स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – डॉ. नंजुन्दा राव को लिखित (14 अप्रेल, 1896)

(स्वामी विवेकानंद का डॉ. नंजुन्दा राव को लिखा गया पत्र)

न्यूयार्क,
१४ अप्रेल, १८९६

प्रिय डॉक्टर,

मुझे तुम्हारा पत्र आज सुबह मिला। मैं कल इंग्लैण्ड के लिए रवाना हो रहा हूँ, इसलिए मैं कुछ थोड़ी सी हार्दिक पंक्तियाँ ही लिख सकूँगा। लड़कों के लिए पत्रिका प्रकाशित करने का जो तुम विचार कर रहे हो, उससे मुझे पूर्ण सहानुभूति है और मैं उसकी सहायता करने का पूरा पूरा यत्न करूँगा। उसे स्वाधीनता होनी चाहिए; ‘ब्रह्मवादिन्’ पत्रिका की पद्धति का अनुसरण करो, केवल तुम्हारी पत्रिका की लेखनशैली और विषय उससे अधिक लोकप्रिय होने चाहिए। उदाहरणार्थ, संस्कृत-साहित्य की बिखरी हुई अद्भुत कहानियों को ले लो। उन्हें फिर से लोकप्रिय ढंग से लिखने का यह इतना बड़ा सुअवसर है कि जिसके महत्त्व को तुम स्वप्न में भी नहीं समझ सकते। यह तुम्हारी पत्रिका का मुख्य विषय होना चाहिए। जब मुझे समय मिलेगा, तब जितनी कहानियाँ मैं लिख सकता हूँ, लिखूँगा। पत्रिका को विद्वत्तापूर्ण करने का प्रयत्न न करना, – ‘ब्रह्मवादिन्’ उसके लिए है। मैं निश्चित रूपसे कहता हूँ कि इस तरह से तुम्हारी पत्रिका सारे संसार में पहुँच जायगी। जहाँ तक हो सके, सरल भाषा का उपयोग करना और तुम्हें सफलता प्राप्त होगी। कहानियों द्वारा नीति-तत्त्व सिखाना पत्रिका का प्रधान विषय होना चाहिए। उसमें अध्यात्म-विद्या बिल्कुल न आने देना। भारत में जिस एक चीज का हममें अभाव है, वह है मेल तथा संगठन-शक्ति, और उसे प्राप्त करने का प्रधान उपाय है आज्ञा-पालन।

…वीरता से आगे बढ़ो। एक दिन या एक साल में सिद्धि की आशा न रखो। उच्चतम आदर्श पर दृढ़ रहो। स्थिर रहो। स्वार्थपरता और ईर्ष्या से बचो। आज्ञा-पालन करो। सत्य, मनुष्य-जाति और अपने देश के पक्ष पर सदा के लिए अटल रहो, और तुम संसार को हिला दोगे। याद रखो – व्यक्ति और उसका जीवन ही शक्ति का स्रोत है, इसके सिवाय अन्य कुछ भी नहीं। इस पत्र को रखे रहना, और जब कभी तुम्हारे मन में चिन्ता या ईर्ष्या का उदय हो, तब इसकी अन्तिम पक्तियाँ पढ़ लिया करना। ईर्ष्या के रोग से दास लोग सदा ग्रसित रहते हैं। हमारे देश का भी यही रोग है। इससे हमेशा बचो। सब आशीर्वाद और सर्वसिद्धि तुम्हारी हो।

प्रेमपूर्वक तुम्हारा,
विवेकानन्द

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी पथ
error: यह सामग्री सुरक्षित है !!
Exit mobile version