स्वामी विवेकानंद के पत्र – कुमारी मेरी हेल को लिखित (18 मई, 1901)
(स्वामी विवेकानंद का कुमारी मेरी हेल को लिखा गया पत्र)
बेलूड़ मठ,
हावड़ा, बंगाल (भारत)
१८ मई, १९०१
प्रिय मेरी,
कभी कभी किसी बडे नाम के साथ पुछल्ले की तरह लग जाने से बड़ी कठिनाई जो जाती है। और यही तो मेरे पत्र के साथ हुआ! तुमने मुझे २२ जनवरी १९०१ को पत्र लिखा था, पर पता दिया महान् कुमारी मैक्लिऑड का। परिणाम यह हुआ कि वह पत्र उनके पीछे पीछे सारी दुनिया की खाक छानता रहा और अब कल जापान से भेजा जाकर मुझे मिला है, जहाँ की आजकल कुमारी मैक्लिऑड हैं। तो इस तरह स्फिंक्स की उस पहेली का उत्तर हुआ : ‘तू किसी बड़े नाम के साथ छोटे नाम को नहीं जोड़ेगा।’
तो मेरी तुम फ़्लोरेंस और इटली में मौज करती रहीं, और मुझे पता भी नहीं कि तुम इस समय हो कहाँ। अच्छा, मोटी वृद्धा ‘महिला’, यह पत्र मैं मोनरो एण्ड कम्पनी, ७ रू स्क्राइब के पते पर तुम्हें भेज रहा हूँ।
तुम फ्लोरेंस और इटली की झीलों में समय गुजार रही हो। बहुत अच्छा। यद्यपि तुम्हारा कवि उसे निरर्थक मानने में आपत्ति करता है।
प्यारी बहन, कुछ अपने बारे में भी बताउँ? भारत, मैं पिछली शिशिर ऋतु में आया था। तमाम जाड़े कष्ट भोगता रहा और इसी ग्रीष्म में पूर्वी बंगाल और आसाम के दौरे पर निकल गया। ये इलाक़े विशालकाय नदियों और पहाड़ियों और मलेरिया से परिपूर्ण है। दो महीने के कठिन परिश्रम से बीमार पड़ गया और अब कलकत्ता वापस आ गया हूँ, जहाँ धीरे धीरे मेरा स्वास्थ्य सुधर रहा है।
कुछ महीने हुए खेतड़ी के राजा की गिर पड़ने से मृत्यु हो गयी। इस तरह तुम देखती हो कि मेरे चारों ओर इस समय अँधेरा ही अँधेरा है, मेरा अपना स्वास्थ्य भी चौपट है। फिर भी मुझे पूरा विश्वास है कि शीघ्र ही मैं पुनः उठ खड़ा होऊँग़ा। बस मैं अगले सुअवसर की प्रतीक्षा कर रहा हूँ।
काश इस समय मैं यूरोप आ सकता तो तुमसे खूब बातें हो सकतीं; पर मैं जल्दी ही भारत वापस लौट जाता, क्योंकि इन दिनों एक प्रकार की शान्ति तो मैं महसूस ही कर रहा हूँ और मेरी बेचैनी भी अधिकांशतः दूर हो चुकी है।
हैरियट ऊली, ईसाबेल, हैरियट मैक्किडली को मेरा प्यार कहना और माँ से मेरा चिर प्रेम एवं कृतज्ञता ज्ञापित करना। माँ से कहना कि एक हिन्दु की सूक्ष्म कृतज्ञभावना पीढ़ियों तक बनी रहती है।
भगवदपदाश्रीत तुम्हारा,
विवेकानन्द
पुनश्च – जब तुम्हारी इच्छा हो मुझे पत्र लिखो।