स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – कुमारी जोसेफिन मैक्लिऑड को लिखित (7 मार्च, 1900)

(स्वामी विवेकानंद का कुमारी जोसेफिन मैक्लिऑड को लिखा गया पत्र)

१५०२, जोन्स स्ट्रीट,
सैन फ़्रांसिस्को,
७ मार्च, १९००

प्रिय ‘जो’,

श्रीमती बुल के पत्र से विदित हुआ कि तुम केम्ब्रिज में हो। हेलेन के पत्र से यह भी मालूम हुआ कि तुमको जो कहानियाँ भेजी गयी थीं, वे तुम्हें प्राप्त नहीं हुईं। यह बहुत ही अफसोस की बात है। मार्गरेट के समीप उनकी प्रतिलिपियाँ है, वह तुम्हें दे सकती है। मेरा स्वास्थ्य साधारणतया ठीक ही है। धन का अभाव, साथ ही जी-जान से परिश्रम, फिर कुछ परिणाम नहीं! लॉस एंजिलिस से भी दशा ख़राब है! यदि कुछ देना न पड़े तो दल बाँधकर लोग भाषण सुनने आते हैं, किन्तु यदि कुछ गाँठ से निकालने का प्रश्न उपस्थित हो, तो नहीं आते; ऐसी स्थिति है!

दो-चार दिन से मेरा शरीर ठीक नहीं है, इसलिए कुछ भी अच्छा नहीं लगता। मुझे यह प्रतीत होता है कि प्रतिदिन रात्रि में भाषण देने के फलस्वरूप ही ऐसा हुआ है। मुझे आशा है कि ओकलैंड के कार्य के फलस्वरूप कम से कम न्यूयार्क तक वापस जाने का ख़र्च मैं संग्रह कर सकूँगा; और फिर न्यूयार्क पहुँचकर भारत लौटने का मार्ग-व्यय मैं एकत्र करूँगा। यदि कुछ महीने लन्दन रहने का ख़र्च मैं संग्रह कर सका, तो लन्दन भी जा सकता हूँ। हमारे जनरल का पता तो तुम मुझे भेज देना। आजकल नाम भी प्रायः मुझे याद नहीं रहता है।

अब मैं बिदा चाहता हूँ पेरिस में तुमसे भेंट हो सकती है और नहीं भी। श्रीरामकृष्ण देव तुम्हें आशीर्वाद प्रदान करें। जितना मैं सहायता पाने के योग्य हूँ, उससे कहीं अधिक तुमने मेरी सहायता की है। मेरा असीम स्नेह तथा कृतज्ञता जानना।

विवेकानन्द

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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