स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – कुमारी जोसेफिन मैक्लिऑड को लिखित (10 जुलाई, 1897)

(स्वामी विवेकानंद का कुमारी जोसेफिन मैक्लिऑड को लिखा गया पत्र)

अल्मोड़ा,
१० जुलाई, १८९७

प्रिय जो जो,

तुम्हारे पत्रों को पढ़ने की फुरसत मुझे है, तुम्हारे इस आविष्कार से मुझे खुशी हुई।

व्याख्यानबाजी तथा वक्तृता से परेशान होकर मैंने हिमालय का आश्रय लिया है। डॉक्टरों द्वारा खेतड़ी के राजा साहब के साथ इंग्लैण्ड जाने की अनुमति प्राप्त न होने के कारण मैं अत्यन्त दुःखित हूँ; और स्टर्डी भी इससे अत्यन्त क्षुब्ध हो उठा है।

सेवियर दम्पत्ति शिमला में हैं और कुमारी मूलर यहाँ पर – अल्मोड़ा में।

प्लेग का प्रकोप घट चुका है; किन्तु दुर्भिक्ष अभी भी यहाँ पर जारी है, साथ ही अब तक वर्षा न होने के कारण ऐसा प्रतीत होता है कि वह और भी भयानक रूप धारण करेगा।

दुर्भिक्ष-पीड़ित विभिन्न जिलों में हमारे साथियों ने कार्य प्रारम्भ कर दिया है और यहाँ से उनका निर्देशन करने में मैं अत्यन्त ही व्यस्त हूँ।

जैसे भी बने तुम यहाँ आ जाओ; सिर्फ इतना ही ख्याल रखने की बात है कि यूरोपीय एवं हिन्दुओं का (अर्थात् यूरोपीय लोग जिन्हें ‘नेटिव’ कहते हैं उनका) साथ रहना जल और तेल की तरह है। नेटिव लोगों के साथ मिलना-जुलना यूरोपीय लोगों के लिए एक महासंकटजनक घटना है। (प्रादेशिक) राजधानियों में भी उल्लेख योग्य कोई होटल नहीं है। तुम्हें अधिक नौकर-चाकरों की व्यवस्था करनी पड़ेगी (यद्यपि उसका खर्च होटल की अपेक्षा कम होगा)। तुम्हें केवल लँगोटी पहनकर रहने वालों का संग बर्दाश्त करना पड़ेगा; मुझे भी तुम उसी रूप में देखोगी। सभी जगह धूल और कीचड़ तथा काले आदमी दिखायी देंगे। किन्तु दार्शनिक विवेचन करने वाले भी तुम्हें अनेक व्यक्ति मिलेंगे। यहाँ पर यदि तुम अंग्रेजों के साथ विशेष मिलती-जुलती रहोगी तो तुम्हें अधिक आराम मिलेगा, लेकिन इससे हिन्दुओं का ठीक-ठीक परिचय तुम्हें नहीं प्राप्त होगा। शायद तुम्हारे साथ बैठकर मैं भोजन नहीं कर सकूँगा; किन्तु मैं तुम्हें यह वचन देता हूँ कि तुम्हारे साथ मैं अनेक स्थलों में भ्रमण करूँगा तथा तुम्हारी यात्रा को भरसक सुखमय बनाने का प्रयत्न करूँगा। तुम्हें यहाँ यही सब मिलेगा, यदि इससे कुछ अच्छा परिणाम निकलता है तो अच्छी ही बात है। शायद मेरी हेल भी तुम्हारे साथ आ सकती हैं। आर्चड लेक, आर्चड द्वीप, मिचिगन के पते पर कुमारी कँम्पबेल नाम की एक कुमारी रहती है, वे श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त हैं एवं उपवास तथा प्रार्थनादि के लिए उक्त द्वीप में एकान्तवास करती हैं। भारत-दर्शनार्थ वे सब कुछ त्यागने को प्रस्तुत हैं, किन्तु वे अत्यन्त गरीब हैं। यदि तुम उनको अपने साथ किसी प्रकार ला सको तो जिस किसी प्रकार से भी हो, मैं उनके खर्चे की व्यवस्था करूँगा। श्रीमती बुल यदि वयोवृद्ध लैण्डस्बर्ग को अपने साथ ला सकें तो शायद उस वृद्ध के जीवन की रक्षा हो जाय।

तुम्हारे साथ अमेरिका लौटने की मेरी पूरी सम्भावना है। हालिस्टर तथा उस शिशु को मेरा चुम्बन देना। अल्बर्टा, लेगेट दम्पत्ति तथा मेबल के प्रति मेरा स्नेह व्यक्त करना। फॉक्स क्या कर रहा है? उससे भेंट होने पर उसे मेरा स्नेह कहना। श्रीमती बुल तथा सारदानन्द को मेरा स्नेह कहना। पहले की तरह ही मैं शक्तिशाली हूँ; किन्तु मेरा स्वास्थ्य आगे किस प्रकार रहेगा, यह भविष्य के समस्त झमेलों से मुक्त रहने पर निर्भर है। अब और अधिक दौड़-धूप उचित नहीं होगी।

इस वर्ष तिब्बत जाने की प्रबल इच्छा थी, किन्तु इन लोगों ने जाने की अनुमति नहीं दी, क्योंकि वहाँ का रास्ता अत्यन्त श्रमसाध्य है। अतः खड़े पहाड़ पर पूरी रफ्तार से पहाड़ी घोड़ा दौड़ाकर ही मैं सन्तुष्ट हूँ। तुम्हारी साइकिल से यह अधिक उत्तेजनाप्रद है, यद्यपि विम्बलडन में मुझे उसका भी विशेष अनुभव हो चुका है। मीलों तक पहाड़ी के ऊपर और मीलों तक पहाड़ी के नीचे जाता हुआ रास्ता, जो कुछ ही फुट चौड़ा होगा, मानो खड़ी चट्टानों और हजारों फुट नीचे के गड्ढों के ऊपर लटकता रहता है।

सदा प्रभुपदाश्रित तुम्हारा,
विवेकानन्द

पुनश्च – भारत आने के लिए सर्वोत्तम समय अक्टूबर का मध्य भाग अथवा नवम्बर का प्रथम भाग है। दिसम्बर, जनवरी तथा फरवरी में सब कुछ देखकर फरवरी के अन्त में तुम लौट सकती हो। मार्च से गर्मी शुरू होती है। दक्षिण भारत हमेशा ही गरम रहता है।

वि.

मद्रास से शीघ्र ही एक पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ होगा, गुडविन उस कार्य के लिए वहाँ गया हुआ है।

वि.

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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