स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – डॉ. नंजुन्दा राव को लिखित (26 अगस्त, 1896)

(स्वामी विवेकानंद का डॉ. नंजुन्दा राव को लिखा गया पत्र)

स्विट्जरलैण्ड,
२६ अगस्त, १८९६

प्रिय नंजुन्दा राव,

मुझे तुम्हारा पत्र अभी मिला। मैं बराबर घूम रहा हूँ, मैं आल्प्स के बहुत से पहाड़ों पर चढ़ा हूँ और मैंने कई हिम नदियाँ पार की हैं। अब मैं जर्मनी जा रहा हूँ। प्रोफेसर डॉयसन ने मुझे कील आने का निमन्त्रण दिया है। वहाँ से मैं इंग्लैण्ड जाऊँगा। सम्भव है कि इसी सर्दी में मैं भारत लौटूँ ।

मैंने ‘प्रबुद्ध भारत’ के मुख-पृष्ठ की डिजाइन की जिस बात पर आपत्ति की थी वह सिर्फ इसका फूहड़पन ही नहीं था, बल्कि इसमें अनेक चित्रों की निरुद्देश्य भरमार भी है। डिजाइन सरल, प्रतीकात्मक एवं संक्षिप्त होनी चाहिए। मैं ‘प्रबुद्ध भारत’ के लिए लन्दन में डिजाइन बनाने की कोशिश करूँगा और तुम्हारे पास इसे भेजूँगा।

मुझे बड़ा हर्ष है कि काम अति सुन्दर रूप से चल रहा है। परन्तु मैं तुम्हें एक सलाह दूँगा। भारत में जो काम साझे में होता है वह एक दोष के बोझ से डूब जाता है। हमने अभी तक व्यावसायिक दृष्टिकोण नहीं विकसित किया। अपने वास्तविक अर्थ में व्यवसाय व्यवसाय ही है, मित्रता नहीं, जैसी कि हिन्दू कहावत है, ‘मुँहदेखी’ न होनी चाहिए। अपने जिम्मे जो हिसाब-किताब हो, वह बहुत ही सफाई से रखना चाहिए और कभी एक कोष का धन किसी दूसरे काम में कदापि न लाना चाहिए, चाहे दूसरे क्षण भूखे ही क्यों न रहना पड़े। यही है व्यावसायिक ईमानदारी। दूसरी बात यह है कि कार्य करने की अटूट शक्ति होनी चाहिए। जो कुछ तुम करते हो, उस समय के लिए उसे अपनी पूजा समझो। इस समय इस पत्रिका को अपना ईश्वर बना लो और तुम्हें सफलता प्राप्त होगी।

तुम इस पत्रिका के संचालन में सफल होने के बाद इसी प्रकार भारतीय भाषाओं में – तमिल, तेलुगु और कन्नड़ आदि में – भी पत्रिकाएँ शुरू करो। मद्रासी गुणवान हैं, पुरुषार्थी हैं, यह सब कुछ है; परन्तु ऐसा मालूम होता है कि शंकराचार्य की जन्मभूमि ने त्याग का भाव खो दिया है।

मेरे बच्चों को संघर्ष में कूदना होगा, संसार त्यागना होगा – तब दृढ़ नींव पड़ेगी।

वीरता से आगे बढ़ो – डिजाइन और दूसरी छोटी-छोटी बातों की चिन्ता न करो – ‘घोड़े के साथ लगाम भी मिल जायगी।’ मृत्युपर्यन्त काम करो – मैं तुम्हारे साथ हूँ और जब मैं न रहूँगा, तब मेरी आत्मा तुम्हारे साथ काम करेगी। यह जीवन आता और जाता है – नाम, यश, भोग, यह सब थोड़े दिन के हैं। संसारी कीड़े की तरह मरने से अच्छा है – कहीं अधिक अच्छा है कर्तव्य क्षेत्र में सत्य का उपदेश देते हुए मरना। आगे बढ़ो।

शुभाकांक्षी,
विवेकानन्द

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी पथ
error: यह सामग्री सुरक्षित है !!
Exit mobile version