स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – ईसाबेल मैक्किंडली को लिखित (20 अगस्त, 1894)

(स्वामी विवेकानंद का कुमारी ईसाबेल मैक्किंडली को लिखा गया पत्र)

एनिसक्वाम,
२० अगस्त, १८९४

प्रिय बहन,

तुम्हारा कृपा-पत्र मुझे समय से एनिस्क्वाम में मिल गया। मैं फिर एक बार बैग्ली-परिवार के साथ हूँ। वे सदा की भाँति दयालु हैं। प्रो. राइट यहाँ नहीं थे। लेकिन परसों वे आये और हम लोग एक साथ बहुत आनन्दपूर्ण समय काट रहे हैं। एवॉन्स्टन के श्रीयुत् ब्रैड्ली, जिनसे तुम एबॉन्स्टन में मिल चुकी हो, यहाँ आये थे। उनकी साली ने कई दिनों में मुझे एक तस्वीर के लिए बैठाया, और उसने मेरी एक तस्वीर बनायी। मैंने नौका-विहार का आनन्द उठाया; एक शाम को नाव उलट गयी थी, और मेरे कपड़े वगैरह सब भीग गये थे।

ग्रीनेकर में मेरा समय बड़ा ही अच्छा बीता। वहाँ के लोग कितने दयालु एवं निष्कपट थे। लगता है, फ़ैनी हार्ट् ली एवं श्रीमती मिल्स अब तक घर वापस चली गयी होंगी।

यहाँ से शायद मैं न्यूयार्क वापस जाऊँगा। अथवा मैं बोस्टन में श्रीमती ओलि बुल के यहाँ जा सकता हूँ। शायद तुमने यहाँ के प्रसिद्ध वायलिनवादक श्री ओलि बुल का नाम सुना है। ये उन्हीं की विधवा पत्नी हैं। ये बहुत ही आध्यात्मिक महिला हैं। वे केम्ब्रिज में रहती हैं और भारत से मंगाये गये लकड़ी की शिल्पकृतियों से बनी उनकी बैठक प्रशस्त तथा सुन्दर है। वे चाहती हैं कि मैं जब चाहूँ उनके पास चले आऊँ तथा व्याख्यान के लिये उनकी बैठक का इस्तेमाल करूँ। बोस्टन वास्तव में किसी भी काम के लिए बड़ा अच्छा क्षेत्र है। लेकिन बोस्टन के लोग किसी वस्तु को जिस शीघ्रता के साथ ग्रहण करते हैं, उसी शीघ्रता से उसका परित्याग भी करते हैं; जब कि न्यूयार्क के लोग कुछ धीमी चाल के हैं, परन्तु वे जब किसी चीज को ग्रहण करते हैं, आमृत्यु उसका परित्याग नहीं करते।

मैंने इन दिनों अपना स्वास्थ्य ठीक रखा और भविष्य में भी ऐसा ही रखने की आशा करता हूँ। अभी भी मुझे अपनी संचित राशि से कुछ निकालने का अवसर नहीं मिला, फिर भी मेरे पास अभी अपर्याप्त धन है। मैंने सारी अर्थकरी योजनाओं का परित्याग कर दिया है और एक टुकड़े रोटी एवं एक झोपड़ी से ही पूर्णतः सन्तुष्ट रहूँगा तथा कर्म करता रहूँगा।

मुझे आशा है कि तुम अपना ग्रीष्मावकाश आनन्द से व्यतीत कर रही हो। कृपया कुमारी हाउ एवं श्री फ्रैंक हाउ को मेरा अभिवादन एवं प्रेम सूचित करना।

शायद अपने अन्तिम पत्र में तुमसे यह नहीं बता पाया कि मैं कैसे पेड़ों के नीचे सोया रहा, उपदेश दिया और कम से कम कुछ दिनों के लिये अपने को फिर एक बार एक स्वर्गीय वातावरण में पाया।

उम्मीद है कि आगामी शीतकाल में मैं न्यूयार्क को अपना केन्द्र बनाऊँगा, एवं इस सम्पर्क में कुछ निश्चय कर लेने पर मैं तुम्हें सूचित करूँगा। मैं यह भी निश्चित नहीं कर पाया हूँ कि मुझे इस देश में अभी और रहना है या नहीं। इस प्रकार का कोई निष्कर्ष मुझसे नहीं निकलता। मुझे अवसर की प्रतीक्षा करनी है। तुम्हारे चिर-स्नेही भाई की सदा-सर्वदा यह प्रार्थना है कि प्रभु तुम्हें सदा आशीर्वाद दें।

विवेकानन्द

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी पथ
error: यह सामग्री सुरक्षित है !!
Exit mobile version