स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – मेरी तथा हेरियट हेल को लिखित (31 जुलाई, 1894)

(स्वामी विवेकानंद का मेरी तथा कुमारी हेल को लिखा गया पत्र)

ग्रीनेकर सराय, इलियट, मेन,
३१ जुलाई, १८९४

प्रिय बहनों,

बहुत दिनों से तुम लोगों को मैंने कोई पत्र नहीं लिखा, लिखने लायक कोई खास समाचार भी नहीं था। यह एक बड़ी सराय तथा खेत-घर है। यहाँ पर ईसाई वैज्ञानिकों की1 समिति की एक बैठक हो रही है। इस बैठक की संयोजिका ने गत वसन्त ऋतु में, जब मैं न्यूयार्क में था, मुझे यहाँ आने के लिए निमन्त्रित किया था, और इसीलिए मैं यहाँ पर आया हूँ। निःसन्देह यह स्थान सुन्दर तथा ठण्डा है और शिकागो के मेरे अनेक पुराने मित्र भी यहाँ उपस्थित हैं। श्रीमती मिल्स तथा कुमारी स्टॉकहम तुम्हें याद होंगी, कुछ और स्त्री-पुरुषों के साथ वे नदी के किनारे की खुली जगह में तम्बू लगाकर रह रही हैं। उनका समय बहुत आनन्दपूर्वक बीत रहा है तथा कभी-कभी लोग दिन भर, तुम जिसे वैज्ञानिक पोशाक कहती हो, पहने रहते हैं। भाषण प्रायः प्रतिदिन होते हैं। बोस्टन से श्री कॉलबिल नाम के एक सज्जन आये हुये हैं। वे अपना प्रतिदिन का भाषण कहा जाता है कि प्रेताविष्ट होकर देते हैं। ‘यूनिवर्सल ट्रुथ्’ की सम्पादिका (?) जो जिमि मिल्स नामक भवन की ऊपरी मंजिल पर रहती थीं, यहाँ आकर बस गयी हैं। वे धार्मिक उपासना की परिचालना कर रही हैं तथा मानसिक शक्ति के द्वारा सब प्रकार की बीमारियों को दूर करने की शिक्षा भी दे रही हैं; मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है कि शीघ्र ही ये लोग अन्धों को नेत्रदान तथा इसी प्रकार के अन्य कार्य भी करने लगेंगे। यह एक अजीब सम्मेलन है। सामाजिक विधि-निषेधों की इन्हें विशेष कोई परवाह नहीं, ये लोग काफी स्वच्छन्द तथा खुश हैं। श्रीमती मिल्स एक अच्छी-खासी प्रतिभाशालिनी महिला हैं। ऐसी और भी अनेक महिलाएँ हैं। श्रीमती च्यापन नामक एक महिला को मैंने विधवा समझा था किन्तु अब पता चला है कि उनके पति जीवित हैं। वे अत्यन्त रूपवती हैं। डिट्रॉएट की रहने वाली एक दूसरी अत्यन्त शिक्षित एवं सुन्दर, काली आँखों तथा लम्बे केशों वाली महिला मुझे समुद्रतट से १५ मील की दूरी पर एक द्वीप में ले जा रही हैं। आशा है, वहाँ हम लोगों का समय अच्छा बीतेगा। कुमारी आर्थर स्मिथ भी यहीं पर हैं। कुमारी गर्नजी स्वाम्पस्कॉट से घर गयी हैं। यहाँ से मेरी एनिस्क्वाम जाने की सम्भावना है। यह स्थान अत्यन्त सुन्दर तथा मनोरम है, नहाने की यहाँ बड़ी सुविधा है। कोरा स्टॉकहम ने मेरे लिए नहाने की एक पोशाक ला दी है और मैं बत्तख की तरह जल का आनन्द ले रहा हूँ – यह स्थान बड़ा ही सुन्दर है यहाँ तक कि मड्ह्रिल (Mudville) में रहने वालों के लिये भी।

और विशेष कुछ लिखने का मुझे अवसर नहीं, मैं इस समय इतना अधिक व्यस्त हूँ कि मदर चर्च को पृथक् पत्र लिखने तक का मुझे समय नहीं है। कुमारी हाउ से मेरा प्यार तथा श्रद्धा निवेदन करना।

बोस्टन के श्री वुड भी यहीं हैं, जो तुम्हारे सम्प्रदाय के एक प्रधान ज्योतिष हैं। किन्तु श्रीमती व्हर्लपूल2 के सम्प्रदाय में सम्मिलित होने में उन्हें घोर आपत्ति है। वे इसलिए अपने को दार्शनिक-रासायनिक-भौतिक-आध्यात्मिक आदि और भी न जाने कितनी व्याधियों के मानसिक चिकित्सक के रूप में परिचित करना चाहते हैं। कल यहाँ एक भीषण चक्रवात आया था, फलस्वरूप तम्बुओं की अच्छी ‘चिकित्सा’ हुई है। जिस बड़े तम्बू के नीचे उन लोगों के भाषण हो रहे थे, उस ‘चिकित्सा’ के फलस्वरूप उसकी आध्यात्मिकता इतनी बढ़ गयी कि वह मर्त्य आँखों से एकदम अन्तर्हित हो गया और उस आध्यात्मिकता से विभोर होकर प्रायः दो सौ कुर्सियाँ जमीन पर नृत्य करने लगीं! मिल्स कम्पनी की श्रीमती फिग्स प्रतिदिन सुबह नियमित रूप से प्रवचन करती हैं, और श्रीमती मिल्स अत्यन्त व्यस्तता के साथ सब जगह उछल-कूद रही हैं – वे सभी लोग अत्यन्त आनन्द में मस्त हैं। मैं विशेषकर ‘कोरा’ को देखकर अत्यन्त आनन्दित हूँ, क्योंकि पिछले जाड़े में उन लोगों को विशेष कष्ट उठाना पड़ा था और थोड़ा आनन्द उसके लिए लाभकर ही होगा। वे लोग तम्बुओं में किस प्रकार की स्वाधीनता उपभोग करते हैं यह सुनकर तुम्हें आश्चर्य होगा, किन्तु ये लोग सभी बड़े सज्जन तथा शुद्धात्मा हैं – कुछ मनचले अवश्य है, और कुछ नहीं।

मैं आगामी शनिवार तक यहाँ रहूँगा, अतः इस पत्र के मिलते ही यदि तुम इसका जवाब दो, तो यहाँ से रवाना हो जाने के पहले मुझे वह मिल सकता है।

एक युवक यहाँ प्रतिदिन गाता है – वह पेशेवर गवैया है; अपनी वाग्दत्ता वधू तथा बहन के साथ वह यहाँ है। उसकी भावी पत्नी भी अच्छा गाती है तथा देखने में अत्यन्त सुन्दर है। अभी उस रात छावनी के सभी लोग एक पेड़ के नीचे सोये थे, जिसके नीचे मैं हर रोज प्रातःकाल हिन्दू-रीति से बैठकर इन लोगों को उपदेश देता हूँ। मैं भी उन लोगों के साथ गया था – तारों के नीचे धरती माता की गोद में सोये हुये हम लोगों ने एक अच्छी रात बितायी, खासकर मैंने तो हर घड़ी उसका पूरा आनन्द लिया। धरती पर सोना, जंगल में पेड़ के नीचे बैठकर ध्यान लगाना, मेरे एकवर्ष के कठोर जीवन के बाद उस रात के आनन्द का मैं वर्णन नहीं कर सकता। सराय में रहने वाले लोग कमोवेश अच्छी स्थिति के हैं और जो लोग तम्बू में रहते हैं, वे सभी स्वस्थ, सबल, शुद्ध तथा सरल प्रकृति के हैं। मैं उन्हें ‘शिवोऽहम्’ ‘शिवोऽहम्’ सिखाता हूँ और वे लोग उसे दुहराते रहते हैं; सभी सरल तथा पवित्र हैं, एवं बिल्कुल निर्भीक। अतः मैं अत्यन्त आनन्दित हूँ, कृतार्थ हूँ। मैं ईश्वर का आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे धन नहीं दिया और इन तम्बुओं में रहने वाले इन बच्चों को गरीब बनाया। तुनक-मिजाज, ऐशपसन्द स्त्री-पुरुष होटल में ठहरे हुये हैं, किन्तु वज्रदेही, वज्रहृदय, पावकसम उत्साह-सम्पन्न लोग तम्बुओं में हैं। कल जब मूसलाधार वर्षा हो रही थी और चक्रवात सब कुछ उलट-पलट रहा था, उस समय ये निडर वीरहृदय लोग आत्मा की महिमा में प्रतिष्ठित होकर तम्बुओं को उड़ा ले जाने से रोकने के लिए उनकी रस्सियों को पकड़कर ऐसे झूल रहे थे कि यदि तुम उस दृश्य को देखती, तो तुम्हें प्रसन्नता होती। मैं ऐसे लोगों को देखने के लिए सौ मील चलने को तैयार हूँ। प्रभु इनका कल्याण करें। आशा है, तुम लोग अपने सुन्दर ग्राम्य जीवन का आनन्द ले रही होगी। मेरे लिए तुम किंचित्मात्र भी चिन्तित न होना – मेरी देख-भाल हो जायेगी, और अगर होती नहीं है तो मैं समझूँगा कि मेरा जाने का समय आ चुका है और मैं चल दूँगा।

‘हे माधव, लोग तुम्हें बहुत कुछ भेंट करते हैं – मैं गरीब हूँ किन्तु मेरे पास मेरा शरीर, मन तथा आत्मा है – ये सब कुछ तुम्हारे पादपद्मों में समर्पित कर रहा हूँ। हे जगन्नाथ इन्हें तुम अंगीकार कर लो, अस्वीकार न करो।’ इस प्रकार मैं चिरकाल के लिए अपना सब कुछ समर्पित कर चुका हूँ। एक बात और। यहाँ के लोग कुछ शुष्क प्रकृति के हैं; सारे जगत् में ऐसे लोगों की संख्या बहुत ही कम है, जो शुष्क न हों। वे लोग ‘माधव’ को नहीं समझ पाते। या तो वे ज्ञानार्जन भर करना चाहते हैं अथवा झाड़-फूँक से बीमारी दूर करना, टेबिल पर भूत उतारना, डाकिनी विद्या इत्यादि में प्रवृत्त होते हैं। इस देश में ‘प्रेम जीवन, स्वाधीनता’ की जितनी बातें सुनायी देती हैं, उतनी मुझे और कहीं भी नहीं सुनायी दीं, परन्तु इन विषयों में यहाँ के लोगों की धारणा जितनी कम है, उतनी और कहीं नहीं है। यहाँ ईश्वर या तो भय का प्रतीक है या रोग दूर करने वाली एक शक्ति अथवा किसी प्रकार का स्पन्दन आदि। प्रभु इनका मंगल करें! और फिर भी ये लोग दिन-रात तोते की तरह ‘प्रेम’, ‘प्रेम’ की रट लगाते रहते हैं।

अच्छे सपनों, अच्छी भावनाओं के लिये मेरी शुभकामनायें सदा तुम्हारे साथ हों। तुम अच्छी हो, उदार हो। चेतन को जड़ में परिणत करने के बजाय अर्थात् आध्यात्मिक सत्ता को साधारण लोगों की भाँति स्थूल, भौतिक स्तर पर ले आने के बजाय जड़ को चैतन्य से बदल डालो, हर रोज सुन्दरता, शान्ति तथा पवित्रता के उस जगत की कम से कम एक झलक तो देख ही लिया करो और रात-दिन उसी में डूबे रहने की चेष्टा करती रही। किसी अतिप्राकृत वस्तु को पाने की कभी चेष्टा न करो, पैर की अँगुलियों से भी ऐसी वस्तुओं का स्पर्श न करो। तुम्हारे मन सर्वदा अविच्छिन्न तैलधारावत् तुम्हारे हृदय-सिंहासननिवासी उस प्रियतम के पादपद्मों में दिन रात रत हो और उसके सिवाय देह आदि की ओर तुम्हारा ध्यान न जाय।

जीवन क्षणस्थायी है, एक क्षणिक स्वप्न; यौवन तथा सौन्दर्य नश्वर हैं। दिन-रात यही जपती रहो – ‘तुम्हीं मेरे पिता हो, माता हो, पति हो, प्रिय हो, प्रभु हो तथा ईश्वर हो – मैं तुम्हारे सिवाय और कुछ भी नहीं चाहती, कुछ भी नहीं चाहती, कुछ भी नहीं चाहती। तुम मुझमें हो, मैं तुममें हूँ – तुममें और मुझमें कोई अन्तर नहीं।’ धन नष्ट हो जाता है, सौन्दर्य विलीन हो जाता है, जीवन तेजी से समाप्त हो जाता है तथा शक्ति लुप्त हो जाती है, किन्तु प्रभु चिरकाल विद्यमान रहते हैं, प्रेम निरन्तर बना रहता है। यदि इस देहयन्त्र को बनाये रखने में किसी प्रकार का गौरव माना जाय, तो दैहिक कष्टों से आत्मा को पृथक् रखना उससे कहीं अधिक गौरव की बात है। जड़ के साथ किसी प्रकार का सम्पर्क न रखना ही इस बात का एकमात्र प्रमाण है कि तुम जड़ नहीं हो।

ईश्वरासक्त हो जाओ। देह का या कुछ और का क्या हो उस की क्या परवाह? पाप की विभीषिका में यही कहो कि हे मेरे भगवन्! हे मेरे प्रिय! मृत्युकालीन यातना में भी यही कहो कि हे मेरे भगवन्! हे मेरे प्रिय! संसार के सभी पापों में भी यही कहती रहो कि हे मेरे भगवान्! हे मेरे प्रिय! तुम यहीं हो, मैं तुम्हें देख रही हूँ। तुम मेरे साथ हो, मैं तुम्हारा अनुभव कर रही हूँ। मैं तुम्हारी हूँ, मुझे ग्रहण करो। मैं इस जगत् की नहीं हूँ, मैं तो तुम्हारी हूँ, अतः मुझे न त्यागो। इस हीरे की खान को छोड़कर काँच के टुकड़ों को ढूँढ़ने में प्रवृत्त न हो। यह जीवन एक महान् सुयोग है – क्या, तुम इसकी अवहेलना कर सांसारिक सुख में फँसना चाहती हो? वे निखिल आनन्द के मूल स्त्रोतस्वरूप हैं, उस परम श्रेयस् का अनुसन्धान करो, उस परम श्रेयस् को ही तुम्हारे जीवन का लक्ष्य बनाओ और तुम परम श्रेयस् को प्राप्त हो जाओगी।

साशीर्वाद तुम्हारा,
विवेकानन्द


  1. ईसाई वैज्ञानिक ( Christian Scientist ) अमेरिका का एक सम्प्रदाय विशेष है। उनका यह दावा है कि ईसा की तरह अलौकिक उपायों के द्वारा ये लोग भी रोग दूर कर सकता हैं। स.
  2. ईसाई वैज्ञानिक सम्प्रदाय की स्थापना करनेवाली श्रीमती एडी को स्वामी जी परिहासपूर्वक Mrs. Whirlpool (आवर्त) कहते थे, क्योंकि Eddy तथा Whirlpool पर्यायवाचक शब्द हैं। स०

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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