स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – कुमारी ईसाबेल मैक्किंडली को लिखित (27 मार्च, 1895)

(स्वामी विवेकानंद का कुमारी ईसाबेल मैक्किंडली को लिखा गया पत्र)

५४, पश्चिम ३३,
न्यूयार्क,
२७ मार्च, १८९५

प्रिय बहन,

तुम्हारे कृपापत्र ने मुझे अनिर्वचनीय आनन्द दिया है। उसे मैंने बड़ी आसानी से पूरा पढ़ लिया। अंततः मैंने गेरुआ खोज ही निकाला और कोट बनवा लिया है। लेकिन, अभी तक गर्मियों के लिए कोई ऐसी चीज नहीं मिल सकी है। यदि तुम्हें मिले, तो कृपया मुझे सूचित करो। मैं न्यूयार्क में सिलवा लूँगा। तुम्हारा – डियरबोर्न एवेन्यू का अदभुत-अयोग्य दर्जी – साधुओं के कपड़े भी ठीक-ठाक तैयार नहीं कर सकता।

बहन लॉक ने मुझे लम्बी चिट्ठी लिखी है और उत्तर में विलंब का कारण जानना चाहती हैं। अतिरिक्त उत्साह में सहज ही बह जाती हैं वह, इसलिए मैं चुप हूँ। नहीं जानता, क्या जवाब दूँगा। कृपया मेरी ओर से उन्हें बता दो कि कोई स्थान निश्चित करना अभी मेरे लिए संभव नहीं। श्रीमती पीक भली हैं, महान् हैं और धर्मपरायण हैं – किन्तु, सांसारिक मामलों में उनकी बुद्धि की पहुँच मेरे ही बराबर है। हालाँकि मैं दिन-प्रतिदिन चतुर होता जा रहा हूँ। श्रीमती पीक से, वाशिंगटन के किसी अर्धपरिचित व्यक्ति ने गर्मियों के लिए कोई जगह देने का, प्रस्ताव किया है।

कौन जाने, वह किसी के चक्कर में पड़ जाएँ! ठगी और धोखाधड़ी के लिए यह बढ़िया देश है, जहाँ के ९९.९ प्रतिशत लोगों की नीयत, दूसरों से अनुचित लाभ उठाने की ही रहती है। आँख मूँदो कि पूरे गायब! बहन जोसेफिन उग्र स्वभाव की हैं। श्रीमती पीक सीधी-सादी महिला हैं। यहाँ के लोगों ने मेरे साथ ऐसा बढ़िया व्यवहार किया है कि अब बाहर कदम रखने के लिए मैं घण्टों अपने चारों ओर देखता रहता हूँ। सब ठीक-दुरुस्त हो जाएगा। बहन जोसेफिन से थोड़ा धीरज धरने को कहो।

‘बूढ़ों का घर’ चलाने से बेहतर है शिशुशाला चलाना – तुम प्रतिदिन यही अनुभव करती होगी, जहाँ तक मेरा अनुमान है। तुम श्रीमती बुल से मिलीं और मेरा ख्याल है, उनकी सरलता और घरेलू ढंग पर तुम्हें अचरज हुआ होगा। श्रीमती एडम्स से जब-तब मुलाकात तो होती होगी। श्रीमती बुल उनके पाठों से बहुत उपकृत हुई हैं। मैंने भी कुछ लिया था, लेकिन कोई फायदा नहीं! रोज-बरोज सामने बढ़नेवाला बोझ मुझे आगे झुकने नहीं देता – जैसा कि श्रीमती एडम्स चाहती हैं। चलते समय आगे झुकने की चेष्टा करते ही – केन्द्र की गुरुता पेट की सतह पर चली जाती है। इसलिए – मैं सामने की ओर तनकर ही आगे बढ़ता हूँ।

क्यों, कोई करोड़पति नहीं आ रहा? लखपति भी नहीं? बहुत दुःख की बात है!!! भई, मैं चेष्टा कर रहा हूँ, और क्या कर सकता हूँ! मेरे क्लासों में औरतें ही औरतें हैं। और, तुम किसी महिला से तो शादी नहीं कर सकतीं। अच्छी बात! धीरज धरो! मैं सतर्क दृष्टि से ढूँढ़ता रहूँगा और मौका मिलने पर चूकूँगा नहीं, यदि तुम्हें कोई नहीं मिला, तो यह मेरे आलस्य के कारण नहीं होगा।

जिन्दगी उसी पुरानी रफ्तार से चल रही है। कभी-कभी मैं अनन्त भाषणों और बकबक से ऊब जाता हूँ। लगातार कई दिनों तक मौन रहना चाहता हूँ।

तुम्हारे सुन्दर सपनों की आशा में (क्योंकि तुम्हारे सुखी होने का वही एक मार्ग है) –

तुम्हारा प्यारा भाई,
विवेकानन्द

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी पथ
error: यह सामग्री सुरक्षित है !!
Exit mobile version