स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – कुमारी मेरी हेल को लिखित (1894)

(स्वामी विवेकानंद का कुमारी मेरी हेल को लिखा गया पत्र)

द्वारा श्रीमती ई. टोटेन,
१७०३, फर्स्ट स्ट्रीट
वाशिंगटन,
१८९४

प्रिय बहन,

मुझे तुम्हारे दोनों पत्र मिले। पत्र लिखने का कष्ट कर तुमने बड़ी कृपा की। आज मैं यहाँ भाषण दूँगा, कल बाल्टिमोर में और पुनः सोमवार को बाल्टिमोर में तथा मंगलवार को पुनः वाशिंगटन में। उसके कुछ दिन बाद मैं फिलाडेलफिया रहूँगा। जिस दिन मैं वाशिंगटन से प्रस्थान करूँगा, उस दिन तुम्हें पत्र लिखूँगा। प्रो. राइट के दर्शन के लिए कुछ दिन फिलाडेलफिया रहूँगा। कुछ दिन तक न्यूयार्क और बोस्टन के बीच आता-जाता रहूँगा और तब डिट्रॉएट होते हुए शिकागो जाऊँगा, और तब, जैसा कि सिनेटर पामर कहते हैं, चुपके से इंग्लैण्ड को।

अंग्रेजी में ‘धर्म’ (Dharma) शब्द का अर्थ है ‘रिलिजन’ (Religion)। मुझे बहुत दुःख है कि कलकत्ता में पेट्रो के साथ लोगों ने अभद्र व्यवहार किया। मेरे साथ यहाँ बहुत ही अच्छा व्यवहार हुआ है और बहुत अच्छी तरह अपना काम कर रहा हूँ। इस बीच कुछ भी असाधारण नहीं, सिवा इसके कि भारत से आए समाचार-पत्रों के भार से तंग आ गया हूँ, और इसलिए एक गाड़ी भर मदर चर्च और श्रीमती गर्नसी को भेजने के पश्चात् मुझे उन्हें समाचार-पत्र भेजने से मना करना पड़ा रहा है। भारत में मेरे नाम पर काफी हो-हल्ला हो चुका है। आलासिंगा ने लिखा है कि देश भर का प्रत्येक गाँव अब मेरे विषय में जान चुका है। अच्छा, चिर शान्ति सदा के लिए समाप्त हुई और अब कहीं विश्राम नहीं है। भारत के ये समाचार-पत्र मेरी जान ले लेंगे, निश्चय जानता हूँ। अब वे यह बात करेंगे कि किस दिन मैं क्या खाता हूँ, कैसे छींकता हूँ। भगवान् उनका कल्याण करे। यह सब मेरी मूर्खता थी। मैं सचमुच ही यहाँ थोड़ा पैसा जमा करने चुपचाप आया था और लौट जाने, किन्तु जाल में फँस गया और अब वह मौन अथवा शान्त जीवन भी नहीं रहा।

तुम्हारे लिए पूर्ण आनन्द की कामनाएँ।

सस्नेह तुम्हारा,
विवेकानन्द

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी पथ
error: यह सामग्री सुरक्षित है !!
Exit mobile version