स्वामी विवेकानंद के पत्र – खेतड़ी के महाराज को लिखित (9 जुलाई, 1895)
(स्वामी विवेकानंद का खेतड़ी के महाराज को लिखा गया पत्र)
अमेरिका,
९ जुलाई, १८९५
…मेरे भारत लौटने के बारे में बात इस प्रकार है। जैसा कि आप अच्छी तरह जानते हैं, मैं अपनी धुन का पक्का हूँ। मैंने इस देश में एक बीज बोया है, वह अभी पौधा बन गया है और
मैं आशा करता हूँ कि शीघ्र ही वह वृक्ष हो जायगा। मेरे दो-चार सौ अनुयायी हैं। मैं यहाँ कई संन्यासी बनाऊँगा, तब उन्हें काम सौंपकर भारत आऊँगा। जितना ही ईसाई पादरी मेरा विरोध करते हैं, उतना ही मैंने ठान लिया है कि मैं उनके देश में स्थायी चिह्न छोड़कर जाऊँगा।… इस समय तक लन्दन में मेरे कुछ मित्र बन चुके हैं। मैं वहाँ अगस्त के आख़िर तक जाऊँगा… इस शीतकाल में कुछ समय लन्दन में और कुछ समय न्यूयार्क में बिताना होगा। फिर मैं भारत आने के लिए स्वतन्त्र हो जाऊँगा। भगवान् की कृपा हुई, तो इस सर्दी के बाद यहाँ काम चलाने के लिए पर्याप्त आदमी होंगे। हर काम को तीन अवस्थाओं में से गुजरना होता है – उपहास, विरोध और स्वीकृति। जो मनुष्य अपने समय से आगे विचार करता है, लोग उसे निश्चय ही ग़लत समझते हैं। इसलिए विरोध और अत्याचार हम सहर्ष स्वीकार करते हैं ; परन्तु मुझे दृढ़ और पवित्र होना चाहिए और भगवान् में अपरिमित विश्वास रखना चाहिए, तब ये सब लुप्त हो जायँगे।…
विवेकानन्द