स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – कुमारी जोसेफिन मैक्लिऑड को लिखित (18 अप्रैल, 1898)

(स्वामी विवेकानंद का कुमारी जोसेफिन मैक्लिऑड को लिखा गया पत्र)

दार्जिलिंग,
१८ अप्रैल, १८९८

प्रिय ‘जो-जो’

ज्वर से पीड़ित होने से मुझे खटिया की शरण लेनी पड़ी थी। इसका कारण सम्भवतः अत्यधिक पर्वतारोहण एवं अस्वास्थ्यकर स्थिति है। पहले की अपेक्षा आज कुछ ठीक हूँ, दो-एक दिन के अन्दर यहाँ से चल देना चाहता हूँ। कलकत्ते में गर्मी अधिक होने पर भी वहाँ रात को मुझे नींद अच्छी आती थी और भूख भी ठीक लगती थी। यहाँ उन दोनों से ही हाथ धोना पड़ा है – इतना ही लाभ है।

मारगरेट के बारे में कुमारी मूलर से मिलकर अभी तक कोई बात नहीं कर पाया हूँ, किन्तु आज उन्हें पत्र लिखने की इच्छा है। यह जानकर कि मारगरेट यहाँ आ रही हैं, उन्होंने सारी व्यवस्था कर ली है। उन लोगों को बंगला सिखाने के लिए गुप्त को भी आमन्त्रित किया गया है। कुमारी मूलर भी सम्भवतः मारगरेट के लिए अब कुछ करने को प्रस्तुत हैं; फिर भी मैं उन्हें पत्र दूँगा।

यहाँ रहती हुई मारगरेट जब चाहे काश्मीर देख सकती है; किन्तु कुमारी ‘म’ यदि राजी न हों, तब कोई बड़ी गड़बड़ी होने की सम्भावना है और उससे उनको तथा मारगरेट को अर्थात् उन दोनों को ही विशेष क्षति पहुँचेगी।

मैं पुनः अल्मोड़ा जाऊँगा अथवा नहीं, इसका कोई निश्चय नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि घोड़े पर अधिक चढ़ने के फलस्वरूप पुनः बीमार पड़ना निश्चित सा है। तुम्हारे लिए मैं शिमला में प्रतीक्षा करूँगा। इस बीच में तुम सेवियरों के साथ मिलजुल लो। कार्य प्रारम्भ करने के बाद मैं इस बारे में विचार कर लूँगा। कुमारी नोबल ने रामकृष्ण मिशन में एक भाषण दिया था, यह जानकर मुझे अत्यन्त खुशी हुई।

तुम त्रिमूर्तियों को मेरा हार्दिक स्नेह। इति।

सदैव भगवदाश्रित तुम्हारा,
विवेकानन्द

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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