आए हैं, तू हमें पूरा ग़ल्ला दे और हमें सदक़ा भी दे | बेशक अल्लाह सदक़ा करने वालों को उसका बदला देता है। उसने कहा, क्या तुम्हें ख़बर है कि तुमने यूसुफ़ और उसके भाई के साथ क्‍या किया जबकि तुम्हें समझ न थी। उन्होंने कहा, क्या सचमुच तुम ही यूसुफ़ हो। उसने कहा हां मैं यूसुफ़ हूँ और यह मेरा भाई है। अल्लाह ने हम पर फ़ज़्ल फ़रमाया। जो शख्स डरता है और सब्र करता है तो अल्लाह नेक काम करने वालों का अज्र (प्रतिफल) ज़ाए (नष्ट) नहीं करता। (88-90)

भाइयों ने कहा, ख़ुदा की क़सम, अल्लाह ने तुम्हें हमारे ऊपर फ़ज़ीलत दी, और बेशक हम ग़लती पर थे। यूसुफ़ ने कहा, आज तुम पर कोई इल्ज़ाम नहीं, अल्लाह तुम्हें माफ़ करे और वह सब मेहरबानों से ज़्यादा मेहरबान है। तुम मेरा यह कुर्ता ले जाओ और इसे मेरे बाप के चेहरे पर डाल दो, उसकी बीनाई (दृष्टि) पलट आएगी और तुम अपने घरवालों के साथ मेरे पास आ जाओ। (91-93)

और जब क़ाफ़िला (मिस्र से) चला तो उसके बाप ने (कंआन में) कहा कि अगर तुम मुझे बुढ़ापे में बहकी बातें करने वाला न समझो तो मैं यूसुफ़ की ख़ुशबू पा रहा हूं। लोगों ने कहा, ख़ुदा की क़सम, तुम तो अभी तक अपने पुराने ग़लत ख़्याल में मुब्तिला हो। पस जब ख़ुशख़बरी देने वाला आया, उसने कुर्ता याक्रूब के चहरे पर डाल दिया, पस उसकी बीनाई (दृष्टि) लौट आई। उसने कहा, क्या मैंने तुमसे नहीं कहा था कि मैं अल्लाह की जानिब से वे बातें जानता हूं जो तुम नहीं जानते। बिरादराने यूसुफ़ ने कहा, ऐ हमारे बाप, हमारे गुनाहों की माफ़ी की दुआ कीजिए। बेशक हम ख़तावार थे। याक़ूब ने कहा, मैं अपने रब से तुम्हारे लिए मग्फ़िरत (क्षमा) की दुआ करूंगा | बेशक वह बख्शने वाला, रहम करने वाला है। पस जब वे सब यूसुफ़ के पास पहुंचे तो उसने अपने वालिदेन को अपने पास बिठाया। और कहा कि मिस्र में इंशाअल्लाह अम्न चैन से रहो और उसने अपने वालिदैन को तख़्त पर बिठाया और सब उसके लिए सज्दे में झुक गए। और यूसुफ़ ने कहा ऐ बाप, यह है मेरे ख़ाब की ताबीर जो मैंने पहले देखा था। मेरे रब ने उसे सच्चा कर दिया और उसने मेरे साथ एहसान किया कि उसने मुझे क़ैद से निकाला और तुम सबको देहात से यहां लाया बाद इसके कि शैतान ने मेरे और मेरे भाइयों के दर्मियान फ़साद डाल दिया था। बेशक मेरा रब जो कुछ चाहता है उसकी उम्दा तदबीर कर लेता है, वह जानने वाला हिक्मत (तत्वदर्शिता) वाला है। (94-100)

ऐ मेरे रब, तूने मुझे हुकूमत में से हिस्सा दिया और मुझे बातों की ताबीर करना सिखाया। ऐ आसमानों और ज़मीन के पैदा करने वाले, तू मेरा कारसाज़ (कार्य-साधक) है, दुनिया में भी और आख़िरत में भी | मुझे फ़रमांबरदारी की हालत में वफ़ात दे और मुझे नेक बंदों में शामिल फ़रमा। (101) 

यह गैब की ख़बरों में से है जो हम तुम पर “वही” (प्रकाशना) कर रहे हैं और तुम उस वक़्त उनके पास मौजूद न थे जब यूसुफ़ के भाइयों ने अपनी राय पुख्ता की और वे तदबीरें कर रहे थे और तुम चाहे कितना ही चाहो, अक्सर लोग ईमान लाने वाले नहीं हैं। और तुम इस पर उनसे काई मुआवज़ा (बदला) नहीं मांगते। यह तो सिर्फ़ एक नसीहत है तमाम जहान वालों के लिए। (102-104)

और आसमानों और जमीन में कितनी ही निशानियां हैं जिन पर उनका गुज़र होता रहता है और वे उन पर ध्यान नहीं करते। और अक्सर लोग जो ख़ुदा को मानते हैं वे उसके साथ दूसरों को शरीक भी ठहराते हैं। क्या ये लोग इस बात से मुतमइन हैं कि उन पर अज़ाबे इलाही की कोई आफ़त आ पड़े या अचानक उन पर क्रियामत आ जाए और वे इससे बेख़बर हों। कहो यह मेरा रास्ता है, में अल्लाह की तरफ़ बुलाता हूं समझ-बूझ कर, मैं भी और वे लोग भी जिन्होंने मेरी पैरवी की है। और अल्लाह पाक है और मैं मुश्रिकों (बहुदेववादियों) में से नहीं हूं। और हमने तुमसे पहले मुख्तलिफ़ बस्ती वालों में से जितने रसूल भेजे सब आदमी ही थे। हम उनकी तरफ़ “वही! (प्रकाशना) करते थे। क्‍या ये लोग ज़मीन पर चले फिरे नहीं कि देखते कि उन लोगों का अंजाम क्‍या हुआ जो उनसे पहले थे और आख़िरत (परलोक) का घर उन लोगों के लिए बेहतर है जो डरते हैं, क्या तुम समझते नहीं। यहां तक कि जब पैग़म्बर मायूस हो गए और वे ख़्याल करने लगे कि उनसे झूठ कहा गया था तो उन्हें हमारी मदद आ पहुंची। पस नजात (मुक्ति) मिली जिसे हमने चाहा और मुजरिम लोगों से हमारा अज़ाब टाला नहीं जा सकता। उनके क्रिस्सों में समझदार लोगों के लिए बड़ी इबरत (सीख) है। यह कोई गढ़ी हुई बात नहीं, बल्कि तस्दीक़ (पुष्टि) है उस चीज़ की जो इससे पहले मौजूद है। और तफ़्सील है हर चीज़ की। और हिदायत और रहमत है ईमान वालों के लिए। (05-111)

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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