स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – कुमारी जोसेफिन मैक्लिऑड को लिखित (26 दिसम्बर, 1900)

(स्वामी विवेकानंद का कुमारी जोसेफिन मैक्लिऑड को लिखा गया पत्र)

मठ, बेलूड़, हावड़ा,
२६ दिसम्बर, १९००

प्रिय ‘जो’,

आज की डाक से तुम्हारा पत्र मिला। उसके साथ ही माता जी तथा अल्बर्टा के पत्र भी प्राप्त हुए। अल्बर्टा के पण्डित मित्र ने रूस के सम्बन्ध में जो कुछ कहा है, वह प्रायः मेरी धारणा के अनुरूप ही है। उनकी विचारधारा में केवल एक स्थल पर कठिनाई दिखायी दे रही है – और वह यह है कि समग्र हिन्दू जाति के लिए एक साथ रूसी भावना को अंगीकार करना क्या सम्भव है?

हमारे प्रिय मित्र श्री सेवियर मेरे पहुँचने के पहले ही परलोक सिधार चुके हैं। उनके द्वारा स्थापित आश्रम के किनारे से जो नदी प्रवाहित है, उसीके तट पर हिन्दू रीति से उनका अन्तिम संस्कार किया गया है। ब्राह्मणों ने पुष्पमाल्यशोभित उनकी देह को वहन किया था एवं ब्रह्मचारियों ने वेदपाठ किया था।

हम लोगों के आदर्श के लिए इस बीच में दो अंग्रेजों ने आत्मोत्सर्ग किया। इसके फलस्वरूप प्राचीन इंग्लैण्ड तथा उसकी वीर सन्तानें मेरे लिए और भी प्रिय हो चुकी हैं। इंग्लैण्ड की सर्वोत्तम रूधिरधारा से महामाया मानो भावी भारत के पौधे को सींच रही हैं – महामाया की जय हो!

प्रिय श्रीमती सेवियर विचलित नहीं हुई हैं। पेरिस के पते से उन्होंने मुझे जो पत्र लिखा था, वह इस डाक से आज मुझे प्राप्त हुआ। उनसे मिलने के लिए कल मैं पहाड़ की ओर रवाना हो रहा हूँ। भगवान् हम लोगों की इस प्रिय साहसी महिला को आशीर्वाद प्रदान करें।

मैं स्वयं दृढ़ तथा शांत हूँ। आज तक कोई भी घटनाचक्र मुझे विचलित नहीं कर सका है; आज भी महामाया मुझे खिन्न न होने देंगी।

शीत ऋतु के आगमन के साथ ही साथ यह स्थान अत्यन्त सुखप्रद हो उठा है। बर्फ़ के आवरण से अनाच्छादित हिमालय और भी सुन्दर हो उठेगा।

श्री जान्स्टन नामक जो युवक न्यूयार्क से रवाना हुआ था, उसने ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया है तथा इस समय वह मायावती में है।

सारदानन्द के नाम से रूपये मठ में भेज देना, क्योंकि मैं पहाड़ की ओर जा रहा हूँ।

अपनी शक्ति के अनुसार उन लोगों ने अच्छा ही कार्य किया है। तदर्थ मुझे . खुशी है और मैंने अपनी स्नायविक दुर्बलतावश पहले जो असन्तोष प्रकट किया था, वह मेरी ही मूर्खता थी। वे लोग सदा की तरह सज्जन तथा विश्वासपात्र हैं एवं उन लोगों का शरीर भी स्वस्थ है।

श्रीमती बुल को यह समाचार देना तथा कहना कि उन्होंने हमेशा ठीक ही कहा है और मुझसे ही भूल हुई है। इसलिए मैं सहस्र बार उनसे क्षमा प्रार्थना कर रहा हूँ।

उनको तथा एम् – को मेरा असीम स्नेह कहना।

देखता हूँ, जब मैं आगे-पीछे,
प्रतीत होता है, सब कुछ ठीक।
मेरे गहनतम दुःखों के मध्य,
रहना आत्मा का सदा प्रकाश।

एम् – को, श्रीमती सि – को तथा प्रिय जूल बोया को मेरा अनन्त स्नेह ज्ञापन करना। प्रिय ‘जो’, तुम मेरा प्रणाम ग्रहण करना।

विवेकानन्द

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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