स्वामी विवेकानंद के पत्र – कुमारी ईसाबेल मैक्किंडली को लिखित (4 अप्रैल, 1895)
(स्वामी विवेकानंद का कुमारी ईसाबेल मैक्किंडली को लिखा गया पत्र)
संयुक्त राज्य अमेरिका,
४ अप्रैल, १८९५
प्रिय आलासिंगा,
तुम्हारा पत्र अभी मिला। कोई व्यक्ति मेरा अनिष्ट करने की चेष्टा कर सकता है, तुम इससे मत डरो। जब तक प्रभु मेरी रक्षा करते हैं, मैं अभेद्य रहूँगा। अमेरिका के सम्बन्ध में तुम्हारी धारणा बहुत अस्पष्ट है।… यह एक विशाल देश है और यहाँ के अधिकांश मनुष्य धर्म में विशेष रुचि नहीं रखते।… ईसाई धर्म देशभक्ति के रूप में स्थित है, इससे अधिक और कुछ नहीं… अब मेरे पुत्र, साहस न छोड़ो।… मुझे सब सम्प्रदायों के भाष्यों सहित वेदान्त सूत्र भेजो।… मैं ईश्वर के हाथ में हूँ। भारत लौटने से क्या लाभ होगा? भारत मेरे विचारों को आगे नहीं बढ़ा सकता। यह देश मेरे विचारों को उदारतापूर्वक अपनाता है। मुझे जब आज्ञा मिलेगी, तब मैं वापस जाऊँगा। तब तक तुम धैर्यपूर्वक और शान्त भाव से काम करो। यदि मेरे ऊपर कोई आक्रमण करे, तो उसके अस्तित्व को एक तरह से भूल जाओ।…मेरा विचार एक ऐसी सोसाइटी स्थापित करने का है, जहाँ वेद और वेदान्त के भाष्य सहित लोगों को शिक्षा मिल सके। अभी इस भाव से कार्य करो।… जितनी बार तुम्हें दुर्बलता का अनुभव होता है, यह समझो कि तुम न केवल अपने आपको बल्कि अपने उद्देश्य को भी हानि पहुँचा रहे हो। अनन्त शक्ति और श्रद्धा ही सफलता का कारण है।
सदैव आशीर्वादपूर्वक,
विवेकानन्द
पुनश्च – आनन्दपूर्वक रहो… अपने आदर्श पर स्थिर रहो… मुख्यतः हमेशा यह याद रखो कि कभी दूसरों को मार्ग दिखाने का या उन पर हुक्म चलाने का यत्न न करना, जैसा कि अमेरिकन लोग कहते हैं, शासन (Boss) मत करो। सबके दास बने रहो।